"अष्टावक्र (महाकाव्य)": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
छो Nmisra (वार्ता) द्वारा किए बदलाव 1316696 को पूर्ववत करें
No edit summary
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
| series =
| series =
| subject =
| subject =
| genre =
| genre = महाकाव्य
| publisher = जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय
| publisher = जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय
| pub_date = जनवरी १४, २०१०
| pub_date = जनवरी १४, २०१०

00:26, 25 नवम्बर 2011 का अवतरण

अष्टावक्र महाकाव्य  
Cover
अष्टावक्र महाकाव्य (प्रथम संस्करण) का आवरण पृष्ठ
लेखक जगद्गुरु रामभद्राचार्य
मूल शीर्षक अष्टावक्र महाकाव्य
देश भारत
भाषा हिन्दी
प्रकार महाकाव्य
प्रकाशक जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय
प्रकाशन तिथि जनवरी १४, २०१०
मीडिया प्रकार मुद्रित (सजिल्द)
पृष्ठ २२३ पृष्ठ (प्रथम संस्करण)

अष्टावक्र (२०१०) हिन्दी भाषा का एक महाकाव्य है, जिसकी रचना २००९ ई में जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०–) ने की थी। यह महाकाव्य १०८-१०८ पदों वाले आठ सर्गों में विभक्त है, और इसमें कुल ८६४ पद हैं। महाकाव्य की विषयवस्तु ऋषि अष्टावक्र का चरित है, जोकि रामायण और महाभारत आदि हिन्दू ग्रंथों में उपलब्ध है। इस महाकाव्य की प्रति का प्रकाशन चित्रकूट, उत्तर प्रदेश स्थित जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय द्वारा किया गया है। पुस्तक का विमोचन जनवरी १४, २०१० ई के दिन कवि के षष्टिपूर्ति महोत्सव के दिन किया गया।[1]

इस काव्य के नायक अष्टावक्र अपने शरीर के आठों अंगों से विकलांग हैं। महाकाव्य अष्टावक्र ऋषि की संकट से लेकर सफलता से होते हुए धन्यता तक की यात्रा प्रस्तुत करता है। महाकवि स्वयं दो मास की अल्पायु से प्रज्ञाचक्षु हैं, और उनके अनुसार इस महाकाव्य में विकलांगों की समस्त समस्याओं के समाधान सूत्र इस महाकाव्य में प्रस्तुत हैं। उनके अनुसार महाकाव्य के आठ सर्गों में विकलांगों की आठ मनोवृत्तियों के विश्लेषण हैं।[2]

कथावस्तु

आठ सर्ग

  1. सम्भव
  2. संक्रान्ति
  3. समस्या
  4. संकट
  5. संकल्प
  6. साधना
  7. सम्भावना
  8. समाधान

टिप्पणियाँ

  1. रामभद्राचार्य २०१०।
  2. रामभद्राचार्य २०१०, पृष्ठ क-ग।

सन्दर्भ

रामभद्राचार्य, स्वामी (जनवरी १४, २०१०). अष्टावक्र महाकाव्य. चित्रकूट, उत्तर प्रदेश, भारत: जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय.