राजेन्द्रचन्द्र हाजरा

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राजेन्द्रचन्द्र हाजरा (1905 - 10 मई 1982) एक विद्वान और संस्कृतज्ञ थे जो पौराणिक साहित्य ( पुराण और उपपुराण ) के अध्ययन के लिए जाने जाते हैं। चार दशकों से अधिक के अकादमिक करियर के दौरान उन्होंने स्मृति साहित्य में मुख्य रूप से कार्य किया । उन्होंने वेद, व्याकरण, काव्य, संकलन, पुरातत्व, विश्व-इतिहास, पुरालेख तथा न्याय एवं वैशेषिक दर्शन जैसे विविध विषयों पर लगभग 10 ग्रन्थों की रचना की और 200 से अधिक शोध लेख लिखे। [1] [2]

जीवनी[संपादित करें]

राजेन्द्रचन्द्र हाजरा का जन्म 1905 में डोगाची गांव में हुआ था, जो उस समय बंगाल का ढाका जिला था और अब बांग्लादेश में है। अपने स्कूल के दिनों में उन्होंने अपनी प्रतिभ प्रदर्शित की। इसके बाद उन्होंने ढाका विश्वविद्यालय से संस्कृत में बीए (१९२९ ई) और एमए (१९३१) प्राप्त की। दोनों में ही उन्होंने प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त किया। जगन्नाथ इंटरमीडिएट कॉलेज में संस्कृत और बंगाली में व्याख्याता के रूप में काम करते हुए सुशील कुमार दे के मार्गदर्शन में उन्होंने 1936 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उनका शोधपत्र स्टडीज़ इन द पुराणिक रिकॉर्ड्स ऑन हिंदू राइट्स एंड कस्टम को 1940 में ढाका विश्वविद्यालय ने एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया था। 1940 में 'स्टडीज इन उपपुरानाज' नामक शोधपत्र लिखकर उन्होंने डी. लिट प्राप्त की। इस शोधपत्र को मुंशीराम मनोहरलाल ने पुस्तकों की एक श्रृंखला के रूप में प्रकाशित किय किन्तु यह पूरा नहीं हो सका। कुछ लोग इसे उनकी महान कृति मानते हैं। [2] [1]

1939 से 1951 तक वे ढाका विश्वविद्यालय में कार्यरत रहे और वहाँ वे संस्कृत विभाग के प्रमुख बने। इस अवधि में उन्होंने ब्रिटिश शासन से भारतीय स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले क्रांतिकारियों को विश्वविद्यालय के ढाका हॉल में आश्रय देकर सहायता की। इस कार्य में उनके साथ उनके सहयोगी और संकाय-सदस्य रमेशचन्द्र मजुमदार भी थे। हाजरा, ढाका हाल के प्रोवोस्ट थे। इससे पहले हाजरा ने भारतीय पुलिस सेवा के लिए अर्हता प्राप्त कर ली थी, लेकिन क्रांतिकारियों से उनके संबंध के कारण उन्हें नियुक्ति देने से इनकार कर दिया गया था। [1]

1951 में वे ढाका (तत्कालीन पाकिस्तान) से भारत चले आए और कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज में स्नातकोत्तर अध्ययन विभाग में सम्मिलित हो गए। वहां उन्होंने 1972 में अपनी सेवानिवृत्ति तक स्मृति और पुराण के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। उन्होंने भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, कलकत्ता की एशियाटिक सोसाइटी, गंगानाथ झा रिसर्च इंस्टीट्यूट, रामकृष्ण मिशन इंस्टीट्यूट ऑफ कल्चर और साहित्य अकादमी के साथ मिलकर काम किया और संस्कृतिविदों और इतिहासकारों एसके डे, आरसी मजूमदार, पीवी केन, यूएन घोषाल, एडी पुलस्कर, वी. राघवन, सुनीति कुमार चटर्जी, सहित अन्यान्य के साथ सहयोग किया। सन 1964 में उन्हें 'द एशियाटिक सोसाइटी' का फेलो चुना गया और बाद में "स्मृति और पुराण के विशेष संदर्भ में प्राचीन भारतीय भाषा में उत्कृष्ट योगदान" के लिए एससी चक्रवर्ती पदक से सम्मानित किया गया। वे नरेश चन्द्र सेनगुप्त मेडल से भी सम्मानित किये गये।. [2] [1]

ग्रन्थसूची[संपादित करें]

पुस्तकें
  • Studies in the Purāṇic Records on Hindu Rites and Custom, मोतीलाल बनारसीदास, 1940.
  • Studies in the Upapurāṇas, Vol I (Saura and Vaiṣṇava Upapurāṇas), Munshiram Manoharlal, 1958.
  • Studies in the Upapurāṇas, Vol II (Śākta and Non-sectarian Upapurāṇas), Munshiram Manoharlal, 1963.
  • Studies in the Upapurāṇas, Vol III (Ṣaiva and Gāṇapatya Upapurāṇas), unpublished, manuscript available.
  • Studies in the Upapurāṇas, Vol IV, unpublished, manuscript available.
  • Studies in the Upapurāṇas, Vol V, unpublished, manuscript available.
  • Edited: Śava-sūtakāśauca-prakaraṇa of Bhaṭṭa Bhavadeva, Sanskrit College Research Series, 1959.
  • Edited with S. K. De: Sāhitya-ratna-kośa, Part II Purāṇetihāsa-saṃgraha (An anthology of the Epics and Puranas), Sahitya Akedemi, 1959.
  • Edited with S. K. De, U. N. Ghoshal, A. D. Pulaskar: The cultural heritage of India, Volume II, Ramakrishna Mission Institute of Culture, 1962.
  • Edited: Kṛtya-Tattvārṇava, Part 1, Asiatic Society, Calcutta, 1975.
  • Kṛtya-Tattvārṇava, Part 2, unpublished.
  • Rise of Epic and Purāṇic Rudra-Śiva Or Śiva Maheśvara
  • Studies in Smr̥ti Śāstra (स्मृतिशास्त्र का अध्ययन)
  • Rudra in the R̥g-Veda (ऋग्वेद में रूद्र)
  • The Problems relating to the Śiva-purāṇa (शिवपुराण से सम्बन्धित समस्यायें)
संकलित शोध आलेख
  • Dr. R. C. Hazra Commemoration Volume, Part I (Puranic and Vedic Studies), All-India Kshiraj Trust, 1985; incomplete.
  • Dr. R. C. Hazra Commemoration Volume, Part II (Dharmaśāstra, Sanskrit literature, Vyākaraṇa), unpublished.

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Kanjilal, Dileep Kumar (192). "Professor Rajendra Chandra Hazra (1905-192)". Annals of the Bhandarkar Oriental Research Institute. 63 (1/4): 384–385. JSTOR 41693033. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "ABORI" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  2. Bhattacharya, Ram Shankar, संपा॰ (1985). Dr. R. C. Hazra Commemoration Volume, Part 1. Varanasi: All-India Kashiraj Trust. पपृ॰ iii–viii. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "ComVol I" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है