महोबा का युद्ध

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महोबा का युद्ध
चन्देल-चौहान युद्ध का भाग
तिथि 1182 ईस्वी
स्थान महोबा, जेजाकभुक्ति (आज के मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश का हिस्सा)
परिणाम पृथ्वीराज चौहान की जीत
  • पृथ्वीराज ने राज्य पंजवनराय (बहनोई) के हाथो में सोपा।
योद्धा
अजमेर के चौहान

(सहायक राजवंश)

  • चंद्रावती के परमार
  • नाडोला के चौहान
चन्देल साम्राज्य

(सम्मिलित राजवंश)

सेनानायक
पृथ्वीराज चौहान
पार्थ
पजावन
श्याम राय
चावंड राय
चामुंडा अहीर
धीर पुंडीर
परमर्दिवर्मन
अल्हनदेववर्मन चन्देल (आल्हा)
उदल चन्देल
लक्ष्मणचंद्र गहरवार
अभय प्रतिहार
ढेवा भार्गव
शक्ति/क्षमता
२ लाख चौहान सैनिक। ९० हजार चन्देल सैनिक और ५० हजार काशी के रघुवंशी एवं गहरवार और जयचंद के सैनिक।
मृत्यु एवं हानि
भारी नुकसान। भारी नुकसान।

महोबा का युद्ध (1182 ईस्वी), English: Battle of Mahoba, 1182 CE) शाकंभरी के चौहान और चन्देल साम्राज्य के मध्य लड़ा गया था जिसमे अजमेर के चौहान राजा पृथ्वीराज तृतीय ने महोबा के चन्देल सम्राट परमर्दिवर्मन प्रथम को पराजित किया।

कारण[संपादित करें]

पृथ्वीराज की सेना जब युद्ध से लोट रही थी तब चन्देल साम्राज्य (परमर्दिवर्मन) के सैनिकों ने घायल सैनिक जो घायल होने के कारण अपनी सेना से काफी दूर थे उन पर हमला कर उन्हें मार दिया गया। अपने सैनिकों को मृत पाकर सम्राट पृथ्वीराज ने युद्ध का एलान कर दिया।[1][2]

युद्ध[संपादित करें]

पृथ्वीराज चौहान ने 1182 ईस्वी में महोबा पर आक्रमण किया। दोनों सेनाओं में एक भीषण युद्ध हुआ जिस में आल्हा और उदल ने पृथ्वीराज चौहान को अपनी नेतृत्व में कढ़ी तकर दी युद्ध में चन्देल पक्ष से ब्रम्हजीत, उदल और जयचंद्र के 2 भतीजे एवं 1 पुत्र वीरगति को प्राप्त हुए और प्रांत में पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई।[3][4][5][6]

युद्ध के बाद[संपादित करें]

युद्ध में पृथ्वीराज के हाथों परमर्दिवर्मन की हार हुई। पर इस युद्ध को पृथ्वीराज की विजय के कारण कम और अल्हनदेववर्मन चन्देल (आल्हा) उदल चन्देल की विरता के लिए ज्यादा जाना-पहचाना जाता है।

  1. Sisirkumar Mitra 1977, पृ॰ 122.
  2. Sisirkumar Mitra 1977, पृ॰ 125.
  3. Mohinder Singh Randhawa & Indian Council of Agricultural Research 1980, पृ॰प॰ 472.
  4. M.S. Randhawa & Indian Sculpture: The Scene, Themes, and Legends 1985, पृ॰प॰ 532.
  5. Parmal Raso, Shyam sunder Das, 1919, 467 pages
  6. Pandey(1993) pg197-332