भारत और यूरोप के सांस्कृतिक सम्पर्क

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वैज्ञानिक समाज अब भारतीय तथा यूरोपीय संस्कृतियों के बहुत से समान या समरूप अवयवों को स्वीकार करने लगा है। इसकी शुरुआत वैयाकरणों ने की जब उन्हें भारतीय एवं यूरोपीय भाषाओं में बहुत कुछ साम्य के दर्शन हुए। इसके उपरान्त भारतविद्या के अध्येताओं (इण्डोलोजिस्ट) ने पाया कि यह साम्य दर्शन, मिथक और विज्ञान सहित अनेकानेक क्षेत्रों में है। इसके पूर्व यह माना जाता था कि भारत और यूरोप के बीच सम्पर्क बहुत नया (भारत के उपनिवेशीकरण से शुरू होकर) है। किन्तु पुरातत्व और मानविकी में नये अनुसंधानों ने यह साबित कर दिया है कि भारत और यूरोप के सम्पर्क अनादिकाल से आरम्भ होकर मध्ययुग होते हुए आधुनिक युग में भी रहा है।

वैज्ञानिकों के विचार[संपादित करें]

प्राचीन काल[संपादित करें]

पाइथागोरस और सांख्य[संपादित करें]

कला[संपादित करें]

ईसा मसीह और हिन्दू धर्म[संपादित करें]

त्रिमूर्ति से ट्रिनिटी[संपादित करें]

अटलांटिस[संपादित करें]

भोजन[संपादित करें]

महाभारत, इलियड और ओडिसी[संपादित करें]

मध्ययुग से पुनर्जागरण-युग तक[संपादित करें]

रामकथा ('प्रिंस चार्मिंग)[संपादित करें]

ऋष्यमृग और यूनिकॉर्न[संपादित करें]

मध्यकालीन यूरोपीय साहित्य पर पंचतंत्र का प्रभाव[संपादित करें]

आधुनिक युग[संपादित करें]

विक्टर ह्यूगो[संपादित करें]

स्टीफेन मलार्मी (Stephane Mallarme)[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]