भरथरी
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भारतीय ऐतिहासिक लोककथाओं में राजा भरथरी बहुत प्रसिद्ध हैं। भरथरी और संस्कृत के महान कवि भर्तृहरि को एक ही व्यक्ति माना जाता है। इन्हें गोरख वंश के योगियों में गिना जाता है। इनकी कहानियाँ बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान में लोकप्रिय है। छतीसगढ़ राज्य में रामायण, महाभारत, श्रीमद्भागवद्गीता की तरह ही भरथरी चरित भी काफी प्रचलित है। यह कथा गांवों में बुजुर्गों के मुख से पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित हो रही है।
भरथरी की कथा के कम से कम दो रूप मिलते हैं-
- (१) एक कथा यह है कि भरथरी की पत्नी पिंगला जब किसी और पुरुष से प्यार करने लगती है तब भरथरी सन्यासी बनकर राज्य छोड़कर दूर चले जाते हैं।
- (२) दूसरी कथा पहली कथा के उल्टी है। रानी पिंगला पति से बेहद प्रेम करती है। राजा भरथरी एक बार शिकार खेलने गए थे। उन्होंने वहाँ देखा कि एक पत्नी ने अपने मृत पति की चिता में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए। राजा भरथरी बहुत ही आश्चर्यचकित हुए और सोचने लगे कि क्या मेरी रानी भी मुझसे इतना प्यार करती है। अपने महल में वापस आकर राजा भरथरी जब ये घटना रानी पिंगला से कहते हैं तो पिंगला कहती है कि वह तो यह समाचार सुनने से ही मर जाएगी। चिता में कूदने के लिए भी वह जीवित नहीं रहेगी। राजा भरथरी सोचते हैं कि वे रानी पिंगला की परीक्षा लेकर देखेंगे कि ये बात सच है या नहीं। फिर से भरथरी शिकार खेलने जाते हैं और वहाँ से समाचार भेजते हैं कि राजा भरथरी की मृत्यु हो गई। ये खबर सुनते ही रानी पिंगला मर जाती है। राजा भरथरी बिल्कुल टूट जाते है, अपने आप को दोषी ठहराते हैं और विलाप करते हैं। पर गोरखनाथ की कृपा से रानी पिंगला जीवित हो जाती है और इस घटना के बाद राजा भरथरी गोरखनाथ के शिष्य बनकर चले जाते हैं।