बुरंजी
बुरंजी, असमिया भाषा में लिखी हुईं ऐतिहासिक कृतियाँ हैं। अहोम राज्य सभा के पुरातत्व लेखों का संकलन बुरंजी में हुआ है। प्रथम बुरंजी की रचना असम के प्रथम राजा सुकफा के आदेश पर लिखी गयी जिन्होने सन् १२२८ ई में असम राज्य की स्थापना की।
आरम्भ में अहोम भाषा में इनकी रचना होती थी। कालान्तर में असमिया भाषा इन ऐतिहासिक लेखों की माध्यम हुई। इसमें राज्य की प्रमुख घटनाओं, युद्ध, संधि, राज्यघोषणा, राजदूत तथा राज्यपालों के विविध कार्य, शिष्टमंडल का आदान-प्रदान आदि का उल्लेख प्राप्त होता है। राजा तथा मंत्री के दैनिक कार्यों के विवरण भी प्रकाश डाला गया है। असम प्रदेश में इनके अनेक वृहदाकार खंड प्राप्त हुए हैं। राजा अथवा राज्य के उच्चपदस्थ अधिकारी के निर्देशानुसार शासनतंत्र से पूर्ण परिचित विद्वान् अथवा शासन के योग्य पदाधिकारी इनकी रचना करते थे। घटनाओं का चित्रण सरल एवं स्पष्ट भाषा में किया गया है; इन कृतियों की भाषा में अलंकारिकता का अभाव है। सोलहवीं शती के आरंभ से उन्नीसवीं शती के अंत तक इनका आलेखन होता रहा। बुरंजी राष्ट्रीय असमिया साहित्य का अभिन्न अंग हैं। गदाधर सिंह के राजत्वकाल में पुरनि असम बुरंजी का निर्माण हुआ जिसका संपादन हेमचंद्र गोस्वामी ने किया है। पूर्वी असम की भाषा में इन बुरंजियों की रचना हुई है।
"बुरंजी" मूलतः एक टाइ शब्द है, जिसका अर्थ है "अज्ञात कथाओं का भांडार"। इन बुरंजियों के माध्यम से असम प्रदेश के मध्ययुग का काफी व्यवस्थित इतिहास उपलब्ध है। बुरंजी साहित्य के अंतर्गत कामरूप बुरंजी, कछारी बुरंजी, आहोम बुरंजी, जयंतीय बुंरजी, बेलियार बुरंजी के नाम अपेक्षाकृत अधिक प्रसिद्ध हैं। इन बुरंजी ग्रंथों के अतिरिक्त राजवंशों की विस्तृत वंशावलियाँ भी इस काल में हुई।
आहोम राजाओं के असम में स्थापित हो जाने पर उनके आश्रय में रचित साहित्य की प्रेरक प्रवृत्ति धार्मिक न होकर लौकिक हो गई। राजाओं का यशवर्णन इस काल के कवियों का एक प्रमुख कर्तव्य हो गया। वैसे भी अहोम राजाओं में इतिहासलेखन की परम्परा पहले से ही चली आती थी। कवियों की यशवर्णन की प्रवृत्ति को आश्रयदाता राजाओं ने इस ओर मोड़ दिया। पहले तो अहोम भाषा के इतिहास ग्रंथों (बुरंजियों) का अनुवाद असमिया में किया गया और फिर मौलिक रूप से बुरंजियों का सृजन होने लगा।
बुरञ्जी के विषय में आधुनिक पुस्तकें
[संपादित करें]क्रमांक | पुस्तक का नाम | लेखक |
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१ | आचाम बुरञ्जी | हरकान्त बरुवा |
२ | आचाम बुरञ्जी | काँशीनाथ तामोली फुकन |
३ | आहोम बुरञ्जी | गोलाप चन्द्र बरुवा |
४ | पुरणि आचाम बुरञ्जी | हेमचन्द्र गोस्वामी |
५ | तुंखुङीया बुरञ्जी | सूर्य कुमार भूञा |
६ | त्रिपुरा बुरञ्जी | रत्न कुण्डली और अर्जुन दास, १७२४ ई में |
७ | चकरि फेँटी बुरञ्जी | नगेन हाजरिका, १९९० |
८ | अबौरञ्जीक | नगेन हाजरिका |
९ | अजगर बुरञ्जी | नगेन हाजरिका, १९९६ |
१० | माटि फेँटी बुरञ्जी | नगेन हाजरिका |
११ | The Buranjis, Historical Literature of Assam: A Critical Survey | लीला गगै |
१२ | तुंखुङीया बुरञ्जी | श्रीनाथ दुवरा बेजबरुवा |
१३ | जीवन बुरञ्जी | नगेन हाजरिका, १९९० |
१४ | काल फेँटी बुरञ्जी | नगेन हाजरिका, १९९३ |
१५ | आहोम सभार खुचुरा बुरञ्जी | नगेन हाजरिका, १९९४ |
१६ | आहोमर संस्कृतिर बुरञ्जी | नगेन हाजरिका, १९९६ |
१७ | मकराजाल बुरञ्जी | नगेन हाजरिका, १९९६ |
१८ | कार्शला बुरञ्जी | नगेन हाजरिका, १९९९ |
१९ | बिभिन्न धर्मर बुरञ्जी | नगेन हाजरिका, २००२ |
२० | ते ते बुरञ्जी | नगेन हाजरिका, २००३ |
२१ | नगण्य बुरञ्जी | नगेन हाजरिका, २००८ |
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]- राजतरंगिणी (कश्मीर का इतिहास)
- मदल पंजी (जगन्नाथ मन्दिर का इतिहास)
- महावंश (श्रीलंका का इतिहास)