बांके चमार

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बांके चमार एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जो 1857 के भारतीय विद्रोह में अपने कार्यों के लिए मर गए, उन्होंने उत्तर प्रदेश के जौनपुर जनपद में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ प्रारंभिक कार्रवाई का नेतृत्व किया। ये हैं बांके चमार हिन्द के लाल, जब एक आना की दो गाएं मिलती थी, तब इन पर 50,000 का ईनाम अंग्रेजों ने घोषित किया था। 1857 की क्रांति में जौनपुर क्रांति के मुखिया जिन्हे रूपये की लालच में मुखबिर ने पकड़वा दिया, अपने 16 साथियों समेत फां'सी पर लटक गए थे। जौनपर को गौरवान्वित करने वाली इतिहास में गुम कहानी ईनाम पूरे पचास हज़ार!!!! कितना इनाम रखे है सरकार हम पर…पूरे पचास हज़ार सरदार….यानी यहां से 50-50 कोस दूर जब कोई बच्चा रोता है तो माँ कहती है सो जा बेटा नहीं तो गब्बर सिंह आजायेगा…ये डायलॉग सभी ने सुना ही होगा…. और सलीम मियाँ की कलम की कारीगरी पर खूब ताली भी बजाई होगी…. पर इस डायलॉग के पीछे भी एक सच्ची कहानी है….. और कमीनगी भी...

दर असल हिंदुस्तानी गर्व की एक लोकोक्ति को सलीम ने उठाया और एक क्रूर डकैत के किरदार के मुंह में रख दिया…. जानते हैं भारत के आजतक के इतिहास में सबसे बड़ा इनाम किसके सर पर रखा गया??अगर मैं आज 165 साल पहले की उस 50 हज़ार की रकम की कीमत निकालूं तो आज बैठेगी करीब 30 करोड़……. जी हाँ एक हिंदुस्तानी योद्धा के सर की कीमत तब की अंग्रेज सरकार ने तय की थी 50 हज़ार….. और वो भी आज से 164 साल पहले यानी 1857 में…. उसकी पूरी टोली के सर का इनाम तो तब भी #दो_लाख_से_ऊपर था….. और हम ठहरे हिंदुस्तानी पैसे के मामले में बाप के सगे नहीं तो देश भक्त क्रांतिकारी क्या लाये…. 1857 की क्रांति में कई जियालों ने गोरों को नाकों चने चबवा दिए थे लेकिन दुर्भाग्य से हिंदुस्तान हिंदुस्तान से लड़ा और हार गया… पर फिर भी कुछ क्रांतिकारी थे जो न अभी तक हार मानने को तैयार थे न लड़ाई से हटने को और ऐसे ही योद्धा थे मछली शहर के #बांके_चमार….. जौनपुर के इलाके में बांके का अंग्रेज़ो पर खौफ तारी था…. उनकी 40-50 की टोली अचानक प्रकट होती और किसी काफ़िले या अंग्रेज़ो के शिविर को नेस्तनाबूद कर देती….. जो गोरा हाथ लगता उसे मौत के घाट उतार दिया जाता….. कानपुर के बाद सबसे ज्यादा अंग्रेज़ो को बांके ने अपना शिकार बनाया…. इस छापामार जंग का जब अंग्रेज़ो को कोई जवाब न सूझा उन्होंने हिंदुस्तानियत की अपनी समझ को ध्यान रख बांके पर 50 हज़ार का इनाम रख दिया….. अब उस समय की दुनियाँ का ये सबसे बड़ा ईनाम था….. जब ये खबर बांके तक पहुंची वो हँस पड़ा और उसने ऐलान किया के आज से 50 कोस के दायरे में कोई अंग्रेज जिंदा नहीं छोड़ा जाएगा…. तब के समय कहावत चल पड़ी की गोरी माएँ अपने बच्चों को इस खौफ से रोने भी न देती थीं के बांके न आजाये….. खैर आगे वही हुआ जो होता आया इतने बड़े इनाम के लालच में स्थानीय जमीदारों ने बांके की मुखबिरी कर दी और धोखे से गिरफ्तार करवा दिया…… अंग्रेज सरकार ने भी बिना एक पल गवाए बांके और 17 अन्य साथियों को फांसी पर लटका दिया….. बस यही से आगे बांके चमार का नाम इतिहास से मिटा दिया गया….. न किसी नीले वस्त्रधारी महापुरुष को कभी उनकी याद आयी, न UP के किसी दलित नेता नेत्री को और न ही किसी कथित आर्मी को….. अन्य किसी की बात भी क्या करें…. न बांके की कोई स्मृति बची, न इतिहास और न वो कहावत…. उस 50 हज़ार के ईनाम की कहानी जरूर ब्रिटिश राज की फाइलों में रही और वहीं कहीं से उसे पकड़ लिया सलीम मियाँ ने….. तो कभी ये भी याद कर लें के कोई बांके चमार था जो इस देश पर मर मिटा…. न अंग्रेज़ो ने उसकी जागीर छीनी थी न उत्तराधिकारी अस्वीकार किया था….. वो बस मिट्टी के लिए लड़ा और बलिदान हो गया…. तो कभी गब्बर इज़ बैक की जगह

‘बांके इज़ बैक भी कह डालिये….. असली तो वही था!! मां भारती के वीर सपूत को शत-शत नमन।

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