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बनु कुनैका

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बनू कुनैका (अरबी: بنو قينقا; हिब्रू: בני קינוקאע; english; Banu Qaynuqa) 7 वीं शताब्दी में मदीना (वर्तमान सऊदी अरब में स्थित शहर ) में रहने वाले तीन प्रमुख यहूदी कबीलों में से एक था[1], जिसे 624 में पैगम्बर मुहम्मद के आदेश पर मदीना से निष्काषित (पलायित) कर दिया गया था। बाद में यह कबीला सीरिया के इलाको में चला गया।

पृष्ठभूमि

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7वीं शताब्दी में, बनु कुनैका यसरब (वर्तमान में मदीना) शहर के दक्षिण-पश्चिमी भाग में दो किलों में रह रहे थे, वर्तमान में मदीना। हालांकि बनु कुनैक में ज्यादातर अरबी नाम थे, पर वे जातीय और धार्मिक रूप से यहूदी थे, उनके पास कोई जमीन नहीं थी, उन्होंने वाणिज्य और शिल्प कौशल के माध्यम से अपना जीवन यापन किया, जिसमें सुनार का व्यवसाय भी शामिल था।[2] यसरब का बाज़ार भी कस्बे के उस क्षेत्र में स्थित था जहाँ बनु कुनैका के लोग रहते थे। बनु कुनैका के, खजरज नामके स्थानीय अरब कबीले के साथ अच्छे संबद्ध थे और उन्होंने प्रतिद्वंद्वी अरब जनजाति ओस(aus) के साथ संघर्ष में ख़ज़रज कबीले का समर्थन किया था।[3] [4]

मुहम्मद का आगमन

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मई 622 में, मुहम्मद अपने अनुयायियों के एक समूह के साथ यसरब (वर्तमान मदीना) पहुंचे,  उन्हें शहर के सभी स्थानीय कबीलो जिन्हे अंसार के नाम से जाना जाता है, के सदस्यों द्वारा आश्रय दिया गया था। उन्होंने शहर के शासन के मामलों को विनियमित करने के साथ-साथ शहर के शासन के मामलों को विनियमित करने व अंतर-सामुदायिक संबंध को बनाए रखने के लिए मुसलमानों, अंसार और यसरब के विभिन्न यहूदी जनजातियों के बीच मदीना के संविधान के रूप में जाना जाने वाला एक समझौता हुआ। पारंपरिक मुस्लिम स्रोतों के अनुसार, संधि की शर्तों में कुरैश का बहिष्कार, "उन्हें किसी भी समर्थन करने से परहेज़", तीसरे पक्ष द्वारा हमला किए जाने पर एक दूसरे की सहायता, साथ ही साथ "विदेशी हमले के मामले में मदीना की रक्षा करना" शामिल है। " [5][6][7]

इब्न इशाक द्वारा दर्ज और इब्न हिशाम द्वारा प्रेषित इस दस्तावेज़ की प्रकृति आधुनिक इतिहासकारों के बीच विवाद का विषय है, जिनमें से कई का कहना है कि यह "संधि" संभवतः विभिन्न तिथियों के लिखित के बजाय मौखिक समझौतों का एक समूह है, और यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें कब या किसके साथ बनाया गया था।[8]

बनु कुनैका का पलायन

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मोहम्मद को शुरुवात में लगा की, चूंकि यहुदियों ने बहुत से बाइबलीक पैगंबरों को अपना लिया था, और यहूदी बहुदेववादी नही थे इसलिए वे इस्लाम में दिलचस्पी दिखाएंगे, और इसी कारण से मोहम्मद साहब ने अपनी इबादतों में जेरूशलम को किबला के रूप में स्वीकार किया था[9], ताकि यहुदियों के विश्वास को ही बुनियाद बनाया जा सके, पर मोहम्मद साहब को निराशा हाथ लगी और मक्का के कुरैश कबीले की तरह यहुदियों ने भी इस्लाम में दिलचस्पी नहीं दिखाई, उनका विश्वास उनके पूर्वजों के विश्वास में दृढ़ रहा। [10]

  • Sunan an-Nasa'i 488 : It was narrated that Al-Bara' said: "We prayed toward Bait Al-Maqdis (Jerusalem) with the Messenger of Allah (ﷺ) for sixteen or seventeen months - Safwan was not sure - then it was changed to the Qiblah."[11] Grade: Sahih (Darussalam)

इब्न इशाक लिखते हैं कि मुसलमानों और कुनैका (खजराज जनजाति के सहयोगी) के बीच जल्द ही एक विवाद छिड़ गया। जब एक मुस्लिम महिला बाजार में एक जौहरी की दुकान पर गई, तब यहुदियों के एक व्यक्ति ने मजाक में बाजार में गहने खरीद रही एक मुस्लिम महिला के जमीन पर फैले कपड़े के हिस्से पर किल ठोक दी, जब वह महिला उठी तो उसके कपड़े कुछ फट गए, और उसके पैर का कुछ हिस्सा नग्न हो गया, इस हंगामे में वहा उपस्थित एक मुस्लिम ने उस यहूदी व्यक्ति को मार दिया और बाद में यहूदियों की भीड़ ने उस व्यक्ति को जिसने उस यहूदी को मारा था उसे मार दिया, जिससे यह बदला लेने के लिए हत्याओं की एक श्रृंखला में बदल गया, और मुसलमानों और बनू कुनैका के बीच दुश्मनी बढ़ गई। [9]

पारंपरिक मुस्लिम स्रोत इन घटनाओं को मदीना के संविधान के उल्लंघन के रूप में देखते हैं।[9]और मुहम्मद ने स्वयं इसे युद्ध के लिए उकसाने के रूप में माना।[12] हालाँकि, पश्चिमी इतिहासकार इन घटनाओं को मुहम्मद के कुनैका पर हमले का कारण नहीं पाते हैं। एफ.ई. पीटर्स के अनुसार, मदीना के संविधान के कथित उल्लंघन की सटीक परिस्थितियों को इस्लामिक स्त्रोतों में निर्दिष्ट नहीं किया गया है।[13] फ्रेड डोनर के अनुसार, उपलब्ध स्रोत क्यूनुका के निष्कासन के कारणों को स्पष्ट नहीं करते हैं। डोनर का तर्क है कि मुहम्मद क़यनुका के खिलाफ हो गए क्योंकि कारीगर और व्यापारी के रूप में, वे मक्का के व्यापारियों के साथ निकट संपर्क में थे।[14] वेन्सिंक, मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा उद्धृत कारणों जैसे यहूदी सुनार की कहानी को, उपख्यानात्मक व्याख्या के रूप में देखते हैं, वह लिखता है कि यहूदियों ने मुहम्मद के प्रति एक विवादास्पद रवैया अपनाया था और पर्याप्त स्वतंत्र शक्ति रखने वाले समूह के रूप में, उन्होंने एक बड़ा खतरा पैदा किया। इस प्रकार वेन्सिंक ने निष्कर्ष निकाला कि बद्र में जीत से मजबूत हुए मुहम्मद ने जल्द ही अपने प्रति यहूदी विरोध को समाप्त करने का संकल्प लिया।[15] [16] नॉर्मन स्टिलमैन का यह भी मानना ​​है कि मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई के बाद मजबूत होने के बाद मदीना के यहूदियों के खिलाफ जाने का फैसला किया। [17]

ज़फर हेरेटिक और अन्य पूर्व मुस्लिम विद्वानों का मत है की, मुहम्मद ने ऐसा यहूदियों द्वारा मुहम्मद को अन्य बाइबलिक पैगम्बरों की तरह ना अपनाने के कारण किया, मुहम्मद को शुरुवात में लगा की, चूंकि यहुदियों ने बहुत से बाइबलीक पैगंबरों को अपना लिया था, और यहूदी बहुदेववादी नही थे इसलिए वे इस्लाम में दिलचस्पी दिखाएंगे, और इसी कारण से मोहम्मद ने अपनी इबादतों में जेरूशलम को किबला के रूप में स्वीकार किया था, ताकि यहुदियों के विश्वास को ही बुनियाद बनाया जा सके, पर मोहम्मद को निराशा हाथ लगी और मक्का के कुरैश कबीले की तरह यहुदियों ने भी इस्लाम में दिलचस्पी नहीं दिखाई, जो की मुहम्मद को नागवार गुजरी। उनका मानना है की बद्र की जंग के बाद ताकतवर हुआ मुहम्मद सिर्फ यहूदियों पर हमले का एक बहाना ढूंढ रहा था जो उसे यहूदी सुनार की घटना से मिल गया

बद्र की जंग में कुरेश कबीले की हार के बाद ताकतवर हुए मुहम्मद ने बनु कुनैका कबीले को बाजार में इकठ्ठा किया और इस प्रकार कहा

"ओ यहुदियों, सावधान, मुस्लिम बन जाओ, वरना ऐसा न हो की खुदा तुम पर वह प्रतिशोध लाए जो वह कुरेश पर लाया, तुम जानते हो की मैं पैगंबर हु जिसे भेजा गया है अल्लाह की तरफ से, और तुम इसे अपनी किताबो मे और अपने खुदा की वाणियो में इसे पाओगे"

यहुदियों ने जवाब दिया " ओ मुहम्मद, तुम्हे लगता है की हम तुम्हारे लोग है, खुद को धोखा मत दो, तुमने उन लोगो का सामना किया है, जिन्हे जंग का कोई ज्ञान नहीं, और इसलिए तुम उनसे बेहतर हो गए, यदि खुदा की ओर से हम तुमसे लड़े तो तुम पाओगे की हम सच्चे मर्द है।" [9]

फिर [कुरान 3.12-13] मुहम्मद पर अवतरित हुआ,

  इनकार करनेवालों से कह दो, "शीघ्र ही तुम पराभूत होगे और जहन्नम की ओर हाँके जाओगे। और वह क्या ही बुरा ठिकाना है।" (12)  
  तुम्हारे लिए उन दोनों गरोहों में एक निशानी है जो (बद्र की) लड़ाई में एक-दूसरे के मुक़ाबिल हुए। एक गरोह अल्लाह के मार्ग में लड़ रहा था, जबकि दूसरा विधर्मी था। ये अपनी आँखों से देख रहे थे कि वे उनसे दुगने हैं। अल्लाह अपनी सहायता से जिसे चाहता है, शक्ति प्रदान करता है। दृष्टिवान लोगों के लिए इसमें बड़ी शिक्षा-सामग्री है। (13)  

मुहम्मद ने तब बनू कुनेका कबीले पर हमला कर दिया और उन्हे चारो ओर से घेर कर उनके पानी की सप्लाई को काट दि, यह घेरा पंद्रह दिनों तकचला, जिसके बाद बनु कुनैका कबीले ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया।

बनू कुनैका के आत्मसमर्पण के बाद, मुहम्मद बनु कुनैका कबीले का नरसंहार करना चाहते थे।[18] लेकिन, खजरज के कबीले के एक वर्ग के प्रमुख अब्दुल्ला इब्न उबैय उनके पास आए और बनु कुनैका को रिहा करने के लिए गुहार लगाई।[9] उनका तर्क था कि 700 लड़ाकों के साथ कयनुका की उपस्थिति अपेक्षित मक्का हमले को देखने में सहायक हो सकती है। [19] वह इतना जिद कर रहा था कि उसने मुहम्मद के कॉलर को पकड़ लिया डाल दिया। अंत में, क्योंकि इब्न उबैय खजरज कबीले का एक प्रमुख था, जिससे मुहम्मद के कई अनुयायी थे, उसने बनु कुनैका के नरसंहार के बजाय बनु कुनैका के लोगो को मदीना से निष्कासित कर दिया, और उनकी संपत्ति को लूट के रूप में ले लिया। [20]

The life of muhmmad by ibn ishaq, page number 363

और रसूल ने उन्हें तब तक घेरे रखा जब तक उन्होंने बिना शर्त आत्मसमर्पण नही कर दिया, अब्दुल्ला बिन उबय मोहम्मद के पास आए जब खुदा ने उन्हें उसकी ताकत के आगे झुका दिया, और उसने मोहम्मद से कहा "ओ मुहम्मद, मेरे लोगो से नरमी से पेश आओ, (तब खजरज कबीला बनू कुनेका का सहयोगी था ) पर रसूल ने उसे पीछे धकेल दिया, उसने फिर दोहराया, पर वह मुंह फेरकर चले जाने लगे, जिसपर अब्दुल्ला ने रसूल की कोलर पकड़ ली, इससे रसूल को बहुत गुस्सा आया इतना की उसका चेहरा गुस्से से काला हो गया, रसूल ने कहा, "भाड़ में जाओ, मुझे जाने दो" अब्दुल्ला ने कहा, नही, खुदा के लिए मैं तुम्हे तब तक नही जाने दूंगा जब तक तुम मेरे लोगो के साथ नाइंसाफी करना बंद न कर दो, ये वो लोग है, जिसमे से 400 लोग बिना असलहे और 300 हथियार बंद आदमी दुश्मनों से मेरे साथ लड़ने में साथ दे रहे थे, क्या तुम इन सबको एक ही दिन में काट डालोगे, खुदा के लिए, मैं वो इंसान हु जो जानता है की हालात बदल सकते है, इस पर रसूल ने कहा "अपने आदमियों को अपने पास रखो"[9]

Ishaq आगे लिखता है की, मोहम्मद ने अपने आदमियों से कहा उन्हे जाने दो, अल्लाह सजा देगा, अब्दुल्ला को भी और उन्हे भी

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  2. Hartmann, Noga (2008-07-01). "Encyclopaedia of the Qur'an". American Journal of Islam and Society. 25 (3): 119–121. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2690-3741. डीओआइ:10.35632/ajis.v25i3.1453.
  3. Machabey, Armand (1955). "Le manuscrit Weyen et Guillaume de Machault". Romania. 76 (302): 247–253. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0035-8029. डीओआइ:10.3406/roma.1955.3465.
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  9. THE LIFE OF MUHAMMAD A TRANSLATION OF ISHAQ'S SIRAT RASOL ALLAH BY A. GUILLAUME, PAGE : 363
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  11. Sunan an-Nasa'i 488 Chapter 22: Prescribing The Qiblah, Book 5: The Book of Salah
  12. Watt (1956), p. 209.
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  20. Watt (1956), pg. 209-10