प्रकाशवीर शास्त्री
प्रकाशवीर शास्त्री | |
पद बहाल 1958–1977 | |
जन्म | 30 दिसम्बर 1923 रहरा ग्राम, उत्तर प्रदेश |
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मृत्यु | 23 नवम्बर, 1977 उत्तर प्रदेश |
राजनीतिक दल | निर्दलीय |
निवास | उत्तर प्रदेश |
प्रकाशवीर शास्त्री (30 दिसम्बर 1923 - 23 नवम्बर 1977) भारतीय संसद के सदस्य तथा आर्यसमाज के नेता थे। उनका मूल नाम 'ओमप्रकाश त्यागी' था। वे एक प्रखर वक्ता थे। उनके भाषणों में तर्क बहुत शक्तिशाली होते थे। उनका भाषण सुनने के लिये लोग दूर-दूर से पैदल चलकर आ जाते थे। उनके विरोधी भी उनके प्रशंसक बन जाते थे।
प्रकाशवीर शास्त्री ने हिंदी, धर्मान्तरण, धारा ३७० को हटाने के लिए अनेक प्रयत्न किए।[1] पांचवें और छठे दशक की अनेक ज्वलन्त समस्याओं पर अपने बेबाक विचार व्यक्त किए। 1957 में आर्य समाज द्वारा संचालित हिंदी आंदोलन में उनके भाषणों ने जबर्दस्त जान फूंक दी थी। सारे देश से हजारों सत्याग्रही पंजाब आकर गिरफ्तारियाँ दे रहे थे।
जीवन परिचय
[संपादित करें]प्रकाश वीर शास्त्री जी का जन्म उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में अमरोहा के निकट रेहड़ा गांव में हुआ था।[2] मूल नाम प्रकाशचन्द्र रखा गया। आप के पिता का नाम श्री दिलीपसिंह त्यागी था जो आर्य समाज के विचारों के थे। उस काल का प्रत्येक आर्य परिवार अपनी सन्तान को गुरुकुल की शिक्षा देना चाहता था। इस कारण आप का प्रवेश भी पिता जी ने गुरुकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर में कराया। इस गुरुकुल में एक अन्य विद्यार्थी भी 'प्रकाशचन्द्र' नाम का होने से आप का नाम बदल कर 'प्रकाशवीर' कर दिया गया। इस गुरुकुल में अपने पुरुषार्थ से आपने 'विद्याभास्कर' तथा 'शास्त्री' की परीक्षाएँ उतीर्ण कीं। तत्पश्चात आप ने संस्कृत विषय में आगरा विश्वविद्यालय से एम. ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की।
उन्होंने बीएचयू के सामाजिक विज्ञान संकाय में भी बी ए कोर्स में प्रवेश लिया, लेकिन किसी कारण से वह पूरा नहीं कर सके। वर्ष 1940 में प्रकाश शास्त्री की विद्वता से प्रभावित होकर हिंदू महासभा में आमंत्रित किया, किन्तु वह आर्य समाज व वेदों की सेवा के लिए स्वयं को समर्पित कर चुके थे। हालांकि महामना के आग्रह पर व हिंदू महासभा और आर्य समाज के बीच पुल का काम करते रहे।
शास्त्री जी स्वामी दयानन्द सरस्वती तथा आर्य समाज के सिद्धान्तों में पूरी आस्था रखते थे। इस कारण ही आपने १९३९ में मात्र १६ वर्ष की आयु में ही हैदराबाद के धर्मयुद्ध में भाग लेते हुए सत्याग्रह किया तथा जेल गये। आप की आर्य समाज के प्रति अगाध आस्था थी, इस कारण आप अपनी शिक्षा पूर्ण करने पर उत्तर प्रदेश की आर्य प्रतिनिधि सभा के माध्यम से उपदेशक स्वरुप कार्य करने लगे। आप इतना ओजस्वी व्याख्यान देते थे कि कुछ ही समय में आप का नाम देश के दूरस्थ भागों में चला गया तथा सब स्थानों से आपके व्याख्यान के लिए आप की मांग होने लगी। पंजाब में सरदार प्रताप सिंह कैरो के नेतृत्व में कार्य कर रही कांग्रेस सरकार ने हिन्दी का विनाश करने की योजना बनाई। आर्य समाज ने पूरा यत्न हिन्दी को बचाने का किया किन्तु जब कुछ बात न बनी तो हिन्दी रक्षा समिति ने यहाँ सत्याग्रह करने का निर्णय लिया तथा शीघ्र ही १९५८ ईस्वी में सत्याग्रह का शंखनाद हो गया। आप ने भी सत्याग्रह में भाग लिया। इस आन्दोलन ने आप को आर्यसमाज का सर्वमान्य नेता बना दिया ।
इस समय आर्य समाज के उपदेशकों की स्थिति कुछ अच्छी न थी। इनकी स्थिति को सुधारने के लिए आपने अखिल भारतीय आर्य उपदेशक सम्मेलन स्थापित किया तथा लखनऊ और हैदराबाद में इस के दो सम्मेलन भी आयोजित किये। आप की कीर्ति ने इतना परिवर्तन लिया कि १९५८ ईस्वी को आप को लोकसभा का गुड़गांव से सदस्य चुन लिया गया। १९६२ तथा पुनः १९६७ में दो बार आप स्वतन्त्र प्रत्याशी स्वरूप लोकसभा के लिए चुने गए।
१९७५ में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन, जो नागपुर में सम्पन्न हुआ, में भी आप ने खूब कार्य किया तथा आर्य प्रतिनिधि सभा मंगलवारी नागपुर के सभागार में, सम्मेलन मे पधारे आर्यों की एक सभा का आयोजन भी किया। आपने अनेक देशों में भ्रमण किया तथा जहां भी गए, वहां आर्य समाज का सन्देश साथ लेकर गये तथा सर्वत्र आर्य समाज के गौरव को बढ़ाने के लिए सदा प्रयत्नशील रहे ।
आप अनेक वर्ष तक आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तर प्रदेश के प्रधान रहे। आप के ही पुरुषार्थ से मेरठ, कानपुर तथा वाराणसी में आर्य समाज स्थापना शताब्दी सम्मेलनों को सफलता मिली। इतना ही नहीं, आप की योग्यता के कारण सन १९७४ इस्वी में आप को परोपकारिणी सभा का सदस्य मनोनीत किया गया।
आप का जीवन यात्राओं में ही बीता तथा अन्त समय तक यात्राएं ही करते रहे। २३ नवम्बर १९७७ इस्वी को जयपुर से दिल्ली की ओर आते हुए एक रेल दुर्घटना हुई। इस रेलगाड़ी में आप भी यात्रा कर रहे थे। इस दुर्घटना में आपका निधन हो गया।
कार्य
[संपादित करें]प्रकाशवीर शास्त्री ने अनेक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किये।
स्वतन्तरता आन्दोलन में
[संपादित करें]१९३९ में अपने विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने हैदराबाद सत्याग्रह में भाग लिया और फलस्वरूप कारावास का दण्ड झेला। १६ नवम्बर, १९४६ को सिंध में सत्याग्रह किया।
संसदीय कार्य
[संपादित करें]प्रकाशवीर शास्त्री ने अपने लगभग २० वर्ष के संसदीय जीवन (तीन बार लोकसभा एवम एक बार राज्यसभा) में संसद में महत्वपूर्ण योगदान दिया I वे देश के सामने आ रही उस समय की ज्वलन्त समस्याओं को गहरे अनुसंधान और आंकड़ों के साथ संसद में बड़ी गंभीरता से उठाते थे। वे साथ-साथ समाधान भी प्रस्तुत करते हुए सकारात्मक राजनीति करते थे I जब भी शास्त्री जी बोलते थे सभी दलों के लोग उनको बड़े ही आदर के साथ सुनते थे I संसद में आने के बाद वह बहुत ही प्रसिद्ध हो गए थे I वे शुद्ध हिंदी में धाराप्रवाह बोलते थे।[3] उन्होंने संसद में बहस के स्तर को ऊँचा उठाया I
शास्त्री जी ने देशहित में संसद में कई महत्वपूर्ण बिल प्रस्तुत किये, जैसे धारा 370 समाप्त करने का प्रथम विधेयक ; काशी , मथुरा , और अयोध्या के हिन्दू मंदिरों को वापस हिन्दुओं को सौंपने का विधेयक ; गरीबों के जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने का विधेयक I कश्मीर से अनुच्छेद ३७० हटाने का प्रस्ताव सबसे पहले प्रकाशवीर शास्त्री ने ही २४ अप्रैल, १९६४ को संसद में लाया था। बहुत ही सशक्त रूप से यह प्रस्ताव रखा, किन्तु यह प्रस्ताव अस्वीकार हो गया। इसके बाद ही यह राजनीति, राष्ट्रवाद व देश की अखंडता का मुद्दा बन गया। उन्होंने हिंदू धर्म स्ंरक्षण को भी प्राइवेट बिल के रूप में संसद में लाया था। यह भी अस्वीकार कर दिया गया किनु इसके बाद की राजनीति ने इन दोनों मुद्दों अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठा दिया। १९६० में उन्होंने लोकसभा में मथुरा, काशी और अयोध्या के हिन्दुओं के धार्मिक स्थानों के पुनः संस्थापन का विधेयक प्रस्तुत किया।
१८ नवम्बर, १९६६ को सम्पूर्ण गोवंश के वध पर प्रतिबन्ध के लिये एक विधेयक प्रस्तुत किया। १ दिसम्बर, १९६७ को बलात धर्म परिवर्तन के निषेध का विधेयक प्रस्तुत किया।
हिन्दी सेवा
[संपादित करें]भारत की स्वतन्त्रता के पशचात शास्त्री जी देश की सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा में जुट गए और हिंदी रक्षा के कई आन्दोलनों को प्रेरित किया I पंजाब में हिन्दी के विरुद्ध चल रहे षड्यन्त्र को विफल करने के लिये 1957 में हिंदी सत्याग्रह का सफल संचालन किया। वे इस आन्दोलन में प्रचार प्रभारी थे।
उन्होंने हिंदी और भारतीय भाषाओं के उत्थान के लिए भरसक कार्य किया I उन्होंने हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी उचित स्थान दिलाने के अथक प्रयास किये I शास्त्री जी ने जर्मनी में आयोजित अंतर संसदीय संघ (Inter Parliamentary Union) सम्मलेन में 1974 में प्रथम बार अपना भाषण हिंदी में दिया था I शास्त्री जी ने संसद में कई बार यह मांग की थी के हिंदी को संयुक्त राष्ट्र में आधिकारिक भाषा का स्थान मिलना चाहिए I शास्त्री जी के प्रयासों से संसद में राष्ट्रभाषा का प्रयोग बढ़ा I
१७ मार्च, १९६१ को उन्होंने देवनागरी को सभी भारतीय भाषाओं की लिपि बनाने का बिल पेश किया। उनका विचार था कि एक भारतीय भाषा, जिसमे सभी भारतीय भाषाओँ का सामंजस्य हो, ऐसी भाषा भी विकसित की जा सकती है I
७ सितम्बर को दक्षिण भारत में हिंदी विश्वविद्यालय स्थापित करने का प्रस्ताव किया।
पंडित प्रकाशवीर शास्त्री जी के ही प्रयास से देश के कई उच्च न्यायालयों, जैसे उत्तर प्रदेश , राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली आदि ने अपने निर्णय हिंदी में देने प्रारम्भ किया I 1958 में संसद में पहुँच आकाशवाणी में हो रही हिंदी की उपेक्षा को बंद कराया। पहले अंग्रेजी में समाचार पहले आते थे और हिन्दी में बाद में। अंग्रेजी समाचारों की अवधि हिन्दी से दूनी हुआ करती थी। उन्होंने हिंदी समाचारों को अंग्रेजी समाचार से पहले प्रसारित कराने में सफलता प्राप्त की और समय भी सामान किया गया I
शास्त्री जी के संघर्ष पर 1961 में पंजाब में मतपत्र दोबारा छपवाए गए जिसमे प्रत्यशियों के नाम अंग्रेजी और गुरुमुखी के अलावा देवनागरी में भी छपवाए गए I
हिन्दी सेवा के लिये हिन्दी साहित्य सम्मलेन में राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किये गये। 1976 में राष्ट्रपति द्वारा उन्हें राजर्षि पुरषोतम दास टंडन पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
शिक्षा सम्बन्धी कार्य
[संपादित करें]शास्त्री जी ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत योगदान दिया। उत्तर प्रदेश और दिल्ली में कई विद्यालयों और महाविद्यालयों की स्थापना करवाई I वह स्वयं भी गुरुकुल वृन्दावन और गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर के उप कुलपति रहे I बिजनौर में डिग्री कॉलेज की स्थापना करवाई I दिल्ली में भारतीय संस्कृति और आधुनिक शिक्षा के समागम के उद्देश्य से ज्ञान भारती विद्यालय की स्थापना कीI
किसानों के लिये
[संपादित करें]शास्त्री जी ने कृषि क्षेत्र की समस्यों को भी संसद में उठाया, चाहे वह गन्ना किसानों को उचित मूल्य देने का मुद्दा हो या गन्ने के बकाया मूल्य का निपटारा या फिर बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बाँध प्रस्तावित करवाना। मुरादाबाद जिले में हर साल बाढ़ से प्रभावित होते लोगों एवम किसानों की फसल की रक्षा के लिए बाँध का निर्माण की प्रस्तावना पारित करवाना I
आर्यसमाज के कार्य
[संपादित करें]वेदों के अंग्रेजी अनुवाद के लिए वेद प्रतिष्ठान की स्थापना करवाई और वेदों का अंग्रेजी भाष्य प्रकाशित करवाया I उनके प्रयत्नों से ही संसद में महर्षि दयानन्द सरस्वती का चित्र लगवाया गया। उन्होंने स्वामी दयानन्द के हस्तलेखों और पांडुलिपियों को सुरक्षित करवाया और उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी करवाया I उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में मेरठ (१९७३ में), कानपुर (१९७४ में) तथा वाराणसी (१९७६ में) में आर्य समाज के भव्य शताब्दी समारोह मनाये गए I इनमे भारत के राष्ट्रपति भी उपस्थित रहे I उन्होंने उत्तर प्रदेश आर्य प्रतिनिधि सभा के तिमंजिले भवन का निर्माण कराया।
मथुरा में गुरु विरजानन्द अनुसन्धान भवन की स्थापना एवम निर्माण कराया जिसका उद्घाटन तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री बी० डी० जत्ती जी ने किया I उन्होंने हरिद्वार में गंगा तट पर आर्य समाज मंदिर का निर्माण करवाया I
विविध
[संपादित करें]स्वाधीनता के बाद रियसतों के एकीकरण के महानायक सरदार पटेल को श्रद्धांजलि देने और आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा देने के लिए प्रकाशवीर शास्त्री जी ने ही दिल्ली में सरदार पटेल का विराट जयंती समारोह मनाने की परम्परा शुरू की। यह समारोह 1960 से लेकर 1977 में उनके निधन तक बड़े भव्य रूप से मनाया जाता रहा।
1952 में पंडित प्रकाशवीर शास्त्री ने "मेरे सपनों का भारत" नाम से एक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में उन्होंने राजा के दायित्व का वर्णन करते हुए सरकारी तंत्र के शासकों के लिए मार्गदर्शन किया है।
स्वतन्त्रता के बाद कश्मीर पर असामंजस्य और आम जनता के साथ होते अन्याय को देख उन्होंने संसद में कश्मीर मुद्दे पर भरपूर आवाज़ उठाई। संसद के बाहर भी अपनी भावनाओं को एक पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया। "धधकता कश्मीर" एवम "कश्मीर की वेदी पर" नामक पुस्तकों में उन्होंने कश्मीर के पौराणिक इतिहास और स्वाधीनता के बाद की स्थिति, श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आन्दोलन का विस्तृत वर्णन किया है I
जीवन-यात्रा
[संपादित करें]३० दिसंबर, १९२३ : को अमरोहा के निकट ग्राम रेहड़ा में जन्म
१९३३ : वैशाखी पर्व पर गुरकुल ज्वालापुर में प्रवेश, दीक्षारम्भ
१९३९ : विद्यार्थी जीवन में ही हैदराबाद सत्याग्रह में भाग लिया, कारावास
१९४६ : १६ नवम्बर को सिंध में सत्याग्रह
१९५२ : 'मेरे सपनों का भारत ' पुस्तक प्रकाशित
१९५४ : 'गौ हत्या या राष्ट्र हत्या'
१९५७ : पंजाब हिन्दी सत्याग्रह में प्रचार प्रभारी
१९५८ : गुड़गांव से संसद निर्वाचित ; राजनीति में प्रवेश
१९६० : लोकसभा में धार्मिक स्थानों - मथुरा, काशी ,अयोध्या, के पुनः संस्थापन का विधेयक प्रस्तुत
१९६१ : १७ मार्च को देवनागरी को सभी भारतीय भाषाओं की लिपि बनाने का विधेयक। ७ सितम्बर को दक्षिण भारत में हिंदी विश्वविद्यालय स्थापित करने का प्रस्ताव
१९६२ : हापुड़ क्षेत्र से लोकसभा के लिए निर्वाचित।
१९६४ : २४ अप्रैल को धारा ३७० समाप्त करने का विधेयक प्रस्तुत।
१९६६ : २४ जून गोरक्षा आंदोलन समिति के सदस्य।
१९६६ : १८ नवम्बर को सम्पूर्ण गोवंश के वध पर प्रतिबन्द प्रस्तुत।
१९६७ : १ दिसम्बर को बलात धर्म परिवर्तन के निषेध का विधेयक प्रस्तुत।
१९६७ : बिजनौर से लोकसभा के लिए सदस्य निर्वाचित।
१९६९ : भारतीय क्रांति दल के महामंत्री बने।
१९६३ : वेदों के अंग्रेजी अनुवाद के लिए वेद प्रतिष्ठान की स्थापना की।
१९७४ : जनसंघ के टिकट पर राज्य सभा के सदस्य निर्वाचित।
१९७४ : मथुरा में विरजानन्द अनुसंधान भवन का उद्घाटन, उपराष्ट्रपति श्री जत्ती के कर-कमलों से।
१९७५-७६ : मेरठ, कानपुर, वाराणसी, नैनीताल में आर्यसमाज स्थापना शताब्दी समारोहों का आयोजन।
२३ नवम्बर, १९७७ : रेल दुर्घटना में निधन।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "शास्त्री जी के समय कांग्रेस नेताओं ने की थी 370 हटाने की वकालत". मूल से 10 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 अगस्त 2019.
- ↑ पुरोवाक् (लक्ष्मी मल्ल सिंघवी)
- ↑ पण्डित प्रकाशवीर शास्त्री