तोल्पावकूथु
![]() तोल्पावकूथु की एक छवि | |
मूल नाम | തോൽപ്പാവക്കൂത്ത് (तोल्पावकूथु) मलयालम में |
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नामोत्पत्ति | थोल (चमड़ा), पाव (गुड़िया), और कुथु (नाटक) |
विधा | कठपुतली कला |
उपकरण | चमड़े की कठपुतलियाँ |
उत्पत्तिस्थल | केरल, भारत |
तोल्पावकूथु कठपुतली खेल का एक छाया रूप है जो भारत के केरल में प्रचलित है। इसमें चमड़े की कठपुतलियों का उपयोग भद्रकाली को समर्पित एक अनुष्ठान के रूप में किया जाता है और इसके लिए देवी मंदिरों में विशेष रूप से रंगमंच का निर्माण किया जाता है जिन्हें कूथुमदम कहा जाता है। यह कला केरल के पालक्काड़ ज़िला, त्रिस्सूर जिला और मलप्पुरम जिला में विशेष रूप से लोकप्रिय है।[1]
इतिहास
[संपादित करें]तोल्पावकूथु तीन मलयालम शब्दों का एक संयुक्त शब्द है। थोल जिसका अर्थ है चमड़ा, पाव जिसका अर्थ गुड़िया, और कुथु जिसका अर्थ है नाटक। ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति नौवीं शताब्दी ईस्वी में हुई थी और इसके मूल पाठ के रूप में कंब रामायण को देखा जाता है। इसके प्रदर्शन की भाषा में तमिल, संस्कृत और मलयालम शब्दों का उपयोग किया जाता है। मुडीयेट और पढ़यनि की तरह तोल्पावकूथु भी भद्रकाली को समर्पित एक कला है। किंवदंती के अनुसार भद्रकाली के अनुरोध पर तोल्पावकूथु का प्रथम प्रदर्शन किया गया था क्योंकि वह रावण की हत्या को नहीं देख सकी थी क्योंकि उस वक्त वह राक्षस दारिका से लड़ रही थी। इसलिए जब यह मंदिरों में प्रदर्शित किया जाता है तो देवी की मूर्ति को आमतौर पर उस अखाड़े के सामने एक आसन पर रखा जाता है जहाँ इसका मंचन होता है।[2][3]
प्रदर्शन
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तोल्पावकूथु का प्रदर्शन 42 फुट के लम्बे मंच पर किया जाता है, जिसे कूथुमदम कहते है। मंच पर एक स्क्रीन होता है, सफेद कपड़े का एक टुकड़ा होता है। इसी कपड़े के पीछे कठपुतलियाँ रखी रहती हैं। पर्दे के पीछे 21 दीपक जलाकर रोशनी प्रदान की जाती है, जिससे कठपुतलियों की छाया स्क्रीन पर पड़ती है। प्रदर्शन के साथ श्लोकों का पाठ भी होता है। इसके प्रदर्शन के वक्त कई वाद्ययंत्रों का भी प्रयोग होता है।[4]
कंब रामायण के आधार पर इसकी कथा चलती है। हर दिन यह नौ घंटे प्रदर्शित की जाती है और 21 दिन में इसका पूरा मंचन खत्म होता है। इस दौरान 180 से 200 कठपुतलियों का प्रयोग किया जाता है। इस मंचन के लिए लगभग 40 कलाकार मेहनत करते हैं। प्रतिदिन इसका प्रदर्शन रात में शुरू होता है और सुबह समाप्त होता है। प्रदर्शन जनवरी से मई तक और पूरम के दौरान किए जाते हैं।[5]
खतरे और नए बदलाव
[संपादित करें]कई पारंपरिक कलाओं की तरह तोल्पावकूथु भी टेलीविजन और सिनेमा जैसे मनोरंजन के वैकल्पिक मंचों के आगमन और बदलते सांस्कृतिक मूल्यों के कारण विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रहा है। युवा पीढ़ी इस कला रूप को अपनाने में विफल रही है क्योंकि यह अत्यधिक खर्चीला और मेहनत भरा है और अधिक भुगतान नहीं करता है। वर्तमान में इसके दर्शकों की संख्या केरल के ग्रामीण क्षेत्रों में भी कम हो गई है। इन सामाजिक परिवर्तनों से निपटने के लिए कई प्रदर्शनों की अवधि को काफी कम कर दिया गया है। विषयगत रूप से कठपुतली कलाकारों ने युवाओं को आकर्षित करने के लिए समकालीन और धर्मनिरपेक्ष विषयों को पेश करना शुरू कर दिया है। हाल के वर्षों में रैगिंग, सांप्रदायिक सौहार्द और भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कहानियों जैसे विषयों को भी चित्रित किया जा रहा है। इसका प्रदर्शन अब केवल मंदिरों तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि कॉलेजों जैसे धर्मनिरपेक्ष स्थानों और केरल के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में भी इसको आयोजित किया जाता है।[6][7]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ रेमकांत, मनु (13 जुलाई 2007). "Play of light and shadows" [प्रकाश और छाया का खेल]. दि हिंदू. Archived from the original on 25 जनवरी 2013. Retrieved 16 मई 2021.
- ↑ सदाशिवन, टी. के. (5 सितम्बर 2008). "Enchanting Tholpavakoothu" [सम्मोहनकारी तोल्पावकूथु]. दि हिंदू. Archived from the original on 25 जनवरी 2013. Retrieved 16 मई 2021.
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(help) - ↑ "Tolpava Koothu - the ancient shadow puppetry of Kerala" [तोल्पावकूथु : केरल की प्राचीन छाया कठपुतली]. puppetry.org.in. Retrieved 16 मई 2021.
- ↑ एम., अतीर (14 जून 2012). "Fading away into the shadows". दि हिंदू (in अंग्रेज़ी). Retrieved 17 मई 2021.
- ↑ कृष्णमचारी, एस. (3 अक्टूबर 2008). "Shadow of the original" [मूल की छाया]. दि हिंदू. Archived from the original on 7 अक्तूबर 2008. Retrieved 17 मई 2021.
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(help) - ↑ एस. एस. (23 जून 2003). "Shadow of death over Tholpavakoothu" [तोल्पावकूथु पर मृत्यु की छाया]. दि हिंदू. Archived from the original on 10 मई 2005. Retrieved 17 मई 2021.
- ↑ "Kerala News : Puppet show" [केरल समाचार: कठपुतली शो]. दि हिंदू. 8 जून 2010. Archived from the original on 14 जून 2010. Retrieved 17 मई 2021.
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बाहरी कड़ियाँ
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तोल्पावकूथु से संबंधित मीडिया विकिमीडिया कॉमंस पर उपलब्ध है। |
- तोल्पावकूथु; स्वर्गीय गुरु कृष्णन कुट्टी पुलवर की स्मृति में। (अंग्रेजी में)
- केरल, भारत में कठपुतली खेल की छाया; (पुरालेखित, अंग्रेजी में)