तापविद्युत प्रभाव

तापविद्युत् (thermoelectricity) वह विद्युत है जो दो असमान धातुओं के तारों की संधि को गर्म करने पर इन तारों के परिपथ में प्रवाहित होने लगती है। इस तथ्य को सर्वप्रथम सीबेक (Seebeck) ने सन् 1821 में ताँबे एवं बिस्मथ के तारों की संधि को गर्म कर आविष्कृत किया। उपर्युक्त परिपथ में उत्पन्न विद्युतवाहक बल (Electromotive force) न्यून होता है और इसकी तीव्रता निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है-
- (1) परिपथ के तारों की धातु की प्रकृति पर,
- (2) असमान धातुओं के तारों की दोनों संधियों के तापांतर पर, तथा
- (3) इन संधियों के औसत ताप पर।
विद्युद्वाहक बल को मापने के लिये असमान धातुओं के तारों के ठंढे सिरे विभवमापी (potentiometer) से जोड़ दिए जाते हैं। यदि परिपथ में किसी दूसरी धातु का तार श्रेणीबद्ध कर दिया जाए तो तापविद्युत् प्रभावों में परिवर्तन नहीं होता। यदि सीबेक विद्युद्वाहक बल का परिमाण (E) एवं ठंढी संधि का तापांतर (T) और यदि एक संधि का ताप शून्य डिग्री सेल्सियस हो तो E और T का संबंध निम्नलिखित सूत्र में ज्ञात किया जाता है:
- E = AT + BT2
जहाँ A और B तापविद्युत् स्थिरांक हैं और इनका मान परिपथ के तारों की धातु पर निर्भर करता है। धातुओं के तापविद्युत् स्थिरांक निम्नलिखित सारणी में दिए गए है:
धातुओं के तापविद्युत् स्थिरांक[संपादित करें]
धातु | लोहा | इस्पात | ताँबा | टिन | चाँदी | जास्ता | प्लैटिनम (मुलायम) | प्लैटिनम (कठोर) |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|
(A) | +1734 | +1139 | +136 | -43 | +214 | +234 | -61 | +260 |
(B) | -4.87 | -3.28 | +0.95 | +0.55 | +1.50 | +2.40 | -1.10 | -0.71 |
बिस्मथ और ताँबे की संधि के लिये E = 45 T + 0.25T^2 माइक्रोवोल्ट है। न्यूनताप पर (E), (T) का लगभग समानुपाती होता है, किंतु यदि (T) बहुत अधिक हो तो (T2) का मान बढ़ जाता है। लोहे और ताँबे की संधि का E = 158 T - 0.0285T2 माइक्रोवोल्ट है। जब ताप T = 275 सेल्सिसय हो, तब अधिकतम E = 2,000 माइक्रोवोल्ट। उच्च ताप पर E का मान घटने लगता है तथा 5500 सें डिग्री यह शून्य हो जाता है 5500 सें. से अधिक ताप बढ़ने पर (E) की दिशा बदल जाती है और विद्युतधारा विपरीत दिशा में प्रवाहित दिशा में प्रवाहित होने लगती है। इस प्रकार ताप बढ़ने पर विद्युत धारा का विपरीत दिशा में प्रवाहित होना तापविद्युत्प्रवाह का उत्क्रमण (इन्वर्शन) कहलाता है और 550 डिग्री सेल्सियस उत्क्रमण ताप। ताँबे और बिस्मथ की संधि में यह प्रभाव नहीं होता।
किन्हीं दो तारों की संधि का ताप 10 सेल्सियस बढ़ने पर विद्युत् के विद्युद्वाहक बल में परिवर्तन होता है, जिसे तापविद्युत शक्ति (Thermoelectric power) कहते हैं। विभिन्न धातुओं के तापविद्युत् गुणों की तुलना करने के लिये सीस (लेड) का एक तार तथा दूसरा उस धातु का लेते हैं जिसका तापविद्युत् का गुण ज्ञात करना है।
तापविद्युत् प्रभाव का अधिक उपयोग ताप मापने के लिये किया जाता है। ताप मापने के लिये गरम और ठंढी संधि की व्यवस्था तापांतर युग्म (thermocouple) कहलाती है। ताँबा और कांसटैटन (60 प्रतिशत ताँबा और 40 प्रतिशत निकल) युग्म 500 सेल्सियस. तक ताप मापने के लिये तथा प्लैटिनम और रोडियम एवं प्लैटिनम की मिश्रधातु के युग्म 1500 डिग्री सेल्सियस तक ताप मापने के अच्छे युग्म हैं।
पैल्ट्ये (Peltier) प्रभाव[संपादित करें]

सन् 1834 में पेल्ट्ये ने आविष्कृत किया कि दो असमान धातुओं के परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित होने पर एक संधि गरम और दूसरी संधि ठंडी हो जाती है। जब विद्युत धारा लोहे से ताँबे की और प्रवाहित होती है तो केशिका नली में तेल की एक बूँद बाईं ओर चलकर तापन प्रभाव दिखाती है और जब ताँबे से लोहे की ओर प्रभावित होती है तब शीतलन प्रभाव दिखाती है। पैल्ट्ये प्रभाव, सीबेक प्रभाव का उल्टा है।
थॉमसन् (Thomson) प्रभाव[संपादित करें]
सन् 1854 में विलियम टॉमसन ने आविष्कृत किया कि एक ही धातु के तारों के दोनों सिरों के मध्य में विभवांतर होता है, यदि दोनों सिरों के ताप भिन्न हों। पेल्ट्ये एवं थॉमसन प्रभाव केवल सैद्धातिक महत्व के हैं। इनका व्यावहारिक महत्व कम है।
जब एक परिपथ में कई तापांतर युग्म होते हैं और उनकी क्रमिक संधियाँ एकांतरत: गर्म और ठंडी होती हैं तो कुल विद्युद्वाहक बल परिपथ में लगे हुए सब तापांतर युग्मों के विद्युद्वाहक बलों के योग के बराबर होता है। इस तथ्य का उपयोग तापीय पुंज (thermopile) नामक उपकरण में करते हैं, जिसमें बिसमथ और ऐटिमनी के छड़ श्रेणी में लगे रहते हैं। इस उपकरण विकिरण ऊष्मा का अनुमान एवं पता लगाने के लिये करते हैं। इस उपकरण में जो विद्युतधारा उत्पन्न होती है उसे गैलवानोमीटर से मापते हैं और यही विकिरण के परिमाण का सूचकांक (index) है।
तापविद्युत संयोजन से विद्युत ऊर्जा उत्पादन[संपादित करें]
तापविद्युत् संयोजनों द्वारा व्यापारिक उपयोगिता की दृष्टि से विद्युत् उत्पन्न करने के अनेक प्रयास किए गए हैं, किंतु जब ये प्रयास आंशिक रूप से सफल हुए तो ज्ञात हुआ कि इनका व्यापारिक महत्व नगण्य है। तापविद्युत् संयोजन द्वारा व्यापारिक दृष्टि से विद्युत् उत्पन्न करने में दो प्रकार की कठिनाइयाँ हैं: सैद्धांतिक एंव संरचनात्मक। पर्याप्त विद्युद्वाहक बल प्राप्त करने के लिये बहुत अधिक संयोजनों की आवश्यकता होती है और अनुभव से यह सिद्ध हो चुका है कि अधिक संश्लिष्ट तापपुंज टिकाऊ नहीं होता। यदि इस कठिनाई को दूर भी कर दिया जाय तो सैद्धांतिक कारण, जो ऊष्मागतिकी पर निर्भर करते हैं, यह बतलाते हैं कि ऊष्मा उर्जा को विद्युत उर्जा में परिवर्तित करनेवाले तापपुंज की दक्षता कभी भी उच्च नहीं होती।
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
सामान्य[संपादित करें]
- Device to measure the Seebeck Effect
- Thomson Effect – Interactive Java Tutorial Archived 2010-07-24 at the Wayback Machine National High Magnetic Field Laboratory
- International Thermoelectric Society
- Thermoelectric News Archived 2011-02-09 at the Wayback Machine
- General
- Explanation of carrier diffusion and phonon drag components of thermopower Archived 2006-02-10 at the Wayback Machine
- Good explanation of thermo-electric cooler design
- BSST Technical Papers on thermoelectric devices
- Gizmag Article on application of Thermoelectrics
अर्धचालक[संपादित करें]
- A brief explanation
- An introduction to thermoelectric coolers Archived 2009-03-26 at the Wayback Machine
धातुएँ[संपादित करें]
- The origin of the thermoelectric potential Archived 2010-06-05 at the Wayback Machine
अन्य सम्बन्धित सामग्री[संपादित करें]
- The 8th European Conference on Thermoelectrics, ECT 2010, to be held Sept. 22–24, 2010 in Como, Italy, organized by the Lecco unit of the Institute of Energetics and Interphases (IENI) of the Italian National research Council (CNR) Archived 2010-04-30 at the Wayback Machine
- A news article on the increases in thermal diode efficiency
- A fan for putting on top of stoves and other hot items, powered by the Peltier-Seebeck effect.
- Generating useful voltages (and powering radio transmitters) from Peltier devices Archived 2010-06-03 at the Wayback Machine