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डमरु

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डमरु
एक तिब्बती डमरु
वर्गीकरण तालवाद्य यंत्र

डमरु एक छोटा संगीत वाद्य यन्त्र होता है। इसमें एक-दूसरे से जुड़े हुए दो छोटे शंकुनुमा हिस्से होते हैं जिनके चौड़े मुखों पर चमड़ा या ख़ाल कसकर तनी हुई होती है। डमरू के तंग बिचौले भाग में एक रस्सी बंधी होती है जिसके दूसरे अन्त पर एक पत्थर या कांसे का डला या भारी चमड़े का टुकड़ा बंधा होता है। हाथ एक-फिर-दूसरी तरफ़ हिलाने पर यह डला पहले एक मुख की ख़ाल पर प्रहार करता है और फिर उलटकर दूसरे मुख पर, जिस से 'डुग-डुग' की आवाज़ उत्पन्न होती है। तेज़ी से हाथ हिलाने पर इस 'डुग-डुग' की गति और ध्वनि-शक्ति काफ़ी बढ़ाई जा सकती है। डुगडुगी इसका छोटा रुप है।

संस्कृति और धर्म में

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डमरु हिन्दू धर्मतिब्बती बौद्ध धर्म में शिव का प्रतीक है और बहुत धार्मिक महत्व रखता है। तिब्बती भाषा में भी इसे 'डमरु' ही कहते हैं और 'ཌཱ་མ་རུ' लिखा जाता है। भारतीय और तिब्बती साधू अक्सर डमरु रखे हुए होते हैं।[1] भारतीय उपमहाद्वीप की पारम्परिक संस्कृति में भालू या बंदर जैसे जानवर नचाने वाले कलाकार अक्सर डुगडुगी का प्रयोग किया करते हैं, जिन्हें मदारी कहते हैं।[2]

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. Tibetan Yoga and Its Secret Doctrines: Attaining Right Knowledge, W. Y. Evans-Wentz, pp. 320, Routledge, 2005, ISBN 9780710308382, ... The damaru is used, somewhat like a timbrel, by Lamas and yogins in religious rites, especially in those of esoteric and mystic significance; for its parts are symbolical of the transitoriness of human existence ...
  2. Folk Lore, Indian Publications, 1975, ... Snake charmers play Tubri, players of monkey and bear dance use Dugdugi ...