छलिया नृत्य
छलिया नृत्य (जिसे छोलिया और हुड्केली भी कहा जाता है) उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र और नेपाल के सुदूरपश्चिम प्रदेश का एक प्रचलित लोकनृत्य है। यह एक तलवार नृत्य है, जो प्रमुखतः शादी-बारातों या अन्य शुभ अवसरों पर किया जाता है।[1] यह विशेष रूप से कुमाऊँ मण्डल के पिथौरागढ़, चम्पावत, बागेश्वर और अल्मोड़ा जिलों में और नेपाल का ऐतिहासिक डोटी क्षेत्र में लोकप्रिय है। यह नाचको नेपाली में हुड्केली और डोटेली में हुड़्क्या काहा जाता हे।
छोलिया नृत्य ढोल ,दमाऊ ,तुरी ,मशकबीन आदि वाद्य यंत्रों के संगीत पर ,विशेष वेश भूषा पहनकर हाथों में सांकेतिक ढाल तलवार लेकर युद्ध कौशल का प्रदर्शन करने वाला नृत्य छोलिया नृत्य अथवा छलिया नृत्य कहा जाता है। श्री जुगल किशोर पेटशाली जी के अनुसार ,”यह नृत्य युद्धभूमि में लड़ रहे शूरवीरों की वीरता मिश्रित छल का नृत्य है। छल से युद्ध भूमी में. दुश्मन को कैसे पराजित किया जाता है , यही प्रदर्शित करना इस नृत्य का मुख्य लक्ष्य है। इसीलिए इसे छल नृत्य ,छलिया नृत्य या छोलिया नृत्य कहा जाता है। "
छोलिया नृत्य या छलिया नृत्य के बारे यह भी कहा जाता है कि, उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में प्रतिद्वंदी की लड़कियों अथवा प्रतिद्वंदी की बारात में से दुल्हन का अपहरण कर लिया जाता था। उस समय के क्षत्रिय या सामंती राजा अपनी वर यात्रा में तलवारबाजी में पारंगत योद्धाओं को बारात में ले जाते थे। और वे योद्धा बारातियों को आश्वस्त करने के लिए ,बरात के बीच -बीच अपने युद्ध कौशल का प्रदर्शन करते रहते थे।
एक छलिया टीम में सामान्यतः २२ कलाकार होते हैं, जिनमें ८ नर्तक तथा १४ संगीतकार होते हैं। इस नृत्य में नर्तक युद्ध जैसे संगीत की धुन पर क्रमबद्ध तरीके से तलवार व ढाल चलाते हैं, जो कि अपने साथी नर्तकियों के साथ नकली लड़ाई जैसा प्रतीत होता है। वे अपने साथ त्रिकोणीय लाल झंडा (निसाण) भी रखते हैं। नृत्य के समय नर्तकों के मुख पर प्रमुखतः उग्र भाव रहते हैं, जो युद्ध में जा रहे सैनिकों जैसे लगते हैं।
मूल
[संपादित करें]ऐसा माना जाता है की छलिया नृत्य की शुरुआत खस राजाओं के समय हुई थी, जब विवाह तलवार की नोक पर होते थे। चंद राजाओं के आगमन के बाद यह नृत्य क्षत्रियों की पहचान बन गया। यही कारण है कि कुमाऊं में अभी भी दूल्हे को कुंवर या राजा कहा जाता है। वह बरात में घोड़े की सवारी करता है तथा कमर में खुकरी रखता है।[2]
इसके अतिरिक्त छलिया नृत्य का धार्मिक महत्व भी है। इस कला का प्रयोग अधिकतर राजपूत समुदाय की शादी के जुलूसों में होता है।[3] छलिया को शुभ माना जाता है तथा यह भी धारणा है की यह बुरी आत्माओं और राक्षसों से बारातियों को सुरक्षा प्रदान करता है।
उपकरण
[संपादित करें]छलिया नृत्य में कुमाऊं के परंपरागत वाद्ययंत्रों का प्रयोग किया जाता है, जिनमें तुरी, नागफनी और रणसिंह प्रमुख हैं। इनका प्रयोग पहले युद्ध के समय सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए किया जाता था। तालवाद्यों में ढोल तथा दमाऊ का प्रयोग होता है, और इन्हें बजाने वालों को ढोली कहा जाता है। इसके अतिरिक्त मसकबीन (बैगपाइप), नौसुरिया मुरूली तथा ज्योंया का प्रयोग भी किया जाता है।[4]
नर्तक पारंपरिक कुमाउँनी पोशाक पहेनते हैं, जिसमें सफेद चूड़ीदार पायजामा, सिर पर टांका, चोला तथा चेहरे पर चंदन का पेस्ट शामिल हैं। तलवार और पीतल की ढालों से सुसज्जित उनकी यह पोशाक दिखने में कुमाऊं के प्राचीन योद्धाओं के सामान होती है। [5]
रूप
[संपादित करें]छलिया नृत्य के निम्नलिखित प्रारूप हैं:
- बिसू नृत्य
- सरांव (नकली लड़ाई)
- रण नृत्य
- सरंकार
- वीरांगना
- छोलिया बाजा
- शौका शैली
- पैटण बाजा
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Folk Dances Of North India". Culturalindia.net. मूल से 18 जुलाई 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-06-12.
- ↑ "Choliya Dance - Folk Dances of Kumaon". Euttaranchal.com. मूल से 2 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-06-12.
- ↑ musetheplace.com. "Choliya Dance – Folk Dances of Kumaon". musetheplace.com. मूल से 3 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2013-01-21.
- ↑ "Welcome to Chhaliya Mahotsava, Pithoragarh". Chhaliyamahotsava.com. मूल से 23 जनवरी 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 जून 2010.
- ↑ "Choliya Dance - Choliya Dance Uttarakhand, Cholia Dance Uttaranchal". Himalaya2000.com. मूल से 3 जनवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-06-12.