कोशिका झिल्ली

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एक सुकेन्द्रक कोशिका झिल्ली का चित्रण

कोशिका झिल्ली या जीवद्रव्य झिल्ली एक जैवझिल्ली है जो बाह्य वातावरण (बाह्य कोशिकीय स्थान) से सभी कोशिकाओं के आन्तरिक भाग की रक्षा करती है। [1]कोशिका झिल्ली में एक लिपिड द्विस्तर होता है, जो खोलेस्टेरॉल (एक लिपिड घटक) के साथ फॉस्फोलिपिड की दो स्तरों से निर्मित है, जो विभिन्न तापमानों पर उपयुक्त झिल्ली तरलता बनाए रखता है। झिल्ली में झिल्ली प्रोटीन भी होते हैं, जिसमें आन्तरिक प्रोटीन शामिल होते हैं जो झिल्ली को फैलाते हैं और झिल्ली परिवहक के रूप में कार्य करते हैं, और परिधीय प्रोटीन जो कोशिका झिल्ली के परिधीय (बाह्य) पक्ष से शिथिल रूप से जुड़ते हैं, कोशिका के वातावरण के साथ अन्योन्यक्रिया को सुविधाजनक बनाने हेतु प्रकिण्वों के रूप में कार्य करते हैं।[2] बाह्य लिपिड स्तर में धंसे ग्लाइकोलिपिड एक समान उद्देश्य प्रदान करते हैं। कोशिका झिल्ली, आयनों और कार्बनिक अण्वों हेतु अर्धपारगम्य होने के कारण, कोशिकाओं और कोशिकांगों के भीतर और बाहर पदार्थों की गति को नियन्त्रित करती है।[3] इसके अतिरिक्त, कोशिका झिल्लियाँ विभिन्न प्रकार की कोशिकीय प्रक्रियाओं में शामिल होती हैं जैसे कि कोशिकासंजन, आयन चालकता, कोशिका संकेतन और कई बाह्य संरचनाओं हेतु संलग्नक सतह के रूप में कार्य करती हैं, जिसमें कोशिका भित्ति और कोशिकाच्छद नामक कार्बोहाइड्रेट स्तर शामिल हैं, साथ ही प्रोटीन रेशों के अन्तःकोशिकीय संजाल को कोशिका कंकाल कहा जाता है। कृत्रिम जीववैज्ञानिक क्षेत्र में, कोशिका झिल्लियों को कृत्रिम रूप से पुनः जोड़ा जा सकता है।[4][5][6]

संरचना[संपादित करें]

वर्ष 1950 के इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के आविष्कार के पश्चात् कोशिका झिल्ली की विस्तृत संरचना का अध्ययन सम्भव हो सका है। इस बीच मनुष्य की लाल रक्त कणिकाओं की कोशिका झिल्ली के रासायनिक अध्ययन के बाद कोशिका झिल्ली की सम्भावित संरचना के बारे में ज्ञान प्राप्त हो सकी।

अध्ययनों के बाद इस बात की पुष्टि हुई की कोशिका झिल्ली मुख्यतः लिपिडप्रोटीन की बनी होती हैं। इसमें प्रमुख लिपिड फॉस्फोलिपिड होते हैं, जो दो सतहों में व्यवस्थित होती है। लिपिड झिल्ली के भीतर व्यवस्थित होते हैं, जिनका ध्रुवीय शिर बाहर की ओर व जलभीरू पुच्छ भीतर की ओर होता है। इससे सुनिश्चित होता है कि सन्तृप्त हाइड्रोकार्बन की बनी हुई अध्रुवीय पुच्छ जलीय वातावरण से सुरक्षित रहती हैं। इसके अतिरिक्त फॉस्फोलिपिड झिल्ली में खोलेस्टेरॉल भी होता है।

जैवरासायनिक अनुसन्धानों से यह स्पष्ट हो गया है कि कोशिका झिल्ली में प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है। विभिन्न कोशिकाओं में प्रोटीन व लिपिड का अनुपात भिन्न-भिन्न होता है। मनुष्य की लाल रुधिराणु की झिल्ली में लगभग 52% प्रोटीन व 40% लिपिड मिलता है। झिल्ली में पाए जाने वाले प्रोटीन को भिन्न करने की सुविधा के आधार पर दो आन्तरिक व परिधीय प्रोटीन भागों में विभक्त कर सकते हैं। परिधीय प्रोटीन झिल्ली की सतह पर होता है, जबकि आन्तरिक प्रोटीन आंशिक या पूर्णतः झिल्ली में धंसे होते हैं।

कोशिका झिल्ली का उन्नत प्रतिकृति 1972 में सिङर व निकोल्सन द्वारा प्रतिपादित किया गया जिसे तरल किर्मीर प्रतिकृति के रूप में व्यापक रूप से स्वीकार कर किया गया। इसके अनुसार लिपिड के अर्धतरलीय प्रकृति के कारण फॉस्फोलिपिड द्विस्तर के भीतर प्रोटीन पार्श्विक गति करता है। झिल्ली के भीतर गति करने की क्षमता उसकी तारल्य पर निर्भर करती है।

झिल्ली की तरलीय प्रकृति इसके कार्य जैसे- कोशिका वृद्धि, अन्तःकोशिकीय संयोजन निर्माण, स्रावण, अन्तःकोशिक, कोशिका विभाजन इत्यादि की दृष्टि में महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रकार्य[संपादित करें]

कोशिका झिल्ली का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रकार्य यह है कि इससे अण्वों का परिवहन होता है। यह झिल्ली इसके द्विपार्श्व मिलने वाले अण्वों हेतु अर्धपारगम्य हैं। कुछ अणु बिना ऊर्जा की आवश्यकता के इस झिल्ली से होकर आते हैं जिसे निष्क्रिय परिवहन कहते हैं। उदासीन विलेय सान्द्रता प्रावण्य के अनुसार जैसे उच्च सान्द्रता से निम्न सान्द्रता की ओर साधारण विसरण द्वारा इस झिल्ली से होकर जाते हैं। जल भी इस झिल्ली से उच्च सान्द्रता से निम्न सान्द्रता की ओर गति करता है। विसरण द्वारा जल के प्रवाह को परासरण कहते हैं। चूँकि ध्रुवीय अणु जो अध्रुवीय लिपिड द्विस्तर से होकर नहीं जा सकते, उन्हें झिल्ली से होकर परिवहन हेतु झिल्ली की वाहक प्रोटीन की आवश्यकता होती हैं।

कुछ आयन या अण्वों का झिल्ली से होकर परिवहन उनकी सान्द्रता प्रावण्य के विपरीत जैसे निम्न से उच्च सान्द्रता की ओर होता है। इस प्रकार के परिवहन हेतु ऊर्जा आधारित प्रक्रिया होती है, जिसमें एटीपी का उपयोग होता है जिसे सक्रिय परिवहन कहते हैं। यह एक पम्प के रूप में कार्य करता है जैसे: सोडियम आयन/पोटैसियम आयन पम्प।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Singleton P (1999). Bacteria in Biology, Biotechnology and Medicine. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-471-98880-9.
  2. Herrmann, Tom; Leavitt, Logan; Sharma, Sandeep (2023), "Physiology, Membrane", StatPearls, StatPearls Publishing, PMID 30855799, अभिगमन तिथि 2023-06-09
  3. "Molecular Biology of the Cell - Books - NCBI". www.ncbi.nlm.nih.gov. अभिगमन तिथि 2023-06-09.
  4. Budin, Itay; Devaraj, Neal K. (2012-01-18). "Membrane Assembly Driven by a Biomimetic Coupling Reaction". Journal of the American Chemical Society. 134 (2): 751–753. PMID 22239722. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0002-7863. डीओआइ:10.1021/ja2076873. पी॰एम॰सी॰ 3262119.
  5. "Chemists synthesize artificial cell membrane". ScienceDaily (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-06-09.
  6. Zeidi, Mahdi; Kim, Chun Il (2018-08-27). "The Effects of Intra-membrane Viscosity on Lipid Membrane Morphology: Complete Analytical Solution". Scientific Reports. 8: 12845. PMID 30150612. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2045-2322. डीओआइ:10.1038/s41598-018-31251-6. पी॰एम॰सी॰ 6110749.