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काच (राजा)

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काच सम्भवतः कोई गुप्त वंध का शासक था जिसका नाम भारत में प्राप्त कुछ स्वर्णमुद्रओं पर खुदा मिलता है। इन मुद्राओं पर सामने बाएँ हाथ में चक्रध्वज लिए खड़े राजा की आकृति मिलती है। उसके बाएँ हाथ के नीचे गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि में राजा का नाम 'काच' लिखा रहता है। मुद्रा पर वर्तुलाकार ब्राह्मी लेख 'काचो गामवजित्य दिवं कर्मभिरुत्तमै: जयति' मिलता है, जिसका अर्थ है 'पृथ्वी को जीतकर काच पुण्यकर्मों द्वारा स्वर्ग की विजय करता है।' सिक्के के पीछे लक्ष्मी की आकृति तथा 'सर्व्वराजोच्छेत्ता' (सब राजाओं को नष्ट करनेवाला) ब्राह्मी लेख रहता है।

ये सिक्के गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त के सिक्कों से बहुत मिलते हैं। 'सर्व्वराजोच्छेत्ता' विरुद गुप्तवंश के अभिलेखों में समुद्रगुप्त के लिए प्रयुक्त हुआ है। अत: कुछ विद्वान् समुद्रगुप्त का ही दूसरा नाम 'काच' मानकर उक्त सिक्कों को उसी का घोषित करते हैं। परंतु इसे ठीक नहीं कहा जा सकता। समुद्रगुप्त के सिक्कों पर उसका नाम 'समुद्र' मिलता है न कि 'काच'। दूसरे, चक्रध्वज चिह्न काच के अतिरिक्त समुद्रगुप्त या अन्य किसी गुप्त शासक के सिक्कों पर नहीं मिलता।

हाल में रामगुप्त नामक शासक की कुछ ताम्रमुद्राओं के मिलने से तथा उसका नाम साहित्य एवं अन्य प्रमाणों से ज्ञात होने के कारण कुछ लोग इसी रामगुप्त को काच समझते हैं। परंतु यह भी युक्तिसंगत नहीं जान पड़ता। काच तथा रामगुप्त के सिक्के एक दूसरे से नितांत भिन्न हैं। प्रतीत होता है कि गुप्त शासक चंद्रगुप्त प्रथम की मृत्यु के बाद काच नाम के किसी शक्तिशाली व्यक्ति ने पाटलिपुत्र की गुप्तवंशी गद्दी पर अधिकार कर लिया और उसी ने 'काच' अंकित उक्त मुद्राएँ प्रचलित कीं।