हिंदी साहित्य

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
हिंदी साहित्य

1884 पुस्तक, इंद्रजालकाला (जादू की कला) में सूर्य का चित्रण; ज्वाला प्रकाश प्रेस, मेरठ
उल्लेखनीय कार्य {{{notable_works}}}
चंद्रकांता का मुखपृष्ठ

हिन्दी भारत और विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। उसकी जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा तक जातीं हैं परन्तु मध्ययुगीन भारत के अवधी, मागधी , अर्धमागधी तथा मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य को हिन्दी का आरम्भिक साहित्य माना जाता हैं। हिन्दी साहित्य ने अपनी शुरुआत लोकभाषा कविता के माध्यम से की और गद्य का विकास बहुत बाद में हुआ। हिन्दी का आरम्भिक साहित्य अपभ्रंश में मिलता है। हिन्दी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है- गद्य, पद्य और चम्पू। जो गद्य और पद्य दोनों में हो उसे चम्पू कहते है। खड़ी बोली की पहली रचना कौन सी है, इस विषय में विवाद है लेकिन अधिकांश साहित्यकार लाला श्रीनिवासदास द्वारा लिखे गये उपन्यास परीक्षा गुरु को हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं।

हिन्दी साहित्य का आरम्भ[संपादित करें]

हिंदी साहित्य का आरम्भ आठवीं शताब्दी से माना जाता है। यह वह समय है जब सम्राट हर्ष की मृत्यु के बाद देश में अनेक छोटे-छोटे शासन केन्द्र स्थापित हो गए थे जो परस्पर संघर्षरत रहा करते थे हिन्दी साहित्य के विकास को आलोचक सुविधा के लिये पाँच ऐतिहासिक चरणों में विभाजित कर देखते हैं, जो क्रमवार निम्नलिखित हैं:-

आदिकाल[संपादित करें]

हिन्दी साहित्य आदिकाल को आलोचक 1400 ईसवी से पूर्व का काल मानते हैं जब हिन्दी का उद्भव हो ही रहा था। हिन्दी की विकास-यात्रा दिल्ली, कन्नौज और अजमेर क्षेत्रों में हुई मानी जाती है। पृथ्वीराज चौहान का उस समय दिल्ली में शासन था और चंदबरदाई नामक उसका एक दरबारी कवि हुआ करता था। चंदबरदाई की रचना 'पृथ्वीराजरासो' है, जिसमें उन्होंने अपने मित्र पृथ्वीराज की जीवन गाथा कही है। 'पृथ्वीराज रासो' हिन्दी साहित्य में सबसे बृहत् रचना मानी गई है। कन्नौज का अन्तिम राठौड़ शासक जयचंद था जो संस्कृत का बहुत बड़ा संरक्षक था।

आदिकाल को वीरगाथा काल भी कहते हैं। आदिकाल को 1050 - 1375 तक के काल में विभाजित किया गया है। आदिकाल में वीररसात्मक ग्रंथो की प्रधानता के कारण वीरगाथाकाल कहा जाता हैं।

भक्ति काल[संपादित करें]

हिन्दी साहित्य का भक्ति काल 1375 से 1700 तक माना जाता है। यह काल प्रमुख रूप से भक्ति भावना से ओतप्रोत है। इस काल को समृद्ध बनाने वाली दो काव्य-धाराएँ हैं -1.निर्गुण भक्तिधारा तथा 2.सगुण भक्तिधारा। निर्गुण भक्तिधारा को आगे दो हिस्सों में बाँटा गया है। एक है संत काव्य जिसे ज्ञानाश्रयी शाखा के रूप में भी जाना जाता है, इस शाखा के प्रमुख कवि, कबीर, नानक, दादूदयाल, रैदास, मलूकदास, सुन्दरदास, धर्मदास[1] आदि हैं।

निर्गुण भक्तिधारा का दूसरा हिस्सा सूफी काव्य का है। इसे प्रेमाश्रयी शाखा भी कहा जाता है। इस शाखा के प्रमुख कवि हैं- मलिक मोहम्मद जायसी, कुतुबन, मंझन, शेख नबी, कासिम शाह, नूर मोहम्मद आदि।

भक्तिकाल की दूसरी धारा को सगुण भक्ति धारा कहा जाता है। सगुण भक्तिधारा दो शाखाओं में विभक्त है- रामाश्रयी शाखा, तथा कृष्णाश्रयी शाखा। रामाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि हैं- तुलसीदास, अग्रदास, नाभादास, केशवदास, हृदयराम, प्राणचंद चौहान, महाराज विश्वनाथ सिंह, रघुनाथ सिंह

कृष्णाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि हैं- सूरदास, नंददास, कुम्भनदास, छीतस्वामी, गोविन्द स्वामी, चतुर्भुज दास, कृष्णदास, मीरा, रसखान, रहीम आदि। चार प्रमुख कवि जो अपनी-अपनी धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये कवि हैं (क्रमशः)

कबीरदास (1398)-(1518)
मलिक मोहम्मद जायसी (1477-1542)
सूरदास (1478-1583)
तुलसीदास (1532-1623)

रीति काल का परिचय[संपादित करें]

हिंदी साहित्य का रीति काल संवत 1700 से 1900 तक माना जाता है यानी सन् 1643 ई॰ से सन् 1843 ई॰ तक। रीति का अर्थ है बना बनाया रास्ता या बँधी-बँधाई परिपाटी। इस काल को रीतिकाल इसलिए कहा गया है क्योंकि इस काल में अधिकांश कवियों ने श्रृंगार वर्णन, अलंकार प्रयोग, छन्द बद्धता आदि के बँधे रास्ते की ही कविता की। हालांकि घनानंद, बोधा, ठाकुर, गोबिंद सिंह जैसे रीति-मुक्त कवियों ने अपनी रचना के विषय मुक्त रखे। इस काल को रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त तीन भागों में बाँटा गया है।

रीति कालीन कवियों ने समय क़े साथ बहने वाले विचारों पे लेख लिखें l

केशव (१५४६-१६१८), बिहारी (1603-1664), भूषण (1613-1705), मतिराम, घनानन्द , सेनापति आदि इस युग के प्रमुख रचनाकार रहे।

आधुनिक काल[संपादित करें]

आधुनिक काल हिन्दी साहित्य पिछली दो सदियों में विकास के अनेक पड़ावों से गुज़रा है। जिसमें गद्य तथा पद्य में अलग अलग विचार धाराओं का विकास हुआ। जहाँ काव्य में इसे छायावादी युग, प्रगतिवादी युग, प्रयोगवादी युग और यथार्थवादी युग इन चार नामों से जाना गया, वहीं गद्य में इसको, भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, रामचंद‍ शुक्ल व प्रेमचंद युग तथा अद्यतन युग का नाम दिया गया।

अद्यतन युग के गद्य साहित्य में अनेक ऐसी साहित्यिक विधाओं का विकास हुआ जो पहले या तो थीं ही नहीं या फिर इतनी विकसित नहीं थीं कि उनको साहित्य की एक अलग विधा का नाम दिया जा सके। जैसे डायरी, या‌त्रा विवरण, आत्मकथा, रूपक, रेडियो नाटक, पटकथा लेखन, फ़िल्म आलेख इत्यादि.

नव्योत्तर काल[संपादित करें]

नव्योत्तर काल की कई धाराएँ हैं - एक, पश्चिम की नकल को छोड़ एक अपनी वाणी पाना; दो, अतिशय अलंकार से परे सरलता पाना; तीन, जीवन और समाज के प्रश्नों पर असंदिग्ध विमर्श।

कम्प्यूटर के आम प्रयोग में आने के साथ साथ हिन्दी में कम्प्यूटर से जुड़ी नई विधाओं का भी समावेश हुआ है, जैसे- चिट्ठालेखन और जालघर की रचनाएँ। हिन्दी में अनेक स्तरीय हिंदी चिट्ठे, जालघरजाल पत्रिकायें हैं। यह कंप्यूटर साहित्य केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व के हर कोने से लिखा जा रहा है। इसके साथ ही अद्यतन युग में प्रवासी हिन्दी साहित्य के एक नए युग का आरम्भ भी माना जा सकता है।

हिन्दी की विभिन्न बोलियों का साहित्य[संपादित करें]

भाषा के विकास-क्रम में अपभ्रंश से हिन्दी की ओर आते हुए भारत के अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग भाषा-शैलियाँ जन्मीं। हिन्दी इनमें से सबसे अधिक विकसित थी, अतः उसको भाषा की मान्यता मिली। अन्य भाषा शैलियाँ बोलियाँ कहलाईं। इनमें से कुछ में हिन्दी के महान कवियों ने रचना की जैसे तुलसीदास ने रामचरित मानस को अवधी में लिखा और सूरदास ने अपनी रचनाओं के लिए बृज भाषा को चुना, विद्यापति ने मैथिली में और मीराबाई ने राजस्थानी को अपनाया।

हिंदी की विभिन्न बोलियों का साहित्य आज भी लोकप्रिय है और आज भी अनेक कवि और लेखक अपना लेखन अपनी-अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में करते हैं।

हिन्दी साहित्य के लिए पुरस्कार[संपादित करें]

स्थापना वर्ष पुरस्कार का नाम पुरस्कार प्रदान करने वाली संस्था
1922 मंगलाप्रसाद पारितोषिक अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन
1935 देव पुरस्कार ओरछा का राजपरिवार
1954 साहित्य अकादमी पुरस्कार (हिंदी) साहित्य अकादमी
1965 ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ
1983 मूर्ति देवी पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ
1986 राजभाषा कीर्ति पुरस्कार राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार
1982 भारत भारती सम्मान उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान
1986 शलाका सम्मान हिन्दी अकादमी, दिल्ली
1989 हिंदी सेवी सम्मान केंद्रीय हिंदी संस्थान[2]
1991 व्यास सम्मान के के बिड़ला फाउंडेशन
1991 सरस्वती सम्मान के के बिड़ला फाउंडेशन
राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन सम्मान उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान
लोहिया साहित्य सम्मान उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान
महात्मा गांधी साहित्य सम्मान उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान
हिन्दी गौरव सम्मान उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान
पं0 दीनदयाल उपाध्याय सम्मान उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान
अवन्तीबाई सम्मान उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान
साहित्य भूषण उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान
आजीवन साहित्य साधना पुरस्कार हरियाणा साहित्य अकादमी
माधव प्रसाद मिश्र सम्मान हरियाणा साहित्य अकादमी
महाकवि सूरदास सम्मान हरियाणा साहित्य अकादमी

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

प्रमुख हिंदी साहित्यकार[संपादित करें]

हिन्दी के प्रमुख ग्रन्थ[संपादित करें]

अन्य[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. आचार्य रामचन्द्र, शुक्ल (2013). हिंदी साहित्य का इतिहास. इलाहाबाद: लोकभारती प्रकाशन. पृ॰ 54.
  2. "हिंदी सेवी सम्मान योजना". मूल से 3 मार्च 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 मार्च 2021.