भ्रष्टाचार (आचरण)
भ्रष्टाचार एक प्रकार की बेईमानी या अपराध है जो किसी व्यक्ति या संगठन द्वारा किया जाता है जिसे अधिकार के पद पर सौंपा जाता है, ताकि किसी के व्यक्तिगत लाभ के लिए अवैध लाभ या शक्ति का दुरुपयोग किया जा सके। भ्रष्टाचार में कई गतिविधियाँ शामिल हो सकती हैं जिनमें उत्कोच ग्रहण, प्रभावित करना और गबन शामिल है और इसमें ऐसी प्रथाएँ भी शामिल हो सकती हैं जो कई देशों में कानूनी हैं। राजनैतिक भ्रष्टाचार तब होता है जब कोई अधिकारी या अन्य सरकारी कर्मचारी व्यक्तिगत लाभ के लिए आधिकारिक क्षमता के साथ कार्य करता है। भ्रष्टाचार चोरतन्त्रों, अल्पतन्त्रों, और माफ़िया राज्यों में सबसे सामान्य हैं।
भ्रष्टाचार और अपराध स्थानिक सामाजिक घटनाएँ हैं जो वैश्विक स्तर पर लगभग सभी देशों में अलग-अलग डिग्री और अनुपात में नियमित आवृत्ति के साथ दिखाई देती हैं। सद्य के आंकड़े बताते हैं कि भ्रष्टाचार बढ़ रहा है।[1] प्रत्येक व्यक्तिगत राष्ट्र भ्रष्टाचार के नियंत्रण और नियमन और अपराध के निवारण के लिए घरेलू संसाधनों का आवंटन करता है। भ्रष्टाचार को प्रतिरोध करने के लिए जो रणनीतियाँ अपनाई जाती हैं, उन्हें अक्सर भ्रष्टाचार विरोध छत्र शब्द के तहत संक्षेपित किया जाता है। इसके अतिरिक्त, संयुक्त राष्ट्र संधारणीय विकास लक्ष्य 16 जैसी वैश्विक पहलों का भी एक लक्षित उद्देश्य है जो भ्रष्टाचार को उसके सभी रूपों में काफी हद तक कम करने वाला है।[2]
विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचार
[संपादित करें]भ्रष्टाचार के विभिन्न क्षेत्र
[संपादित करें]- सरकारी/सार्वजनिक क्षेत्र में
- राजनैतिक भ्रष्टाचार
- पुलिस द्वारा भ्रष्टाचार
- न्यायिक भ्रष्टाचार
- शिक्षा प्रणाली में भ्रष्टाचार
- श्रमिक संघों का भ्रष्टाचार
- धर्म में भ्रष्टाचार
- दर्शन में भ्रष्टाचार
- उद्योग जगत का भ्रष्टाचार (Corporate corruption)
भ्रष्टाचार की विधियाँ
[संपादित करें]- घूस (रिश्वत)
- चुनाव में धांधली
- सेक्स के बदले पक्षपात
- हफ्ता वसूली
- जबरन चन्दा लेना
- बलात धन ऐंठना (Extortion) एवं भयादोहन (blackmail)
- विवेकाधिकार (discretion) का दुरुपयोग
- भाई-भतीजावाद (Nepotism)
- अपने विरोधियों को दबाने के लिये सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग
- भ्रष्ट विधान बनाना
- न्यायाधीशों द्वारा गलत या पक्षपातपूर्ण निर्णय
- कालाबाजारी करना
- व्यापारिक नेटवर्क
- चार्टर्ड एकाउन्टेन्टों द्वारा किसी बिजनेस के वित्तीय कथनों पर सही और निर्भीक राय न लिखना या उनके गलत आर्थिक कार्यों को ढकना।[3]
- विविध : वंशवाद, ब्लैकमेल करना, टैक्स चोरी, झूठी गवाही, झूठा मुकदमा, परीक्षा में नकल, परीक्षाथी का गलत मूल्यांकन - सही उत्तर पर अंक न देना और गलत/अलिखित उत्तरों पर भी अंक दे देना, पैसे लेकर संसद में प्रश्न पूछना, पैसे लेकर वोट देना, वोट के लिये पैसा और शराब आदि बाँटना, पैसे लेकर रिपोर्ट छापना, विभिन्न पुरस्कारों के लिये चयनित लोगों में पक्षपात करना, आदि।
परिचय
[संपादित करें]आम तौर पर सरकारी सत्ता और संसाधनों के निजी फ़ायदे के लिए किये जाने वाले बेजा इस्तेमाल को भ्रष्टाचार की संज्ञा दी जाती है। एक दूसरी और अधिक व्यापक परिभाषा यह है कि निजी या सार्वजनिक जीवन के किसी भी स्थापित और स्वीकार्य मानक का चोरी-छिपे उल्लंघन भ्रष्टाचार है। विभिन्न मानकों और देशकाल के हिसाब से भी इसमें तब्दीलियाँ होती रहती हैं। मसलन, भारत में रक्षा सौदों में कमीशन ख़ाना अवैध है इसलिए इसे भ्रष्टाचार और राष्ट्र- विरोधी कृत्य मान कर घोटाले की संज्ञा दी जाती है। लेकिन दुनिया के कई विकसित देशों में यह एक जायज़ व्यापारिक कार्रवाई है। संस्कृतियों के बीच अंतर ने भी भ्रष्टाचार के प्रश्न को पेचीदा बनाया है। उन्नीसवीं सदी के दौरान भारत पर औपनिवेशिक शासन थोपने वाले अंग्रेज़ अपनी विक्टोरियाई नैतिकता के आईने में भारतीय यौन-व्यवहार को दुराचरण के रूप में देखते थे। जबकि बीसवीं सदी के उत्तरार्ध का भारत किसी भी यूरोपवासी की निगाह में यौनिक-शुद्धतावाद का शिकार माना जा सकता है।
भ्रष्टाचार का मुद्दा एक ऐसा राजनीतिक प्रश्न है जिसके कारण कई बार न केवल सरकारें बदल जाती हैं। बल्कि यह बहुत बड़े-बड़े ऐतिहासिक परिवर्तनों का वाहक भी रहा है। रोमन कैथलिक चर्च द्वारा अनुग्रह के बदले शुल्क लेने की प्रथा को मार्टिन लूथर द्वारा भ्रष्टाचार की संज्ञा दी गयी थी। इसके ख़िलाफ़ किये गये धार्मिक संघर्ष से ईसाई धर्म- सुधार निकले। परिणामस्वरूप प्रोटेस्टेंट मत का जन्म हुआ। इस ऐतिहासिक परिवर्तन से सेकुलरवाद के सूत्रीकरण का आधार तैयार हुआ।
समाज-वैज्ञानिक विमर्श में भ्रष्टाचार से संबंधित समझ के बारे में कोई एकता नहीं है। पूँजीवाद विरोधी नज़रिया रखने वाले विद्वानों की मान्यता है कि बाज़ार आधारित व्यवस्थाएँ ‘ग्रीड इज़ गुड’ के उसूल पर चलती हैं, इसलिए उनके तहत भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी होनी लाज़मी है। दूसरी तरफ़ खुले समाज की वकालत करने वाले और मार्क्सवाद विरोधी बुद्धिजीवी सर्वहारा की तानाशाही वाली व्यवस्थाओं में कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारियों द्वारा बड़े पैमाने पर राज्य के संसाधनों के दुरुपयोग और आम जनता के साधारण जीवन की कीमत पर ख़ुद के लिए आरामतलब ज़िंदगी की गारंटी करने की तरफ़ इशारा करते हैं। भ्रष्टाचार की दूसरी समझ राज्य की संस्था द्वारा लोगों की आर्थिक गतिविधियों में हस्तक्षेप की मात्रा और दायरे पर निर्भर करती है। बहुत अधिक टैक्स वसूलने वाले निज़ाम के तहत कर-चोरी को सामाजिक जीवन की एक मजबूरी की तरह लिया जाता है। इससे एक सिद्धांत यह निकलता है कि जितने कम कानून और नियंत्रण होंगे, भ्रष्टाचार की ज़रूरत उतनी ही कम होगी। इस दृष्टिकोण के पक्ष पूर्व सोवियत संघ और चीन समते समाजवादी देशों का उदाहरण दिया जाता है जहाँ राज्य की संस्था के सर्वव्यापी होने के बावजूद बहुत बड़ी मात्रा में भ्रष्टाचार की मौजूदगी रहती है। ‘ज़्यादा नियंत्रण- ज़्यादा भ्रष्टाचार’ के समीकरण को सही ठहराने के लिए तीस के दशक के अमेरिका में की गयी शराब-बंदी का उदाहरण भी दिया जाता है जिसके कारण संगठित और आर्थिक भ्रष्टाचार में अभूतपूर्व उछाल आ गया था।
साठ और सत्तर के दशक में कुछ विद्वानों ने अविकिसित देशों के आर्थिक विकास के लिए एक सीमा तक भ्रष्टाचार और काले धन की मौजूदगी को उचित करार दिया था। अर्नोल्ड जे. हीदनहाइमर जैसे सिद्धांतकारों का कहना था कि परम्पराबद्ध और सामाजिक रूप से स्थिर समाजों को भ्रष्टाचार की समस्या का कम ही सामना करना पड़ता है। लेकिन तेज़ रक्रतार से होने वाले उद्योगीकरण और आबादी की आवाज़ाही के कारण समाज स्थापित मानकों और मूल्यों को छोड़ते चले जाते हैं। परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की परिघटना पैदा होती है। सत्तर के दशक में हीदनहाइमर की यह सिद्धांत ख़ासा प्रचलित था। भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों और कार्यक्रमों की वकालत करने के बजाय हीदनहाइमर ने निष्कर्ष निकाला था कि जैसे-जैसे समाज में समृद्धि बढ़ती जाएगी, मध्यवर्ग की प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी और शहरी सभ्यता व जीवन-शैली का विकास होगा, इस समस्या पर अपने आप काबू होता चला जाएगा। लेकिन सत्तर के दशक में ही युरोप और अमेरिका में बड़े-बड़े राजनीतिक और आर्थिक घोटालों का पर्दाफ़ाश हुआ। इनमें अमेरिका का वाटरगेट स्केंडल और ब्रिटेन का पौलसन एफ़ेयर प्रमुख था। इन घोटालों ने मध्यवर्गीय नागरिक गुणों के विकास में यकीन रखने वाले हीदनहाइमर के इस सिद्धांत के अतिआशावाद की हवा निकाल दी।
साठ के दशक के दौरान ही कुछ अन्य विद्वानों ने भी हीदनहाइमर की तर्ज़ पर तर्क दिया था कि भ्रष्टाचार की समस्या की नैतिक व्याख्याएँ करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। इनमें सेमुअल हंटिंग्टन प्रमुख थे। इन समाज-वैज्ञानिकों की मान्यता थी कि भ्रष्टाचार हर परिस्थिति में नुकसानदेह नहीं होता। विकासशील देशों में वह मशीन में तेल की भूमिका निभाता है और लोगों के हाथ में ख़र्च करने लायक पैसा आने से उपभोक्ता क्रांति को गति मिलती है। लेकिन अफ़्रीका में भ्रष्टाचार के ऊपर विश्व बैंक द्वारा 1969 में जारी रपट ने इस धारणा को धक्का पहुँचाया। इस रपट के बाद भ्रष्टाचार को एक अनिवार्य बुराई और आर्थिक विकास में बाधक के तौर पर देखा जाने लगा। विश्व बैंक भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मुहिम चलाने में जुट गया। इस विमर्श का एक परिणाम यह भी निकला कि समाज-वैज्ञानिक अपेक्षाकृत कम विकसित देशों में भ्रष्टाचार की समस्या के प्रति ज़्यादा दिलचस्पी दिखाने लगे। विकसित देशों में भ्रष्टाचार की समस्या काफ़ी-कुछ नज़रअंदाज़ की जाने लगी।
यह दृष्टिकोण भूमण्डलीकरण के दौर में और प्रबल हुआ। उधार देने वाली अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं, उन पर हावी विकसित देशों और बड़े-बड़े कॉरपोरेशनों ने यह गारंटी करने की कोशिश की कि उनके द्वारा दी जाने वाली मदद का सही-सही इस्तेमाल हो। इसका परिणाम 1993 में ट्रांसपेरेंसी इंटरनैशनल की स्थापना में निकला जिसमें विश्व बैंक के कई पूर्व अधिकारी सक्रिय थे। इसके बाद सर्वेक्षण और आँकड़ों के ज़रिये भ्रष्टाचार का तुलनात्मक अध्ययन शुरू हो गया। लेकिन इन प्रयासों के परिणाम किसी भी तरह से संतोषजनक नहीं माने जा सकते। 2007 में डेनियल ट्रीज़मैन ने ‘व्हाट हैव वी लर्न्ड अबाउट द काज़िज़ ऑफ़ करप्शन फ़्रॉम टेन इयर्स ऑफ़ क्रॉस नैशनल इम्पिरिकल रिसर्च?’ लिख कर नतीजा निकला है कि परिपक्व उदारतावादी लोकतंत्र और बाज़ारोन्मुख समाज अपेक्षाकृत कम भ्रष्ट हैं। उनके उलट तेल निर्यात करने वाले देश, अधिक नियंत्रणकारी कानून बनाने वाले और मुद्रास्फीति को काबू में न करने वाले देश कहीं अधिक भ्रष्ट हैं।
ज़ाहिर है कि ये निष्कर्ष किसी भी कोण से नये नहीं हैं। हाल ही में जिन देशों में आर्थिक घोटालों का पर्दाफ़ाश हुआ है उनमें छोटे-बड़े और विकसित-अविकसित यानी हर तरह के देश (चीन, जापान, स्पेन, मैक्सिको, भारत, चीन, ब्रिटेन, ब्राज़ील, सूरीनाम, दक्षिण कोरिया, वेनेज़ुएला, पाकिस्तान, एंटीगा, बरमूडा, क्रोएशिया, इक्वेडोर, चेक गणराज्य, वग़ैरह) हैं। भ्रष्टाचार को सुविधाजनक और हानिकारक मानने के इन परस्पर विरोधी नज़रियों से परे हट कर अगर देखा जाए तो अभी तक आर्थिक वृद्धि के साथ उसके किसी सीधे संबंध का सूत्रीकरण नहीं हो पाया है। उदाहरणार्थ, एशिया के दो देशों, दक्षिण कोरिया और फ़िलीपींस, में भ्रष्टाचार के सूचकांक बहुत ऊँचे हैं। लेकिन, कोरिया में आर्थिक वृद्धि की दर ख़ासी है, जबकि फ़िलीपींस में नीची।
भ्रष्टाचार एवं आर्थिक विकास
[संपादित करें]- भ्रष्टाचार के कारण आर्थिक विकास में मन्दी आती है क्योंकि भ्रष्टाचार बढने पर निजी निवेश घटने लगता है।
- भ्रष्टाचार के कारण उत्पादक क्रियाओं से मिलने वाला लाभ (रिटर्न) कम हो जाता है।
- भ्रष्टाचार के कारण असमानता में वृद्धि होती है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "WJP Rule of Law Index". worldjusticeproject.org (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-02-11.
- ↑ Unit, Digital Solutions. "Sustainable Development Goal 16". United Nations and the Rule of Law (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-02-11.
- ↑ "सीए समुदाय पर समाज के आर्थिक स्वास्थ्य की जिम्मेदारी: प्रधानमंत्री मोदी". मूल से 28 फ़रवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 फ़रवरी 2018.
1. प्रणव वर्धन (1997), ‘करप्शन ऐंड डिवेलपमेंट : अ रिव्यू ऑफ़ इशूज़’, जरनल ऑफ़ इकॉनॉमिक लिटरेचर 35 .
2. एम. रोबिंसन (सम्पा.) (1998), करप्शन ऐंड डिवेलपमेंट, फ्रैंक कैस, एबिंग्डन, यूके.
3. ए.जे. हीदनहाइमर (सम्पा.) (1970), पॉलिटिकल करप्शन : रीडिंग्ज़ इन कम्परेटिव एनालैसिस, ट्रांज़ेक्शन, न्यू ब्रंसविक, एनजे.
4. माइकल जांस्टन (2005), सिड्रॉम्स ऑफ़ करप्शन : वेल्थ, पॉवर, ऐंड डेमोक्रैसी, केम्ब्रिज युनिवर्सिटी प्रेस, केम्ब्रिज.
5. डैनियल ट्रीज़मान (2007), ‘व्हाट हैव वी लर्न्ड अबाउट द काज़िज़ ऑफ़ करप्शन फ़्रॉम टेन इयर्स ऑफ़ क्रॉस-नैशनल इम्पिरिकल रिसर्च?’, एनुअल रिव्यू ऑफ़ पॉलिटिकल साइंस 10 .
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]- भारत में भ्रष्टाचार
- भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास
- राजनैतिक भ्रष्टाचार
- राजनीति का अपराधीकरण
- भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988
- पारदर्शिता
- केन्द्रीय सतर्कता आयोग
- सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005
- भारत के प्रमुख घोटाले
- इंडिया अगेंस्ट करप्शन
- सुशासन
- अन्तरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोध दिवस
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- भ्रष्टाचार से मुकाबला
- कौन दे रहा है पार्टियों को इतना चंदा?
- विकास के लिए भ्रष्टाचार का उन्मूलन आवश्यक (उदय इण्डिया)
- Anti-Corruption Laws in India
- सीबीआई और अपराध के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफक्यू)
- 1800 IAS अधिकारियों ने नहीं दिया अपनी सम्पत्ति का डिटेल, सबसे ज्यादा 255 उत्तर प्रदेश के (मई २०१७)
- भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी सरकार का अहम कदम, सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ 6 महीने में पूरी होगी जांच
- Corruption Dictionary
- भ्रष्टाचार की शब्दावली (अंग्रेजी में)
- ANTI-CORRUPTION VOCABULARY 60 DEFINITIONS