बंजारा

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एक मत के अनुसार बंजारा समाज राजपूतों में से ही माना जाता है और उन्हे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे कि 1.बामणिया 2.'गौर' 3.'लंबाणी' ,4.'बाजीगर', 5.'नायक 6.'गोर राजपूत' 7. 'राजपुत बंजारा' महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तरी भारत के मारवाड़ क्षेत्र, ज्यादातर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के दक्षिण में पाए जाते हैं।[1]

बंजारा

जाकी उत्पत्ति एक बहुचर्चित विषय रहा है। एक राय है कि वे राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र से हैं, जैसे की, मेघावत, वरतीया, झारावत, झरपला , मुडावत,खेतावत, रणसोत,लाखावत, मालोत, सपावत ,धारावत । आजभी भारत के सभी प्रदेश में गौर बंजारा संस्कृती में पायी जाती है। [2] जबकि दूसरा सुझाव है कि उनकी उत्पत्ति अफगानिस्तान से है। लेकीन पुर्वी अफगाणिस्तान से संस्कृती का किसी रुप में मेल नहीं होता है. [3][4]

19 वीं शताब्दी में बंजारा समाज ने जबकी ब्रिटीशो का विरोध जताया, तब ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों ने 1871 के आपराधिक जनजाति अधिनियम के दायरे में समुदाय को लाया।[5] जिसने उन्हें अपने पारंपरिक व्यवसायों को छोड़ने के लिए मजबूर किया। इससे उनमें से कुछ लोग पहाड़ों और पहाड़ी क्षेत्रों के पास बस गए, जबकि अन्य जंगलों में चले गए।[6]

टांडा सभ्यता[संपादित करें]

बंजारा समुदाय के लोग जिस स्थान पर रहते हैं उसे "टांडा" कहा जाता है। प्रसिद्ध साहित्यिक और टांडा प्रणाली के विशेषज्ञ एकनाथ नायक (पवार ) के अनुसार, "टांडा बंजारा समुदाय का एक उपनिवेश है जो अपनी ऐतिहासिक और स्वतंत्र संस्कृति की धरोहर को संजोगकर रखता है।"[7] टांडा बंजारा भाषियों का एक समूह है। जिसकी आबादी तिनसौ से लेकर तीन-चार हजार जनसंख्या की होती है। टांडा के मुखिया को हिंदी में 'नायक' और मराठी भाषा में उसे 'नाइक' कहा जाता है। उनके साथ कारभारी, हसाबी, नसाबी और डायसान जैसे प्रमुख गणमान्य व्यक्ति होते हैं। सभी की भूमिकाए अलग होती है , किंतु नाइक के नेतृत्व में होती है । महान समाज सुधारक और हरित क्रांति के जनक वसंतराव नाइक ने टांडा की स्थापना की। दुनिया के सबसे बड़े "लोहगढ़" किले का निर्माण करने वाले महान योद्धा और शूरवीरों के साथ-साथ एशिया के सबसे बड़े व्यापारी के रूप में जाने जाने वाले 'बंजारा राजा' लखीशाह बंजारा का उल्लेख आज भी पूरी दुनिया में किया जाता है। शाह का अर्थ है 'राजा'। उनका रायसीना और मालची टांडा दिल्ली में स्थित था। आज भले ही शहर को एक ग्राम के रूप में जाना जाता है, लेकिन बंजारा संस्कृति में इसकी असली पहचान 'टांडा' के नाम से जानी जाती है। (जैसे गहुली टांडा, कुन्टूर टांडा, बराड टांडा, वरोली टांडा,मांडवी टांडा आदि) लेकिन अतीत में इसे नायक के नाम से जाना जाता था। (जैसे भीमासिंह नाईकेर टांडो, फुलसिंग बापुर टांडो, रामजी नाईकेर टांडो अर्थात भिमासिंह नायक का टांडा ,फुलसिंग बापूका टांडा)। टांडा को बंजारा का किला माना जाता है। टांडा को 'गढ' के नाम से भी जाना जाता है। (जैसे गहुलिगढ़, गडमंगरुल, सेवागढ़, उमरीगढ़, रुइगढ़, लाखागढ़, पोहरागढ़) [8]

 टांडा एक स्वतंत्र और विशिष्ट प्रणाली है। टांडा के समग्र विकास के लिए, प्रख्यात विचारक और टांडा प्रवर्तक एकनाथ नायक (पवार) ने सर्वप्रथम 'टांडा की ओर चलो' इस अभिनव अवधारणा को जन्म दिया।  उन्होंने सरकार, प्रशासन, जनप्रतिनिधियों और समाज की उच्चाधिकारीयों से टांडा के समग्र विकास के लिए 'टांडा की ओर चलो' (तांडेसामू चलो) का संदेश दिया । इसके माध्यम से टांडा की समस्याएं, पीड़ा, टांडा की गरिमा सामने आने में मदद हुई।  टांडा प्रवर्तक एकनाथराव पवार (नायक) कहते हैं की, "टांडा संस्कृति की गरिमा को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए । टांडा को संविधान के तहत साक्षर होना चाहिए। अब 'स्मार्ट टांडा और ग्लोबल टांडा' के रुपमें भी टांडा उभरकर लाना होगा। टांडा में पुरानी तथ्थहीन  रूढ़ियों को नष्ट करके टांडा में रचनात्मकता, आधुनिकता और संवैधानिक मूल्यों को जागरुकता  बनाएं यही आजकी प्राथमिकता है।" एकनाथराव नायक (पवार) ने  पहली बार 'स्मार्ट टांडा और ग्लोबल टांडा' के अभिनव दृष्टिकोण को बढ़ावा देना भी शुरू किया।  टांडा के नागरीकरण एवं सक्षमीकरण का सपना इसी अवधारणा में निहित है।  यह जरूरी है कि आधुनिक तकनीक के इस युग में भी टांडा से जुड़ी गर्भनाल बरकरार रहे। टांडा आमतौर पर प्रकृति के करीब स्थित होता है।  टांडा में केवल बंजारा भाषा बोली जाती है।  टांडा प्रधान (नायक) के नेतृत्व में संस्कृति और समुदाय के कल्याण के संरक्षण के लिए निर्णय लिए जाते हैं। भारतवर्ष के कूल अठरा प्रदेशो में टांडा पाया जाता है । टांडा समतावादी होता है और वहां सभी प्राणिमात्रों का सम्मान किया जाता है।[9]

त्योहार[संपादित करें]

बंजारा समाज मे तीज का त्योहार बडे धुमधाम से मनाया जाता है। इसे हरियाली तीज भी कहा जाता है। इस दिन बंजारन महिलाये और लड़किया व्रत रखती है। तीज उत्सव के साथ, फागन उत्सव भी मनाया जाता है. घुमर नृत्य काफी आकर्षक होता है. गौर बंजारा समाज की संस्कृती गौरवशाली एवं विशीष्टतापूर्ण मानी जाती है [10]

संदर्भ[संपादित करें]

  • African Pygmies Nomadic and semi-nomadic peoples in the Central African rainforest
  1. Halbar, B. G. (1986). Lamani Economy and Society in Change: Socio-cultural Aspects of Economic Change Among the Lamani of North Karnataka (अंग्रेज़ी में). Mittal Publications.
  2. पटेल, बलीराम हिरामन (1936). गौर बंजारा का इतिहास.
  3. Burman, J. J. Roy (2010). Ethnography of a Denotified Tribe: The Laman Banjara (अंग्रेज़ी में). Mittal Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8324-345-2.
  4. "Cultural Changes and Marginalisation of Lambada Community in Telangana, India | TICI Journal" (अंग्रेज़ी में). मूल से 1 नवंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-05-16.
  5. Mohan, N. Shantha (1988). Status of jadon Women in India: (a Study of Karnataka) (अंग्रेज़ी में). Uppal Publishing House. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-85024-46-2. मूल से 29 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 मई 2020.
  6. Shashi, Shyam Singh (2006). The World of Nomads (अंग्रेज़ी में). Lotus Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8382-051-6. मूल से 15 जून 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 मई 2020.
  7. "स्मार्ट टांडा". ISNN 2456-1665. 04.
  8. बंजारा हुंकार. वाशिम. 2016. पपृ॰ 90–127. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-910543-3-0.
  9. "The egalitarian role of the Tandaism ideology of 'Tandesamu chalo'". ISNN 2394-5303. 03.
  10. Naye Pallav 6. Naye Pallav. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-939855-0-2.