भील

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भील
Bhil
Stamp of India, 1981
विशेष निवासक्षेत्र
              गुजरात , जम्मू कश्मीर3,441,945[1]
              मध्य प्रदेश4,619,068[2]
              महाराष्ट्र1,818,792[3]
              राजस्थान2,805,948[4]
भाषाएँ
भील भाषा
सम्बन्धित सजातीय समूह

भील मध्य भारत की एक जनजाति का नाम है भिलो को ही इतिहास मे व्याघ्र यानी शेर कहा गया हैं। भील जनजाति भारत की सर्वाधिक विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई जनजाति है[5]। भील जनजाति के लोग भील भाषा बोलते है।[6] भील जनजाति को " भारत का बहादुर धनुष पुरुष " कहा जाता है[7]भारत के प्राचीनतम जनसमूहों में से एक भीलों की गणना पुरातन काल में राजवंशों में की जाती थी, जो विहिल वंश के नाम से प्रसिद्ध था। इस वंश का शासन पहाड़ी इलाकों में था[8] । भारत के राज्य हिमाचल प्रदेश का नाम भील राजा हिमाजल के नाम के आधार पर रखा गया वे माता पार्वती के पिताजी थे [9]

बांसवाड़ा में लगी राजा बांसिया भील की मूर्ति

भील शासकों का शासन मुख्यत मालवा[10],दक्षिण राजस्थान[11],गुजरात [12]ओडिशा[13]और महाराष्ट्र[14] में था । भील गुजरात, मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान में एक अनुसूचित जनजाति है। [15] [16] भील त्रिपुरा और पाकिस्तान के सिन्ध के थारपरकर जिले में भी बसे हुये हैं। भील जनजाति भारत समेत पाकिस्तान तक विस्तृत रूप से फैली हुई है। प्राचीन समय में भील जनजाति का शासन शिवी जनपद जिसे वर्तमान में मेवाड़ कहते है , स्थापित था ।

मेवाड़ और मेयो कॉलेज के राज चिन्ह पर भील योद्धा का चित्र अंकित है।

सहरिया खुद को भील का छोटा भाई कहलाने मे गर्व करते है सहरिया का अर्थ शेर का साथी होना है [17]

भील इतिहास[संपादित करें]

टंट्या भील

द ट्राइब्स ऐन्ड कास्ट्स ऑफ सेन्ट्रल प्रोविन्सेस ऑफ इंडिया (1916) से एक चित्र
जन्म 1840/1842
उल्लेखनीय कार्य {{{notable_works}}}

भीलों का अपना एक लम्बा इतिहास रहा है। कुछ इतिहासकारो ने भीलों को द्रविड़ों से पहले का भारतीय निवासी माना तो कुछ ने भीलों को द्रविड़ ही माना है। भील को ही निषाद , व्याघ्र , किरात , शबर और पुलिंद कहा गया है ।

आज भी पूरे हिमालय में भिल्ल महापुरुषों के स्मारक बने हुए है । भिलंगना क्षेत्र में भील्लेश्वर महादेव मंदिर भीलों से ही संबंधित है [18]। थारू जनजाति के लोगों का दावा है कि मातृ - पक्ष से वे राजपूत उत्पत्ति के हैं और पितृ - पक्ष से भील है [19]

मध्यकाल में भील राजाओं की स्वतंत्र सत्ता थी। करीब 11 वी सदी तक भील राजाओं का शासन विस्तृत क्षेत्र में फैला था। इतिहास में अन्य जनजातियों जैसे कि मीना आदि से इनके अच्छे संबंध रहे है। 6 ठी शताब्दी में एक शक्तिशाली भील राजा का पराक्रदेखने को मिलता है जहां मालवा के भील राजा हाथी पर सवार होकर विंध्य क्षेत्र से होकर युद्ध करने जाते हैं। भील पूजा और हिन्दू पूजा में काफी समानतऐ मिलती ।[20] मौर्यकाल में पश्चिम और मध्य भारत में भील जनजाति के अंतर्गत 4 नाग राजा , 7 गर्धभिल भील राजा और 13 पुष्प मित्र राजाओं की स्वतंत्र सत्ता थी [21]

इडर में एक शक्तिशाली भील राजा हुए जिनका नाम राजा मांडलिक रहा । राजा मांडलिक ने ही गुहिल वंश अथवा मेवाड़ के प्रथम संस्थापक राजा गुहादित्य को अपने इडर राज्य मे रखकर संरक्षण किया । गुहादित्य राजा मांडलिक के राजमहल मे रहता और भील बालको के साथ घुड़सवारी करता , राजा मांडलिक ने गुहादित्य को कुछ जमीन और जंगल दिए , आगे चलकर वही बालक गुहादित्य इडर साम्राज्य का राजा बना । गुहिलवंश की चौथी पीढ़ी के शासक नागादित्य का व्यवहार भील समुदाय के साथ अच्छा नहीं था इसी कारण भीलों और नागादित्य के बीच युद्ध हुआ और भीलों ने इडर पर पुनः अपना अधिकार कर लिया । इडर पर बाद मे पड़ियार वंश का शासन हुआ 1173 मे भील वंश ने इडर पर अधिकार किया[22] बप्पा रावल का लालन - पालन भील समुदाय ने किया और बप्पा को रावल की उपाधि भील समुदाय ने ही दी थी । बप्पारावल ने भीलों से सहयोग पाकर अरबों से युद्ध किया । खानवा के युद्ध में भील अपनी आखरी सांस तक युद्ध करते रहे । मेवाड़ और मुगल काल के दौरान भीलों को रावत , भोमिया और जागीरदार के पद प्राप्त थे यह लोग आम लोगो से भोलई नामक कर वसूला करते थे [23] । भोमट के भील होलांकी गोत्र लगते थे , राणा दयालदास भील ,राणा हरपाल भीलर, राणा पुंजा भील भोमट के राजा थे[24] । नाहेसर मे राजा नरसिंह भील थे जो रावत लगाते थे [25]

मेवाड़ राजचिन्ह में भील योद्धा का चित्र

बाबर और अकबर के खिलाफ मेवाड़ राजपूतो के साथ कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध करने वाले भील ही थे । अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के खादिम भील पूर्वजों के वंशज है। लाखा भील व टेका भील नामक दो भाइयों ने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य बनने के बाद इस्लाम कबूल किया और अपना नाम फखरुद्दीन व मोहम्मद यादगार रखा अजमेर में मौजूद समस्त ख़ादिम इन दोनों भाइयों के वंशज हैं। जिन्होंने इस चकाचौन्द भरी जिंदगी में आकर अपने पूर्वजों को भुला दिया है और खुद की नस्ल बदल कर सैयद बताने लगे हैं।


भीलों ने वज्रनाभि नामक साधु को मार गिराया था [26]

सलुम्बर के आठ पोल मे एक भील पोल है[27]



  • दक्षिण भारत में भीलों को विल्लवर और बिल्लवा[28] कहा गया , यही भील तमिलनाडु और केरल के प्रारंभिक निवासी रहे इन्होंने ही प्रारंभिक तमिलनाडु को बसाया । दक्षिण भारत में इन्होंने चेरा वंश,पांड्या वंश और चोल वंश की नीव रखी [29]
  • गुरुनानक देव के प्रसंग में कोड़ा भील का जिक्र हुआ उन्होंने लिखा कि भगवान जगन्नाथ पुरी से लेकर,तिरुवंतपुरम तक के तटवर्तीय क्षेत्र में भीलों का शासन था [30]

डांग दरबार के राजा

  • गुजरात के डांग जिले के पांच भील राजाओं ने मिलकर अंग्रेज़ो को युद्ध में हरा दिया,लश्करिया अंबा में सबसे बड़ा युद्ध हुए, इस युद्ध को डांग का सबसे बड़ा युद्ध कहा जाता है । डांग के यह पांच भील राजा भारत के एकमात्र वंशानुगत राजा है और इन्हें भारत सरकार की तरफ से पेंशन मिलती हैं , आजादी के पहले ब्रिटिश सरकार इन राजाओं को धन देती थी ।

भील लोग आम जनता की सुरक्षा करते थे और यह भोलाई नामक कर वसूलते थे । शिसोदा के भील राजा रोहितास्व भील रहे थे । [31] अध्याय प्रथम वागड़ के आदिवासी: ऩररचय एवंअवधारणा - Shodhganga

  • मध्यप्रदेश में मालवा पर भील राजाओं ने लंबे समय तक शासन किया , आगर ,झाबुआ,ओम्कारेश्वर,अलीराजपुर पर भील राजाओं ने शासन किया । इंदौर स्थित भील पल्टन का नाम बदलकर पुलिस प्रशिक्षण विद्यालय रखा , मध्यप्रदेश राज्य गठन के पूर्व यहां भील सैना प्रशिक्षण केंद्र था। मालवा की मालवा भील कॉर्प थी।
  • मथलेश्वर् मे भील कोर का मुख्यालय था [32]
  • छत्तीसगढ़ का प्रमुख शहर भिलाई का नामकरण भील समुदाय के आधार पर ही हुआ है।
  • 1564 में तालिकोट का युद्ध अहमदनगर और विजयनगर के मध्य हुआ , इस युद्ध में सुर्यकेतू के सेनापति ने उसके साथ विश्वासघात किया था , सूर्य केतु ने अपने पुत्र के एक भील सरदार के हाथो में सौंप दिया [33]
  • जुझारसिंह बुन्देला को भील और गोंडों युद्ध मे मार गिराया था

सिंधु घाटी सभ्यता[संपादित करें]

सिंघु घाटी सभ्यता पर हो रहे शोध के दौरान वह से भगवान शिव और नाग के पूजा करने के प्रमाण मिले है साथ ही साथ बैल ,सूअर ,मछली , गरुड़ आदि के साथ - साथ प्रकृति पूजा के प्रमाण मिले है उस आधार पर शोधकर्ताओं के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता के लोग भील प्रजाति के ही थे। भील प्रजाति अपने आप में एक विस्तृत शब्द है जिसमें निषाद , शबर , किरात , पुलिंद , यक्ष , नाग और कोल , आदि सम्मिलित है । इतिहासकारों ने माना कि करोड़ों वर्ष पूर्व भील प्रजाति के लोग यही पर वानर के रूप जन्मे और निरंतर विकासक्रम के बाद वे होमो सेपियन बने , धीरे - धीरे यही लोग एक जगह बस गए और गणराज्य स्थापित किया , इनके शासक हुआ करते थे , सरदार के आज्ञा के बगैर कोई कुछ नहीं कर सकता था । भील प्रजाति के लोग धनुष का उपयोग करते थे , समय के साथ उन्होंने नाव चलना सीख ली और वे हिंदेशिया की तरफ आने वाले पहले लोग थे , ये भील प्रजाति के लोग मिश्र से लेकर लंका तक फैले हुए थे , इन्होंने ही सिंधु घाटी सभ्यता बसाई , जब फारस , इराक में बाढ आई तब वह के लोग भारत की तरफ आए , यहां के मूलनिवासियों ने उनकी सहायता करी , लेकिन उन लोगो ने भारत पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया , भील प्रजाति के शासकों के साथ छल - कपट कर उन्हें धोखे से हरा दिया फिर यही भील प्रजाति के लोग धीरे - धीरे बिखर गए [34]

भील शब्दावली व अन्य विशेषताएं[संपादित करें]

शब्दावली[संपादित करें]

भील जनजाति की अपने खुद की भाषा है जिसका Iso code -ISO 639-3 हैं।

  • भोपा - झाड़ - फूंक करने वाला
  • गमेती - गांव का मुखिया
  • अटक - भीलों का गोत्र है |
  • टापरा -भीलों के एक घर को "टापरा " कहते हैं |
  • ढालिया - घर के बरामदे को " ढालिया "कहते हैं|
  • कू - घरों " कू " कहते हैं |
  • फल्ला - बहुत सारे झोपड़े से बने छोटे गांव या मोहल्ले को फल्ला या खेड़ा कहते हैं |
  • पाल - फला /खेड़ा से बड़े गांव को "पाल "कहते है |
  • पालवी - पाल का मुख्य पालवी होता है ,गांव का मुख्य गमेती कहलाता है ,तो एक ही वंशज के भील गांव का मुखिया तदवी / वसाओ कहलाता है |
  • रावत - बांसवाड़ा जिले में भील जनजाति के गांव का मुखिया रावत कहलाता है ,
  • डाहल - भीलो के गांव का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति कहलाता है ।
  • वसावा-भील
  • पोयरो-पोयरी - लडका-लडकी
  • बाहको - पिताजी
  • याहकी - माता
  • काकोह-काकीही - चाचा-चाची
  • पावुह-बोअही - भाई-बहन
  • आजलोह-आजलीह - दादा-दादी
  • कोअवालो-कोअवाली - घरवाला-घरवाली
  • मामोह-फुयेह - मामा-बुआ
  • हालोह-हालीह - साला-साली
  • जोवाह-वोवळीह - दामाद-बहू
  • आरण्य - भील और आदिवासियों की सेना [35]

विशेषताएं[संपादित करें]

  • नंदनाप्रिंट साड़ीया - नीमच की भील महिलाए नंदनाप्रिंट साड़ियां पहनती है [36]
  • राई और बुंदेला - भील होली के अवसर पर ' बुन्देला ' और ' राई ' का स्वांग करते हैं

मुद्दे[संपादित करें]

भीलो के प्रमुख मुद्दे

  • भील प्रदेश - भील जनजाति करीब 30 वर्षों से भी अधिक समय से भील प्रदेश राज्य बनाने के लिए आंदोलन कर रही है , भील प्रदेश काफी पुराना मामला है , पहले जन्हा जंहा भीलों का शासन था , अथवा भीलों की जनसंख्या अधिक थी वह क्षेत्र भील प्रदेश कहलाता था , लेकिन जैसे जैसे भीलों का राजपाठ छीना गया , वैसे ही भील प्रदेशों के नाम बदल दिए गए । प्राचीन समय में भील देश विस्तृत क्षेत्र में फैला था । भील देश हिमालय क्षेत्र , उत्तराखंड [37], उत्तरप्रदेश ,बिहार , नेपाल ,बांग्लादेश , राजस्थान , मध्यप्रदेश , झारखंड , छत्तीसगढ़ , गुजरात , मध्यप्रदेश , पूर्वी मध्यप्रदेश, कर्नाटक व आंध्र प्रदेश के बड़े भाग शामिल थे ।
  • सिंगाही : एक समय उत्तरप्रदेश का सिंगाही क्षेत्र भील शासकों के खेरगढ़ राज्य की राजधानी हुआ करता था , खेरगढ उस दौरान नेपाल तक फैला था , हाल ही में इस क्षेत्र से खुदाई के दौरान भील युग कालीन मूर्तियां प्राप्त हुई जो उस दौरान के भील इतिहास को बयां करती है , लेकिन सरकार उस क्षेत्र संबंधित विकास कार्य नहीं कर रही है [38]
  • सिंधु घाटी सभ्यता - सिंधु घाटी सभ्यता पर हो रहे शोध से पता चला है कि , सिंधु घाटी सभ्यता भील और अन्य आदिवासियों की सभ्यता थी , भीलों ने हजारों वर्ष पूर्व विशाल किले , महल , घर , नहरे , कुएं और अन्य विकास कार्य कर लिए थे , लेकिन सरकार स्कूल पाठ्यक्रम में यह सब सामिल नहीं कर रही है ।
  • सरदार पटेल मूर्ति [ स्टैचू ऑफ यूनिटी ] - स्टैचू ऑफ यूनिटी बनाने के लिए हजारों भील और अन्य आदिवासियों की जमीन हड़पी गई , उन्हें अपने घर छोड़कर जाना पड़ा , सरकार ने नहीं आदिवासियों के लिए घर बनाए और नहीं उन्हें मुवावजे दिए ।
  • आदिवासी जब भी कोई मुद्दा उठाते है , उन मुद्दों को दबा दिया जाता है
  • आदिवासी क्षेत्र : जनहा आदिवासियों की आबादी अधिक है , उस क्षेत्र को संविधान के अनुसार , आदिवासी क्षेत्र घोषित किया जाए , ताकी मूलनिवासी लोगो का सही मायने में विकास हो सके , उनके अधिकारों की रक्षा हो सके ।

भील आन्दोलन[संपादित करें]

1632 का भील विद्रोह = 1632 के समय भारत में मुगल सत्ता स्थापित थी , उस दौरान प्रमुख रूप से भीलों ने मुघलों का विद्रोह किया ।

1643 = 1632 के बाद भील और गोंड जनजाति ने मिलकर मुगलों के खिलाफ 1643 में विद्रोह किया [39]


1857 के पूर्व भीलों के दो अलग-अलग विद्रोह हुए। महाराष्ट्र के खानदेश में भील काफी संख्या में निवास करते हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर में विंध्य से लेकर दक्षिण पश्चिम में सहाद्रि एवं पश्चिमी घाट क्षेत्र में भीलों की बस्तियाँ देखी जाती हैं। 1816 में पिंडारियों के दबाव से ये लोग पहाड़ियों पर विस्थापित होने को बाध्य हुए। पिंडारियों ने उनके साथ मुसलमान भीलों के सहयोग से क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया। इसके अतिरिक्त सामन्ती अत्याचारों ने भी भीलों को विद्रोही बना दिया। 1818 में खानदेश पर अंग्रेजी आधिपत्य की स्थापना के साथ ही भीलों का अंग्रेजों से संघर्ष शुरू हो गया। कैप्टेन बिग्स ने उनके नेताओं को गिरफ्तार कर लिया और भीलों के पहाड़ी गाँवों की ओर जाने वाले मार्गों को अंग्रेजी सेना ने सील कर दिया, जिससे उन्हें रसद मिलना कठिन हो गया। दूसरी ओर एलफिंस्टन ने भील नेताओं को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया और उन्हें अनेक प्रकार की रियायतों का आश्वासन दिया। पुलिस में भर्ती होने पर अच्छे वेतन दिये जाने की घोषणा की। किंतु अधिकांश लोग अंग्रेजों के विरुद्ध बने रहे।

1819 में पुनः विद्रोह कर भीलों ने पहाड़ी चौकियों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। अंग्रेजों ने भील विद्रोह को कुचलने के लिए सतमाला पहाड़ी क्षेत्र के कुछ नेताओं को पकड़ कर फाँसी दे दी। किंतु जन सामान्य की भीलों के प्रति सहानुभूति थी। इस तरह उनका दमन नहीं किया जा सका। 1820 में भील सरदार दशरथ ने कम्पनी के विरुद्ध उपद्रव शुरू कर दिया। पिण्डारी सरदार शेख दुल्ला ने इस विद्रोह में भीलों का साथ दिया। मेजर मोटिन को इस उपद्रव को दबाने के लिए नियुक्त किया गया, उसकी कठोर कार्रवाई से कुछ भील सरदारों ने आत्मसमर्पण कर दिया।

1822 में भील नेता हिरिया भील ने लूट-पाट द्वारा आतंक मचाना शुरू किया, अत: 1823 में कर्नल राबिन्सन को विद्रोह का दमन करने के लिए नियुक्त किया। उसने बस्तियों में आग लगवा दी और लोगों को पकड़-पकड़ कर क्रूरता से मारा। 1824 में मराठा सरदार त्रियंबक के भतीजे गोड़ा जी दंगलिया ने सतारा के राजा को बगलाना के भीलों के सहयोग से मराठा राज्य की पुनर्स्थापना के लिए आह्वान किया। भीलों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया एवं अंग्रेज सेना से भिड़ गये तथा कम्पनी सेना को हराकर मुरलीहर के पहाड़ी किले पर अधिकार कर लिया। परंतु कम्पनी की बड़ी बटालियन आने पर भीलों को पहाड़ी इलाकों में जाकर शरण लेनी पड़ी। तथापि भीलों ने हार नहीं मानी और पेडिया, बून्दी, सुतवा आदि भील सरदार अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करते रहे। कहा गया है कि लेफ्टिनेंट आउट्रम, कैप्टेन रिगबी एवं ओवान्स ने समझा बुझा कर तथा भेद नीति द्वारा विद्रोह को दबाने का प्रयास किया। आउट्रम के प्रयासों से अनेक भील अंग्रेज सेना में भर्ती हो गये और कुछ शांतिपूर्वक ढंग से खेती करने लगे। उन्हें तकाबी ऋण दिलवाने का आश्वासन दिया।

  • भील विद्रोह पर रवीन्द्रनाथ की बड़ी बहन स्वर्ण कुमारी ने " विद्रोह " उपन्यास की रचना करी

निवास क्षेत्र[संपादित करें]

भील शब्द की उत्पत्ति "वील" से हुई है जिसका द्रविड़ भाषा में अर्थ होता हैं "धनुष"।

भारत[संपादित करें]

भील भारत के बड़े क्षेत्र में बसे हुए है , भीलों की अधिक आबादी मध्यप्रदेश , राजस्थान , गुजरात और महाराष्ट्र में है । भील आंध्र प्रदेश , कर्नाटक , त्रिपुरा , पश्चिम बंगाल और उड़ीसा समेत कई राज्यो में बसे है ।

बंगाल[संपादित करें]

बंगाल के मूलनिवासी भील , संथाल , मुंडा और शबर जनजातियां है । यही आदिवासी लोग सबसे पहले बंगाल प्रांत में बसे थे वहीं भील राजाओं ने बंगाल में अपना शासन स्थापित किया [40]

पाकिस्तान[संपादित करें]

पाकिस्तान में करीब 40 लाख भील निवास करते है। पाकिस्तान में जबरन भिलों को इस्लाम धर्म में परिवर्तित किया जा रहा है । कृश्ण भील पाकिस्तान में प्रमुख आदिवासी हिन्दू नेता है ।

उप-विभाग[संपादित करें]

भील कई प्रकार के कुख्यात क्षेत्रीय विभाजनों में विभाजित हैं, जिनमें कई कुलों और वंशों की संख्या है। इतिहास में भील जनजाति को कई नाम से संबोधित किया है जैसे किरात कोल शबर और पुलिंद आदि , हिमालय क्षेत्र के भोटिया आदिवासी भील - किरातों के वंशज है[41]

भील जनजाति की उपजातियां व भील प्रजाति से संबंधित जातियां

  • नायक - यह भीलों का एक बड़ा उपजाति वर्ग है,वह भील जो भारत के शासक वर्ग के नजदीक था जिसे सेना में नायक तथा सेना नायक जैसे पद प्राप्त करने के कारण इस वर्ग ने अपनी जनजाति में एक विशेष पहचान और रुतबा कायम किया । धीरे-धीरे यह वर्ग अपनी जनजाति से इतर वैवाहिक संबंध स्थापित किए तथा राजपूत और क्षत्रिय लोग जिनमें भी सेना में नायक और सेना नायक के पद धारण करने वाले इस वर्ग के साथ संबंधित हो गये।यह वर्ग अपनी जनजाति के समानांतर पुरे भारत में अपनी अलग पहचान रखता है तथा अपने को भीलों का योद्धा और श्रेष्ठ वर्ग मानता है। राजस्थान में यह उपजाति अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति दोनों में शामिल है।
  • बॉरी - यह भील जनजाति पश्चिम बंगाल , बंगाल में निवास करती है , इस जाति की उपजातियां है [42]
  • बर्दा - बर्दा समूह गुजरात ,महाराष्ट्र और कर्नाटक में निवास करता है । यह भिलो का समूह है ।
  • गर्दभिल्ल - पूर्वी ओडिशा और मालवा [43]
  • वेद्या - उत्तरभारत की भील जाति [44]
  • गरासिया - गरासिया मुख्यत राजस्थान में बसते है , यह भीलों की एक शाखा है ।
  • ढोली भील - भील उपशाखा
  • डुंगरी भील -
  • डुंगरी गरासिया
  • भील ​​पटेलिया -
  • रावल भील -
  • तड़वी भील - औरंगजेब के समय लोगो को मुस्लिम बनाया गया , तडवी दरसअल भील मुखिया को कहते है , तडवी भील मुख्यता महाराष्ट्र में निवास करते है ।
  • भागलिया
  • भिलाला - भिलाला , भील आदिवासियों की उपशाखा है ।
  • पावरा - यह भील जनजाति की उपशाखा गुजरात में निवास करती है ।
  • वासरी या वासेव
  • वसावा - गुजरात के भील
  • भील मावची
  • कोतवाल उनके मुख्य उप-समूह हैं ।
  • खादिम जाति - यह भील जाती राजस्थान के अजमेर में निवास करती हैं ।[45]

भील गोत्र[संपादित करें]

अंगारो , दसाणा,


अहारी , उठेड़ , उदावत , कटार , कपाया , कलउवा , कलासुआ , कसौटा , कूरिया , कोटेड , खखड़ , खराड़ी , खेतात , खेर , खोखरिया , गमार , गमेती , गरासिया , गोगरा , गोरणा , घुघरा , घोड़ा , चदाणा , चवणा , चरपोटा , जोगात , जोसियाल , झड़पा , डगासा , डागर , डाणा,डागला , डाबी , डामर , डामरल , डामोर , डीडोर , डूंगरी , डोडीयाट , तंवर , ताबियार , तावड़ , ताबेड़ , तेजोत , दमणात , दरांगी , दाणा , दामा , दायणा , दायमा , धलोवियो , धांगी , धोरणा , नगामा , ननोत , ननोमा , नीनामा , नीबो , नीयवात , पड़ियार , पटेला , पटेल , परमार , पांडेर , पांडोट , पारगी , बंडोडा , बड़ , बरड़ा , बरगट , बरोड़ा , बाणिया , बामणा , बूझ , बूमड़िया , बोड , भगोरा , भदावत , भणांत , भाकलिया , मंडोत , मईड़ा , ममता , मनात , मसार , माणसा , माल , मालर , मीरी , रंगोत , रतनाल , राठोड़ , राणा , रावत , रेडोत , रेलावत , रेवाल , रोत , लउर ,लोहरा , लट्ट , लट्ठा , वगाणा , वडेरा , वेणोत , वरहात , वराड़ा , वाहिया , सदाणा , सांगिया , सीवणा , सुरात , सोलंकी , हड़ात , हड़ाल , हरभर , हीराता , हीरोत , होंता , खांट , मचार , भूरिया , पाणियार , मकवाना, तलपड़ा[46] आदि है ।

भीलात , तोडा , घोरपाडे , गोहिल , बोटू , बुटिया , बाछल , भोगूले , आहरी , भागौरा , बुरडा , हूल , डाहलिया , गोडियाला , घेघलिया , अहेडी आहरी , मांगलिया , वसापा , अडिया , सीसोदा , थोरात , धोरण , असायच , तिबडकिया , बलला , डाहल , पारगी , पारधि , भागलिया , भोटला , गोहभार , गोरखा कोटेचा , आलसिका , गरासिया , केलावा , आल , आलका , तेडवा , पीपाडा , धौरा , खेती , मोटासर , राणा , मलूसरे , परधे , आंगरिये , खकरकोटे , ओजकरे , मांगलिके कर कोटे , खांट , बेगा , चारण, बागड़ी ,कलियाणा,आलियातर , ऊहड़ , पाहां , अताहातर , माहले मालवी , बसुणिया , मिलियाणा , मेर , टीबाणा , गोचरा , मेघा , लखडिया , मोडातर , माछला , गोधा , भाख्ला , चौधा , परोदा , माहीला , महीडां , उपजाति -नायक

उल्लेखनीय लोग[संपादित करें]

पौराणिक और धार्मिक[संपादित करें]

  • एकलव्य - एकलव्य एक महान धनुर्धर थे , उनके पिता श्रृंगवेरपुर के राजा थे , और वे अपने पिता के बाद राजा बने । वर्तमान में एकलव्य नाम से कई संस्थान चल रहे है , वे आधुनिक तीरंदाजी शेली के निर्माता रहे ।
  • संत सुरमाल दास भील - संत सुरमल जी खराड़ी , आदिवासी भील धर्म के प्रमुख गुरु थे , उनसे संबंधित एक पुस्तक प्रकाशित हुई है [47]
  • गुहराजा - निषाद राज जिन्होंने राम भगवान की सहायता करी ।
  • माता शबरी - माता शबरी एक राजकुमारी थी , उनके पिता राजा थे , माता शबरी रामभक्त थी , राजकुमारी शबरी की शादी भील राजकुमार से हुई थी ।
  • बीजल भील - रामास्वामी जी को पीट दिए थे पर बाद में भक्त बने [48]

क्रांतिकारी[संपादित करें]

  • टंट्या भील - मराठो के हार के बाद अंग्रेजी सत्ता से संघर्ष।
  • नानक भील - अंग्रेजो का विरोध , शिक्षा का प्रचार किया ।

मराठो ने सहयोग मांगा ।

  • कृशण भिल - पाकिस्तान में प्रमुख राजनेता ।
  • गुलाब महाराज - संत थे , अंगेजो के खिलाफ असहकर आंदोलन शुरू किया , सामाजिक कार्य किया ।
  • काली बाई - आधुनिक एकलव्य कहीं जाती है , शिक्षा और गुरु के लिए बलिदान दिया , अंग्रेज और महारावल का विरोध ।
  • सरदार भागोजी भील - महाराष्ट्र देशवासी एक भील सरदार
  • खाज्या भील - खाज्या नायक जी का जन्म निमाड़ क्षेत्र में हुआ उनके पिता गुमान जी नायक सेंधवा घाट के वार्डन थे । 1857 की क्रांति के दौरान खाज्या भील ने भीमा नायक के साथ मिलकर अंग्रेज़ो के खिलाफ विद्रोह कर दिया , अक्टुबर 1860 में इन्हे धोखे से मार दिया गया । मध्यप्रदेश सरकार 11 नवंबर को खाज्या नायक दिवस मनाते है [49]
  • जोरिया परमेश्वर भील - एक भील राजा जिन्होंने अंग्रेज़ो के विरुद्ध महत्वपूर्ण कार्य करे [50]
  • रूपसिंह भील - रूपसिंह भील या नायक एक क्रांतिकारी
  • छीतु किराड़ भील - अलीराजपुर जिले के प्रमुख क्रांतिकारी [51]
  • हिंदू जी भील - चाणोद के ठाकुर के विरुध क्रांति [52]

शिक्षा का क्षेत्र[संपादित करें]

कला प्रेमी[संपादित करें]

  • कृष्ना भील - पाकिस्तान के प्रमुख गीतकार , वे मारवाड़ी , पंजाबी और उर्दू समेत अन्य भाषओं में गीत गाते थे [54]


मध्यप्रदेश

राजनीति / नेता/उद्योगपति[संपादित करें]

  • भीखाभाई भील -
  • राजकुमार रोत - राजस्थान विधानसभा क्षेत्र के सबसे कम उम्र के भारत आदिवासी पार्टी से विधायक
  • सोहन लाल नायक - राजस्थान विधानसभा क्षेत्र के रायसिंहनगर (श्री गंगानगर) से कांग्रेस पार्टी से विधायक है।
  • शिमला नायक - अनुपगढ़(श्रीगंगानगर) से कांग्रेस पार्टी से विधायक हैं।
  • छोटूभाई वसावा - बीटीपी के संस्थापक और गुजरात विधान सभा के सदस्य
  • कमलेश्वर डोडियार - सैलाना विधानसभा क्षेत्र से भारत आदिवासी पार्टी से विधायक
  • थावरचंद डामोर - धरियावाद विधानसभा क्षेत्र से भारत आदिवासी पार्टी से विधायक
  • उमेश डामोर - आसपुर विधानसभा क्षेत्र से भारत आदिवासी पार्टी से विधायक
  • सीताराम नायक - खाजुवाला(बीकानेर)से कांग्रेस पार्टी के महासचिव रहे चुके हैं और वर्तमान में जननायक जनता पार्टी के सदस्य हैं तथा एक वकील हैं।
  • पुंजमल भील - पाकिस्तान के एक राजनीतिक नेता [55]


खेल क्षेत्र[संपादित करें]

दिनेश भील - दिनेश भील एक तीरंदाज है उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 3 गोल्ड, 5 सिल्वर और 4 ब्रांज जीते है [56] [57]

भील राजवंश[संपादित करें]

  • राजा विश्वासु भील - नीलगिरी के पहाड़ी क्षेत्र पूरी के राजा, इन्हे ही भगवान जगन्नाथ जी की मूर्ति प्राप्त हुई थी ।
  • वेगड़ा भील गीर क्षेत्र के भील सरदार थे
    महाराज वेगड़ा भील - यह गीर क्षेत्र के प्रमुख भील सरदार थे


  • राजा बेजू भील - बैजू भील का इतिहास वैधनाथ धाम से जुड़ा है वे संथालो के राजा थे [61]
  • यलम्बर - यह नेपाल के भील प्रजाति [62] के किरात राजा थे , उन्होंने नेपाल में किरात वंश की नींव रखी ।

चित्र:Kirat King Yalambar.jpg

  • राजा धन्ना भील 850 ईसा पूर्व मालवा के शासक थे। [63][64] वे बहादुर , कुशल और शक्तिशाली राजा थे । उनके वंशजों ने 387 वर्ष मालवा पर राज किया इस दौरान मालवा का विकास हुआ ।

उन्हीं के वंश में जन्मे एक भील राजा ने 730 ईसा पूर्व के दौरान दिल्ली के शासक को चुनौती दी , इस प्रकार मालवा उस समय एक शक्ति के रूप में विद्यमान था। [65]

  • राजकुमार विजय - यह भील प्रजाति के पूलिंद राजा थे , इनका शासन वर्तमान के बंगाल में था [66] , उस समय भारत बंगाल एक थे , राजकुमार विजय का उल्लेख महावंश आदि इतिहास ग्रन्थों में हुआ है। परम्परा के अनुसार उनका राज्यकाल 543–505 ईसापूर्व में था , वे श्रीलंका आए , श्रीलंका में उन्होंने सिंहल और क्षत्रिय स्त्री से विवाह किया जनके फलस्वरूप वेदा जनजाति की उत्पत्ति हुए , यह जनजाति भारत से ही चलकर श्रीलंका तक पहुंची यह इतिहासकारों का मानना है [67]
  • राजा खादिरसार भील - जैन ग्रंथों के अनुसार राजा खादिरसार मगध के राजा थे , राजा खादिरसार की पत्नी का नाम चेलमा था , प्रारंभ में राजा खादिरसार बौद्घ धर्म के अनुयाई थे , परन्तु रानी चेलामा के उपदेश से प्रभावित होकर उन्होंने जैन धर्म अपना लिया और महावीर स्वामी जी के प्रथम भक्त बन गए [68]
  • राजा गर्दभिल्ल - उज्जैन के शासक , इनके उतराधिकारी सम्राट विक्रमादित्य हुए जिन्होंने शक शकों को पराजित किया , उनके नाम से ही कुल 14 राजाओं को विक्रमादित्य की उपाधि दी गई ।
  • राजा देवो भील - यह ओगाना - पनारवा के शासक थे इनका समयकाल बापा रावल के समय से मिलता है , बप्पा रावल के बुरे दिनों में इन्होंने बेहद सहायता करी , अरबों को युद्ध में खदेड़ा ।
  • राजा बालिय भील - यह ऊंदेरी के शासक थे और बप्पा रावल के मित्र थे , अरबों के खिलाफ इन्होंने बप्पा रावल का साथ दिया ।
  • राजा डूंगरिया भील - डुंगरपुर के राजा
  • राजा बांसिया भील - बांसवाड़ा के संस्थापक [69]
  • सरदार भोज भील - भील सरदार भोज ने अलाउद्दीन खिलजी के खिलाफ मेवाड़ के राणा हम्मीर का साथ दिया वे हरावल दस्ते के सेनापति थे और उनका युद्ध सिकन्दर खां से हुआ जिसमे वे और सिकन्दर खां दोनों ही एक - दूसरे की तलवार से युद्ध करते हुए एक साथ वीरगतिको प्राप्त हुए [70]
  • राजा विंध्यकेतु - मां कालिका के भक्त , विंध्य के राजा।
  • राजा कालिया भील - छोटा उदयपुर के अंतिम भील राजा [71]
  • राजा चक्रसेन भील - मनोहर थाना के शासक , किले का निर्माण कराया , 1675 तक शासन किया ।
  • राजा चम्पा भील - राजा चम्पा भील ने चांपानेर की स्थापना की थी , वे 14वी शताब्दी में चांपानेर के शासक बने , उन्होंने चांपानेर किला बनवाया था ।
  • राजा राम भील - राजा राम भील रामपुरा के शासक थे , व एक शक्तिशाली शासक थे , उन्होंने मार्चिंग आक्रमणकारियों से युद्ध किया और इसमें उनकी गर्दन काट गई लेकिन उनका धड दुश्मन से लड़ता रहा ।
  • राजा आशा भील - राजा आशा भील अहमदाबाद के शासक थे , उन्होंने अहमदाबाद में उद्योगों की नींव रखी , इनके समय अहमदाबाद में नए सड़क , पेयजल स्रोतों आदि का निर्माण हुआ ।
  • दंतारिया भील - राजा दांतारिया भील ने

गुजरात के दंता नगर की स्थापना की थी [72]

  • राजा वेगडाजी भील - यह भील कोली थे इन्होंने सोमनाथ मंदिर की रक्षा की थी ।
  • राजा देव भील - राजस्थान के देवलिया के शासक थे , 1561 में इन्हे धोखे से मार दिया गया [74]
  • सरदार चार्ल नाईक - औरंगाबाद स्थित ब्रिटिश सेना पर 1819 में आक्रमण कर दिया , लेकिन ब्रिटिशों के साथ हुए युद्ध में वे शहीद हो गए [75]
  • राजा चौरासी मल - बागर / वागड़ प्रमुख 1175 [77]
  • सरदार मंडालिया भील - भिनाय ठिकाना प्रमुख 1500 से 1600 के आस पास [78]।।
  • राजा सांवलिया भील - ईडर के शासक , इन्होंने ईडर की सीमा पर सांवलिया शहर बसाया [79]
  • फाफामाऊ के राजा - वर्तमान उत्तरप्रदेश के फाफामऊ क्षेत्र में भील शासकों का शासन था , जब लोधी वंश के सिकंदर लोधी ने देश कई क्षेत्र पर आक्रमण किया तब फाफामऊ के भील राजा , सिकंदर लोधी के विरुद्ध खड़े हुए और दोनों के बीच भयानक युद्ध हुआ । [80]
  • बिलग्राम - उत्तरप्रदेश के हरदोई जिले के बिलग्राम क्षेत्र को भीलों ने है बसाया था , यह क्षेत्र भीलग्राम के नाम से विख्यात था और राजा हिरण्य के समय अस्तित्व में था , करीब 9 वी से 12 शताब्दी के बीच भील राजाओं पर बाहरी आक्रमणकारियों ने आक्रमण किया और क्षेत्र उनसे पा लिया [81]
  • माला कटारा भील :- माथुगामडा क्षेत्र (डूंगरपुर) के शासक।
  • राजा कुशला कटारा भील:- कुशलगढ़ के संस्थापक
  • कोल्ह राजा - यह बिहार के गया में लखैयपुर के राजा थे , इन्होंने लखैयपुर गढ़ का निर्माण करवाया था जो कि 500 एकड़ से भी अधिक क्षेत्र मै फैला था। भील राजा कोल्ह की पत्नी को नाम

लखिया देवी था उन्हीं के नाम के आधार पर उनकी रियासत का नाम लखैयपुर रखा गया । यह किला गाव के दक्षिण पश्चिम दिशा में है यही मुहाने नदी किनारे जलेश्‍वर मंदिर स्थित है ,जन्हा ज्योतिर्लिंग हमेशा पानी में डूबा रहता है । इस विशाल किले से एक सुरंग, नदी के नजदीक बने तालाब तक जाती है जनहा रानी और अन्य स्त्रियां स्नान के लिए जाती थी ।

  • केसर भील सरदार - मलवाई के शासक जिनकी हत्या दीपसेन ने 1480 के aas-paas करी [82]
  • अर्जुन भील - सरतर के भील सरदार [83]। हरिविजयसुरी से आशासुनता का वचन लिया [84] 1575 के दोरान.
  • पासा भील - पल्लीपति यानी एक लाख भील धनुर्धर के राजा थे [85]
  • सरदार कम्मल - चूंडा की सहायता करी [86]
  • राजा बत्तड़ भील - गुजरात में मोड़ासा रियासत के राजा जिन्होंने सर काट जाने के बाद भी अल्लुद्दिन खिलजी की सेना से युद्ध किया [87]
  • नाहेसर के भील सरदार को ' रावत ' नाम की उपाधि प्रदान की गई थी[88]
  • सोदल्लपुर का दल्ला रावत भील काफी प्रभावशाली था । सन् 1872-73 में उसका बाँसवाड़ा रावत से बराड़ विषय पर विरोध हो गया ।
  • राजा सोनपाल - उत्तराखंड के भिलंगना क्षेत्र में भील राजाओं का ही आधिपत्य था , बालगंगा घाटी क्षेत्र के अंतिम भिल्ल राजा सोनपाल थे इनकी राजधानी भिलड़ थी[89] , इन्हें धोखे से मार दिया था तब इनके बेटे गैरपाल ने सभी धोखेबाज शत्रुओं को मारकर बदला लिया था [90]
  • सरदार कम्मण भील - रांध्रा क्षेत्र के भील शासक इनकी देख रेख में ही राजपूत चुंडा पला बढ़ा [91]
  • राजा कोटिया भील - कोटा के राजा
    King Kotia Bhil Smarak In Kota
  • राजा मेयो भील - महियाड् क्षेत्र के राजा
  • राजा अर्जन भील - महियाड् क्षेत्र के राजा [92]
  • राजा अणहिल भील- गुजरात के पाटन नगर का प्राचीन नाम अणहिवाड पाटन था राजा अणहिल भील यंहा के शासक थे । जब वनराज चावड़ा के पिता चालुक्य भुहड़ कटक से पराजित हो गए तब उनकी पत्नी बालक वनराज चावड़ा को लेकर भील प्रदेश आई आणा भील की सहायता से वनराज चावड़ा ने 765 ईसवी में लखाराम को अपना निवास बनाया । बड़े होकर वनराज चावड़ा भील राजा को मारकर पाटन का राजा बना [93]
  • सरदार धांधू भील - सरदार धांधू जी भील का जिक्र देवनारायण जी की कथा में आता है । भील सरदार धांधू जी ने पांच बगड़ावतों भाइयों में सबसे बड़े महारावत को युद्ध के रण में मार गिराया था और भीनमाल के ठाकुर के धनी को भी युद्ध में मार दिया था साथ ही साथ महारावत का घोड़ा भी छीन लिया था तब महारावत का बेटा भूणा जी भील सरदार से युद्ध करने आता है , भुणा के सहयोगी कालूमीर और दीया दोनों भीलों के खौफ से युद्ध के मैदान से ही भाग जाते है लेकिन पांच महीने चले युद्ध में धांधू जी ने हार होती है [94]
  • जोलिङ ( जोया) - ये भील जनजाति की उपजाति हैं जो उमरकोट ( पाकिस्तान), बंधड़ा, सुंदरा जिला - बाड़मेर (राजस्थान) इत्यादि जगहो मे रहती है | - इनकी उत्पति आबू पर्वत से मानी जाती है और इनकी उत्पति महाभारत काल (325 ईशा पूर्व) से की मानी जाती है
  • जोलिङ जाती के उपनामो मे भुतड़ा, इत्यादि नामो से जाने जाते है
  • राजा बावरिया भील - आंतरी के शासक[95]
  • लाट प्रदेश के एक भील राजा का स्तंभ गुजरात के चिकलोट [96]गाँव मे 1484 के दौरान का पाया गया, लाट प्रदेश पर भील राजाओं की सत्ता थी [97]
  • राजा हेमा भील - राजा हेमा जी उज्जैन जिले के हेमाखेडी नामक गाँव के संस्थापक थे [98]
  • राजा माना भील - मानगढ़ के राजा
  • राजा धोला भील - राजगढ़ जिले के ब्यावरा नगर के अंतिम भील राजा [99]
  • राजा तरिया भील - रतलाम जिले के ताल नगर के संस्थापक राजा तरिया भील थे ताल मे भीलों ने सोलहवीं सदी तक शासन किया [100]
  • राजा अलिया भील - नागदा जिले के आलोट की स्थापना राजा अलिया भील ने करी उनके द्वारा स्थापित किला जर्जर अवस्था मे है [101]
  • राजा जोगराज भील - यह जगरगढ के राजा थे इनका शासन 1546तक रहा [102]
  • सरदार रातकाल - 1474 के दोरान जब मांडू के ग्याससुद्दीं ने डुंगरपुर पर हमला किया तब राजा बिलिया भील के बेटे रातकाल ने ग्याससुद्दीं के विरुद्ध युद्ध किया
  • राजा वंसीया भील - गुजरात के वंसदा नगर के संस्थापक इन्होंने अनावल के शासक को हराया था [103]
  • राजा रणत्या भील - रणथंभोर के संस्थापक किसी जमाने मे रणथंभोर को रण को डुंगरो कहा जाता था और राजा रण त्या भील यंहा के शासक थे भील राजा द्वार ही रणथंभोर किला बनवाया गया [104] जेतराज और रण धीर ने भील राजा को मारकर यहाँ कब्जा किया [105]
  • सत्ता जी भील -सितामाऊ के संस्थापक[106]
  • राजा महेड़ा भील - महिदपुर के संस्थापक[107]
  • राजा बजेडा भील - बाजना के संस्थापक
  • राजा राममल भील - यह रमे राज्य के राजा थे वर्तमान बिहार राज्य मे हैं [108]
  • राजा मोतिया भील - यह मथवाड राज्य के राजा थे [109]
  • सरदार घुंडिया भील - दंतेवाड़ा के मेघा रावत और घुंडिया भील औरंगजेब के खिलाफ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए
  • राजा सुत्ता भील - संतरामपुर के अंतिम भील राजा 1255 का समय [110]
  • सरदार हनमंत् नाईक भील - यह भील सरदार पेशवाओ के खिलाफ थे इन्होंने बालाजी बाजीराव पेशवा के विरुद्ध युद्ध किया[111]
  • सरदार इब्राहिम खां गर्दी - इब्राहिम खां गर्दी ने पानीपत के तीसरे युद्ध मे मराठो की सहायता करी [112]
  • सरदार सुमेर सिंह गर्दी - भील सरदार ने भरे दरबार मे पेशवा नाना भाई की गर्दन काटदि
  • सरदार उम्मेद वसावा - भील सरदार ने बहुत से परगनो पर अधिकार किया इनके सेना मे अरब और सिंधी लोग थे. वसावा के बेटे ने राजपिपला पर आक्रमण किया [113]
  • सरदार नरघटा भील - विंध्य क्षेत्र के एक भील सरदार [114]
  • राजा हरिविक्रम भील - एक प्रसिद्ध भील राजा [115]
  • राजा डुंगरसी भील - भैंसरोड के राजा [116]
  • राजा बिलावा भील - उदयपुर के राजा [117]
  • सरदार वेरगिया भील [118]- इन्होंने मुगलो के खिलाफ लडाई लडी उदयपुर के लोग इन्हे भगवान् के तरह पूजते है [119]
  • भिल्लराज भीम - एक भील राजा [120]
  • भिल्लराज सुययदेव - एक भील राजा [121]
  • भिल्लराज विन्ध्यबल - एक भील राजा [122]

धार्मिक स्थल[संपादित करें]

  • आदिवासी भिल कुल दैवत येडुबाई देवी मंदिर, निसर्गगढ - आदिवासी भिल कुल दैवत येडुबाई देवी मंदिर, निसर्गगढ महाराष्ट्र राज्य में पिंपलदरी जिला अहमदनगर तहसील अकोले के मुला नदी स्थित है। जो भिल समुदाय का नैसर्गिक कुलदेवता है। नैसर्गिक सौंदर्य में मुला नदि के तीर के पास वाले पहाड़ में ऊंचाई पर मध्य जगह स्थित है। हर साल चैत्र पूर्णिमा आदिवासी भील समुदाय की ओर से निसर्गगढ़ पिंपलदरी में यात्रा भरी जाती है। यात्रा में 10 से 20 लाख भिल समुदाय के लोग महाराष्ट्र राज्य से अन्य राज्यों से यहां दर्शन के लिए आते हैं। यहां पर आदिवासी भील समुदाय की सभ्यता का दर्शन होता है। यात्रा सात दिन चलती है।
  • नील माधव - राजा विश्ववासु भील को नील भगवान की मूर्ति प्राप्त हुए , उन्होंने नीलगिरी की पहाड़िया में मूर्ति स्थापित करी , वर्तमान में इस जगह को जगन्नाथ धाम कहा जाता है यह ओडिशा में है ।
  • भादवा माता मंदिर - भादवा माता मंदिर नीमच जिले मै है , भादवा माता भीलों की कुलदेवी है , स्थानीय राजा रुपा भील के स्वप्न में साक्षात् मां ने दर्शन दिए ।
  • जालपा माता मंदिर - राजगढ़ में पहाड़ी पर जालपा माता मंदिर है। , यह मंदिर भील शासकों ने बनवाया था ।
  • आमजा माता - उदयपुर में स्थित है , भीलों की कुलदेवी है ।
  • जटाऊँ शिव मंदिर - इस मंदिर का निर्माण 11 वी सदी में भीलवाड़ा में भील शासकों ने करवाया था ।
  • भगवान गेपरनाथ मंदिर - यह मंदिर कोटा जिले में स्थित है , यह एक शिव मंदिर है , इस मंदिर का निर्माण भील राजाओं ने और उनके शेव गुरु द्वारा किया गया था[125] [126]
  • गौतमेश्वर - गौतमेश्वर मेलाआदिवासी भीलों के आराध्यदेव गौतमेश्वर में प्रति वर्ष बैसाखी पूर्णिमा के अवसर पर तीन दिवसीय मेला भरता है ।[127][128]
  • देवाक माता - राजस्थान के प्रतापगढ़ मे स्थित भिलो की देवी
  • पुलिंद देवी - भीलों को पुलिंद कहा गया, भील पुलिंद देवी को पूजते है [129]
  • रावतरिया जी - रामदेवरा मे स्थित रावतरिया तालाब के पास रावतरिया जी की पूजा भील पुजारी द्वारा की जाती है [130]
  • जर्गाजी - भीलों द्वारा पूजे जाते है [131]
  • भिल्ल केदार - यहाँ भील और अर्जुन का युद्ध हुआ
  • सोनार माता - सलुम्बर
  • बेणेश्वर धाम - भील आदिवासियों का प्रमुख स्थल राजा बेन भील का स्थान
  • जाई बाई माता - कोरकू, भील और भिलाला समाज के लोग इन्हें कुलदेवी मानते हैं। [132]
  • वन माता - यहां आदिवासी व नायक समाज इस क्षेत्र को कुलदेवी के रूप में पूजता है। मान्यता है कि जंगल में सागवान वृक्षों के बीच विराजित[133]
  • कणसारी माता - भील वारली देवी [134]
  • चंडी मां अलीराजपुर - भीलों के रावत गोत्र की देवी[135]

संस्कृति[संपादित करें]

एक भील कन्या

भीलों के पास समृद्ध और अनोखी संस्कृति है। भील अपनी पिथौरा पेंटिंग के लिए जाना जाता है।[136] घूमर भील जनजाति का पारंपरिक लोक नृत्य है।[137][138] घूमर नारीत्व का प्रतीक है। युवा लड़कियां इस नृत्य में भाग लेती हैं और घोषणा करती हैं कि वे महिलाओं के जूते में कदम रख रही हैं।

कला[संपादित करें]

भील पेंटिंग को भरने के रूप में बहु-रंगीन डॉट्स के उपयोग की विशेषता है। भूरी बाई पहली भील कलाकार थीं, जिन्होंने रेडीमेड रंगों और कागजों का उपयोग किया था।

अन्य ज्ञात भील कलाकारों में लाडो बाई , शेर सिंह, राम सिंह और डब्बू बारिया शामिल हैं।[139]

भोजन[संपादित करें]

भीलों के मुख्य खाद्य पदार्थ मक्का , प्याज , लहसुन और मिर्च हैं जो वे अपने छोटे खेतों में खेती करते हैं। वे स्थानीय जंगलों से फल और सब्जियां एकत्र करते हैं। त्योहारों और अन्य विशेष अवसरों पर ही गेहूं और चावल का उपयोग किया जाता है। वे स्व-निर्मित धनुष और तीर, तलवार, चाकू, गोफन, भाला, कुल्हाड़ी इत्यादि अपने साथ आत्मरक्षा के लिए हथियार के रूप में रखते हैं और जंगली जीवों का शिकार करते हैं। वे महुआ ( मधुका लोंगिफोलिया ) के फूल से उनके द्वारा आसुत शराब का उपयोग करते हैं। त्यौहारों के अवसर पर पकवानों से भरपूर विभिन्न प्रकार की चीजें तैयार की जाती हैं, यानी मक्का, गेहूं, जौ, माल्ट और चावल। भील पारंपरिक रूप से सर्वाहारी होते हैं।[140]

आस्था और उपासना[संपादित करें]

भीलों के प्रत्येक गाँव का अपना स्थानीय देवता ( ग्रामदेव ) होते है और परिवारों के पास भी उनके जतीदेव, कुलदेव और कुलदेवी (घर में रहने वाले देवता) होते हैं जो कि पत्थरों के प्रतीक हैं। 'भाटी देव' और 'भीलट देव' उनके नाग-देवता हैं। 'बाबा देव' उनके ग्राम देवता हैं। बाबा देव का प्रमुख स्थान झाबुआ जिले के ग्राम समोई में एक पहाड़ी पर है।भील बड़े अंधविश्वासी होते है। करकुलिया देव उनके फसल देवता हैं, गोपाल देव उनके देहाती देवता हैं, बाग देव उनके शेर भगवान हैं, भैरव देव उनके कुत्ते भगवान हैं। उनके कुछ अन्य देवता हैं इंद्र देव, बड़ा देव, महादेव, तेजाजी, लोथा माई, टेकमा, ओर्का चिचमा और काजल देव।

उन्हें अपने शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक उपचारों के लिए अंधविश्वासों और भोपों पर अत्यधिक विश्वास है।[140]

त्यौहार[संपादित करें]

कई त्यौहार हैं, अर्थात। भीलों द्वारा मनाई जाने वाली राखी,दिवाली,होली । वे कुछ पारंपरिक त्योहार भी मनाते हैं। अखातीज, दीवा( हरियाली अमावस)नवमी, हवन माता की चालवानी, सावन माता का जतरा, दीवासा, नवाई, भगोरिया, गल, गर, धोबी, संजा, इंदल, दोहा आदि जोशीले उत्साह और नैतिकता के साथ।

कुछ त्योहारों के दौरान जिलों के विभिन्न स्थानों पर कई आदिवासी मेले लगते हैं। नवरात्रि मेला, भगोरिया मेला (होली के त्योहार के दौरान) आदि।[140]

नृत्य और उत्सव[संपादित करें]

उनके मनोरंजन का मुख्य साधन लोक गीत और नृत्य हैं। महिलाएं जन्म उत्सव पर नृत्य करती हैं, पारंपरिक भोली शैली में कुछ उत्सवों पर ढोल की थाप के साथ विवाह समारोह करती हैं। उनके नृत्यों में लाठी (कर्मचारी) नृत्य, गवरी/राई, गैर, द्विचकी, हाथीमना, घुमरा, ढोल नृत्य, विवाह नृत्य, होली नृत्य, युद्ध नृत्य, भगोरिया नृत्य, दीपावली नृत्य और शिकार नृत्य शामिल हैं। वाद्ययंत्रों में हारमोनियम , सारंगी , कुंडी, बाँसुरी , अपांग, खजरिया, तबला , जे हंझ , मंडल और थाली शामिल हैं। वे आम तौर पर स्थानीय उत्पादों से बने होते हैं।[140] पश्चिमी राजस्थान , कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र के भील ढोल बजाते हुए मुंह में खुली तलवार दबाकर " भील ढोल '' नामक नृत्य करते है [141]

भील लोकगीत[संपादित करें]

1.सुवंटिया - (भील स्त्री द्वारा)

2.हमसीढ़ो- भील स्त्री व पुरूष द्वारा युगल रूप में

किले[संपादित करें]

  • रामपुर किला - इस किले का निर्माण राजा राम भील ने कराया था , यह किला मध्यप्रदेश में स्थित है [142]
  • लखैयपुर गढ़ - यह गढ़ बिहार के लखैयपुर में राजा कोल्ह भील ने बनवाया था , यह किला 500 एकड़ भूमि में फैला है । किले के नजदीक जलेश्वर मंदिर है जहां हमेशा ही ज्योतिर्लिंग पानी में रहता है ।
  • कुंतित किला - फाफामाऊ के भील राजा का किला [143]
  • कानाखेडा का किला - सरदार भागीरथ भील का किला [144]
  • राजा प्रथ्वी भील का किला - यह किला राजा प्रथ्वी भील द्वारा झालावाड़ क्षेत्र में बनवाया गया था , राजस्थान सरकार ने इस किले को संरक्षित सूची मै रखा है ।
  • हिंगलाजगढ़ - जब हिंगलाजगढ़ पर जीरन के पंवार राजा जेतसिंह का अधिकार था तब उसे हराकर भीलों ने हिंगलाजगढ़ किले पर अधिकार कर लिया , यह किला दो बार भीलों के अधिकार में रहा । इस किले में गोत्री भील की पूजा को जाती है [145]
  • मनोहरथाना किला - राजस्थान के झालावाड़ में राजा मनोहर भील ने यह किला बनवाया था ।
  • अकेलगढ़ का किला - कोटा के रहा कोटिया भील द्वारा अकेल्गढ़ किला बनवाया गया था ।
  • मांडलगढ़ किला - यह किला मांडलगढ़ के संस्थापक राजा मंडिया भील ने पांचवीं शताब्दी में बनवाया था ।
  • सोनगढ़ किला - यह किला सोनगढ़ के सोनार भील ने बनवाया था [146], एक समय यह किला राजपिपला के भील राजाओं के नियंत्रण में भी रहा [147] बाद में पिल्लाजी गायकवाड़ ने कब्जा कर लिया
  • सलहेर किला - सलहेर का पुराना नाम गवलगढ़ था और राजा गवल भील जी गावलगढ़ के राजा थे उन्होंने हि महाराष्ट्र में स्थित इस किले का निर्माण करवाया था।[148]
  • रुपगढ़ किला - रूपगढ़ किला भीलों ने बनवाया था बाद में गायकवाड़ ने अधिकार किया ।
  • भवरगढ़ किला - यह किला वीर भील योध्दा खाज्या भील का किला रहा, यह सेंधवा मे स्थित है.
  • बाबा बोवली - यह किला भील सरदार भीमा नायक का किला था.
  • राजा बाँसीया भील का महल
  • राजा बाँसीया भील महल - यह छसो साल पुराना महल बांसवाड़ा मे स्थित है

भील आदिवासी मेले व हाट[संपादित करें]

  • पाबूजी महाराज मेला - पाली जिले के सुमेरपुरके नीलकंठ पहाड़ी स्थित भील समाज के आराध्य पाबूजी महाराज मंदिर में भील समाज के दो दिवसीय वार्षिक मेले लगता है[149]
  • धूलकोट मेला - सुक्ता नदी भीमकुंड पर पिछले 400 सालों से यह मेला लगता आया है जिसका रोचक इतिहास है। पास के ग्राम डोंजर के सुक्ता नदी के भीमकुंड पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन यह मेला लगता है। यह मेला भील समाज के लोगों की आस्था का केन्द्र है।[150]
  • भगोरिया हाट - मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट मे यह हाट लगता है
  • बेणेश्वर मेला - गुजरात और राजस्थान के पास डूंगरपुर बांसवाड़ा मे यह मेला लगता है।
  • पिशवनिया महादेव मैला - सिरोही मे आयोजित [151]
  • सरतानेश्वर् महादेव मैला - सिरोही मे आयोजित [152]
  • भील ढोल मेला - दाहोद मे आयोजित [153]
  • चित्र विचित्र मेला - भील मेला [154]
  • रार मेला - दाहोद [155]
  • घोटिया आंबा मेला - घोटिया आंबा में प्रतिवर्ष चैत्र माह में एक विशाल मेला लगता है जिसमें भारी संख्या में आदिवासी भाग लेते हैं। वेणेश्वर के पश्चात यह राज्य का आदिवासियों की दूसरा बड़ा मेला है। मुख्य मेले में मेलार्थियों का भारी सैलाब उमड़ा और यहाँ घोटेश्वर शिवालय तथा मुख्यधाम पर स्थित अन्य देवालयों व पौराणिक पूजा-स्थलों पर श्रृद्धालुओं ने पूजा अर्चना की[156]
  • धनकुकड़ि माताजी मेला - यह मेला मानपुर मे लगता है

फिल्म और धारावाहिक[संपादित करें]

इन्हें देखे[संपादित करें]

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