तुंबेल

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तुंबेल गुजरात, सिंध और बलूचिस्तान के चारणों का एक वंश और वर्ग है। [1] [2] [3] [4] ऐतिहासिक रूप से, वे कच्छ और नवानगर रियासतों में अपनी सैन्य भूमिका के लिए प्रसिद्ध थे। [5]

इतिहास[संपादित करें]

उद्गम[संपादित करें]

चारणों की उत्पत्ति से संबन्धित धारणाओं में सबसे आम चारणों को पार्वती और शिव द्वारा सृजित प्रस्तुत किया जाता है। तुंबेल वंश के लिए यह कहा जाता है कि आवरी अथवा आवड़ (8 वीं शताब्दी की देवी आवड़ से भिन्न) नामक एक नाग-कन्या का चारण से विवाह इस शर्त पर होता है कि वह उससे कभी बात नहीं करेगा। इस प्रकार जब नाग-कन्या आवड़ चारण के चतुर्थ पुत्र के साथ गर्भवती थी, तब उस चारण ने बात न करने की प्रतिज्ञा को तोड़ दिया। फलस्वरूप नाग-कन्या आवड़ ने आधे-अधूरे बच्चे को अपने गर्भ से मुक्त किया, और उसे एक पात्र ( तुंब ) में रखकर समुद्र में छोड़ दिया। चूंकि वह बालक आधी अवधि में पैदा हुआ था, इसलिए उससे उत्पन्न वंश को केवल आधा पाड़ा (काच्छेला चारणों में विवाह समूह) माना जाता है। और चूंकि वह बालक एक तुम्ब (पात्र) में पाया गया, उसके वंशज तुंबेल कहलाए। [6] [7]

एक सम्मा राजपूत सरदार, जिसका नाम कुछ विवरणों में जाम लखियार माना जाता है, शक्तिपीठ हिंगलाज की तीर्थयात्रा के दौरान, मकरान के तट पर उसे समुद्र में वह बालक मिलता है । उस बालक को देवी का आशीर्वाद मानते हुए, वह उसे अपने पुत्र के रूप में पालने का निश्चय करता है। इस प्रकार, वर्षों बाद, परंपरा के अनुसार, उस बालक की विवाह विमर्श के दौरान देवी स्वयं राजा को उस बालक के चारण होने का रहस्य प्रकट करती है व उसका विवाह चारण-कन्या से होना चाहिए। [6] [7]

प्रवास[संपादित करें]

तुंबेल चारण देवी हिंगलाज को 9वीं शताब्दी से पूर्व के अपने पूर्वजों के रूप में मानते हैं। [8] हाला-पहाड़ियों में, हिंगलाज, जिन्हें कोहण-रानी कहा जाता है, तुंबेल वंश के साथ निवास करती थीं। उन्होने इस समूह को देवी माँ के धर्म-प्रचारक के रूप में सेवा करने के लिए प्रेरित किया और व्यक्तिगत रूप से उन्हें आधुनिक बलूचिस्तान में स्थित बेला में ले गई। [9] [7]

15-16वीं शताब्दी तक, सम्मा शासकों के इस्लाम में परिवर्तित होने के कारण, तुंबेल चारणों ने सिंध को छोड़ कच्छ की ओर पलायन दिया। वे कच्छ पहुंचे जहां सम्मा राजपूतों की एक उप-शाखा जाडेजा का शासन स्थापित था। उसी समय के अपदस्थ जाडेजा शासक, जाम रावल के साथ गठबंधन करते हुए, उसकी सेना का मुख्य हिस्सा बनकर और दक्षिण में सौराष्ट्र क्षेत्र में विजय प्राप्त की, जिससे नवानगर रियासत का निर्माण हुआ। [1] [10] अबुल फ़ज़ल ने अपने इतिहास के ग्रंथ ऐन-ए-अकबरी में सौराष्ट्र के जिलों में एक शासक जनजाति के रूप में तुंबेल का उल्लेख किया है। [11]

शाखाएँ[संपादित करें]

तुंबेल चारण 'जाम' उपाधि का प्रयोग करते हैं। तुंबेल वंश में सामान्य कुल निम्नलिखित हैं : 1) अलसुरा, 2) बरोट, 3) बाटी, 4) भान या लूना, 5) बूचर, 6) गागिया, 7) गिलवा, 8) गोगर, 9) गुनगड़, 10) जीवीया, 11) कारिया, 12) केसरिया, 13) मुंधुड़ा, 14) नान्दण, 15) सागर, 16) सखारा, 17) सिखाड़िया, 18) वनारिया, 19) वारिया। [6]

उल्लेखनीय लोग[संपादित करें]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Singhji, Virbhadra (1994). The Rajputs of Saurashtra (अंग्रेज़ी में). Popular Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7154-546-9. The Tumbel Charans with their martial spirit and agricultural occupations are immigrants from Sindh; and their speech and customs differ considerably from those of the other Charans. They are now found mostly in Kutch and Saurashtra. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; ":0" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  2. Gujarat (India) (1971). Gazetteers: Kutch District (अंग्रेज़ी में). Directorate of Government Print., Stationery and Publications.
  3. Jośī, Vandanā (1986). Mahiyāriyā satasaī: eka anuśīlana. Sāhitya Saṃsthāna, Rājasthāna Vidyāpīṭha.
  4. Maru-Bhāratī. Biṛlā Ejyūkeśana Ṭrasṭa. 1970.
  5. Mehara, Jahūrakhām̐ (1984). Dhara majalāṃ, dhara kosāṃ. Rājasthānī Granthāgāra. तुम्बेल चारण तौ लड़ाई - भिड़ाई सूफौज री चाकरी कर जीवारी जोग जुगाड़ जुटावता । जामनगर अर कच्छ रजवाड़ां रौ जद किणी दूजे राज सू जुद्ध मंडतौ जद इणा रा तुम्बेल सैनिक इज काण कुरब री रुखाळ करता । सो इण दोनू रजवाड़ा री पूरी फौज चारणां रीज ही ।
  6. Westphal-Hellbusch, Sigrid; Westphal, Heinz. Hinduistische Viehzüchter im nord-westlichen Indien (जर्मन में). Duncker & Humblot. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-3-428-43745-0. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; ":1" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  7. Tambs-Lyche, Harald (1996-12-31). Power, Profit, and Poetry: Traditional Society in Kathiawar, Western India (अंग्रेज़ी में). Manohar Publishers & Distributors. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7304-176-1. He became the ancestor of the Tumbel, a half-division because he was only half-grown; in one version the vessel is found by the Samma chief on the coast of Makran, when he was on pilgrimage to Hinglaj Mata. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; ":2" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  8. Tambs-Lyche, Harald (2020-05-12), "Goddesses of Western India", Brill’s Encyclopedia of Hinduism Online (अंग्रेज़ी में), Brill, अभिगमन तिथि 2023-05-23
  9. Westphal-Hellbusch, Sigrid (1973). Living Goddesses, Past and Present, in North-West India (अंग्रेज़ी में). Verlag nicht ermittelbar. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; ":3" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  10. Gahlot, Jagdish Singh (1937). History of Rajputana vol.1. तुम्बेल चारण जामनगर स्टेट की तरफ बड़ी संख्या में मिलते हैं।
  11. Jarrett Colonel H. S. (1949). Ain-i-akbari Of Abul Fazi -i-allami Vol.ii. Sixty years ago, Jām Rāwal, after a war of two months, was driven out of the country, and settled in Sorath between the territories of the Jaitwah, Bādel, Chāran, and Tumbel tribes .
  12. "Kavi Shree Dula Bhaya Kag – Kavi Kag" (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-05-23.
  13. "ઇસુદાન ગઢવી પાસે ગાડી નથી પણ અમદાવાદમાં છે 3 મકાન, આવક 5 વર્ષમાં 50 ટકા ઘટી". Indian Express Gujarati (गुजराती में). 2022-11-15. अभिगमन तिथि 2023-05-23.

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