"राजेन्द्र अवस्थी": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Rajendra awasthi.jpg|thumb|right|राजेन्द्र अवस्थी]][[राजेन्द्र अवस्थी]] ([[२५ जनवरी]], [[१९३०]] - [[३० दिसंबर]] [[२००९]]) हिंदी के प्रख्यात पत्रकार और लेखक थे। उनका जन्म [[मध्य प्रदेश]] के गढा [[जबलपुर]] नगर में हुआ था। वे नवभारत, सारिका, नंदन, साप्ताहिक हिन्दुस्तान और कादम्बिनी के संपादक रहे। उन्होंने अनेक उपन्यासों कहानियों एवं कविताओं की रचना की। वह ऑथर गिल्ड आफ इंडिया के अध्यक्ष भी रहे। दिल्ली सरकार की हिन्दी अकादमी ने उन्हें १९९७-९८ में साहित्यिक कृति से सम्मानित किया था।<ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/desh/national/39-39-88321.html
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उनकी साठ से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उपन्यास, कहानी, निबंध, यात्रा-वृत्तांत के साथ-साथ उनका दार्शनिक स्वरूप है जो शायद ही किसी कथाकार में देखने को मिलता है। उनके उपन्यासों में सूरज किरण की छांव, जंगल के फूल, जाने कितनी आंखें, बीमार शहर, अकेली आवाज और मछलीबाजार शामिल हैं। मकड़ी के जाले, दो जोड़ी आंखें, मेरी प्रिय कहानियां और उतरते ज्वार की सीपियां, एक औरत से इंटरव्यू और दोस्तों की दुनिया उनके कविता संग्रह हैं जबकि उन्होंने जंगल से शहर तक नाम से यात्रा वृतांत भी लिखा है। वे अवस्थी विश्व-यात्री हैं। दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं जहाँ अनेक बार वे न गए हों। वहाँ के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के साथ उनका पूरा समन्वय रहा है। कथाकार और पत्रकार होने के साथ ही, उन्होंने सांस्कृतिक राजनीति तथा सामयिक विषयों पर भी भरपूर लिखा है। अनेक दैनिक समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में उनके लेख प्रमुखता से छपते रहे। उनकी बेबाक टिप्पणियाँ अनेक बार आक्रोश और विवाद को भी जन्म देती रहीं, लेकिन अवस्थी जी कभी भी अपनी बात कहने से नहीं चूकते। <ref>{{cite web |url=http://vedantijeevan.com/bs/home.php?bookid=3532|title=आखिर कब तक|accessmonthday=[[३० दिसंबर]]|accessyear=[[२००९]]|format=|publisher=भारतीय साहित्य संग्रह|language=}}</ref>
उनकी साठ से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उपन्यास, कहानी, निबंध, यात्रा-वृत्तांत के साथ-साथ उनका दार्शनिक स्वरूप है जो शायद ही किसी कथाकार में देखने को मिलता है। उनके उपन्यासों में सूरज किरण की छांव, जंगल के फूल, जाने कितनी आंखें, बीमार शहर, अकेली आवाज और मछलीबाजार शामिल हैं। मकड़ी के जाले, दो जोड़ी आंखें, मेरी प्रिय कहानियां और उतरते ज्वार की सीपियां, एक औरत से इंटरव्यू और दोस्तों की दुनिया उनके कविता संग्रह हैं जबकि उन्होंने जंगल से शहर तक नाम से यात्रा वृतांत भी लिखा है। वे अवस्थी विश्व-यात्री हैं। दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं जहाँ अनेक बार वे न गए हों। वहाँ के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के साथ उनका पूरा समन्वय रहा है। कथाकार और पत्रकार होने के साथ ही, उन्होंने सांस्कृतिक राजनीति तथा सामयिक विषयों पर भी भरपूर लिखा है। अनेक दैनिक समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में उनके लेख प्रमुखता से छपते रहे। उनकी बेबाक टिप्पणियाँ अनेक बार आक्रोश और विवाद को भी जन्म देती रहीं, लेकिन अवस्थी जी कभी भी अपनी बात कहने से नहीं चूकते। <ref>{{cite web |url=http://vedantijeevan.com/bs/home.php?bookid=3532|title=आखिर कब तक|accessmonthday=[[३० दिसंबर]]|accessyear=[[२००९]]|format=|publisher=भारतीय साहित्य संग्रह|language=}}</ref>


राजेंद्र अवस्थी का पाँच-छह महीने पहले हृदय की बाइपास सर्जरी हुई थी। कुछ दिनों पहले तबीयत बिगड़ने के कारण उन्हें एस्कॉर्ट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके स्वास्थ्य में सुधार भी आया था पर ३० जनवरी २००९ की सुबह अचानक उनकी साँसें थम गईं। वे पिछले कई दिनों से एस्कोर्ट हास्पिटल में वेंटिलेटर पर थे।<ref>{{cite web |url=http://nukkadh.blogspot.com/2009/12/blog-post_6725.html|title=यह साल राजेंद्र अवस्थी को भी छीन ले गया|accessmonthday=[[३० दिसंबर]]|accessyear=[[२००९]]|format=|publisher=नुक्कड़|language=}}</ref>


==संदर्भ==
==संदर्भ==

15:01, 30 दिसम्बर 2009 का अवतरण

चित्र:Rajendra awasthi.jpg
राजेन्द्र अवस्थी

राजेन्द्र अवस्थी (२५ जनवरी, १९३० - ३० दिसंबर २००९) हिंदी के प्रख्यात पत्रकार और लेखक थे। उनका जन्म मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के गढा नामक गाँव में हुआ था। वे नवभारत, सारिका, नंदन, साप्ताहिक हिन्दुस्तान और कादम्बिनी के संपादक रहे। उन्होंने अनेक उपन्यासों कहानियों एवं कविताओं की रचना की। वह ऑथर गिल्ड आफ इंडिया के अध्यक्ष भी रहे। दिल्ली सरकार की हिन्दी अकादमी ने उन्हें १९९७-९८ में साहित्यिक कृति से सम्मानित किया था।[1]

उनकी साठ से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उपन्यास, कहानी, निबंध, यात्रा-वृत्तांत के साथ-साथ उनका दार्शनिक स्वरूप है जो शायद ही किसी कथाकार में देखने को मिलता है। उनके उपन्यासों में सूरज किरण की छांव, जंगल के फूल, जाने कितनी आंखें, बीमार शहर, अकेली आवाज और मछलीबाजार शामिल हैं। मकड़ी के जाले, दो जोड़ी आंखें, मेरी प्रिय कहानियां और उतरते ज्वार की सीपियां, एक औरत से इंटरव्यू और दोस्तों की दुनिया उनके कविता संग्रह हैं जबकि उन्होंने जंगल से शहर तक नाम से यात्रा वृतांत भी लिखा है। वे अवस्थी विश्व-यात्री हैं। दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं जहाँ अनेक बार वे न गए हों। वहाँ के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के साथ उनका पूरा समन्वय रहा है। कथाकार और पत्रकार होने के साथ ही, उन्होंने सांस्कृतिक राजनीति तथा सामयिक विषयों पर भी भरपूर लिखा है। अनेक दैनिक समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में उनके लेख प्रमुखता से छपते रहे। उनकी बेबाक टिप्पणियाँ अनेक बार आक्रोश और विवाद को भी जन्म देती रहीं, लेकिन अवस्थी जी कभी भी अपनी बात कहने से नहीं चूकते। [2]

राजेंद्र अवस्थी का पाँच-छह महीने पहले हृदय की बाइपास सर्जरी हुई थी। कुछ दिनों पहले तबीयत बिगड़ने के कारण उन्हें एस्कॉर्ट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके स्वास्थ्य में सुधार भी आया था पर ३० जनवरी २००९ की सुबह अचानक उनकी साँसें थम गईं। वे पिछले कई दिनों से एस्कोर्ट हास्पिटल में वेंटिलेटर पर थे।[3]

संदर्भ

  1. "पत्रकार एवं साहित्यकार राजेन्द्र अवस्थी का निधन". हिंदुस्तान. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  2. "आखिर कब तक". भारतीय साहित्य संग्रह. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  3. "यह साल राजेंद्र अवस्थी को भी छीन ले गया". नुक्कड़. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)