"चन्दन": अवतरणों में अंतर

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*(३) हैटी और जमैका में रूटेसिई (Rutaceae) कुल का एमाइरिस बालसमीफेरा एल. (Amyris balsmifera L.), जिसे अंग्रेजी में वेस्ट इंडियन सैंडलवुड भी कहते हैं।
*(३) हैटी और जमैका में रूटेसिई (Rutaceae) कुल का एमाइरिस बालसमीफेरा एल. (Amyris balsmifera L.), जिसे अंग्रेजी में वेस्ट इंडियन सैंडलवुड भी कहते हैं।

==== रासायनिक संगठन ====
इसके काष्ठसार में २.५-६% तक एक उडनशील तेल, राल एवं टॅनिक एसिड आदि पाए जाते हैं। चंदन का तेल हल्के पीले रंग का, गाढा, चिपचिपा, स्वाद में कडवा एवं किंचित तीता तथा विशिष्ठ गंधवाला होता है। यह २० से उष्णता पर ५ भाग मद्यसार (७०%) में धुल जाता है। इसका विशिष्ट गुरुत्व ०.९७६-०.९८५ होता है। इस तेल में ९०% तक अ‍ॅल्फा-सॅण्टेलॅल एवं बीटा-सॅण्टेलॅल (a-santalol and b-santalol, C15 H24O) नामक दो समाजिक (Isomeric-आइसोमेरिक) सेस्किटर्पेन अ‍ॅल्कोहोल्स (Sesquiterpene alcohols) पाये जाते हैं। इनके अतिरिक्त इस तेल में अ‍ॅल्डिहाइड्स (Aldehydes) एवं कीटोन (Ketone) द्र्व्य पाये जाते हैं।

इस तेल में देवदार का तेल (Cidarwood oil) १०% तक एवं रेंडी का तेल आदि अन्य तेलों की मिलावट की जाती है जिनकी पहचान इसके भौतिक परिवर्तन से की जा सकती है।

==== गुण और प्रयोग ====
श्वेत चंदन कडवा, शीतल, रुक्ष, दाहशामक, पिपासाहर, ग्राही, ह्रदय संरक्षक, विषघ्न, वण्र्य, कण्डूघ्न, वृष्य, आहादकारक, रक्तप्रसादक, मूत्रल, दुर्गंधहर एवंं अंगमर्द-शामक है।

इसका उपयोग ज्वर, रक्तपित्त विकार, तृषा, दाह, वमन, मूत्रकृच्छू, मूत्राघात, रक्तमेह, श्वेतप्रदर, रक्तप्रदर, उष्णवात (सोजाक), रक्तातिसार तथा अनेक चर्मरोगों में किया जाता है।

१. पित्तज्वर, तीव्रज्वर एवं जीर्णज्वर में चंदन के प्रयोग से दहा एवं तृषा की शांती होती है तथा स्वेद उत्पन्न होकर ज्वर भी कम होता है। ज्वर के कारण हृदय पर जो विषैला परिणाम होता है वह भी इसके देने से नहीं होता है।

२. नारियल के जल में चंदन घिसकर २ तो० की मात्रा में पिलाने से प्यास कम होती है।

३. चंदन को चावल की धोवन में घिस कर मिश्री एवं मधु मिलाकर पिलाने से रक्ततिसार, दाह, तृष्णा एवं प्रमेह आदि में लाभ होता है। इसी प्रकार मूत्रदाह, मूत्राघात, रक्तमेह एवं सोजाक में चंदन को चावल की धोवन में घिस कर मिश्री मिलाकर पिलाते हैं।

४. आंवले के रस के साथ चंदन देने से वमन बंद होता है।

५. दुर्गंध युक्त श्वेतप्रदर, रक्तप्रदर एवं प्रमेह आदि में चंदन का काथ उपयोगी है।


== बाहरी कड़ियाँ ==
== बाहरी कड़ियाँ ==

15:54, 12 अगस्त 2020 का अवतरण

चन्दन
Indian sandalwood
Santalum album
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: पादप
अश्रेणीत: पुष्पी पादप
अश्रेणीत: युडिकॉट​
अश्रेणीत: मुख्य युडिकॉट
गण: सैंटालेलीस
कुल: सैंटालेसियाए
वंश: Santalum
जाति: S. album
द्विपद नाम
Santalum album
L.
चन्दन का वृक्ष (हैदराबाद)

भारतीय चंदन (Santalum album) का संसार में सर्वोच्च स्थान है। इसका आर्थिक महत्व भी है। यह पेड़ मुख्यत: कर्नाटक के जंगलों में मिलता है तथा भारत के अन्य भागों में भी कहीं-कहीं पाया जाता है। भारत के 600 से लेकर 900 मीटर तक कुछ ऊँचे स्थल और मलयद्वीप इसके मूल स्थान हैं।

इस पेड़ की ऊँचाई 18 से लेकर 20 मीटर तक होती है। यह परोपजीवी पेड़, सैंटेलेसी कुल का सैंटेलम ऐल्बम लिन्न (Santalum album linn.) है। वृक्ष की आयुवृद्धि के साथ ही साथ उसके तनों और जड़ों की लकड़ी में सौगंधिक तेल का अंश भी बढ़ने लगता है। इसकी पूर्ण परिपक्वता में 8 से लेकर 12वर्ष तक का समय लगता है। इसके लिये ढालवाँ जमीन, जल सोखनेवाली उपजाऊ चिकली मिट्टी तथा 500 से लेकर 625 मिमी. तक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।

चन्दन की एक डाली पर लगीं पत्तियाँ

तने की नरम लकड़ी तथा जड़ को जड़, कुंदा, बुरादा, तथा छिलका और छीलन में विभक्त करके बेचा जाता है। इसकी लकड़ी का उपयोग मूर्तिकला, तथा साजसज्जा के सामान बनाने में और अन्य उत्पादनों का अगरबत्ती, हवन सामग्री, तथा सौगंधिक तेज के निर्माण में होता है। आसवन द्वारा सुगंधित तेल निकाला जाता है। प्रत्येक वर्ष लगभग 3,000 मीट्रिक टन चंदन की लकड़ी से तेल निकाला जाता है। एक मीट्रिक टन लकड़ी से 47 से लेकर 50 किलोग्राम तक चंदन का तेल प्राप्त होता है। रसायनज्ञ इस तेल के सुगंधित तत्व को सांश्लेषिक रीति से प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं।

चंदन के प्रसारण में पक्षी भी सहायक हैं। बीजों के द्वारा रोपकर भी इसे उगाया जा रहा है। सैंडल स्पाइक (Sandle spike) नामक रहस्यपूर्ण और संक्रामक वानस्पतिक रोग इस वृक्ष का शत्रु है। इससे संक्रमित होने पर पत्तियाँ ऐंठकर छोटी हो जाती हैं और वृक्ष विकृत हो जाता है। इस रोग की रोकथाम के सभी प्रयत्न विफल हुए हैं।

चंदन के स्थान पर उपयोग में आनेवाले निम्नलिखित वृक्षों की लकड़ियाँ भी हैं :

  • (१) आस्ट्रेलिया में सैंटेलेसिई (Santalaceae) कुल का
  • (क) यूकार्या स्पिकैटा (आर.बी-आर.) स्प्रैग. एवं सम्म.उ सैंटेलम स्पिकैटम् (आर.बी-आर.) ए. डी-सी. (Eucarya Spicata (R.Br.) Sprag. et Summ, Syn. Santalum Spicatum (R.Br.) A.Dc.),
  • (ख) सैंटेलम लैंसियोलैटम आर. बी-आर. (Santalum lanceolatum (R.Br.)) तथा
  • (ग) मायोपोरेसी (Myoporaceae) कुल के एरिमोफिला मिचेल्ली बैंथ. (Eremophila mitchelli Benth.) नामक वृक्ष;
  • (२) पूर्वी अफ्रीका तथा मैडेगास्कर के निकटवर्ती द्वीपों में सैंटेलेसी कुल का ओसाइरिस टेनुइफोलिया एंग्ल. (Osyris tenuifolia Engl.); तथा
  • (३) हैटी और जमैका में रूटेसिई (Rutaceae) कुल का एमाइरिस बालसमीफेरा एल. (Amyris balsmifera L.), जिसे अंग्रेजी में वेस्ट इंडियन सैंडलवुड भी कहते हैं।

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ