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अधिकतर विकसित देशों मे कानूनन मोटर वाहनों में शिशुओं को सिर्फ उनके लिए विशेष रूप से बनी सुरक्षा सीट मे ही बिठाया जा सकता है।
अधिकतर विकसित देशों मे कानूनन मोटर वाहनों में शिशुओं को सिर्फ उनके लिए विशेष रूप से बनी सुरक्षा सीट मे ही बिठाया जा सकता है।


'''बालक के जन्म के समय ली जाने वाली सावधानियाँ'''
शिशु का सिर बाहर आनेपर बाकी का शरीर पूर्ण बाहर आने की राह न देखते शिशु का श्वसनमार्ग साफ करना चाहिए।
शिशु को उलटा मत पकडों
शिशु पर पाणी मारना नही चाहिए।
मुँह, गला स्रावनली साफ करना चाहिए। म्यूकस नली नही है तो साफ नरम सुती कपडा अँगुली में लपेट कर शिशु के गले में अँगुली घुमाकर साफसफाई करनी चाहिए।
शिशु बाहर आनेपर नाल, नाडी चेक करके वह नाल काटनी चाहिए.
तब तक शिशु तुरंत सूखा करना चाहिए।
उसके बाद तुरंत गरमी देनेवाले कपडे में लपेट कर रखें। एेसा न करने पर र शिशु के शरीर का तापमान कम होने की संभावना होती है।
शिशु को गेल गोल न घुमाएं।
[[श्रेणी:मानव जीवन]]
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[[श्रेणी:शैशव]]
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16:27, 31 अक्टूबर 2019 का अवतरण

30 मिनट पहले जन्मा एक भारतीय नवजात शिशु
एक रोता हुआ नवजात शिशु

शिशु पृथ्वी पर किसी भी मानव (प्राणी) की सबसे पहली अवस्था है। जन्म से एक मास तक की आयु का शिशु नवजात (नया जन्मा) कहलाता है जबकि एक महीने से तीन साल तक के बच्चे को सिर्फ शिशु कहते हैं। आम बोल चाल की भाषा मे नवजात और शिशु दोनो को ही बच्चा कहते हैं। एक दूसरी परिभाषा के अनुसार जबतक बालक या बालिका आठ वर्ष के नहीं हो जाते तब तक वे शिशु कहलाते हैं।

शिशु देखभाल

शिशुओं का रोना एक स्वाभाविक क्रिया है, जो उनके लिए संचार का बुनियादी साधन है। एक शिशु रोकर भूख, बेचैनी, उब या अकेलापन जैसी कई भावनाओं को अभिव्यक्त करने की कोशिश करता है।

स्तनपान की सिफारिश सभी प्रमुख शिशु स्वास्थ्य संगठन करते हैं। अगर किसी कारण वश स्तनपान संभव नहीं है तो शिशु को बोतल से दूध पिलाया जा सकता है जिसके लिए माता का निकाला हुआ दूध या फिर डिब्बे का शिशु फार्मूला दिया जा सकता है।

शिशु चूसने की एक स्वाभाविक प्रवृति के साथ जन्म लेते है और इसके द्वारा वो स्तनाग्र (चुचुक) से या बोतल के निप्पल से दूध चूसते हैं। कई बार शिशुओं को दूध पिलाने के लिये धाय को रखा जाता है पर आजकल यह बिरले ही होता है विशेष रूप से विकसित देशों में।

जैसे जैसे शिशु की आयु मे वृद्धि होती है उसे दूध के अतिरिक्त ठोस आहार की आवश्यकता भी होती है, कई माता पिता इसकी पूर्ति के लिए डिब्बा बंद शिशु आहार (जैसे सेरेलेक) का चयन करते हैं मां के दूध या दुग्ध फार्मूला का पूरक होता है। बाकी लोग अपने बच्चे के आहार की जरूरत के लिए अपने सामान्य भोजन को उसकी आवश्यकताओं को अनुसार अनुकूलित कर लेते है (जैसे पतली खिचड़ी या दलिया)।

जब तक शिशु स्वयं शौचालय जाने के लिए प्रशिक्षित होते है, वो लंगोट, पोतड़ा या डाइपर (औद्योगीकृत देशों में) पहनते हैं।

बच्चे वयस्कों की तुलना में अधिक सोते है पर जैसे जैसे उनकी आयु बढ़ती है उनके निंद्राकाल मे गिरावट आती है। नवजात शिशुओं के लिए 18 घंटे तक की नींद की आवश्यकता होती है। जब तक बच्चे चलना सीखते हैं उन्हें गोद मे उठाया जाता है। इसके अतिरिक्त उन्हें बच्चागाड़ी या प्राम मे भी बैठा कर या लिटा कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है।

अधिकतर विकसित देशों मे कानूनन मोटर वाहनों में शिशुओं को सिर्फ उनके लिए विशेष रूप से बनी सुरक्षा सीट मे ही बिठाया जा सकता है।

बालक के जन्म के समय ली जाने वाली सावधानियाँ शिशु का सिर बाहर आनेपर बाकी का शरीर पूर्ण बाहर आने की राह न देखते शिशु का श्वसनमार्ग साफ करना चाहिए। शिशु को उलटा मत पकडों शिशु पर पाणी मारना नही चाहिए। मुँह, गला स्रावनली साफ करना चाहिए। म्यूकस नली नही है तो साफ नरम सुती कपडा अँगुली में लपेट कर शिशु के गले में अँगुली घुमाकर साफसफाई करनी चाहिए। शिशु बाहर आनेपर नाल, नाडी चेक करके वह नाल काटनी चाहिए. तब तक शिशु तुरंत सूखा करना चाहिए। उसके बाद तुरंत गरमी देनेवाले कपडे में लपेट कर रखें। एेसा न करने पर र शिशु के शरीर का तापमान कम होने की संभावना होती है। शिशु को गेल गोल न घुमाएं।