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[[चौरी चौरा]], [[उत्तर प्रदेश]] में [[गोरखपुर]] के पास का एक कस्बा है जहाँ 4 फ़रवरी 1922 को भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी जिससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जल के मर गए थे। इस घटना को '''चौरीचौरा काण्ड''' के नाम से जाना जाता है। इसके परिणामस्वरूप [[महात्मा गांधी|गांधीजी]] ने कहा था कि हिंसा होने के कारण [[असहयोग आन्दोलन]] उपयुक्त नहीं रह गया है और उसे वापस ले लिया था।
[[चौरी चौरा]], [[उत्तर प्रदेश]] में [[गोरखपुर]] के पास का एक कस्बा है जहाँ 4 फ़रवरी 1922 को भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी जिससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जल के मर गए थे। इस घटना को '''चौरीचौरा काण्ड''' के नाम से जाना जाता है। इसके परिणामस्वरूप [[महात्मा गांधी|गांधीजी]] ने कहा था कि हिंसा होने के कारण [[असहयोग आन्दोलन]] उपयुक्त नहीं रह गया है और उसे वापस ले लिया था।

इतिहास के आइने में चौरी चौरा

गांधी जी के असहयोग आंदोलन के दौरान कार्यकर्ता शांतिपूर्वक जनता को जागरूक कर रहे थे। इस दरमियान 1 फरवरी, 1922 को चौरीचौरा थाने के एक दारोगा ने असहयोग आंदोलन के कार्यकर्ताओं की जमकर पिटाई कर दी। इस घटना पर अपना विरोध दर्ज करवाने के लिए लोगों का एक जुलूस चौरी चौरा थाने पहुंचा। इसी दरमियान पीछे से पुलिस कर्मियों ने सत्याग्रहियों पर लाठीचार्ज तथा गोलियां चलाई। जिसमें 260 व्यक्तियों की मौत हो गई। हर तरफ खून से सने शव बिखरे पड़े थे। इसी के बाद क्रांतिकारी किसानों ने वह किया, जिसे इतिहास में चौरी चौरा कांड के नाम से जाना जाता है।
मालवीय जी ने लड़ा ऐतिहासिक मुकदमा
चौरी चौरा कांड में कुल 172 व्यक्तियों को फांसी की हुई। अदालत के इस निर्णय के विरुद्ध पंडित मदनमोहन मालवीय और पंडित मोती लाल नेहरू ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील की। मालवीय जी की जोरदार अपीलों के चलते 38 व्यक्ति  बरी हुए, 14 को फांसी की जगह आजीवन कारावास हुआ, जबकि 19 व्यक्तियों की फांसी बरकरार रही। बाकी सत्याग्रहियों को तीन से लेकर आठ साल की सजा मिली। कुल मिलाकर मालवीय जी फांसी के सजा पाए 170 लोगों में से 151 को छुड़ाने में सफल रहे।
चौरी चौरा के शहीद
2 जुलाई 1923 को फांसी पर लटकाए गए क्रांतिकारियों में अब्दुल्ला उर्फ सुकई, भगवान, विकरम, दुधई, कालीचरण, लाल मुहम्मद, लौटू, महादेव, लाल बिहारी, नजर अली, सीताराम, श्यामसुंदर, संपत रामपुर वाले, सहदेव , संपत चौरावाले, रुदल, रामरूप, रघुबीर और रामलगन के नाम शामिल हैं।
शहीदों की याद में डाक विभाग की मुहर
चौरी चौरा कांड के शहीदों की याद में गोरखपुर के चौरीचौरा डाकघर ने एक विशेष प्रकार की विशेष मुहर जारी की है। मोहर के बीचोंबीच लिखा है- ‘असहयोग आंदोलन चौरी-चौरा कांड 4 फरवरी 1922। मोहर के किनारे लिखा है-‘ब्रिटिश साम्राज्य भयभीत, क्रांतिकारी आंदोलन की शुरुआत, वंदे मातरम।’
गांधी जी के असहयोग आंदोलन के दौरान कार्यकर्ता शांतिपूर्वक जनता को जागरूक कर रहे थे। इस दरमियान 1 फरवरी, 1922 को चौरीचौरा थाने के एक दारोगा ने असहयोग आंदोलन के कार्यकर्ताओं की जमकर पिटाई कर दी। इस घटना पर अपना विरोध दर्ज करवाने के लिए लोगों का एक जुलूस चौरी चौरा थाने पहुंचा। इसी दरमियान पीछे से पुलिस कर्मियों ने सत्याग्रहियों पर लाठीचार्ज तथा गोलियां चलाई। जिसमें 260 व्यक्तियों की मौत हो गई। हर तरफ खून से सने शव बिखरे पड़े थे। इसी के बाद क्रांतिकारी किसानों ने वह किया, जिसे इतिहास में चौरी चौरा कांड के नाम से जाना जाता है।
मालवीय जी ने लड़ा ऐतिहासिक मुकदमा
चौरी चौरा कांड में कुल 172 व्यक्तियों को फांसी की हुई। अदालत के इस निर्णय के विरुद्ध पंडित मदनमोहन मालवीय और पंडित मोती लाल नेहरू ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील की। मालवीय जी की जोरदार अपीलों के चलते 38 व्यक्ति  बरी हुए, 14 को फांसी की जगह आजीवन कारावास हुआ, जबकि 19 व्यक्तियों की फांसी बरकरार रही। बाकी सत्याग्रहियों को तीन से लेकर आठ साल की सजा मिली। कुल मिलाकर मालवीय जी फांसी के सजा पाए 170 लोगों में से 151 को छुड़ाने में सफल रहे।
चौरी चौरा के शहीद
2 जुलाई 1923 को फांसी पर लटकाए गए क्रांतिकारियों में अब्दुल्ला उर्फ सुकई, भगवान, विकरम, दुधई, कालीचरण, लाल मुहम्मद, लौटू, महादेव, लाल बिहारी, नजर अली, सीताराम, श्यामसुंदर, संपत रामपुर वाले, सहदेव , संपत चौरावाले, रुदल, रामरूप, रघुबीर और रामलगन के नाम शामिल हैं।
शहीदों की याद में डाक विभाग की मुहर
चौरी चौरा कांड के शहीदों की याद में गोरखपुर के चौरीचौरा डाकघर ने एक विशेष प्रकार की विशेष मुहर जारी की है। मोहर के बीचोंबीच लिखा है- ‘असहयोग आंदोलन चौरी-चौरा कांड 4 फरवरी 1922। मोहर के किनारे लिखा है-‘ब्रिटिश साम्राज्य भयभीत, क्रांतिकारी आंदोलन की शुरुआत, वंदे मातरम।’


== परिणाम ==
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* [http://chaurichaura.com/news/news.php?go=fullnews&id=174 चौरीचौरा कांड : ऐतिहासिक परिदृश्य में]
* [http://chaurichaura.com/news/news.php?go=fullnews&id=174 चौरीचौरा कांड : ऐतिहासिक परिदृश्य में]
* [http://www.bhaskar.com/article/100126013959_movements_freedom_fighter.html इन आंदोलनों में शामिल लोग ही हैं स्वाधीनता सेनानी]
* [http://www.bhaskar.com/article/100126013959_movements_freedom_fighter.html इन आंदोलनों में शामिल लोग ही हैं स्वाधीनता सेनानी]
*[http://www.100flovers.blogspot.in/2013/02/normal-0-false-false-false.html चौरी चौरा कांड : उपद्रव नहीं, किसान प्रतिरोध]


[[श्रेणी:भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम]]
[[श्रेणी:भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम]]

06:05, 10 जुलाई 2016 का अवतरण

चौरी-चौरा का शहीद स्मारक

चौरी चौरा, उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास का एक कस्बा है जहाँ 4 फ़रवरी 1922 को भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी जिससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जल के मर गए थे। इस घटना को चौरीचौरा काण्ड के नाम से जाना जाता है। इसके परिणामस्वरूप गांधीजी ने कहा था कि हिंसा होने के कारण असहयोग आन्दोलन उपयुक्त नहीं रह गया है और उसे वापस ले लिया था।

परिणाम

इस घटना के तुरन्त बाद गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने की घोषणा कर दी। बहुत से लोगों को गांधीजी का यह निर्णय उचित नहीं लगा। विशेषकर क्रांतिकारियों ने इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष विरोध किया। गया कांग्रेस में रामप्रसाद बिस्मिल और उनके नौजवान सहयोगियों ने गांधीजी का विरोध किया। १९२२ की गया कांग्रेस में खन्नाजी ने व उनके साथियों ने बिस्मिल के साथ कन्धे से कन्धा भिड़ाकर गांधीजी का ऐसा विरोध किया कि कांग्रेस में फिर दो विचारधारायें बन गयीं - एक उदारवादी या लिबरल और दूसरी विद्रोही या रिबेलियन। गांधीजीजी विद्रोही विचारधारा के नवयुवकों को कांग्रेस की आम सभाओं में विरोध करने के कारण हमेशा हुल्लड़बाज कहा करते थे।

बाहरी कड़ियाँ