लेव गुमिल्योव
लेव गुमिल्योव (रूसी: Лев Никола́евич Гумилёв; अंग्रेजी:Lev Nikolayevich Gumilev ; 1 अक्टूबर 1912 – 15 जून 1992) सोवियत संघ के इतिहासकार, नृवैज्ञानिक और अनुवादक थे। इतिहासकार, भूगोलविद और कवि गुमिल्योव एक सर्वज्ञ विद्वान थे। संसार भर में मानिविकी विषयों के अध्ययन और चिंतन-मनन पर उन्होंने गहरी छाप छोड़ी।
परिचय
[संपादित करें]लेव गुमिल्योव का जन्म 1 अक्टूबर 1912 को तत्कालीन राजधानी सेंट पीटर्सबर्ग के समीप एक गांव में हुआ। उनके माता-पिता आन्ना अख्मातोवा और निकोलाई गुमिल्योव दोनों ही रूस के सर्वश्रेष्ठ कवियों में माने गए हैं। बेटे के जीवन पर उनके यश की छाया बनी रही, परंतु अंततोगत्वा उसने खुद भी उनसे अधिक ही यश बटोर लिया।
बीसवीं सदी के आठवें दशक में उन्होंने यह सिद्धांत पेश किया कि हर कौम यानी नृजाति एथनस जैसे प्राकृतिक परिवेश में जीती है, उसी के अनुसार उसका विकास होता है। गुमिल्योव ने सबसे पहले अपने आप से यह सवाल पूछा कि जिसे हम नृजाति कहते हैं वह चीज़ क्या है? मानवों के जिस समूह को नृजाति माना जाता है उसका आंतरिक ढांचा कैसा होता है, अपने चारों ओर की दुनिया के साथ वह कौन से ऐसे सूत्रों से जुड़ा होता है कि सदियों तक अपनी अलग पहचान बनाए रखता है? पिछली कुछ सदियों से यही माना जाता रहा है कि हर नृजाति के जन्म, उन्नति और अवनति की प्रक्रियाएं समाज के विकास के नियमों से जुड़ी होती हैं। गुमिल्योव को यह मान्यता स्वीकार नहीं थी। उनका यह मानना था कि एक बड़े भूभाग पर जी रहा मानव-समूह ही नृजाति है, कि इसका जन्म और विकास नए सामाजिक-आर्थिक ढाँचे की उत्पत्ति से नहीं जुड़ा होता। मिसाल के लिए, सामंती व्यवस्था खत्म होने के साथ कोई नृजाति लुप्त नहीं हुई, न ही पूंजीवादी व्यवस्था के उदय के साथ कोई नई नृजाति प्रकट हुई।
भारत में उनकी विशेष रूचि थी। रवीन्द्रनाथ ठाकुर के सृजन के वह भक्त थे, उनकी चेष्टा थी कि रूसी पाठक भी इस महान कवि के रचे सौंदर्य का रसपान कर सकें। आठवीं सदी में भारत में हुई राजपूताना क्रांति पर उन्होंने एक पुस्तक लिखी। मौर्य वंश के साम्राज्य की सांस्कृतिक धरोहर और बौद्ध धर्म उनके लिए शोध के अत्यंत रोचक विषय थे।