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मोनोसोडियम ग्लूटामेट

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मोनोसोडियम ग्लूटामेट
आईयूपीएसी नाम ोडियम 2-अमीनोपेन्टानेडिओएट
पहचान आइडेन्टिफायर्स
सी.ए.एस संख्या [142-47-2][CAS]
पबकैम 85314
EC-number 205-538-1
SMILES
InChI
कैमस्पाइडर आई.डी 76943
गुण
आण्विक सूत्र C5H8NNaO4
मोलर द्रव्यमान 169.111 g/mol
दिखावट white crystalline powder
गलनांक

232 °C, 505 K, 450 °F

जल में घुलनशीलता 74g/100mL
खतरा
एलडी५० एलडी50
जहां दिया है वहां के अलावा,
ये आंकड़े पदार्थ की मानक स्थिति (२५ °से, १०० कि.पा के अनुसार हैं।
ज्ञानसन्दूक के संदर्भ


मोनोसोडियम ग्लूटामेट, जिसे सोडियम ग्लूटामेट या एमएसजी भी कहा जाता है (आम बोलचाल में अजीनोमोटो), एक सोडियम लवण है,ग्लूटामिक अम्ल का सोडियम लवण। यह अम्ल कुदरती रूप से मिलनेवाला सबसे सुलभ गैर-ज़रूरी अमीनो अम्ल है।[1] अमरीका के खाद्य और दवा प्रशासन ने एमएसजी को सामान्यतः सुरक्षित समझे जानेवाले (जीआरएएस) के रूप में और यूरोपीय संघ ने भोजन योज्य के रूप में वर्गीकृत किया है। एमएसजी का एचएस कोड 29224220 और ई संख्या ई621 है।[2] एमएसजी का ग्लूटामेट भोजन में ग्लूटामेट का ही उमामी स्वाद लाता है। रासायनिक दृष्टि से ये दोनों अभिन्न हैं।[3] औद्योगिक आहार निर्माता एमएसजी को स्वाद बढ़ानेवाले के रूप में बेचते और उपयोग करते हैं, क्योंकि यह अन्य स्वादों को संतुलित करता है, मिलाता है और उनके संपूर्ण एहसास को पूर्णता प्रदान करता है।[4][5] मोनोसोडियम ग्लूटामेट के व्यापार नामों में शामिल हैं अजि-नो-मोटो®, वेटसिन और एसेन्ट।

एमएसजी की खोज

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प्रोफेसर किकुनेई इकेडा ने 1908 में ग्लूटामिक अम्ल को एक नए स्वाद पदार्थ के रूप में समुद्री-घास (सीवीड) लमिनेरिया जपोनिका, कोंबू, से जलीय निष्कर्षण और क्रिस्टलीकरण पद्धति से अलग किया और उसके स्वाद को उमामी नाम दिया।[6] उन्होंने देखा कि कटसुओबुशी और कोंबू से बनी जापानी शोरबे में एक विलक्षण स्वाद होता है, जिसे उस समय तक वैज्ञानिक रूप से वर्णित नहीं किया था और जो मीठे, नमकीन, खट्टे और कड़ुए स्वाद से भिन्न है।[7]इसकी पुष्टि करने के लिए कि उमामी स्वाद आयनीकृत ग्लूटामेट के कारण है, प्रोफेसर इकेडा ने कैल्शियम, पोटैशियम, अमोनियम और मैग्नीशियम ग्लूटामेट जैस अनेक ग्लूटामेट लवणों के स्वाद संबंधी गुणों का अध्ययन किया। इन सभी लवणों ने उमामी स्वाद पैदा किया जिसके साथ कुछ धात्विक स्वाद भी मिला हुआ था क्योंकि उनमें अन्य खनिज भी थे। इन सब लवणों में, सोडियम ग्लूटामेट सबसे अधिक घुलनशील और खाने योग्य था और इसका क्रिस्टलीकरण भी आसानी से होता था। प्रोफेसर इकेडा ने इस उत्पाद का नाम मोनोसोडियम ग्लूटामेट रखा और एमएसजी के निर्माण हेतु पेटेंट की अर्जी रखी।[8][7] सुज़ुकी भाइयों ने 1909 में अजी-नो-मोटो®, जिसका जापानी भाषा में अर्थ होता है, स्वाद का सार, के व्यापर-नाम से इसका व्यावसायिक उत्पादन शुरू किया। यही दुनिया में मोनोसोडियम ग्लूटामेट का पहली बार उत्पादन था।[9][10][11]

उत्पादन और रासायनिक गुणधर

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जब से एमएसजी को बाज़ार में उतारा गया है, उसका निर्माण तीन विधियों से होता है: (1) वानस्पतिक प्रोटीनों के हाइड्रोक्लोरिक अम्ल से जल-अपघटन द्वारा, जिससे पेप्टाइड बंध विशृंखलित हो जाते हैं (1909 -1962), (2) एक्रिलोनाइट्राइल से सीधे रासायनिक संश्लेषण द्वारा (1962 – 1973) और (3) जीवाणुओं द्वारा किण्वन से, जो वर्तमान विधि है।[11] शुरू में, जल-अपघटन के लिए गेहूँ के लासे (ग्लूटेन) का उपयोग किया जाता था, क्योंकि उसमें 100 ग्राम प्रोटीन में 30 ग्राम ग्लूटामेट और ग्लूटामाइन होता है। परंतु एमएसजी के निरंतर बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता महसूस हुई, उत्पादन की नई विधियों का अध्ययन होने लगा: रासायनिक संश्लेषण और किण्वन। Polyacrylic (पॉलीएक्रिलिक) रेशा उद्योग का आरंभ जापान में 1950 के दशक के मध्य में हुआ और तब एक्रिलोनाइट्राइल को एमएसजी के संश्लेषण हेतु प्रारंभिक वस्तु के रूप में अपनाया गया।[12] वर्तमान में, विश्व में अधिकांश एमएसजी का निर्माण जीवाणुओं द्वारा किण्वन से होता है, जो मदिरा, सिरका, दही और यहाँ तक चॉकलेट तक के उत्पादन के लिए अपनाई जानेवाली विधि से मिलती-जुलती प्रक्रिया है। सोडियम को बाद में उदासीनीकरण के चरण में मिलाया जाता है। किण्वन के दौरान, अमोनिया और शकरकद, गन्ने, टैपियोका या शोरे से प्राप्त कार्बोहाइड्रेटों के मिश्रण में उगाए गए चुनिंदा जीवाणु (कोरिनेफोर्म बैक्टीरिया) मिश्रण में अमीनो एसिड उत्सर्जित करते हैं, जिसमें से एल-ग्लूटामेट को अलग कर लिया जाता है। क्योवा-हैको कोग्यो कंपनी लिमिटेड ने एल-ग्लूटामेट के उत्पादन के लिए प्रथम औद्योगिक किणवन विधि विकसित की।[13] आजकल, एमएसजी के औद्योगिक उद्पादन में शर्करों से ग्लूटामेट की पैदावार में और उत्पादन दर में निरंतर सुधार हो रहा है, जो इस पदार्थ की माँग को पूरा करने में मदद कर रहा है।[11]छानने, संकेंद्रित करने, अम्लीकरण और क्लिस्टलीकरण के अंतिम उत्पाद शुद्ध ग्लूटामेट, सोडियम और जल होते हैं। यह एक सफेद, गंध-रहित, क्रिस्टली चूर्ण के रूप में प्रकट होता है, जो विलयन में ग्लूटामेट और सोडियम में वियोजित हो जाता है। यह पानी में अच्छी तरह घुलता है, लेकिन यह आर्द्रताग्राही नहीं है और ईथर जैसे साधारण जैविक विलायकों में यह करीब-करीब अविलेय है।[14] सामान्यतः, एमएसजी भोजन बनाने की सामान्य स्थितियों में स्थिर रहता है। खाना पकाने के दौरान, एमएसजी विघटित नहीं होता है, परंतु जैसा कि अन्य अमीनो अम्लों के साथ होता है, ब्राउनिंग (भूरा पड़ना) या मायलार्ड अभिक्रियाएँ शर्करा की उपस्थिति में बहुत अधिक तापमानों पर हो सकती हैं।[9]

एमएसजी के उपयोग

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शुद्ध एमएसजी का अपने आपमें कोई प्रिय स्वाद नहीं होता है, यदि इसे किसी सहयोगी सुस्वादु सुगंध से न मिलाया जाए।[15] यदि स्वाद के रूप में एमएसजी को सही मात्रा में मिलाया जाए, तो उसमें अन्य स्वाद-सक्रिय यौगिकों को संतुलित करने और कुछ व्यंजनों के समग्र स्वाद को पूर्णता देने की क्षमता होती है। एमएसजी माँस, मछली, मुर्ग, कई तरह की तरकारियों, चटनियों, रसों और शोरबों के साथ अच्छी तरह मिलता है और गोमाँस के रसे जैसे भोजनों के संपूर्ण स्वाद को बढ़ाता है।[4] लेकिन, शर्करा को छोड़कर अन्य मूल स्वादों के समान, एमएसजी भोजन की रोचकता को तभी बढ़ाता है जब उसे सही मात्रा में मिलाया जाए। यदि एमएसजी की मात्रा ज़रूरत से ज्यादा हो तो व्यंजन का स्वाद तेज़ी से खराब हो जाता है। हालाँकि सही मात्रा व्यंजन-व्यंजन पर निर्भर करती है, रसे में सुस्वादुता का स्कोर तब तेजी से गिरने लगता है जब 100 मिलि में एमएसजी की मात्रा 1 ग्राम से अधिक हो।[16] इसके अलावा एमएसजी और नमक (सोडियम क्लोराइड) और न्यूक्लियोटाइड जैसे अन्य उमामी पदार्थों के साथ अभिक्रिया होती है। सर्वोच्च स्वाद के लिए इन सबको इष्टतम मात्रा में होना आवश्यक है। इन गुणधर्मों के कारण एमएसजी का उपयोग नमक के अंतर्ग्रहण (सोडियम) को कम करने के लिए किया जा सकता है, जो उच्चरक्तचाप, हृद-रोग और आघात के लिए जिम्मेदार होता है। कम नमक वाले भोजनों का स्वाद एमएसजी के साथ उस स्थिति में भी सुधरता है जब नमक की मात्रा 30% तक कम की जाए। एमएसजी में सोडियम की मात्रा (द्रव्यमान प्रतिशत में) (12%) सोडियम क्लोराइड (39%) की तुलना में लगभग 3 गुना कम है।[17] कम नमक वाले रसों में ग्लूटामेट के अन्य लवणों का भी उपयोग किया गया है, किंतु ये इन रसों को एमएसजी जितना सुस्वादु नहीं बना पाते हैं।[18]

स्वाद बढ़ानेवाले तत्व के रूप में एमएसजी के उपयोग की सुरक्षितता

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भोजन को जायकेदार बनाने के लिए एमएसजी का उपयोग 100 से भी अधिक सालों से होता आ रहा है। इस लंबी अवधि में एमएसजी की भूमिका, लाभ और सुरक्षा को स्पष्ट करने के लिए विस्तृत अध्ययन हुए हैं। आज स्थिति यह है कि भोजन योज्यों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रिय निकायों का मानना है कि एमएसजी स्वाद बढ़ानेवाले तत्व के रूप में मनुष्यों के लिए सुरक्षित है।[19] "एमएसजी अभिलक्षण संकुल" को प्रारंभ में "चीनी रेस्तरां सिंड्रोम" नाम रखा गया था, जब रोबर्ट हो मैन क्वोक ने अमरीकी-चीनी भोजन करने के बाद उसे महसूस हुए अभिलक्षणों का वर्णन किया। क्वोक ने इन अभिलक्षणों के लिए अनेक कारण बताए, जिनमें शामिल थे, वाइन के साथ पकाने कारण एल्कहॉल, सोडियम की मात्रा, या एमएससी का मिलाया जाना। लेकिन सारा ध्यान एमएसजी पर ही जम गया और तब से इन अभिलक्षणों को एमएसजी के साथ जोड़कर देखा जा रहा है। वाइन और नमक की मात्रा के प्रभाव पर कभी अध्ययन नहीं किया गया।[20] जैसे-जैसे समय बीतता गया, गैर-विशिष्ट अभिलक्षणों की सूची सुनी-सुनाई बातों के आधार पर लंबी होती जा रही है। सामान्य परिस्थितियों में, हममें ग्लूटामेट, जिसमें तीव्र विषाक्ता लाने की बहुत कम क्षमता होती है, को पचाने की शक्ति होती है। मुख से लेने पर लेनेवालों में से 50% के लिए घातक खुराक (एलडी50) चूहों और चुहियों में क्रमशः 15 और 18 ग्रा/किलो शरीर वजन है, जो नमक के एलडी50 (चूहों में 3 ग्रा/किलो) से 5 गुना अधिक है। इसलिए, भोजन योज्य के रूप में एमएसजी का अंतर्ग्रहण और भोजनों में ग्लूटामिक अम्ल का स्वाभाविक स्तर मनुष्यों के लिए विषाक्तता की चिंता का कारण नहीं है।[19] अमरीका की प्रायोगिक जीवविज्ञान सोसाइटियों के संघ (एफएएसईबी) द्वारा 1995 में अमरीका के खाद्य और दवा प्रशासन (एफडीए) के लिए संकलित एक रोपोर्ट में यह निष्कर्ष दिया गया है कि "पारंपरिक स्तरों तक" खाने पर एमएसजी सुरक्षित है और यद्यपि ऐसे स्वस्थ लगनेवाले व्यक्ति हैं जिनमें बिना भोजन के 3 ग्राम एमएसजी खाने पर एमएसजी अभिलक्षण संकुल देखने में आता है, एमएसजी के कारण मृत्यु की घटनाएँ सिद्ध नहीं की गई हैं क्योंकि एमएसजी अभिलक्षण संकुल लिखित साक्ष्य पर आधारित है।[21] इस रिपोर्ट से यह भी सूचित होता है कि चिरस्थायी या अक्षम करनेवाले रोगों में ग्लूटामेट की भूमिका होने की बात के समर्थन में कोई भी डेटा नहीं है। एक नियंत्रित दुहरे रूप से प्रच्छन्न (डबल-ब्लाइंड) बहुकेंद्री चिकित्सकीय परीक्षण में एमएसजी अभिलक्षण संकुल और ऐसे व्यक्तियों द्वारा, जो यह मानते थे कि उनमें एमएसजी के प्रति विपरीत प्रभाव देखे जाते हैं, एमएसजी के अंतर्ग्रहण के बीच संबंध को प्रदर्शित नहीं किया जा सका। कोई भी सांख्यिकीय संबंध प्रदर्शित नहीं किए जा सके और थोड़ी सी ही प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुईं और वे भी असंगत थीं। जब भोजन के साथ एमएसजी दिया गया, तो ये अभिलक्षण नहीं देखे गए।[22][23][24][25]

प्रयोग के स्तर के पूर्वाग्रहों के निरसन हेतु अपनाए गए उपायों में शामिल हैं, एक दुहरे रूप से प्रच्छन्न (डबल-ब्लाइंड), प्लेसिबो-परिचालित प्रयोग डिज़ाइन (डीबीपीसी) और कैप्सूल के माध्यम से अनुप्रयोग क्योंकि ग्लूटामेटों का आफ्टर-टेस्ट काफी सशक्त होता है।[23] तारासोफ और केली द्वारा किए गए एक अध्ययन में अनशन करनेवाले 71 प्रतिभागियों को 5 ग्राम एमएसजी दिया गया और उसके बाद सामन्यतः लिया जानेवाला सुबह का नाश्ता। एक ही अभिलक्षण था और वह भी स्व-घोषित, एसएसजी के प्रति संवेदनशील व्यक्ति में था जिसे प्लेसिबो दिया जा रहा था।[20] गेहा और अन्य व्यक्तियों द्वारा किए गए एक अन्य अध्ययन में (2000), एमएसजी के प्रति संवेदनशीलता बतानेवाले 130 व्यक्तियों की प्रतिक्रिया का अध्ययन किया गया। अनेक डीबीपीसी परीक्षण किए गए और कम से कम दो अभिलक्षण वाले व्यक्तियों को ही लिया गया। इस संपूर्ण अध्ययन में केवल 2 व्यक्ति ही सभी चार चुनौतियों तक पहुँच पाए। इस तरह के निम्न प्रचलन के कारण, हाल के अनुसंधानकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि एमएसजी के प्रति अभिलक्षणों को पुनर्प्रदर्शित करना संभव नहीं है।[26] अन्य अध्ययनों में इस पर विचार किया गया है कि क्या एमएसजी मोटापा लाता है और इनके परिणाम मिश्रित रहे हैं।[27][28] एमएसजी और दमे के बीच मौजूद तथाकथित संबंध पर अनेक अध्ययन हुए हैं; वर्तमान में उपलब्ध प्रमाण ऐसे किसी कारणात्मक संबंधों की पुष्टि नहीं करते हैं।[29] चूँकि ग्लूटामेट मानव मस्तिष्क में महत्वपूर्ण तंत्रिका-प्रेषक हैं, जो सीखने की क्रिया में और स्मृति में अहम भूमिका निभाते हैं, तंत्रिका-विशारद इस समय भोजन में विद्यमान एमएसजी के किसी संभावित पार्श्व-प्रभाव का अध्ययन करने में संलग्न हैं, लेकिन कोई निर्णायक संबंध अब तक स्थापित नहीं हो पाए हैं।[30]

ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड

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खाद्य मानक ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड[31] (एपएसएएनजेड) ने "कई वैज्ञानिक अध्ययनों के ज़बर्दसत प्रमाण" का उल्लेख करते हुए, एमएसजी और "किसी गंभीर विपरीत प्रभाव" या "लंबे समय तक बने रहनेवाले प्रभाव" के बीच किसी भी भी प्रकार के संबंध को स्पष्ट शब्दों में नकारते हुए, एमएसजी को "जन-साधारण के लिए सुरक्षित" घोषित किया है। लेकिन, वह यह भी बताता है कि आबादी के 1% से कम भाग में, संवेदनशील व्यक्ति "अल्पकालिक" पार्श्व प्रभाव अनुभव कर सकते हैं, जैसे, "सिरदर्द, सुन्नता/झुरझुरी, तमतमाना, पेशियाँ अकड़ना और सामान्य कमजोरी", यदि वे एक ही भोजन में एमसीजी की बहुत अधिक मात्रा का अंतःग्रहण करें। जो लोग अपने आपको एमएसजी के प्रति संवेदनशील मानते हैं, उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है कि वे उचित चिकित्सकीय मूल्यांकन से इस बात की पुष्टि करा लें। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के भोजन मानक संहिता का मानक 1.2.4 यह आवश्यक बनाता है कि पैकेज-बंद भोजनों में एक भोजन योज्य के रूप में एमएसजी की उपस्थिति का उल्लेख उसके लेबल में किया जाए। लेबल में भोजन योज्य का वर्ग नाम (उदा., स्वाद बढ़ानेवाला) और उसके बाद भोजन योज्य का नाम एमएसजी, अथवा अंतर्राष्ट्रीय अंकन प्रणाली (आईएनएस) में उसकी संख्या, 621 आना चाहिए।[32]

मोनोसोडियम ग्लूटामेट (एमसीजी) भोजन में मिलनेवाले ग्लूटामिक अम्ल के विभिन्न रूपों में से एक है। इसका मुख्य कारण यह है कि चूँकि ग्लूटामिक अम्ल एक अमीनो अम्ल है, वह प्रकृति में हर जगह पाया जाता है। ग्लूटामिक अम्ल और उसके लवण कई प्रकार के अन्य योज्यों में भी मौजूद रह सकते हैं, जिनमें शामिल हैं, जल अपघटित वानस्पतिक प्रोटीन, स्वतः विघटित खमीर, जल अपघटित खमीर, खमीर का सत्व, सोय सत्व और अलग किए गए प्रोटीन, जिन्हें इनके इन सामान्य और प्रचलित नामों से लेबल करना होगा। 1998 से, एमएसजी को "मसालों और स्वादवर्धकों" में शामिल नहीं किया जा सकता है। भोजन योज्य, डाइसोडियम इनोसिनेट और डाइसोडियम गुआनिलेट, जो राइबोन्यूक्लियोटाइड हैं, का उपयोग सामान्यतः मोनोसोडियम ग्लूटामेट-युक्त घटकों के साथ किया जाता है। लेकिन, 'कुदरती स्वाद' पद का उपयोग भोजन से संबंधित उद्योग में तब होता है जब ग्लूटामिक अम्ल (सोडियम लवण के बिना एमएसजी) का उपयोग किया जा रहा हो। एफडीए विनियमन न होने के कारण, यह पता करना संभव नहीं है कि 'कुदरती स्वाद' का कितना प्रतिशत वास्तव में ग्लूटामिक अम्ल है। एफडीए "एमएसजी नहीं है" या "एमएसजी नहीं मिलाया गया है" जैसे लेबलों को भ्रामक मानता है, यदि उस भोजन में ऐसे घटक हों जिनमें मुक्त ग्लूटामेट हो, जैसे जल अपघटित प्रोटीन। 1993 में, एफडीए ने प्रोटीन के कुछ जल अपघटित तत्वों के लिए, जिनमें काफी मात्रा में ग्लूटामेट रहता हो, उनके साधारण या प्रचलित नामों के साथ "(ग्लूटामेट है)" पद जोड़ने का प्रस्ताव रखा था। अपनी किताब ऑन फुड एंड कुकिंग (भोजन और उसे पकाने के बारे में) के 2004 के संस्करण में, भोजन-भट्ट और लेखक हैरोल्ड मैकगी लिखते हैं, "[कई अध्ययनों के बाद], विषविज्ञानी को यह मानना पड़ा है कि एमएसजी एक निरापद घटक है, बड़ी मात्राओं में भी।"[33]

इन्हें भी देख

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सन्दर्भ

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