मर्म चिकित्सा

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मर्म चिकित्सा वास्तव में अपने अंदर की शक्ति को पहचानने जैसा है। डा0 दीप ब्रिजयोगी जी (🕉️दीप् योग डीवाइन वेलनेस) का कहना है कि शरीर की स्वचिकित्सा शक्ति (सेल्फ हीलिंग पॉवर) प्राण शक्ति को उत्प्रेरित करना ही मर्म चिकित्सा है। मर्म चिकित्सा से सबसे पहले आत्मा पर नियंत्रण आता है और सुख एवं शांति का अहसास होता है। जिसके द्वारा मन मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ने से शरीर मे पुनः नियंत्रण स्थापित होने लगता है और हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ने से आया हुआ रोग स्वतः ठीक होने लगता है और रोगी आरोग्य की ओर बढ़ने लगता है.

सुश्रुत् ऋषि द्वारा रचित सुश्रुत संहिता मे मर्म चिकित्सा का वर्णन है , जो हमारे भारत वर्ष की आयुर्वेदिक प्राचीनतम सात्विक चिकित्सा है, आज् के समय् मे अधिकआन्श् लोग् इस् चिकित्सा पदति से अन्भिग्य है, लेकिन् कुछ् चिकित्सक् इसका प्रचार् व् प्रसार् करने मे बोहोत् बल् दे रहे है, डा. दीप ब्रिजयोगी द्वारा बीते पंद्रह वर्षो मे अनेकों मरीजों का मर्म चिकित्सा द्वारा सफल उपचार किया जा चुका है, यह एक अद्भुत स्वेहचिकित्सा है जो भारत वर्ष को प्राप्त हुई, इसी पद्धती के आधार पर दूसरे देशो मे (चीन, कोरिया, जापान इत्यादि) मे एक्यूप्रेशर ओर एक्यूपंचर जैसी पद्धतीयो का जन्म ओर विस्तार हुआ, जो की आज के समय मे दुनियां के अधिकाश देशों मे प्रैक्टिस की जाति है पर दुख इस बात का है हमारी अपनी मर्म चिकित्सा को लोग काफी कम जानते हैँ, हमारी पुरी कोशिश है की आने वाले समय मे हम इस पद्धती को देश भर मे फैला सकें, आइये जानते है मर्म चिकित्सा के बारे मे आगे.

शरीर में 107 मर्म स्थान बताये गये है और 108 वा मर्म मन को कहा गया है , जिनसे मेडिकल के छात्रों को उपचार व सर्जरी के दौरान बचाने की सीख दी जाती है। 37 बिंदु शरीर में गले से ऊपर के हिस्से में होते हैं और उनसे लापरवाही भरी कोई छेड़छाड़ जानलेवा भी साबित हो सकती है, इसलिए उनके साथ केवल चिकित्सकों को ही उपचार की अनुमति है, लेकिन अन्य बिंदुओं की जानकारी होने पर आम लोग भी अपने या परिजनों, मित्रों या किसी भी रोगी का इलाज कर सकते हैं।

शरीर के हर हिस्से व अंग के लिए शरीर में अलग-अलग हिस्सों में मर्म स्थान नियत हैं। किसी भी अंग में होने वाली परेशानी के लिए उससे संबंधित मर्म स्थान को 0.8 सैकेंड की दर से बार-बार दबाकर स्टिमुलेट करने से फौरन राहत मिलती है।

गर्दन, पीठ, सिर, कमर व पैर दर्द या कैसा भी दर्द शरीर से मर्म चिकित्सा के जरिए जल्द ही खत्म हो सकता है। और गंभीर बीमारियो पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है अगर इस चिकित्सा को पुरी निष्ठा धैर्य, समर्पण, एवं जानकारी के साथ किया जाये, ये चिकित्सा सबको सीखनी चाहिए, ताकी हम बिना दवाइयों के अपने आप को स्वस्थ रख सके और बेहतर जीवन आनंद से जी सकें.

पद्धति की विश्वसनीयता[संपादित करें]

मर्म चिकित्सा के परिणामों का सप्रमाण प्रस्तुतिकरण एवं प्रदर्शन इस पद्धति की विश्वसनीयता प्रदशिर्त करने में सहायक सिद्ध होता है। मर्म चिकित्सा के परिणाम इतने सद्य: फलदायी एवं आश्चर्य चकित करने वाले होते है कि प्रथम दृष्ट्या इन पर विश्वास करना सम्भव ही नहीं है और यदि कोई इन्हें देखता या अनुभव करता है तो इसका चमत्कार की श्रेणी में आकलन करता है जबकि यह सद्य:कार्यकारी पद्धति पूर्णतया वैज्ञानिक है तथा प्रकृति के मूल-भूत सिद्वान्तों पर ही कार्य करती है। इसको पाखण्ड, जादू और चमत्कार कहना ईश्वरीय स्वरोग निवारण क्षमता का अपमान करना है।

यह पूर्णतया सत्य है कि मर्म विज्ञान विश्व की सबसे प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है। जहां अन्य चिकित्सा पद्धतियों का इतिहास कुछ सौ वर्षों से लेकर हजारों वर्ष तक का माना जाता है वहीं मर्म चिकित्सा पद्धति को काल खण्ड में नहीं बांधा जा सकता है। मर्म चिकित्सा द्वारा क्रियाशील किए जाने वाले तंत्र (१०७ मर्म स्थान) इस मनुष्य व्शरीर में मनुष्य के विकास क्रम से ही उपलब्ध हैं। समस्त चिकित्सा पद्धतियां मनुष्य द्वारा विकसित की गई हैं परन्तु मर्म चिकित्सा प्रकृति/ईश्वर प्रदत्त चिकित्सा पद्धति है। अत: इसके परिणामों की तुलना अन्य चिकित्सा पद्धतियों से नहीं की जा सकती है। अन्य किसी भी पद्धति से असाध्य अनेक रोगों को मर्म चिकित्सा द्वारा आसानी से उपचारित किया जा सकता हैं।

ईश्वर प्रदत्त शक्ति[संपादित करें]

ईश्वर स्त्री सत्तात्मक है अथवा पुरुष सत्तात्मक यह कहना सम्भव नहीं है परन्तु ईश्वर हम सभी से माता-पिता के समान प्रेम करता है। ईश्वर ने वह सभी वस्तुए हमें प्रदान की हैं जो कि हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं। ईश्वर ने हमें असीमित क्षमताएं प्रदान की हैं जिससे हम अनेक भौतिक और आध्यात्मिक शक्तियों को प्राप्त कर सकते हैं। स्व-रोग निवारण क्षमता इन्हीं व्शक्तियों में से एक है जिसके द्वारा प्रत्येक मनुष्य शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ रह सकता है।

विज्ञान के द्वारा भौतिक जगत के रहस्यों को ही समझा जा सकता है जबकि दर्शन के द्वारा भौतिक जगत के वास्तविक रहस्य के साथ-साथ उसके आध्यात्मिक पक्ष को समझने में भी सहायता मिलती है। वैदिक चिकित्सा पद्धति, विज्ञान और दर्शन के मिले-जुले स्वरूप से अधिक बढ़कर है। ईश्वर ने अपनी इच्छा की प्रतिपूर्ति के लिए इस संसार की उत्पत्ति की है तथा उसने ही अपनी अपरिमित आकांक्षा के वशीभूत मनुष्य को असीम क्षमताआें से सुसम्पन्न कर पैदा किया है। दु:ख एवं कष्ट रहित स्वस्थ जीवन इस क्षमता का परिणाम है। मर्म चिकित्सा विशेषज्ञ डा0 श्री प्रकाश बरनवाल का कहना है कि प्रकृति प्रदत हमारे मानव शरीर में स्थित ईश्वर-प्रदत्त स्वरोग निवारण की क्षमता हमारी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है वरन्‌ मनुष्य शरीर में ईश्वरीय गुणों की उपस्थिति का ही द्योतक है। सार रूप में यह जानना अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि ईश्वर का पुत्र होने के कारण मनुष्य समस्त ईश्वरीय गुणों और क्षमताओं से सुसम्पन्न है। वैज्ञानिक विवेचना और धार्मिक, आध्यात्मिक अभ्यास के समन्वय एवं व्यक्तिगत अनुभवों को समवेत रूप में प्रस्तुत कर मर्म विज्ञान का अध्ययन एवं वैज्ञानिक विश्लेषण किया जा सकता है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]