बेलखरनाथ मन्दिर
बाबा बेलखरनाथ मन्दिर (धाम) उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद मे सई नदी के तट पर स्थित हैं। बाबा बेलखरनाथ धाम प्रतापगढ़ मुख्यालय से १५ किलोमीटर पट्टी मार्ग पर लगभग ९० मीटर ऊँचे टीले पर स्थित है। यह स्थल ग्राम अहियापुर में स्थित है। वर्ष में एक बार महाशिवरात्रि पर्व पर व् प्रत्येक तीसरे वर्ष मलमास में यहाँ १ महीने तक विशाल मेला चलता है जिसमे कई जिलो से शिवभक्त व संत महात्मा यहाँ आकर पूजन प्रवचन किया करते हैं। प्रत्येक शनिवार को यहाँ हजारो की संख्या में पहुचने वाले श्रद्धालु भगवान शिव की आराधना किया करते है।[1][2] 1 माह सावन का भी मेला लगता है, साप्ताहिक सोमवार को भी मेला लगता हैl
इतिहास
[संपादित करें]बाबा बेलखरनाथ मंदिर का नाम बिलखरिया राजपूतो के नाम पर पड़ा। कई दशकों पहले सई नदी के किनारे की उपजाऊ जमीन पर सूर्यवंश के दिक्खित वंश कश्यप गोत्र के बिलखरिया राजपूतों का एक छत्र राज्य था। बिलखरिया राजपूतों का मूल उद्गम राजस्थान या बिहार के आसपास की कोई जगह मानी जाती है। हालांकि इसके पीछे कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं हो पाया है कि बिलखरिया राजपूत इतनी दूर से परगना पट्टी में किस उद्देश्य से आए थे। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राजस्थान के किसी प्रांत में भयानक सूखा पड़ने के कारण बिलखरिया राजपूतों को वहां से पलायन करना पड़ा। सूखे की त्रासदी झेलने के बाद उन्होंने तय किया कि अब वह उसी जगह निवास करेंगे जहां पर कोई नदी बहती हो। कुछ समय उन्होंने इलाहाबाद के किसी भाग में गंगा नदी के किनारे वास किया किंतु वर्षा के समय गंगा नदी में आने वाली बाढ़ के कारण उन्हें फिर से पलायन करना पड़ा। आखिरकार उन्होंने सईं नदी के किनारे एक ऊँचे टीले पर अपना निवास स्थापित किया। यहाँ पर न तो सूखा पड़ने की संभावना थी और न ही बाढ़ आने की। बिलखरिया राजपूतों ने बेलखरनाथ कोट का निर्माण कराया। जिसका खंडहर आज भी मौजूद है।[3]
बिलखरिया राज्य के विनाश के बाद इस किले तथा शंकर जी के स्थान पर जंगल बन गया जहाँ लोग लकड़ी काटने जाया करते थे। एक दिन एक व्यक्ति की नजर शिव जी पर पड़ी तो उसने पत्थर समझ कर शिवलिंग पर अपनी कुल्हाड़ी तेज करना शुरू कर दिया और पत्थर पर कुल्हाड़ी मार दी जिसका निशान आज भी मौजूद है उस व्यक्ति को बिजली सा झटका लगा और वो बेहोश हो गया। उसके कानो में डमरू की आवाज सुनाई दी साथ ही वह गूंगा और बहरा हो गया। इसके बाद उसने साईं नदी में स्नान कर शिव स्थान पर पूजा शुरू कर दी। मंदिर बनने से पहले वहाँ पर अरघा का टुटा हुआ भाग विद्यमान था। उसी समय भगतो ने शिवलिंग के ऊपर छप्पर बना दिया बाद में भगवान शिव की प्रेरणा से राजा दिलीपपुर द्वारा वहाँ छत का निर्माण कराया गया। कालांतर में राजा दिलीपपुर ने कई बार मंदिर बनवाने का प्रयास किया। दिन में तो मंदिर बनती पर दूसरे दिन मंदिर गायब रहती। लोग हैरान थे कि ऐसा क्यूँ हो रहा है। इसी बीच गांव के निवासी शिव हरख ब्रह्मचारी ने मंदिर बनवाने का प्रयास तो उन्हें पूजा अर्चना के बाद तीन पीढ़ी में मंदिर बनने का ज्ञान हुआ।
वर्ष 1916 में छपी पुस्तक वस्तु गोत्र चौहान बंश छंदों में रचित एक ग्रन्थ है। जिसमे लिखा है कि मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम ने अपने वनवास के समय बेल नृपति के शासनकाल में बेलखरनाथ महादेव की पूजा की थी।[4]
अन्य मंदिर
[संपादित करें]धाम परिसर में राम, जानकी, हनुमान जी और विश्वकर्मा भगवान के मंदिरों के साथ ही कई धर्मशालाएं और सराय का भी निर्माण किया गया है। पीपल के वृक्षों से आच्छादित मंदिर परिसर तक सीढ़ी नुमा रास्ते और चारों तरफ फैला जंगल इसकी शोभा में चार चांद लगा रहे हैं।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Not allowed to play music, kanwariyas go on rampage" (अंग्रेज़ी में). इंडियन एक्सप्रेस. मूल से 19 जून 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि अगस्त १५, २०१५.
- ↑ "आज है सावन का पहला सोमवार शिव मंदिरों के बाहर भोले के भक्तों की लगी कतारे". दैनिक जागरण. मूल से 12 अगस्त 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि अगस्त ३, २०१५.
- ↑ "बाबा बेलखरनाथ धाम". मूल से 12 फ़रवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 जून 2016.
- ↑ "भगवान श्रीराम नें की थी बेलखरनाथ महादेव की पूजा". ippnews. मूल से 12 फ़रवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जून 2016.