तारकासुर

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तारकासुर, वज्रांग नामक दैत्य का पुत्र और असुरों का अधिपति था।

पुराणों से ज्ञात होता है कि देवताओं को जीतने के लिये उसे घोर तपस्या की। महादेव ने उसे यह वरदान दिया कि असुरों का राजा होगा तथा शिवपुत्र के अतिरिक्त अन्य कोई उसे मार नही सकेगा। परिणामस्वरूप वह अत्यन्त दुर्दान्त हो गया और देवतागण उसकी सेवा के लिये विवश हो गए। देवताओं ने भी ब्रह्मा की शरण ली। उन्होने उन्हें यह बताया कि तारकासुर का अन्त शिव के पुत्र से ही हो सकेगा। देवताओं ने कामदेव और रति के सहारे पार्वती के माध्यम से शिव को वैवाहिक जीवन के प्रति आकृष्ट करने का प्रयत्न किया। शिव ने क्रुद्ध होकर काम को जला डाला। किन्तु पार्वती ने आशा नहीं छोड़ी और रूपसम्मोहन के उपाय को व्यर्थ मानती हुई तपस्या में निरत होकर शिवप्राप्ति का उपाय शुरू कर दिया। शिव प्रसन्न हुए, पार्वती का पाणिग्रहण किया और उनसे आरकाकार्तिकेय (स्कन्द) की उत्पत्ति हुई। स्कन्द को देवताओं ने अपना सेनापति बनाया और देवासुर संग्राम में उनके द्वारा तारकासुर का संहार हुआ। उसकी पत्नी का नाम शंबुकी था तथा उसके तीन पुत् जिनके नाम तारकाक्ष, कमलाक्ष, और विदयुनमली था।

सन्दर्भ ग्रन्थ[संपादित करें]

  • मत्सयापुराण, १४५-१५९;
  • शिवपुराण, भाग १ अध्याय ९ तथा आगे,
  • ब्रह्मापुराण, ७१ वाँ अध्याय,
  • स्कंदपुराण, माहेश्वरखंड।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]