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कुमावत

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कुमावत एक क्षत्रिय भारतीय हिन्दू जाति है।

कुमावत कुंभलगढ़(मेवाड़) के निवासी हैं जिनका वर्तमान कार्य स्थापत्य कला से सबंधित हैं। इस जाति(कुमावत) का जातिसूचक शब्द 'राजकुमार' हुआ करता था।[1] दुर्ग, क़िले, मंदिर इत्यादि के निर्माण व मुख्य स्थापत्य कला एवं चित्रकारी की ठेकेदारी का काम कुमावत समाज के लोगों द्वारा किया जाने लगा। स्थापत्य कला एवं शिल्पकला दोनों अलग-अलग कलाएं हैं। कुछ लोग कुमावत और कुम्हार को एक ही समझ लेते है, लेकिन दोनों अलग-अलग जातियां है।[2] कुमावत जाति के अधिकांश लोग स्थापत्य कला (वास्तुकला) का काम करने लगें, जबकि कुम्हार जाति के लोग मिट्टी का अर्थात् हस्तशिल्पकला का काम करते थे।

कुमावत क्षत्रिय समूह के वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत शामिल हैं। और उनमें से अधिकांश मारवाड़ क्षेत्र और भारत के विभिन्न राज्यों में केंद्रित हैं। उन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे मारू कुमावत, मेवाड़ी कुमावत, चेजारा कुमावत, आदि। कुमावत को नायक और हुनपंच के नाम से भी जाना जाता है। इस समुदाय के लिए नृवंशविज्ञान संबंधी साक्ष्य रानी लक्ष्मी चंदाबत द्वारा लिखित बागोरा बटों की गाथा और जेम्स टॉड द्वारा लिखित एनल्स एंड एंटिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान में उपलब्ध हैं। कुमावत खुद को सूर्यवंशी क्षत्रिय मानते हैं। यह समाज जयपुर से अपना त्रैमासिक प्रकाशन कुमावत क्षत्रिय हिन्दी में भी निकलता है।[3]

स्थापत्य कला बोर्ड

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राजस्थान राज्य स्थापत्य कला बोर्ड,जो कुमावत समुदाय को समर्पित है, का गठन किया गया है।[4][5]

उत्पत्ति

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स्कंदपुराण के नागर खंड में एवं श्री विश्वकर्मा पुराण में शिल्पियों का वर्णन मिलता हैं जो भगवान विश्वकर्मा के पांचों संतानों मनु, मय,त्वष्ठा,शिल्पी(वास्तु) और देवज्ञ में से महर्षि शिल्पी(महर्षि वास्तु) के अनुयायी/ वंशज ही शिल्पकार समुदाय(वर्तमान में कुमावत) से संबंधित हैं।[6]

कुमावातो को प्राय: गजधर भी कहा जाता है जो दुर्ग के दुर्गपति हुआ करते थे। इस कारण ये क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत आते हैं।[7]

कुमावतो को शिल्पी, राजकुमार, राजगीर, संगतरास,राज, मिस्त्री, राजमिस्त्री, पथरछिता(पाषाण से संबंधित शिल्पकार), परचिनिया, पच्चीकार कहा जाता है।[8]

कुमावत जाति के लोग अपने पारंपरिक स्थापत्य कला के अतिरिक्त अभिनय, चित्रकारी, भजन, लोक संगीत इत्यादि से भी संबंधित रहे हैं।[9]

सन्दर्भ

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  1. Seṭha, Haragovindadāsa Trikamacanda (1986). पाइअ-सद्द-महण्णवो (प्राकृत-शब्द-महार्णवः): अर्थात् प्राचीन ग्रन्थों के अनल्प अवतरणों और परिपूर्ण प्रमाणों से विभूषित बृहत्कोष. पृ॰ 464. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-0239-1.
  2. Commissioner, India Census (1933). Census of India, 1931.
  3. Mandal, S. K. (1998). "Kumawat". प्रकाशित Singh, Kumar Suresh (संपा॰). People of India: Rajasthan. पपृ॰ 562–564. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-8-17154-769-2. मूल से 14 जुलाई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 जुलाई 2015.
  4. "Shri Ashok Gehlot, Chief Minister, Rajasthan". cmo.rajasthan.gov.in. मूल से 28 जुलाई 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2023-07-28.
  5. "Sectoral Portal". sectors.rajasthan.gov.in. अभिगमन तिथि 2023-08-24.
  6. "Online Hindu Spiritual Books,Hinduism Holy Books,Hindu Religious Books,Bhagwat Gita Books India". web.archive.org. 2010-06-25. मूल से पुरालेखित 25 जून 2010. अभिगमन तिथि 2024-02-26.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)
  7. Gupta, Dr Mohan Lal. The Great History of Ajmer: अजमेर का वृहत् इतिहास.
  8. Mishra, Vidyaniwas (2009-01-01). Hindi Ki Shabd Sampada. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-267-1593-0.
  9. Cittauṛagaṛha. Javāhara Kalā Kendra. 1994.