इस्तमरारी बन्दोबस्त
स्थाई बन्दोबस्त को 1790 में जान शोर की व्यवस्था के नाम से शुरू किया गया था। जिसेे बाद में स्थाई बन्दोबस्त या इस्तमरारी बन्दोबस्त के नाम से जाना जाने लगा।
इस्तमरारी बन्दोबस्त सन् 1793 ई० में बंगाल के गवर्नर-जनरल लार्ड कार्नवालिस ने बंगाल में लागू किया था। इस व्यवस्था के अनुसार जमींदार को एक निश्चित राजस्व की राशि ईस्ट इण्डिया कम्पनी को देनी होती थी। जो जमींदार अपनी निश्चित राशि नहीं चुका पाते थे , उनकी जमींदारियाँ नीलाम कर दी जाती थीं। यह तत्कालीन भारत के 19 प्रतिशत भाग पर लागू थी<वारेन हेस्टिंग्ज द्वारा बंगाल में स्थापित कर संग्रहण की ठेकेदारी व्यवस्था से किसानों की स्थिति सोचनीय हो गयी थी। इस स्थिति में सुधार के लिए कंपनी सरकार ने लार्ड कार्नवालिस को स्थायी सुधार के लिए नियुक्त किया।स्थायी बंदोबस्त अथवा इस्तमरारी बंदोबस्त ईस्ट इण्डिया कंपनी और बंगाल के जमींदारों के बीच कर वसूलने से सम्बंधित एक एक सथाई व्यवस्था हेतु सहमति समझौता था जिसे बंगाल में लार्ड कार्नवालिस[1] द्वारा 22 मार्च, 1793 को लागू किया गया। इसके द्वारा तत्कालीन बंगाल और बिहार में भूमि कर वसूलने की जमींदारी प्रथा को आधीकारिक तरीका चुना गया। बाद में यह कुछ विनियामकों द्वारा पूरे उत्तर भारत में लागू किया गया।[1]
इस बंदोबस्त के अन्य दूरगामी परिणाम भी हुए और इन्ही के द्वारा भारत में पहली बार आधिकारिक सेवाओं को तीन स्पष्ट भागों में विभक्त किया गया और राजस्व, न्याय और वाणिज्यिक सेवाओं को अलग-अलग किया गया।>सब्यसाची भट्टाचार्य (२००८). आधुनिक भारत का आर्थिक इतिहास. राजकमल प्रकाशन. पृ॰ ४८-५१. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788126700806.</ref>[1]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ बच्चन सिंह. हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास. राजकमल प्रकाशन. पृ॰ २७८. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788171197859.