हिमालयाई भाषा परियोजना
हिमालयाई भाषा परियोजना 1993 में शुरू हुई। यह लीडेन विश्वविद्यालय का सामूहिक शोध प्रयास है। इसका लक्ष्य कम जानी पहचानी भाषाओं और लुप्तप्राय भाषाओं पर शोध करना है जो हिमालय क्षेत्र से जुड़ी हैं। यह भाषाएँ नेपाल, चीन, भूटान और भारत में पाई जाती हैं। शोध समूह के सदस्य कई महीने या वर्ष लगातार भाषा के मूल वक्ताओं के साथ में अनुसंधान में बिताते हैं। इस परियोजना के निर्देशक जॉर्ज़ वैन ड्रिएम (George van Driem) हैं। अन्य उच्च अधिकारी मार्क तुरीन (Mark Turin) और जेरोएन विएडेनहॉफ़ (Jeroen Wiedenhof) हैं। परियोजना के अन्तरगत स्नात्क क्षत्रों को भर्ती किया जाता है ताकि कम जानी-पहचानी भाषाओं को पी०एच० डी के शोध का विषय बनाया जा सके।
हिमालयाई भाषा परियोजना को भूटान सरकार द्वारा अधिकृत किया गया था ताकि जोंगखा भाषा के लिए एक रोमन लिपि का मानक तय्यार किया जा सके।
भाषाएँ जिनपर काम किया गया है
[संपादित करें]परियोजना द्वारा अध्ययन की गई भाषाओं के बारे में माना गया है कि कई भाषाएँ अगले कुछ वर्षों या दशकों में विलुप्त होने की कगार पर थे यदि इस परियोजना के प्रयास से उन्हें अगली पीढ़ी तक बचाया नहीं जाता।
परियोजना के अंतरगत विस्तृत रूप से भाषाओं के व्याकरण का अध्ययन किया गया
[संपादित करें]परियोजना के अंतरगत विस्तृत रूप से भाषाओं के व्याकरण का अध्ययन किया जा रहा है
[संपादित करें]परियोजना के अंतरगत इन भाषाओं के व्याकरण की रूप-रेखा खींची गई है
[संपादित करें]परियोजना के अंतरगत जिन भाषाओं पर वर्तमान में काम किया जा रहा है
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परियोजना के अंतरगत कुसुन्दा भाषा के विलुप्त होने को पढा गया था जिसके अंतिम बोलने वाले जंगल में रहकर शिकार किया करते थे। यह लोग अपनी भाषा को भुलाकर विशाल समाज का हिस्सा बन गए।
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- हिमालयाई भाषा परियोजना आधिकारिक जालस्थल
- The Kirat Rai Association's Web Portal