हरित क्रांति
हरित क्रांति, जिसे तीसरी कृषि क्रांति के रूप में भी जाना जाता है, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की पहल की अवधि थी जिसने फसल की पैदावार और कृषि उत्पादन में बहुत वृद्धि देखी।[1][2] कृषि में ये परिवर्तन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विकसित देशों में शुरू हुए और 1980 के दशक के अंत तक विश्व स्तर पर फैल गए।
हरित क्रांति का पारिभाषिक शब्द के रूप में सर्वप्रथम प्रयोग १९६८ ई. में पूर्व संयुक्त राज्य अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी (USAID) के निदेशक विलियम गौड द्वारा किया गया जिन्होंने इस नई तकनीक के प्रभाव को चिन्हित किया।
भारत के हरित क्रांति के जनक एम॰ के॰ स्वामीनाथन हैं। ऐसी दिशा में उठाए गए कुछ महत्वपूर्ण कदमों ने सूखा, बाढ़, चक्रवात, आग, तथा बीमारी के लिए फसल बीमा के प्रावधान और किसानों को कम दर पर सुविधाएं प्रदान करने के लिए ग्रामीण बैंक, सहकारी समितियों और बैंकों की स्थापना सम्मिलित थे। किसानों के लाभ के लिए भारत सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड और दुर्घटना बीमा योजना (पीएआईएस) भी शुरू की।
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ Kapūra, Sudarśanakumāra (1974). Bhāratīya krshi-arthavyavasthā - Economics of agricultural development in India. अभिगमन तिथि 21 फरवरी 2021.
- ↑ "बढ़ती आबादी के अनाज की ज़रूरतें कैसे पूरी करेंगे हम - दुनिया जहान". BBC. 2023-03-11.
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