स्मार्त सूत्र
स्मार्तसूत्र या गृह्यसूत्र, सूत्र-ग्रन्थ हैं। प्रसिद्ध गृह्यसूत्र ये हैं- शांखायन गृह्यसूत्र, कौशीतकि गृह्यसूत्र, आश्वलायन गृह्यसूत्र, पारस्कर गृह्यसूत्र, बौधायान गृह्यसूत्र, मानव गृह्यसूत्र, भारद्वाज गृह्यसूत्र, आपस्तम्ब गृह्यसूत्र, हिरण्यकेशि गृह्यसूत्र, वाराह गृह्यसूत्र, काठक गृह्यसूत्र, लौगक्षि गृह्यसूत्र, गोभिल गृह्यसूत्र, द्राह्यायण गृह्यसूत्र, जैमिनि गृह्यसूत्र, कौथुम गृह्यसूत्र, खादिर गृह्यसूत्र, कोशिका गृह्यसूत्र आदि।
परिचय
[संपादित करें]प्राचीन वैदिक साहित्य की विशाल परंपरा में अंतिम कड़ी सूत्रग्रंथ हैं। यह सूत्र-साहित्य तीन प्रकार का है: श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र तथा धर्मसूत्र।
वेद द्वारा प्रतिपादित विषयों को स्मरण कर उन्हीं के आधार पर आचार-विचार को प्रकाशित करनेवाली शब्दराशि को "स्मृति" कहते हैं। स्मृति से विहित कर्म स्मार्त कर्म हैं। इन कर्मों की समस्त विधियाँ स्मार्त सूत्रों से नियंत्रित हैं। स्मार्त सूत्र का नामान्तर गृह्यसूत्र है। अतीत में वेद की अनेक शाखाएँ थीं। प्रत्येक शाखा के निमित्त गृह्यसूत्र भी होंगे। वर्तमानकाल में जो गृह्यसूत्र उपलब्ध हैं वे अपनी शाखा के कर्मकांड को प्रतिपादित करते हैं। अधिकांश प्रमुख सूत्रग्रंथों की रचना 4000 वर्ष पूर्व के समकालिक युग में हुई जान पड़ती है, विद्वानों ने उनके पूर्ण विकास का समय 4500 वर्ष पूर्व माना है।
शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष - ये छह वेदांग हैं। गृह्यसूत्र की गणना कल्पसूत्र में की गई है। अन्य पाँच वेदांगों के द्वारा स्मार्त कर्म की प्रक्रियाएँ नहीं जानी जा सकतीं। उन्हीं प्रक्रियाओं एवं विधियों को व्यवस्थित रूप से प्रकाशित करने के निमित्त आचार्यों एवं ऋषियों ने स्मार्त सूत्रों की रचना की है। इन स्मार्त सूत्रों के द्वारा सप्तपाकसंस्था एवं समस्त संस्कारों के विधान तथा नियमों का विस्तार के साथ विवेचन किया गया है।
सामान्यत: गृह्यकर्मों के दो विभाग होते हैं। प्रथम सप्तपाकसंस्था और द्वितीय संस्कार। त्रेताग्नि पर अनुष्ठेय कर्मों से अतिरिक्त कर्म 'स्मार्त कर्म' कहे जाते हैं। इन स्मार्त कर्मों में सप्तपाकसंस्थाओं का अनुष्ठान स्मार्त अग्नि पर विहित है। इनको वही व्यक्ति संपादित कर सकता है जिसने गृह्यसूत्र द्वारा प्रतिपादित विधान के अनुसार स्मार्त अग्नि का परिग्रहण किया हो। स्मार्त अग्नि का विधान विवाह के समय अथवा पैतृक संपत्ति के विभाजन के समय हो सकता है। औपासन, गृह्य अथवा आवसथ्य, ये स्मार्त अग्नि के नामांतर हैं। याग की इक्कीस संस्थाओं में पहली सात पाकसंस्था के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं : औपासन होम, वैश्वदैव, पार्वण, अष्टका, मासिश्राद्ध, श्रवणाकर्म और शूलगव। एक बार इस अग्नि का परिग्रह कर लेने पर जीवनपर्यत उसकी उपासना एवं संरक्षण करना अनिवार्य है। इस प्रकार से उपासना करते हुए जब उपासक की मृत्यु होती है, तब उसी अग्नि से उसका दाह संस्कार होता है। उसके अनंतर उस अग्नि का विसर्जन हो जाता है।
गर्भाधान प्रभृति संस्कार के निमित्त विहित समय तथा शुभ मुहूर्त का होना आवश्यक है। संस्कार के समय अग्नि का साक्ष्य परमावश्यक है। उसी अग्नि पर हवन किया जाता है। अग्नि और देवताओं की विविध स्तुतियाँ और प्रार्थनाएँ होती हैं। देवताओं का आह्वान तथा पूजन होता है। संस्कार्य व्यक्ति का अभिषेक होता है। उसकी भलाई के लिए अनेक आर्शीर्वाद दिए जाते हैं। कौटुंबिक सहभोज, जातिभोज और ब्रह्मभोज प्रभृति मांगलिक विधान के साथ कर्म की समाप्ति होती है। समस्त गृह्यसूत्रों के संस्कार एवं उनके क्रम में एकरूपता नहीं है।
प्रमुख गृह्यसूत्र
[संपादित करें]विभिन्न शाखाओं के गृह्यसूत्रों का प्रकाशन अनेक स्थानों से हुआ है। "शांखायनगृह्यसूत्र" ऋग्वेद की शांखायन शाखा से संबद्ध है। इस शाखा का प्रचार गुजरात में अधिक है। कौशीतकि गृह्यसूत्र का भी ऋग्वेद से संबंध है। शांखायनगृह्यसूत्र से इसका शब्दगत अर्थगत पूर्णत: साम्य है। इसका प्रकाशन मद्रास युनिवर्सिटी संस्कृत ग्रंथमाला से 1944 ई. में हुआ है। आश्वलायन गृह्यसूत्र ऋग्वेद की आश्वलायन शाखा से संबंद्ध है। यह गुजरात तथा महाराष्ट्र में प्रचलित है।
पारस्करगृह्यसूत्र शुक्ल यजुर्वेद का एकमात्र गृह्यसूत्र है। यह गुजराती मुद्रणालय (मुंबई) से प्रकाशित है।
यहाँ से लौगाक्षिगृह्यसूत्र तक समस्त गृह्यसूत्र कृष्ण यजुर्वेद की विभिन्न शाखाओं से संबंद्ध हैं। बौधायान गृह्यसूत्र के अंत में गृह्यपरिभाषा, गृह्यशेषसूत्र और पितृमेध सूत्र हैं। मानव गृह्यसूत्र पर अष्टावक्र का भाष्य है। भारद्वाजगृह्यसूत्र के विभाजक प्रश्न हैं। वैखानसस्मार्त सूत्र के विभाजक प्रश्न की संख्या दस हैं। आपस्तंब गृह्यसूत्र के विभाजक आठ पटल हैं। हिरण्यकेशिगृह्यसूत्र के विभाजक दो प्रश्न हैं। वाराहगृह्यसूत्र मैत्रायणी शाखा से संबंद्ध हैं। इसमें एक खंड है। काठकगृह्यसूत्र चरक शाखा से संबंद्ध है। लौगक्षिगृह्यसूत्र पर देवपाल का भाष्य है।
गोभिलगृह्यसूत्र सामवेद की कौथुम शाखा से संबद्ध है। इसपर भट्टनारायण का भाष्य है। इसमें चार प्रपाठक हैं। प्रथम में नौ और शेष में दस दस कंडिकाएँ हैं। कलकत्ता संस्कृत सिरीज़ से 1936 ई. में प्रकाशित हैं। द्राह्यायणगृह्यसूत्र, जैमिनिगृह्यसूत्र और कौथुम गृह्यसूत्र सामवेद से संबद्ध है। खादिरगृह्यसूत्र भी सामवेद से संबद्ध गृह्यसूत्र है।
कोशिकागृह्यसूत्र का संबंध अथर्ववेद से है। ये सब गृह्यसूत्र विभिन्न स्थलों से प्रकाशित हैं।
वर्ण्य विषय
[संपादित करें]श्रौतसूत्रों के वर्ण्य विषय यज्ञों के विधि-विधान और धार्मिक प्रक्रियाओं से संबंधित हैं। साधारण समाज के लिए उनका विशेष महत्त्व न था। गृह्यसूत्रों और धर्मसूत्रों की रचना का उद्देश्य सामाजिक, पारिवारिक, राजनीतिक और विधि संबंधी नियमों का निरूपण है। तत्संबंधी प्राचीन भारतीय अवस्थाओं की जानकारी में उनका बहुत बड़ा ऐतिहासिक मूल्य है। गृह्यसूत्रों में मुख्य हैं: कात्यायन, आपस्तंब, बौधायन, गोभिल, खादिर और शांखायन। इनके अलग अलग सिद्धांत संप्रदाय थे परंतु कभी-कभी उन सबमें वर्णित नियम समान हैं। संभव हैं, उनके भेद स्थानीय और भौगोलिक कारणों से रहे हों और इस दृष्टि उन्हें समसामयिक भारत के अन्यान्य प्रदेशों का प्रतिनिधि माना जा सकता है। गृह्यसूत्र श्रौत (अपौरूषेय अथवा ब्रह्म) नहीं माने जाते बल्कि स्मार्त समझे जाते हैं और वे पारिवारिक तथा सामाजिक नियमों की परंपरा को व्यक्त करते हैं। गृह्य सूत्रों में पारिवारिक जीवन से संबंधित संस्कारों का विवेचन है और वे कैसे किए जाने चाहिए, इसके पूर्ण विधि विधान दिए गए हैं। गर्भाधान से आरंभ कर अंत्येष्टि तक सोलह संस्कारों का विधान गृह्यसूत्रों के युग से ही अपने पूर्ण विकसित रूप में भारतीय जीवन का अंग बन गया तथा उन संस्कारों की धार्मिक और दार्शनिक भावनाओं का विकास हुआ। आज भी ये संस्कार, जिनमें मुख्य जातकर्म उपनयन, विवाह और अंत्येष्टि (श्राद्धसहित) माने जा सकते हैं, हिंदू जीवन में बड़ा स्थान रखते हैं। पर इन संस्कार व्यवस्थाओं के साथ ही गृह्यसूत्रों में कभी अंधविश्वासों को भी शामिल कर लिया गया है। गृहस्थ जीवन से संबंधित कुछ अन्य धार्मिक कर्तव्यों की भी उनमें चर्चा है।
स्मार्त सम्प्रदाय
[संपादित करें]मोटे तौर पर ऐेसे व्यक्ति जो वेद-पुराणों के पाठक, आस्तिक, पंचदेवों (गणेश, विष्णु, शिव, सूर्य व दुर्गा) के उपासक और गृहस्थ धर्म का पालन करने वाले होते हैं, उन्हें स्मार्त कहते हैं। स्मार्त, श्रुति और स्मृति में विश्वास रखता है। 'स्मार्त ब्राह्मण', स्मृति-ग्रन्थों का विशेष अध्ययन करते हैं। ये स्रौत-ब्राह्मणों से अलग हैं जो श्रुतियों का विशेष रूप से अध्ययन करते हैं।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- Adi Sankaracharya and Advaita Vedanta Library
- Advaita Vedanta Homepage
- Jagadguru Mahasamsthanam, Sringeri Sharada Peetam
- Shankara Sampradayam
- Hinduism Today - Description of Smartism among the four major divisions of Hinduism.
- Overview of the three major divisions, from the book, Hindu Dharma, Saivism, Shaktism, Vaishnavism, and the three other schools devoted to Ganesh, Skanda and Surya.
- Six schools of smarta hinduism
- Oneness of God from Kanchi Kamakoti Peetham
- Description of smarta tradition.