सौजन्य

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सौजन्य एक वैयक्तिक गुण है जो किसी व्यक्ति के नैतिक चरित्र का भाग हो सकता है। इसमें दयालुता, विचारशीलता और मिलनसारिता शामिल है। [1]

अरस्तु ने इसे एक तकनीकी अर्थ में उस गुण के रूप में उपयोग किया जो क्रोध के सम्बन्ध में मध्य पर हमला करता है: शीघ्र क्रोध करना एक दोष है, लेकिन ऐसी स्थिति में पृथक् रहना भी एक दोष है जहां क्रोध उचित है; न्याय्य एवं उचित रूप से केन्द्रित क्रोध का नाम सौम्यता या सौजन्य है। [2]

सौजन्य का एक और ऐतिहासिक सन्दर्भ मध्ययुग में उभरा, जो उच्च सामाजिक वर्ग से जुड़ा था। यह सज्जन, सज्जना और भद्रवर्ग जैसे शब्दों में परिलक्षित होता है। समय के साथ, सौजन्य व्यवहार की अवधारणा शाब्दिक भद्रवर्ग से रूपक "सज्जन जैसा" तक विकसित हुई, जो किसी पर भी लागू होती है। [3]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Gentleness". www.thefreedictionary.com.
  2. Garrett, Jan (2005-11-28). "Virtue Ethics: A Basic Introductory Essay".
  3. Lewis, C.S. (2001). Mere Christianity. San Francisco: Harper. पपृ॰ xiii. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0060652920.