सागर झील (लाखा बंजारा झील)
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इतिहास
[संपादित करें]सागर के बारे में यह मान्यता है कि इसका नाम सागर इसलिए पड़ा क्योंकि यह एक विशाल झील के किनारे स्थित है। इसे आमतौर पर सागर झील या कुछ प्रचलित किंवदंतियों के कारण लाखा बंजारा झील भी कहा जाता है। सागर नगर इस झील के उत्तरी, पश्विमी और पूर्वी किनारों पर बसा है। दक्षिण में पथरिया पहाड़ी है, जहां विश्वविद्यालय परिसर है। इसके उत्तर-पश्चिम में सागर का किला है। नगर की स्थिति और रचना पर इस झील का बहुत प्रभाव है। लंबे समय तक झील नगर के पेयजल का स्रोत्र रही लेकिन अब प्रदूषण के कारण इसका पानी इस्तेमाल नहीं किया जाता।
झील की उत्पत्ति
[संपादित करें]सागर झील की उत्पत्ति के बारे में वैसे तो कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। इनमें सबसे मशहूर कहानी लाखा बंजारा के बहू-बेटे के बलिदान के बारे में है। जानकारों का मानना है कि यह प्राकृतिक तरीके से बना एक सरोवर हो सकता है, जिसे बाद में किसी राजा या समुदाय ने जनता के लिए अधिक उपयोगी बनवाने के उद्देश्य से खुदवा कर विशाल झील का स्वरूप दे दिया होगा। लेकिन यह केवल अनुमान है क्योंकि इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। ऊदनशाह ने जब 1660 में यहां छोटा किला बनवाकर पहली बस्ती यानि परकोटा गांव बसाया, तो तालाब पहले से ही मौजूद था। यह भी किवदंती है की लाखा बंजारा ने इस झील के लियेअपने बहू और बेटे का बलिदान दे दिया था
आधिकारिक मत
[संपादित करें]झील के संबंध में डॉ॰ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के जियॉलजिस्ट स्वर्गीय डॉ॰ डब्लू. डी. वेस्ट का मत था कि जब उपरिस्थ ट्रप के हट जाने के कारण विंध्य दृश्यांश (आउट क्राप) जो अंशत: झील को घेरे हुए हैं, अनावृत्त हो गए, तब इस झील का प्रादुर्भाव हुआ, क्योंकि अधिक प्रतिरोधी विंध्य क्वार्टजाइट दक्षिण से उत्तर की ओर के जलप्रवाह पर बांध का काम करता है। बाद में पश्चिम की ओर का जलप्रवाह रोकने के लिए एक छोटे से बांध का निर्माण भी किया गया।
ऐतिहासिक तथ्य
[संपादित करें]वर्तमान स्थिति
[संपादित करें]पूर्व में इस झील का क्षेत्रफल कितना था इसके बारे में भी कोई विश्वसनीय जानकारी मौजूद नहीं है लेकिन सरकारी अभिलेखों में करीब चार दशक पूर्व इसे लगभग 1 वर्गमील क्षेत्र में फैला बताया गया है। वर्तमान में शहर के विस्तार और नगरवासियों में अपनी विरासत को सहेजने के प्रति चेतना की कमी के चलते झील के चारों ओर भीषण प्रदूषण तथा अतिक्रमण का बोलबाला है, जिसके चलते यह ऐतिहासिक झील तिल-तिल कर मर रही है।
आशा की किरण
[संपादित करें]केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय झील संरक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत सागर झील को प्रदूषण मुक्त करने और इसके संरक्षण के लिए २२ करोड़ रुपए की योजना को मंजूरी दी है। इस योजना के तहत बड़े पैमाने पर झील के जीर्णोद्धार का काम करने की योजना बनाई गई है। हालांकि इस काम में काफी अवरोध भी आ रहे हैं लेकिन सागरवासियों को उम्मीद है कि अंतत: योजना पर काम हो सकेगा और यह ऐतिहासिक झील पुन: जीवित हो सकेगी। इस काम में सागरवासियों को भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर अपना योगदान देना होगा। यह सागर को ही सुनिश्चित करना है कि इस योजना का भी वही हश्र ना हो, जो पूर्व की अन्य योजनाओं का हो चुका है।