सफ़ेद बौना

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तुलनात्मक तस्वीर: हमारा सूर्य (दाएँ तरफ़) और पर्णिन अश्व तारामंडल में स्थित द्वितारा "आई॰के॰ पॅगासाई" के दो तारे - "आई॰के॰ पॅगासाई ए" (बाएँ तरफ़) और श्वेत बौना "आई॰के॰ पॅगासाई बी" (नीचे का छोटा-सा बिंदु)। इस श्वेत बौने का सतही तापमान ३,५०० कैल्विन है।

खगोलशास्त्र में श्वेत बौना या व्हाइट ड्वार्फ़ एक छोटे तारे को बोला जाता है जो "अपकृष्ट इलेक्ट्रॉन पदार्थ" का बना हो। "अपकृष्ट इलेक्ट्रॉन पदार्थ" या "ऍलॅक्ट्रॉन डिजॅनरेट मैटर" में इलेक्ट्रॉन अपने परमाणुओं से अलग होकर एक गैस की तरह फैल जाते हैं और नाभिक (न्युक्लिअस, परमाणुओं के घना केंद्रीय हिस्से) उसमें तैरते हैं। श्वेत बौने बहुत घने होते हैं - वे पृथ्वी के जितने छोटे आकार में सूर्य के जितना द्रव्यमान (मास) रख सकते हैं।

माना जाता है के जिन तारों में इतना द्रव्यमान नहीं होता के वे आगे चलकर अपना इंधन ख़त्म हो जाने पर न्यूट्रॉन तारा बन सकें, वे सारे श्वेत बौने बन जाते हैं। इस नज़रिए से आकाशगंगा (हमारी गैलेक्सी) के ९७% तारों के भाग्य में श्वेत बौना बन जाना ही लिखा है। श्वेत बौनों की रौशनी बड़ी मध्यम होती है। वक़्त के साथ-साथ श्वेत बौने ठन्डे पड़ते जाते हैं और वैज्ञानिकों की सोच है के अरबों साल में अंत में जाकर वे बिना किसी रौशनी और गरमी वाले काले बौने बन जाते हैं। क्योंकि हमारा ब्रह्माण्ड केवल १३.७ अरब वर्ष पुराना है इसलिए अभी इतना समय ही नहीं गुज़रा के कोई भी श्वेत बौना पूरी तरह ठंडा पड़कर काला बौना बन सके। इस वजह से आज तक खगोलशास्त्रियों को कभी भी कोई काला बौना नहीं मिला है।[1]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Henry, T. J. (1 January 2009). "The One Hundred Nearest Star Systems". Research Consortium On Nearby Stars. मूल से 12 नवंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 July 2010.