सदस्य वार्ता:Vinay Kumar kusheshwar asthan

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बिहार में बाढ़ की समस्या का स्थाई समाधान होना चाहिए बिहार में बाढ़ के कारण प्रतिवर्ष करोड़ों के अपार जान माल की क्षति होती है ! दरभंगा मधुबनी समस्तीपुर मुजफ्फरपुर सीतामढ़ी सहरसा मधेपुरा पूर्णिया अररिया खगड़िया बेगूसराय मुंगेर जमालपुर संपूर्ण उत्तर बिहार बर्षो से प्रतिवर्ष बाढ़ की भयंकर विनाशलीला झेल रही है !करोड़ों के जान माल माल मवेशियों फसलो की क्षति हो रही है ! वर्षो से लंबित दर्जीया -फुहिया बांध का निर्माण अभी तक पूरा नहीं हो पाया है ! नेपाल में भारी बारिश के कारण और नेपाल द्वारा पानी छोड़ने के कारण प्रतिवर्ष भयंकर तांडव लीला संपूर्ण बिहार झेल रही है !बाढ की विनाशलीला में प्रतिवर्ष सैकड़ों लोगों की मौतें होती है ! अन्नदाता किसानों की फ़सलें पूरी तरह बर्वाद होती है ! बाढ की मार ने किसान को भिखारी बना दिया है ! बाढ के बाद वही किसान सरकार से मुआवज़ा बाढ राहत के लिए दरबदर भटकते है ! काफ़ी मसक्त के बाद ख़ैरात मिलता है ! और मजबूर किसान ग़रीबी भूखमरी का जीवन जीने को मजबूर है ! किसान की हालत बाढ की मार ने लाचार कर दिया है ! दरभंगा ज़िला में प्रसिद्ध तीर्थस्थल कुशेश्वरस्थान में बाढ के बाद भी सालों भर जलजमाव होता है ! और उसका निदान नहीं किया गया ! कई सारे बिंदुओं पर राजनीतिक और राजनीतिक नेताओं पर जनता का सवाल उठना भी लाजमी है !उत्तर बिहार के कई जिलों से देश स्तर के बड़े प्रभावशाली नेता जनप्रतिनिधि बने है ! इन बड़े प्रभावशाली राजनितिक हस्तियों ने कभी भी बिहार को बाढ की समस्या से निजात दिलाने की दिल से कोई कोशिश ही नहीं किया है ! केवल दिखावे की राजनिति हुई है ! प्रतिवर्ष सरकार भी बाढ राहत ख़ैरात के नाम पर करोड़ों रूपये देती है ! लेकिन बाढ की समस्या का स्थायी समाधान नहीं कर रही है ! उत्तर बिहार की जनता बाढ के कारण त्राहिमाम कर रही है ! अप्रैल का महीना चल रहा है ! दो महीनों में बिहार को फिर से बाढ की विभिसिका झेलनी है ! अभी तक ग्राउंड पर आपदा विभाग की पूरी तैयारी नहीं है ! क्योंकि सब जानते है बाढ की विभीषिका की मार प्रदेश को झेलना ही परेगा ! पूर्व में रोसड़ा लोकसभा और वर्तमान में समस्तीपुर लोकसभा इन दोनों क्षेत्रों से भी बड़े राजनीतिक हस्ती राजनीतिक राष्ट्रीय स्तर के नेता लोकसभा में गए लेकिन किसी का भी ध्यान बिहार में बाढ़ का स्थाई समाधान पर नहीं हुआ ! पूर्व में सिंधिया विधानसभा और अब कुशेश्वरस्थान विधानसभा से भी विधायक प्रतिनिधि बन कर विधानसभा में गए हैं लेकिन बाढ़ के स्थाई समाधान पर कोई बात नहीं किया ! जनता का सवाल है उन राजनैतिक नेताओं से ? क्या सिर्फ सड़क बना देना ही विकास है ? इक्कीसवीं सदी में बिजली का तार पहुंचा देना ही विकास है ? क्या बुनियादी जरूरत को ही विकास कहते हैं ? आज 21वीं सदी में चांद पर अंतरिक्ष में जाने की बात होनी चाहिए थी और हम बात कर रहे हैं सड़क की ! क्या इसी को विकास कहते हैं ! बहुत दुख होता है इस बात को सुनकर ! राजनीतिक और राजनीतिज्ञ ठेकेदार पर तो सवाल तो उठेंगे ही ! बिहार में बाढ़ की समस्या का समाधान हो जाएगा तो किसान गरीब मजदूरों का भला होगा !बिहार खुशहाल हो जाएगा किसान समृद्ध हो जाएगा !राज्य समृद्ध हो जाएगा तो देश विकास होगा ! इसिलिए बिहार में बाढ की समस्या का स्थाई समाधान होना चाहिए! -- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 12:32, 5 फ़रवरी 2018 (UTC)[उत्तर दें]

नमस्कार! यह पृष्ट आपसे वार्ता के लिये है। आपका कहना जायज़ है मगर मैं/हम आपकी किस प्रकार सहायता कर सकते हैं? और हाँ, हिन्दी विकिपीडिया पर आपका स्वागत है।--Navinsingh133 (वार्ता) 20:40, 12 मई 2018 (UTC)[उत्तर दें]

बिहार में छात्र राजनिति का गौरवशाली इतिहास !


बिहार में छात्र राजनीति का गौरवशाली इतिहास बिहार की छात्र राजनीति का गौरवशाली अतीत रहा है! लेकिन मौजूदा दौर के छात्र संगठनों की पहचान सियासी दलों की अनुषंगी इकाई से ज्यादा कुछ नहीं है! बिहार के भविष्य के लिए सुखद है कि बिहार के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने छात्र संघों की आंदोलनकारी भूमिका को बात करने की पहल किया !पढ़ाई के दौरान राज्यपाल सतपाल मलिक छात्र राजनीति मे अति सक्रिय रह चुके है ! सतपाल मलिक जब राज्यपाल बन कर बिहार आए तो उन्हें यह जानकर बड़ी हैरत हुई कि यहाँ छात्र की राजनिति दयनीय दौर से गुजर रही है ! उन्होंने फौरन ही सभी विश्वविद्यालय में नियमित रूप से छात्र संघ चुनाव कराने की फरमान जारी किया! क्योंकि उन्हें पता है कि बिहार के छात्रों ने आजादी के लिए कितनी बड़ी कुर्बानियां दी है !आजादी के बाद देश प्रदेश की तरक्की और समाज के नव निर्माण में बिहारी छात्रों की भूमिका रही है ! सियासी सुचिता और सुसासन के उदाहरण तो ख़ुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार है ! छात्र राजनीति से निकले लालू प्रसाद , सुशील कुमार मोदी और रविशंकर प्रसाद जैसे बड़े कद-पद वाले नेताओं की चर्चा आज भी देशभर में होती है! आज़ादी के पहले के क्रांतिकारी आंदोलनों में बिहारी छात्रों की सक्रिय भागीदारी थी !बडे नेताओं की भूमिका नेत्तृव देने तक सीमित थी! सफलता की इबारत युवाओ ने ही लिखी थी ! डॉ राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में 1906 में बिहारी स्टूडेंट्स सेंट्रल एसोसिएशन की स्थापना हुई थी ! इसका विस्तार बनारस से कोलकाता तक था! 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की कहानी बिहार के बिना पूरी नहीं हो सकती ! 11 अगस्त 1947 को विधानसभा सचिवालय पर तिरंगा फहराने की कोशिश में 7 छात्रों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी! आजादी के बाद भी देश में जो बड़े आंदोलन हुए ,उनमें छात्रों की निर्णायक भूमिका रही ! 1974 में इंदिरा गांधी के खिलाफ और आपातकाल हो या बोफोर्स घोटाले के बाद वी•पी•सिंह के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में भी छात्रों की ही अहम भूमिका रही! पटना विश्वविद्यालय छात्र राजनीति की नर्सरी रही है ! 1967 में पटना विश्वविघालय में डायरेक्ट चुनाव हुए तो राम जतन सिन्हा अघ्यक्ष और नरेन्द्र सिंह उपाघ्यक्ष निर्वाचित हुए थे ! 1970 में राम जतन सिन्हा फिर अघ्यक्ष के पद पर निर्वाचित हुए और छात्र राजनिति में लालू प्रसाद का पहली वार प्रवेश हुआ और वह महासचिव बनाए गए थे ! इसके तीन साल बाद 1973 के चुनाव में अघ्यक्ष पद के लिए नरेन्द सिंह और लालूप्रसाद में मुकावला हुआ ! लालू प्रसाद अघ्यक्ष बने और सुशील मोदी महासचिव संयुक्त सचिव रविशंकर प्रसाद बने थे ! 18 मार्च 1974 को महंगाई भ्रष्टाचार और शिक्षा में अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर बिहार विघानसभा का घेराव हुआ और पूरे प्रदेश से करीब एक लाख छात्रों ने पटना में डेरा डाल रखा था ! लालू प्रसाद नीतीश कुमार शुशील मोदी नरेन्द सिंह राजतन सिन्हा आदि छात्र नेता नेतृत्व कर रहे थे ! बिहार की छात्र राजनिति पर 1977 में पहली बार विघार्थी परिषद का कब्जा हुआ और अश्वनी कुमार चौबे अघ्यक्ष चुने गए और राजाराम पाण्डेय उपाघ्यक्ष बने थे ! खास बात यह थी की पहली बार वाम छात्र संगठनों ने कडी टक्कर दी थी , और ती पदों पर जीत भी दर्ज की ! 1980 में पहली बार सभी विश्वविघालयों चुनाव कराए गए पटना विश्वविधालय में अनिल कुमार शर्मा मगघ में बबन सिंह यादव अघ्यक्ष योगेन्द्र सिन्हा महासचिव बने ! तो भागलपुर में नरेश यादव विहार विश्वविधालय में हरेन्द्र कुमार मिथिला विश्वविधालय में वैधनाथ चौघरी अघ्यक्ष निर्वाचित हुए ! इसी दौरान छात्र संघ चुनाव की नियमावली तैयार करने के लिए माधुरी शाह आयोग का गठन किया गया , जिसने कई शर्तें लगाकर छात्र राजनिति को नियमों में बाँध दिया ! और उम्र सीमा तय कर दी गयी ! और 1982 में नई नियमावली के आधार पर ही चुनाव हुआ ! अब इस बार काफ़ी बर्षो बाद 2018 में बिहार के सभी विश्वविधालयों कालेजों में नई नियमावली पर चुनाव हुए है ! मुद्दे और आदर्श ग़ायब हो गए है ! पहले विधार्थियों को सहुलियतें परेशानी आदि मुद्दे होते थे किन्तु अब छात्रों की सियासत को राजनितिक दल तय करने लगे है !


बाबा कुशेश्वर नाथ धाम को मिले अन्तराष्ट्रीय पर्यटन स्थल का दर्ज़ा !


बाबा कुशेश्वर नाथ धाम को मिले अन्तरराष्ट्रीय प्रयटर्न स्थल का दर्जा !! प्रषिद ऐतिहासिक पौराणिक बाबा भोले नाथ (शिव मंदिर )की नगरी बाबा कुशेश्वर नाथ धाम प्रषिद्घ स्थल कुशेश्वर स्थान को अंतर्राष्टीय पर्यटन स्थल घोषित किये जाने की आवश्यकता है ! इतनी भव्य और प्राचीन एतिहासिक शिव मंदिर होने के बाद भी अंतर्राष्टीय पर्यटन स्थल घोषित नहीँ किए जाने से इलाके की जनता में आक्रोश है ! बाबा कुशेश्वर नाथ धाम में प्रतिदिन हजारों लाखो की संख्या में श्रधालुओं द्वारा जलाभिषेक करते है ! रविवार के दिन लाखो की भीड़ होती है ! परोसी देश नेपाल से भी भारी संख्या में श्रधालुओं की भीड़ आती हैऔर जलाभिषेक करते है ! रामायण पुराण में कुश द्वारा स्थापित इस शिव मंदिर का ऊल्लेख है ! बाबा वैधनाथ धाम मंदिर जोकि देवघर झारखंड में है के बाद बाबा कुशेश्वर नाथ धाम शिव मंदिर का उतना ही महत्त्व है ! यानी जितनी मान्यता श्रद्धालु बाबा बैधनाथ धाम को देते है उतनी ही मान्यता बाबा कुशेश्वर नाथ धाम का है ! कुशेश्वर स्थान को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने से इस इलाके में विभिन प्रकार से रोजगार के अवसर पैदा होंगे ! साथ ही सरकार को काफी राजस्व मिलेगा और बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा !साथ ही इलाके का सर्वांगीण विकाश होगा ! अभी यह क्षेत्र काफी पिछड़ा इलाका है चारों ओर बाढ़ की पानी से घिरा रहता है !विदेशों से साइबेरियन चिड़ियाँ जल विहार करने आती है ! चिडियों की चहचहाने की आवाज़ और सुन्दर मनोरम दृश्य देखने लोग आते है ! लेकिन बेरोज़गारी की मार और रोज़ी रोटी की तलाश में दिल्ली मुम्बई अन्य राज्यों की शहरों में युवाओं का पलायन हो रहा है ! इस इलाक़े के बुद्दिजिबीयो ,पत्रकारो ,द्वारा कई वार कई प्रकार से सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया गया है ,लेकिन अभी तक कोई करवाई नहीँ हुई है ! मैने स्वयं कई वार माननीय मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखा है लेकिन अभी तक सरकार द्वारा सकारात्मकता क़दम नहीँ उठाया गया है ! अब इस सम्बंध में जल्दी ही माननीय प्रधानमंत्री जी से मुलाकात कर पत्र भी दूँगा ! और माँग करूँगा कि खुद पहल कर कुशेश्वर स्थान को अंतराष्ट्रीय पर्यटन स्थल का दर्जा दिलाने हेतु कार्रवाई हो  ! आप सभी माननीय पत्रकार बंघुओ ,बुद्दीजीवीयों ,समाजसेवी और राजनितीक प्रतिनिधियों से भी आग्रह करता हूँ आइये हम सब मिलकर कुशेश्वर स्थान का सर्वांगीण विकाश करने हेतु कुशेश्वर स्थान को अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल घोषित करवाने का काम करें !


देश में प्रश्रय एवं बाल सुधार गृहों की दशा अत्यंत शोचनीय है!और कुप्रबंधन के शिकार हैं!


देश में प्रश्रय एवं बाल सुधार गृहों की दशा अत्यंत शोचनीय है ! जो कुप्रबंधन के शिकार हैं ,तथा वहां रहने वाली मासूम व निराश्रित जिंदगियां हर प्रकार की यातनाये सहने को लाचार हैं! सरकार का दखल अब आवश्यक है! यह भी एक कटु सत्य है कि बालिका आश्रयणी में जितनी अधिक बालिकायें होंगी उतनी ही अधिक कमाई करते है निर्लज्ज बेशर्मी ! कितने शर्म की बात है एक गिरोह बालिकाओं को सपने दिखाकर घर से भगाता है और दूसरा गिरोह फंसा कर आश्रयणी भिजवाता है ! इस तरह मिलजुल कर लाचार बालिकाओं के माध्यम से इस धंधा से जुड़े लोग मजे कर रहे हैं ! इन्सानियत शर्मशार हो रहा है ! शर्म करो शर्म करो निर्लज्जों अब तो शर्म करो !


मताधिकार आपका अधिकार ! क्षेत्र का विकास देश का विकास हेतु मतदान अवश्य करें


हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है जहां प्रत्येक वयस्क नागरिक को मत देने का अर्थात् योग्य उम्मीदवार का चुनाव करने का अधिकार प्राप्त है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में चुनाव के समय मतदान का प्रतिशत काफी कम हुआ।जो निश्चित रूप से चिंता का विषय है।मगर इसके कारणों पर गौर करें तो पाएंगे कि वर्तमान राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली के प्रति असंतोष तो कहीं आलस के कारण लोग मतदान नहीं करते। जो चुनाव परिणाम को प्रभावित करती है। जबकि देश का जागरूक नागरिक होने के नाते हम सभी का ये कर्तव्य है कि अपने मताधिकार का प्रयोग करें। इसके लिए मतदान को अनिवार्य करने पर विचार किया जा रहा है। जो कि सर्वथा उचित है, क्योंकि जब हर नागरिक अपना मत देगा तो निश्चित रूप से देश को अच्छे योग्य और कर्मठ नेता मिलेंगे जो क्षेत्र के विकास,राष्ट्र के विकास और लोककल्याण हेतु सदैव तत्पर होंगे।और निकम्मे आलसी मौक़ापरस्त मुंहचोर बेईमान घोखेबाज जनता को तिरस्कार,अनादर करने वालों से जनता व क्षेत्र को बंघुआ गुलाम बनाने समझने वालों से मुक्ति मिलेगी ! क्षेत्र का सर्वागीण विकास हेतु हम सब अपना अपना जन प्रतिनिधि चुनते है! अनिवार्य मतदान से हमारा लोकतंत्र मजबूत होगा जो हर नागरिक,देश और समाज के हित में होगा देश का स्वरूप बदलने में अपनी भूमिका का निर्वहन करना प्रत्येक नागरिक का अधिकार ही नहीं कर्तव्य भी है। इसलिए मतदान अनिवार्य हो या न हो हमें जरूर अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए जागरूक रहना चाहिए और जिन्हें मतदान में रूचि नहीं हो, उन्हें भी निर्वाचन प्रणाली का हिस्सा बनने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। तभी हमारे देश में लोकतंत्र हमेशा कायम रह पाएगा।


बिहार के नए राज्यपाल फागू चौहान जी की जीवनी


फागू चौहान बन गए है बिहार के नए राज्यपाल, और लालजी टंडन को मध्य प्रदेश के गवर्नर बनाया गया है ! भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा बिहार प्रदेश की ओर से बिहार के नए राज्यपाल फागू चौहान जी को बहुत बहुत बघाई ! फागू चौहान जी उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग के चेयरमैन व घोसी विधानसभा से छह बार विधायक रहे फागू चौहान जी अब बिहार के नये राज्यपाल होंगे ! फागू चौहान जी का जन्म उत्तरप्रदेश में आजमगढ़ के शेखपुरा में एक जनवरी, 1948 ई० को हुआ है ! उनके पिता का नाम खरपत्तु चौहान था है ! उनकी पत्नी का नाम मुहारी देवी है. उनके तीन लड़के और चार लड़कियां हैं ! पिछड़ी जाति से आनेवाले फागू चौहान जी वर्ष 1985 में पहली बार चौघरी चरण सिंह जी की पार्टी दलित किसान मजदूर पार्टी से घोसी विधानसभा से विधायक बने ! इसके बाद वह जनता दल के टिकट पर 1991 में विधायक चुने गये ! वर्ष 1996 और 2002 में वह बीजेपी के टिकट पर विधानसभा पहुंचे. इसके बाद वह बहुजन समाज पार्टी में चले गये और बसपा के टिकट पर वर्ष 2007 में घोसी विधानसभा की सीट से जीते ! इसके बाद चौहान जी वर्ष 2017 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े और जीत दर्ज किया और उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जाति का बीजेपी में बड़ा चेहरा होने के कारण उन्हें उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग का चेयरमैन भी बनाया गया ! अब बिहार के राज्यपाल मनोनीत किए गए है !


  • POK_गिलगित_बाल्टिस्तान From Hunderman Kargil. Decades ago public transport movement was running Kargil to Skardu Baluchistan......*

वास्तव में अगर जम्मू कश्मीर के बारे में बातचीत करने की जरूरत है तो वह है POK और अक्साई चीन के बारे मेंl इसके ऊपर देश में चर्चा होनी चाहिए गिलगित जो अभी POK नमें है विश्व में एकमात्र ऐसा स्थान है जो कि 5 देशों से जुड़ा हुआ है अफगानिस्तान, तजाकिस्तान(जो कभी Russia का हिस्सा था), पाकिस्तान, भारत और तिब्बत -चाइना l "वास्तव में जम्मू कश्मीर की Importance जम्मू के कारण नहीं, कश्मीर के कारण नहीं, लद्दाख के कारण नहीं वास्तव में अगर इसकी Importance है तो वह है गिलगित-बाल्टिस्तान के कारण l"

भारत के इतिहास में भारत पर जितने भी आक्रमण हुए यूनानियों से लेकर आज तक (शक , हूण, कुषाण , मुग़ल ) वह सारे गिलगित से हुए l हमारे पूर्वज जम्मू-कश्मीर के महत्व को समझते थे उनको पता था कि अगर भारत को सुरक्षित रखना है तो दुश्मन को हिंदूकुश अर्थात गिलगित-बाल्टिस्तान उस पार ही रखना होगा l किसी समय इस गिलगित में अमेरिका बैठना चाहता था, ब्रिटेन अपना base गिलगित में बनाना चाहता था , Russia भी गिलगित में बैठना चाहता था यहां तक कि पाकिस्तान में 1965 में गिलगित को Russia को देने का वादा तक कर लिया था आज चाइना गिलगित में बैठना चाहता है और वह अपने पैर पसार भी चुका है और पाकिस्तान तो बैठना चाहता ही था l "दुर्भाग्य से इस गिलगित के महत्व को सारी दुनिया समझती है केवल एक उसको छोड़कर जिसका वास्तव में गिलगित-बाल्टिस्तान है और वह है भारत l"

क्योंकि हमको इस बात की कल्पना तक नहीं है भारत को अगर सुरक्षित रहना है तो हमें गिलगित-बाल्टिस्तान किसी भी हालत में चाहिए l आज हम आर्थिक शक्ति बनने की सोच रहे हैं क्या आपको पता है गिलगित से By Road आप विश्व के अधिकांश कोनों में जा सकते हैं गिलगित से By Road 5000 Km दुबई है, 1400 Km दिल्ली है, 2800 Km मुंबई है, 3500 Km RUSSIA है, चेन्नई 3800 Km है लंदन 8000 Km है l जब हम सोने की चिड़िया थे हमारा सारे देशों से व्यापार चलता था 85 % जनसंख्या इन मार्गों से जुड़ी हुई थी Central Asia, यूरेशिया, यूरोप, अफ्रीका सब जगह हम By Road जा सकते है अगर गिलगित-बाल्टिस्तान हमारे पास हो l आज हम पाकिस्तान के सामने IPI (Iran-Pakistan-India) गैस लाइन बिछाने के लिए गिड़गिड़ाते हैं ये तापी की परियोजना है जो कभी पूरी नहीं होगी अगर हमारे पास गिलगित होता तो गिलगित के आगे तज़ाकिस्तान था हमें किसी के सामने हाथ नहीं फ़ैलाने पड़ते l

हिमालय की 10 बड़ी चोटियों है जो कि विश्व की 10 बड़ी चोटियों में से है और ये सारी हमारी है और इन 10 में से 8 गिलगित-बाल्टिस्तान में है l तिब्बत पर चीन का कब्जा होने के बाद जितने भी पानी के वैकल्पिक स्त्रोत(Alternate Water Resources) हैं वह सारे गिलगित-बाल्टिस्तान में है l आप हैरान हो जाएंगे वहां बड़ी -बड़ी 50-100 यूरेनियम और सोने की खदाने हैं आप POK के मिनरल डिपार्टमेंट की रिपोर्ट को पढ़िए आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे l वास्तव में गिलगित-बाल्टिस्तान का महत्व हमको मालूम नहीं है और सबसे बड़ी बात गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग Strong Anti PAK है l दुर्भाग्य क्या है हम हमेशा कश्मीर बोलते हैं जम्मू- कश्मीर नहीं बोलते हैं l कश्मीर कहते ही जम्मू, लद्दाख, गिलगित-बाल्टिस्तान दिमाग से निकल जाता है l ये जो पाकिस्तान के कब्जे में जो POK है उसका क्षेत्रफल 79000 वर्ग किलोमीटर है उसमें कश्मीर का हिस्सा तो सिर्फ 6000 वर्ग किलोमीटर है और 9000 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा जम्मू का है और 64000 वर्ग किलोमीटर हिस्सा लद्दाख का है जो कि गिलगित-बाल्टिस्तान है l यह कभी कश्मीर का हिस्सा नहीं था यह लद्दाख का हिस्सा था वास्तव में सच्चाई यही है l इसलिए पाकिस्तान यह जो बार-बार कश्मीर का राग अलापता रहता है तो उसको कोई यह पूछे तो सही - क्या गिलगित-बाल्टिस्तान और जम्मू का हिस्सा जिस पर तुमने कब्ज़ा कर रखा है क्या ये भी कश्मीर का ही भाग है ?? कोई जवाब नहीं मिलेगा l

क्या आपको पता है गिलगित -बाल्टिस्तान , लद्दाख के रहने वाले लोगो की औसत आयु विश्व में सर्वाधिक है यहाँ के लोग विश्व अन्य लोगो की तुलना में ज्यादा जीते है l भारत में आयोजित एक सेमिनार में गिलगित-बाल्टिस्तान के एक बड़े नेता को बुलाया गया था उसने कहा कि "we are the forgotten people of forgotten lands of BHARAT" l उसने कहा कि देश हमारी बात ही नहीं जानता l किसी ने उससे सवाल किया कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं ?? तो उसने कहा कि 60 साल बाद तो आपने मुझे भारत बुलाया और वह भी अमेरिकन टूरिस्ट वीजा पर और आप मुझसे सवाल पूछते हैं कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं l उसने कहा कि आप गिलगित-बाल्टिस्तान के बच्चों को IIT , IIM में दाखिला दीजिए AIIMS में हमारे लोगों का इलाज कीजिए l हमें यह लगे तो सही कि भारत हमारी चिंता करता है हमारी बात करता है l गिलगित-बाल्टिस्तान में पाकिस्तान की सेना कितने अत्याचार करती है लेकिन आपके किसी भी राष्ट्रीय अखबार में उसका जिक्र तक नहीं आता है l आप हमें ये अहसास तो दिलाइये की आप हमारे साथ है l और मैं खुद आपसे यह पूछता हूं कि आप सभी ने पाकिस्तान को हमारे कश्मीर में हर सहायता उपलब्ध कराते हुए देखा होगा l वह बार बार कहता है कि हम कश्मीर की जनता के साथ हैं, कश्मीर की आवाम हमारी है l लेकिन क्या आपने कभी यह सुना है कि किसी भी भारत के नेता, मंत्री या सरकार ने यह कहा हो कि हम POK - गिलगित-बाल्टिस्तान की जनता के साथ हैं, वह हमारी आवाम है, उनको जो भी सहायता उपलब्ध होगी हम उपलब्ध करवाएंगे आपने यह कभी नहीं सुना होगा l कांग्रेस सरकार ने कभी POK - गिलगित-बाल्टिस्तान को पुनः भारत में लाने के लिए कोई बयान तक नहीं दिया प्रयास तो बहुत दूर की बात है l हालाँकि पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार के समय POK का मुद्दा उठाया गया फिर 10 साल पुनः मौन धारण हो गया और फिर से नरेंद्र मोदी जी की सरकार आने पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में ये मुद्दा उठाया l

आज अगर आप किसी को गिलगित के बारे में पूछ भी लोगे तो उसे यह पता नहीं है कि यह जम्मू कश्मीर का ही भाग है l वह यह पूछेगा क्या यह कोई चिड़िया का नाम है ?? वास्तव में हमें जम्मू कश्मीर के बारे में जो गलत नजरिया है उसको बदलने की जरूरत है l

अब करना क्या चाहिए ?? तो पहली बात है सुरक्षा में किसी भी प्रकार का समझौता नहीं होना चाहिए जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा का मुद्दा बहुत संवेदनशील है इस पर अनावश्यक वाद-विवाद नहीं होना चाहिए l एक अनावश्यक वाद विवाद चलता है कि जम्मू कश्मीर में इतनी सेना क्यों है?? तो बुद्धिजीवियों को बता दिया जाए कि जम्मू-कश्मीर का 2800 किलोमीटर का बॉर्डर है जिसमें 2400 किलोमीटर पर LOC है l आजादी के बाद भारत ने पांच युद्ध लड़े वह सभी जम्मू-कश्मीर से लड़े भारतीय सेना के 18 लोगों को परमवीर चक्र मिला और वह 18 के 18 जम्मू कश्मीर में शहीद हुए हैं l

इनमें 14000 भारतीय सैनिक शहीद हुए हैं जिनमें से 12000 जम्मू कश्मीर में शहीद हुए हैं l अब सेना बॉर्डर पर नहीं तो क्या मध्यप्रदेश में रहेगी क्या यह सब जो सेना की इन बातों को नहीं समझते वही यह सब अनर्गल चर्चा करते हैं l वास्तव में जम्मू कश्मीर पर बातचीत करने के बिंदु होने चाहिए- POK , वेस्ट पाक रिफ्यूजी, कश्मीरी हिंदू समाज, आतंक से पीड़ित लोग , धारा 370 और 35A का दुरूपयोग, गिलगित-बाल्टिस्तान का वह क्षेत्र जो आज पाकिस्तान -चाइना के कब्जे में है l जम्मू- कश्मीर के गिलगित- बाल्टिस्तान में अधिकांश जनसंख्या शिया मुसलमानों की है और वह सभी पाक विरोधी है वह आज भी अपनी लड़ाई खुद लड़ रहे हैं, पर भारत उनके साथ है ऐसा उनको महसूस कराना चाहिए, देश कभी उनके साथ खड़ा नहीं हुआ वास्तव में पूरे देश में इसकी चर्चा होनी चाहिएl

वास्तव में जम्मू-कश्मीर के विमर्श का मुद्दा बदलना चाहिए l जम्मू कश्मीर को लेकर सारे देश में सही जानकारी देने की जरूरत है l इसके लिए एक इंफॉर्मेशन कैंपेन चलना चाहिए l पूरे देश में वर्ष में एक बार 26 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर का दिवस मनाना चाहिए l और सबसे बड़ी बात है जम्मू कश्मीर को राष्ट्रवादियों की नजर से देखना होगा जम्मू कश्मीर की चर्चा हो तो वहां के राष्ट्रभक्तों की चर्चा होनी चाहिए तो उन 5 जिलों के कठमुल्ले तो फिर वैसे ही अपंग हो जाएंगे l

इस कश्मीर श्रृंखला के माध्यम से मैंने आपको पूरे जम्मू कश्मीर की पृष्ठभूमि और परिस्थितियों से अवगत करवाया और मेरा मुख्य उद्देश्य सिर्फ यही है जम्मू कश्मीर के बारे में देश के प्रत्येक नागरिक को यह सब जानकारियां होनी चाहिए l अब आप इतने समर्थ हैं कि जम्मू कश्मीर को लेकर आप किसी से भी वाद-विवाद या तर्क कर सकते हैं l किसी को आप समझा सकते हैं कि वास्तव में जम्मू-कश्मीर की परिस्थितियां क्या है l वैसे तो जम्मू कश्मीर पर एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है लेकिन मैंने जितना हो सका उतने संछिप्त रूप में इसे आपके सामने रखा है l

इस श्रृंखला को केवल LIKE करने से कुछ भी नहीं होगा चाहे आप पढ़कर लाइक कर रहे हो या बिना पढ़े लाइक कर रहे हो उसका कोई भी मतलब नहीं है l अगर आप इस श्रंखला को अधिक से अधिक जनता के अंदर प्रसारित करेंगे तभी हम जम्मू कश्मीर के विमर्श का मुद्दा बदल सकते हैं अन्यथा नहीं l इसलिए मेरा आप सभी से यही अनुरोध है श्रृंखला को अधिक से अधिक लोगों की जानकारी में लाया जाए ताकि देश की जनता को जम्मू कश्मीर के संदर्भ में सही तथ्यों का पता लग सके !! विनय कुमार ,कुशेश्वर स्थान ,दरभंगा ,बिहार

Refrences :- INDIA INDEPENDECE ACT 1947 INDIAN CONSTITUTION ACT 1950 JAMMU & KASHMIR ACT 1956 INDIAN GOVT. ACT 1947.


‪परमआदरणीय माननीय प्रधानमंत्री जी‬

                             नमस्कार ‬

‪विषय - नए ट्रैफ़िक नियम जुर्माना राशि में संसोघन बदलाव किए जाने हेतु विनम्र अनुरोध पत्र !


महोदय ,

134 करोड़ देशवासियों को आप पर बहुत गर्व है ! आपके नेतृत्व में भारत का डंका पूरे विश्व में बज रहा है ! आप देशहित में जनहित में सदैव एतिहासिक फैसले लेते रहें है! आपके हर फैसले में पूरे देश की जनता आपके साथ है ! महोदय कोई भी क़ानून जनता के हितों की रक्षा के लिए ही बनाया जाता है ! लेकिन जब वहीं क़ानून जनता के लिए फाँसी बन जाए तो उस क़ानून पर पुन: विचार करना संसोघन करना भी सरकार का फ़र्ज़ बनता है ! महोदय मैं आपका घ्यान नए ट्रैफिक चालान क़ानून और आकृष्ट कराना चाहता हूँ ! नए ट्रैफ़िक क़ानून की आड़ में पुलिश प्रशासन द्वारा जनता को परेशान कर शोषण किया जा रहा है ! महोदय देश में सबसे बड़ी आबादी मध्यमवर्गीय और निम्नवर्गीय लोगों की है ! जो सम्भवत: पॉंच हज़ार से लेकर पन्द्रह हज़ार तक नौकरी करता है ! और अपने परिवार का पालन पोषण करता है ! उस परिवार में उसके उपर आश्रितों की संख्या भी कम से कम १० लोगों की होती है ! और परिजनों का पालन करने के लिए व्यक्ति नौकरी करता है ! लेकिन नए ट्रैफिक क़ानून के नए नियमों में भारी जुर्माना और जुर्माना के नाम पर पुलिश द्वारा अवैध वसूली ने मघ्यमवर्गीय लोगों की कमर तोड़ दी है ! महोदय मेरा मानना है कि भले ही कार वालों को ट्रैफिक रूल में कोई छूट दें ना दें ,शराब पीकर गाड़ी चलाने वालो पर 5000 का नही 50,000 का जुर्माना लगा दें ! लेकिन दो पहिया वाहन मोटरसाइकिल स्कूटी के चालान में संसोघन किए जाने की आवश्यकता है ! क्योंकि मोटरसाइकिल वाले मीडिल क्लास के लोग है वो इतना afford नही कर सकते है ! मान्यवर सहन करने की भी एक क्षमता होती है ! मघ्यमवर्गीय परिवार के लोगों को इतना बड़ा जुर्माना अदा करना बर्दाश्त से बाहर है ! मघ्यमवर्गीय लोग ट्रैफ़िक चालान जुर्माना भरेंगें तो उनके परिवारों का भरण पोषण कैसे कौन करगा ! एसी हालत में मजबूरन आम मघ्यमवर्गीय लोग पैदल चलने पर मजबूर हो जाएंगे ! ‬मान्यवर पूरा देश आपका परिवार है और आप परिवार के प्रधान मुखिया है ! आप सबको साथ लेकर सबका विकास कर रहे है ! इसिलिए आपसे विनम्र अनुरोध कर रहा हूँ !

     अत: आपसे विनम्र प्रार्थना है ,जनहित में यथाशीघ्र नए ट्रैफ़िक नियम क़ानून में संसोघन किए जाने की कृपा करेंगे ! 

सादर'

                         विश्वासभाजन 
            आपका अपना ही शुभचिन्तक प्रार्थी 
                         विनय कुमार

बिहार में दलित राजनिति[संपादित करें]

बिहार में दलित राजनीति मुख्यधारा के समानांतर सहायक उपधारा की तरह रही है! चाहे स्वाधीनता संग्राम हो या बाद की राजनीति का समीकरण! स्वाधीनता के बाद उसके वोट बैंक में दलित भी शामिल था पिछड़े वर्ग की राजनीति ने दूसरे खेमे में लाकर खड़ा कर दिया! वामपंथ की राजनीति का समर्थन करने वाले वर्गों में दलितों का एक बड़ा वर्ग है ! दलितों के नाम पर राजनिति करने वाले कई बड़े बड़े नेता इधर से उधर हुए है ! बावू जगजीवन राम की तरह ही राज्य स्तरीय राजनेता अचार बनाने के बजाय किसी दल में चले गए ! रामविलास पासवान जैसे नेता सत्ता में भले ही बने रहे हो उनकी अपनी अलग दलगत राजनीति की पहचान दलित राजनीति बिहार के मानचित्र राजनीतिक मानचित्र पर अधूरी लकीर ही बनी रही ! बिहार में दलितों की आबादी 17% है ! पर यह संख्या इससे भी कहीं ज्यादा है ! लेकिन इतनी बड़ी आबादी होते हुए भी इसके बीच से राजनीतिक नेतृत्व की कमी है ! जीतन राम मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ ! जीतन राम माँझी को सत्ता के उच्च शिखर पर देखकर दलित समुदाय को एक मनोवैज्ञानिक बल मिला ! दलित समुदाय को लगा कि उसके बीच का आदमी ही सत्ता की उच्च शिखर पर है ! इसीलिए दलितों में नई उम्मीद जगी ! अब उनका ही विकास होगा ! दलित समुदाय को लगा कि एक ऐसा आदमी शीर्ष पर पहुचा है जो उनकी बात सुनेगा ! बिहार के दलित समुदाय को सामाजिक सुरक्षा की भावना जगी ! पहले पिछड़ी जाति की राजनीति फिर अति पिछड़ी जाति की राजनीति अब दलित राजनीति की दॉव ! दलित महादलित बनने के बाद केवल पासवान जाति को छोड़कर महादलित समाज नीतीश कुमार से चिपक गया !

१४ अप्रैल 2018 को बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती पर बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने पासवान जाति को महादलित जाति की श्रेणी में शामिल किए जाने की घोषणा की है ! अब वह सभी सुविधाएं पासवान जाति को मिलेगी जो महादलितों को मिल रही है ! नीतीश कुमार ने घोषणा किया है कि ,अब चौकीदार दफादार के पद पर रिटायर होने पर उनके बच्चे की नियुक्ति की जाएगी ! इन दोनों पदों पर अधिकांश पासवान जाति के लोग ही काम करते हैं ! साथ ही उनके वर्दी के लिए राशि बढ़ाकर दोगुना करने की घोषणा स्वागत योग्य है ! अब नीतिश कुमार द्वारा महादलित में पासवान जाति को शामिल करने के बाद एक नए प्रकार से समीकरण तैयार होंगे ! बिहार में पासवान जाति की संख्या ४ प्रतिशत है ! वैसे बिहार में दलित राजनीति में पिछले कई वर्षों से उठापटक चल रही है ! पासवान जाति को दबाने के लिए अलग- थलग करने हेतु नीतीश कुमार ने नया कार्ड खेला था दलित और महादलित का ! जीता राम माझी जब एक्सीडेंटल मुख्यमंत्री बने और बिहार में सबसे बड़े दलित नेता हो गए और नई पार्टी बनाने तक वह प्रदेश के बड़े दलित चेहरा के तौर पर देखे जा रहे थे ! 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा से गठबंधन किया ! लेकिन चुनावी नतीजों ने उनकी पोल पट्टी खोल कर रख दी! ऐसा नहीं है की इस बार बिहार को लेकर दलित राजनीति उनके नजरिए में नजरिए से चिंता में कोई एक नेता या राजनीति खेमा है ! माननीय नीतीश कुमार जी दलित महादलित को खत्म करने की राह पर बढ़ चुके हैं ! पासवान जाति को भी महादलित की श्रेणी शामिल करने की घोषणा कर दिए है ! अब दलित वोटों को लेकर सबसे बड़ी चिंता दलितों के नाम पर राजनिति करने वाले दलित नेताओं को ही है ! Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 21:18, 18 मई 2018 (UTC)[उत्तर दें]

स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए स्वस्थ्य बहस ज़रूरी है ![संपादित करें]

स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए स्वस्थ बहस ज़रूरी है ! लोकतांत्रिक प्रणाली विकास के लिए जनता की समस्याओं पर बहस होनी चाहिए ! आज के दौर में राजनेताओं का राजनैतिक पतन हो रहा है अपने स्वार्थ के एक दूसरे पर निजी हमले करने गंदी ओछी गाली का इस्तेमाल किया जा रहा है ! जो आने वाले समय में लोकतंत्र के लिए ख़तरा होगा ! सांसद केवल खानापूर्ति के लिए संसद भवन जा रहे है जनता का विकास क्षेत्र की समस्याओं से कोई लेना देना नहीं रह गया है ! सांसदों की गरिमा लगातार गिर रही है ! राजनिति को व्यवसाय के रूप में इस्तेमाल हो रहा है ! चुनाव में धनबल का प्रयोग ,करोड़ों ख़र्च कर कमाने की होर ,भ्रष्टाचारियों से मिलकर सांसद क्षेत्रीय विकास निधि में कमिशनखोरी -ठीकेदारी बंदरबांट के कारण सासंद अपनी मर्यादा खो रहे है ! सांसद आदर्श ग्राम योजना में सासंदो द्वारा गोद ली गई गॉंव आज भी गोद से बाहर नहीं निकल पाई है ! सासंदो के प्रति जनता का विश्वास आदर सम्मान का गिर रहा है जो समाजिक राजनितिक परिपेक्ष में चिन्ताजनक है ! इन सबों के ज़िम्मेवार भी माननीय ख़ुद है ! कई सारे पहलुओं पर अध्ययन करने पर जो बात सामने आ रही है ! कुछ सांसद एसे भी है जो दलगत भावना ,शिक्षा की कमी ,राजनितिक आत्मबल कमज़ोरी के भी शिकार है ! और कुछ सासंद राजनिति को अपना व्यवसाय पैसा कमाने ज़रिया जैसी मानसिकता के शिकार है ! कुछ सांसद एसे भी है जिन्हें अपना और अपनो का विकाश परिवारवाद का विकास कैसे हो दिनरात इसी जुगाड़ में लगे रहने के कारण जनता या जनता से जुड़े मुद्दे से कोई वास्ता नहीं है ! सभी पहलुओं को देखने पर एक बात तो स्पष्ट है सांसदों की गरिमा लगातार गिर रही है ! और सासंद जनता से और जनता मूलभूत समस्याओं से दूर हो रहे है ! जो जनता और देश के लिए चिन्ता का विषय है ! देश के बुद्धिजीवी वर्ग समाजिक चिन्तक छात्र नौजवान और युवाओं को इस पर गम्भीरता से सोचना चाहिए ! संसद की एक मिनट की कार्यवाही पर 2.5 लाख रुपए ख़र्च होते हैं. एक दिन का ख़र्च 9 करोड़ रुपए है. इस बजट सत्र में अब तक 31% काम हुआ है. पास होने के लिए भी 33% नम्बर चाहिए होते हैं. सांसदों का औसत इससे भी कम है. आख़िरकार इसके ज़िम्मेदार कौन है ? गॉंव ग़रीब किसान युवा एसे लोगों से हिसाब माँगेगी ! Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 21:24, 18 मई 2018 (UTC)[उत्तर दें]

बिहार में छात्र राजनिति का गौरवशाली इतिहास[संपादित करें]

बिहार में छात्र राजनीति का गौरवशाली इतिहास बिहार की छात्र राजनीति का गौरवशाली अतीत रहा है! लेकिन मौजूदा दौर के छात्र संगठनों की पहचान सियासी दलों की अनुषंगी इकाई से ज्यादा कुछ नहीं है! सियासत की शुचिता बिहार के भविष्य के लिए सुखद है कि बिहार के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने छात्र संघों की आंदोलनकारी भूमिका को बात करने की पहल किया !पढ़ाई के दौरान राज्यपाल सतपाल मलिक छात्र राजनीति मे अति सक्रिय रह चुके है ! सतपाल मलिक जब राज्यपाल वन कर बिहार आए तो उन्हें यह जानकर बड़ी हैरत हुई कि यहाँ छात्र की राजनिति दयनीय दौर से गुजर रही है ! उन्होंने फौरन ही सभी विश्वविद्यालय में नियमित रूप से छात्र संघ चुनाव कराने की फरमान जारी किया! क्योंकि उन्हें पता है कि बिहार के छात्रों ने आजादी के लिए कितनी बड़ी कुर्बानियां दी है !आजादी के बाद देश प्रदेश की तरक्की और समाज के नव निर्माण में बिहारी छात्रों की भूमिका रही है ! सियासी सुचिता और सुसासन के उदाहरण तो ख़ुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार है ! छात्र राजनीति से निकले लालू प्रसाद , सुशील कुमार मोदी और रविशंकर प्रसाद जैसे बड़े कद-पद वाले नेताओं की चर्चा आज भी देशभर में होती है! आज़ादी के पहले के क्रांतिकारी आंदोलनों में बिहारी छात्रों की सक्रिय भागीदारी थी !बडे नेताओं की भूमिका नेत्तृव देने तक सीमित थी! सफलता की इबारत युवाओ ने ही लिखी थी ! डॉ राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में 1906 में बिहारी स्टूडेंट्स सेंट्रल एसोसिएशन की स्थापना हुई थी ! इसका विस्तार बनारस से कोलकाता तक था! 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की कहानी बिहार के बिना पूरी नहीं हो सकती ! 11 अगस्त 1947 को विधानसभा सचिवालय पर तिरंगा फहराने की कोशिश में 7 छात्रों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी! आजादी के बाद भी देश में जो बड़े आंदोलन हुए ,उनमें छात्रों की निर्णायक भूमिका रही ! 1974 में इंदिरा गांधी के खिलाफ और आपातकाल हो या बोफोर्स घोटाले के बाद वी•पी•सिंह के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में भी छात्रों की ही अहम भूमिका रही! पटना विश्वविद्यालय छात्र राजनीति की नर्सरी रही है ! 1967 में पटना विश्वविघालय में

डायरेक्ट चुनाव हुए तो राम जतन सिन्हा अघ्यक्ष और नरेन्द्र सिंह उपाघ्यक्ष निर्वाचित हुए थे ! 1970 में राम जतन  सिन्हा फिर अघ्यक्ष के पद पर निर्वाचित हुए और छात्र राजनिति में लालू प्रसाद का पहली वार प्रवेश हुआ और वह महासचिव बनाए गए थे ! इसके तीन साल बाद 1973 के चुनाव में अघ्यक्ष पद के लिए नरेन्द सिंह और लालूप्रसाद में मुकावला हुआ ! लालू प्रसाद अघ्यक्ष बने और सुशील मोदी महासचिव संयुक्त सचिव रविशंकर प्रसाद बने थे ! 18 मार्च 1974 को महंगाई भ्रष्टाचार और शिक्षा में अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर बिहार विघानसभा का घेराव हुआ और पूरे प्रदेश से करीब एक लाख छात्रों ने पटना में डेरा डाल रखा था ! लालू प्रसाद नीतीश कुमार शुशील मोदी नरेन्द सिंह राजतन सिन्हा आदि छात्र नेता नेतृत्व कर रहे थे ! 

बिहार की छात्र राजनिति पर 1977 में पहली बार विघार्थी परिषद का कब्जा हुआ और अश्वनी कुमार चौबे अघ्यक्ष चुने गए और राजाराम पाण्डेय उपाघ्यक्ष बने थे ! खास बात यह थी की पहली बार वाम छात्र संगठनों ने कडी टक्कर दी थी , और ती पदों पर जीत भी दर्ज की ! 1980 में पहली बार सभी विश्वविघालयों चुनाव कराए गए पटना विश्वविधालय में अनिल कुमार शर्मा मगघ में बबन सिंह यादव अघ्यक्ष योगेन्द्र सिन्हा महासचिव बने ! तो भागलपुर में नरेश यादव विहार विश्वविधालय में हरेन्द्र कुमार मिथिला विश्वविधालय में वैधनाथ चौघरी अघ्यक्ष निर्वाचित हुए ! इसी दौरान छात्र संघ चुनाव की नियमावली तैयार करने के लिए माधुरी शाह आयोग का गठन किया गया , जिसने कई शर्तें लगाकर छात्र राजनिति को नियमों में बाँध दिया ! और उम्र सीमा तय कर दी गयी ! और 1982 में नई नियमावली के आधार पर ही चुनाव हुआ ! अब काफ़ी बर्षो बाद इस बार 2018 में बिहार के सभी विश्वविधालयों कालेजों में नई नियमावली पर चुनाव हुए है मुद्दे और आदर्श ग़ायब हो गए है ! पहले विधार्थियों को सहुलियतें परेशानी आदि मुद्दे होते थे किन्तु अब छात्रों की सियासत को राजनितिक दल तय करने लगे है ! Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 21:37, 18 मई 2018 (UTC)[उत्तर दें]

प्रषिद ऐतिहासिक पौराणिक बाबा भोले नाथ (शिव मंदिर )की नगरी बाबा कुशेश्वर नाथ धाम प्रषिद्घ स्थल कुशेश्वर स्थान को अंतर्राष्टीय पर्यटन स्थल घोषित किये जाने की आवश्यकता है ! इतनी भव्य और प्राचीन एतिहासिक शिव मंदिर होने के बाद भी अंतर्राष्टीय पर्यटन स्थल घोषित नहीँ किए जाने से इलाके की जनता में आक्रोश है ! बाबा कुशेश्वर नाथ धाम में प्रतिदिन हजारों लाखो की संख्या में श्रधालुओं द्वारा जलाभिषेक करते है ! रविवार के दिन लाखो की भीड़ होती है ! परोसी देश नेपाल से भी भारी संख्या में श्रधालुओं की भीड़ आती हैऔर जलाभिषेक करते है ! रामायण पुराण में कुश द्वारा स्थापित इस शिव मंदिर का ऊल्लेख है ! बाबा वैधनाथ धाम मंदिर जोकि देवघर झारखंड में है के बाद बाबा कुशेश्वर नाथ धाम शिव मंदिर का उतना ही महत्त्व है ! यानी जितनी मान्यता श्रद्धालु बाबा बैधनाथ धाम को देते है उतनी ही मान्यता बाबा कुशेश्वर नाथ धाम का है ! कुशेश्वर स्थान को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने से इस इलाके में विभिन प्रकार से रोजगार के अवसर पैदा होंगे ! साथ ही सरकार को काफी राजस्व मिलेगा और बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा !साथ ही इलाके का सर्वांगीण विकाश होगा! विदेशों से साइबेरियन चिड़ियाँ जल विहार करने आती है ! चिडियों की चहचहाने की आवाज़ और सुन्दर मनोरम दृश्य देखने लोग आते है ! लेकिन बेरोज़गारी की मार और रोज़ी रोटी की तलाश में दिल्ली मुम्बई अन्य राज्यों की शहरों में युवाओं का पलायन हो रहा है ! इस इलाक़े के बुद्दिजिबीयो ,पत्रकारो ,द्वारा कई वार कई प्रकार से सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया गया है ,लेकिन अभी तक कोई करवाई नहीँ हुई है ! लेकिन अभी तक सरकार द्वारा सकारात्मकता क़दम नहीँ उठाया गया है ! अब इस सम्बंध में जल्दी ही माननीय प्रधानमंत्री जी से मुलाकात कर पत्र भी दूँगा ! और माँग करूँगा कि खुद पहल कर कुशेश्वर स्थान को अंतराष्ट्रीय पर्यटन स्थल का दर्जा दिलाने हेतु कार्रवाई हो  ! आप सभी माननीय पत्रकार बंघुओ ,बुद्दीजीवीयों ,समाजसेवी और राजनितीक प्रतिनिधियों से भी आग्रह करता हूँ आइये हम सब मिलकर कुशेश्वर स्थान का सर्वांगीण विकाश करने हेतु कुशेश्वर स्थान को अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल घोषित करवाने का काम करें ! Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 22:43, 18 मई 2018 (UTC)[उत्तर दें]

बिहार में महिलाओं के साथ बढ़ रही है अत्याचार और बलात्कार ![संपादित करें]

आरा में महिला को नंगा कर पूरे बाज़ार घुमाने की घटना ने बिहार को शर्मशार कर दिया है ! हाल ही में मुज़फ़्फ़रपुर की घटना क्या कम थी जो फिर शर्मशार होना परा ! सोचना होगा आज क्या हो गया है इस समाज को ! कहॉं जा रही है हमारी संस्कृति ! क्यों मानसिक बीमार होता जा रहा है हमारा समाज ! हवस की बीमारी हो या वहसी मानसिकता ? दौलत का नशा हो या सत्ता का नशा ? लालच में गिर रहें हो या रौब का नशा ? बदले की भावना हो या नफ़रत का नशा ? लेकिन हर हाल में हमारे देश का समाज और हमारी संस्कृति गिर रही है ! गौरवशाली भारत का इतिहास रहा है ! नाड़ी औरतों को सम्मान देने का काम हमारे पूर्वजों आदि अनादि काल से है ! सतयुग ,द्वापर त्रेतायुग में भी और आर्यावत हिन्दुस्तान भारत के इतिहास में नाड़ी शक्ति को सम्मान देते आए है हम ! लेकिन घिक्कार है शर्मशार हो रहे है जब महापुरूषों के देश में औरतों को नंगा कर घुमाया जाता है ! नाबालिग बच्चियों से ब्लात्कार की घटनाओं से शर्मशार हो रहा है ! क्या आप अपनी माँ बहन को भी नंगा कर सकते हो ? नंगा देख सकते हो ? धिक्कार है एसे पुरुषों के मानसिकता पर ! धिक्कार है उस मॉं की कोख पर जिसने तुम्हें जन्म दिया । घिक्कार है उस धर्म पर जिसके तुम अनुयायी हो ! घिक्कार है उस बहन पर जिसने तुम्हारी कलाई पर राखी बांधी उस स्त्री पर जिसने तुम्हारे साथ सात फेरे लिए होंगें या लोगे ! घिक्कार है उस समूचे समाज पर जो तुम्हारा संरक्षक है ।घिक्कार है उस अध्यापक पर जिसने तुम्हें इंसान नहीं बनाया ।उस पुलिस पर प्रशासन पर जिसके होते ये नंगा तांडव हुआ । घिक्कार है राज्य के मुख्यमंत्री पर ! घिक्कार है नाबालिग़ अनाथ असहाय बच्चियों पर ज़ुल्म ब्लात्कार करने वालों पर ! शर्मशार है ! घिक्कार है चुप रहने वाले उन नेताओं पर जिनकी ज़ुबान चुप हो गयी है ! मुँह में शब्द और ज़ुबान पर ताला लग गया है ! शर्म करो और उठो जागो ज़ुल्म के ख़िलाफ़ ! नेतागिरी -राजनिति -आरोप -प्रत्यारोप फिर कभी कर लेना राजनिति आएगी -जाएगी ! लेकिन खुद की नज़रों से मत गिरना ! आज नहीं तो कल तुम्हारे परिवार की बारी होगी ! Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 20:12, 26 अगस्त 2018 (UTC)[उत्तर दें]

परिवारवाद ,वंशवाद ,पुत्रवाद ,भाईभतीजाबाद अवसरवाद की राजनिति का खेल[संपादित करें]

दलितों के नाम पर राजनिति का खेल खेलने वालों का इतिहास आपको याद ही होगा ! महामानव युगपुरूष परम श्रद्घेय अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार को गिराने वाले कौन थे ? गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी को निशाना बनाकर मन्त्रिमंडल से इस्तीफा देने वाले नेता कौन थे ? एेसा कोई दल बचा है क्या जिससे राजनितिक फ़ायदा ना उठाया हो उस नेता ने ! केवल और केवल अपने परिवारवाद ,पुत्रवाद ,भाईभतीजावाद,को बढ़ाने और दौलत का अंबार खड़ा करने के लिए ! वो नेता आज अपने जीवन की अंतिम राजनितिक पारी खेलने के लिए इधर-उधर अनुमान -विश्लेषण करने में फिर से व्यस्त हो गए है ! यह बात दलित समाज समझ चुकी है ! अब दलित समाज एसे लोगों को अपना नेता नहीं मानती है ! दलित समाज व आम जनता एसे नेता उसके परिवार को सबक़ ज़रूर सिखायेगी ! वर्तमान में दलितों के सबसे बड़े हितैषी शुभचिन्तक मसीहा माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी है ! माननीय प्रधानमंत्री जी दलित समाजों के हित का ख़्याल दलितों के सम्मपूर्ण विकास के प्रति प्रतिबद्घ है ! Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 20:15, 26 अगस्त 2018 (UTC)[उत्तर दें]

रक्षासूत्र या रक्षाबंघन के अवसर पर बहने भाई की कलाई पर क्यों राखी बाँधती है और क्या मायने है इसके[संपादित करें]

रक्षासूत्र या राखी को रक्षाबंधन के अवसर पर भाई की कलाई में बाँधा जाता है। इसे रेशमी धागे और कुछ सजावट की वस्तुओं को मिलाकर बनाया जाता है।। ऐसा माना गया है कि श्रवण नक्षत्र में बांधा गया रक्षासूत्र अमरता, निडरता, स्वाभिमान, कीर्ति, उत्साह एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाला होता है।

प्राचीनकाल में रक्षाबंधन मुख्यत: ब्राह्मणों का, विजयदशमी क्षत्रियों, दीपावली वैश्यों और होली शूद्रों का त्यौहार माना जाता था। प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन ब्राह्मण अपने यजमानों के दाहिने हाथ पर एक सूत्र बांधते थे, जिसे रक्षासूत्र कहा जाता था। इसे ही आगे चलकर राखी जाने लगा। यह भी कहा जाता है कि यज्ञ में जो यज्ञसूत्र बांधा जाता था उसे आगे चलकर रक्षासूत्र कहा जाने लगा।


इस मंत्र का सामान्यत: यह अर्थ लिया जाता है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षे!(रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो। धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहत अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं। इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।

रक्षासूत्र का मंत्र और उद्देश्य:

‘येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:।’ अर्थात् जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबंधन से मैं तुम्हें बांधता हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा| हे रक्षे!(रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो। धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहत अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं। इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है। पौराणिक प्रसंग- पुराण में व्याख्यान किया गया है एक बार दानवों और देवताओं में युद्ध शुरू हुआ| दानव देवताओं पर भारी पड़ने लगे तब इन्द्र घबराकर वृहस्पतिदेव के पास गए| वहां बैठी इंद्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर के अपने पति के हाथ पर बांध दिया। वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इंद्र इस लड़ाई में इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। इसके अलावा स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है- दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान ने वामन अवतार लेकर ब्राम्हण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश,पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकानाचूर कर देने के कारण यह त्योहार ‘बलेव’ नाम से भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि जब बलि रसातल चला गया तो उसने अपने तप से भगवान को रात- दिन अपने पास रहने का वचन ले लिया| भगवान विष्णु के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को देवर्षि नारद ने एक उपाय सुझाया| नारद के उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी राजा बलि के पास गई और उन्हें राखी बांधकर अपना भाई बना लिया| उसके बाद अपने पति भगवान विष्णु और बलि को अपने साथ लेकर वापस स्वर्ग लोक चली गईं| उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भागवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिए फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है। महाभारत में ही रक्षाबंधन से संबंधित कृष्ण और द्रौपदी का एक और वृत्तांत मिलता है। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया। कहते हैं परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबंधन के पर्व में यहीं से आन मिली। रक्षाबंधन:-संस्कृत की उक्ति के अनुसार: जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत। स सर्वदोष रहित, सुखी संवतसरे भवेत्।। अर्थात् इस प्रकार विधिपूर्वक जिसके रक्षाबंधन किया जाता है वह संपूर्ण दोषों से दूर रहकर संपूर्ण वर्ष सुखी रहता है। रक्षाबंधन में मूलत: दो भावनाएं काम करती रही हैं। प्रथम जिस व्यक्ति के रक्षाबंधन किया जाता है उसकी कल्याण कामना और दूसरे रक्षाबंधन करने वाले के प्रति स्नेह भावना। इस प्रकार रक्षाबंधन वास्तव में स्नेह, शांति और रक्षा का बंधन है। इसमें सबके सुख और कल्याण की भावना निहित है। सूत्र का अर्थ धागा भी होता है और सिद्धांत या मंत्र भी। पुराणों में देवताओं या ऋषियों द्वारा जिस रक्षासूत्र बांधने की बात की गई हैं वह धागे की बजाय कोई मंत्र या गुप्त सूत्र भी हो सकता है। धागा केवल उसका प्रतीक है। रक्षासूत्र बाँधते समय एक श्लोक और पढ़ा जाता है जो इस प्रकार है- ओम यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं, शतानीकाय सुमनस्यमाना:। तन्मSआबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।। Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 20:22, 26 अगस्त 2018 (UTC)[उत्तर दें]

हम सबों के प्रेरणा के स्रोत परम श्रद्घेय अटल जी ![संपादित करें]

ऐसे हम सबकी प्रेरणा के स्त्रोत श्रद्धेय अटल जी

श्रद्धेय अटल जी की पूरी जीवन यात्रा के मूल्यांकन के लिए कुछ आधार बनाना होगा। उनको भारतीय राजनीति का शलाका पुरुष मानने वाले बिल्कुल सही है। राजनीति में इतना लंबा दौर गुजारने के बावजूद वैचारिक प्रतिबद्धता रखते हुए, घोर विरोधियों के प्रति भी बिल्कुल उदार आचरण एवं उसे जीवन भर कायम रखना तथा किसी से निजी कटुता न होना सामान्य बात नहीं है। वस्तुतः आजादी के दौर के राजनेताओं में राष्ट्रीय राजनीति में वे अंतिम व्यक्ति बच गए थे। हालांकि वो एक विशेष विचारधारा के प्रतिनिधि थे, लेकिन राजनीति को देखने का उनका दृष्टिकोण आजादी के दौरान भारत के बारे में देखे गए सपने से निर्धारित था। 1947 से लेकर लंबे समय तक देश में जो घटनाएं घटीं, भारत के सामने जो संकट और चुनौतियां आईं, उनसे निपटने के लिए तब के हमारे नेतृत्व ने जो कुछ किया उन सबका गहरा असर अटल जी पर पड़ा। जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की जम्मू कश्मीर यात्रा के समय वो उनके साथ थे। वाजपेयी जी ने कई बार कहा कि मुखर्जी ने उनको कहा कि जाओ और देशवासियों को बताओ कि मैं बिना परमिट के कश्मीर में प्रवेश कर गया हूं। जैसा हम जानते हैं डॉ. मुखर्जी वहां से वापस नहीं लौटे। इन घटनाओं के जिक्र करने का उद्देश्य यह बताना है कि अटल जी के राजनीतिक व्यक्तित्व निर्माण में सबकी सम्मिलित भूमिका थी। चाहे विपक्ष के नेता के रुप में हों, विदेश मंत्री के तौर पर या फिर प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी सम्पूर्ण भूमिका में आपको यह सब परिलक्षित होता है। 1957 में पहली बार लोकसभा पहुंचने के बाद उनके भाषणों को देख लीजिए, उसमें जनसंघ की विचारधारा के अनुसार घटनाओं पर टिप्पणियां हैं, किंतु कहीं भी प. जवाहरलाल नेहरु या उनके साथियों के प्रति एक शब्द भी ऐसा नहीं है जिसे आप सम्मान को कम करने वाला कह सकते हैं। उस समय कश्मीर से लेकर पाकिस्तान, तिब्बत, केरल में राष्ट्रपति शासन आदि ऐसे अनेक मुद्दे थे जिन पर जनसंघ और कांग्रेस के बीच सहमति नहीं हो सकती। किंतु संसदीय लोकतांत्रिक राजनीति की मर्यादाओं का उन्होंने पूरा पालन किया। 1962 के युद्ध के समय जनसंघ के सारे प्रमुख नेताओं के साथ मिलकर वाजपेयी जी ने सरकार का साथ देने तथा कार्यकर्ताओं को देश भर में जितनी शक्ति हो उसके अनुसार सरकारी मशीनरी का सहयोग करने का निर्णय किया। नेहरु जी अटल जी को बहुत प्यार करते थे। बकौल अटल जी एक बार उन्होंने लोकसभा में कांग्रेस और नेहरु सरकार की नीतियों पर तीखा हमला किया। शाम को एक कार्यक्रम में नेहरु जी ने उनको देखा और कहा कि आज तो बहुत अच्छा भाषण मारे। यह जो उदार व्यवहार था नेहरु जी का उनका असर न हो ऐसा कैसे हो सकता है। 1971 में बंग्लादेश मुक्ति युद्ध के समय अटल जी पूरी तरह सरकार के साथ खड़े थे। यहां तक कि आपातकाल में उन्हें जेल जाना पड़ा। उस दौरान भी उन्होंने जो कविताएं लिखीं उनमें शासन की आलोचना तो है पर इन्दिरा जी पर कोई सीधी निजी टिप्पणी नहीं। वाजपेयी जी के राजनीति काल में वह समय आया जब 1977 में उन्हें फैसला करना था कि जनसंघ अलग होकर चुनाव लड़ेगा, गठबंधन में या फिर पार्टी का विलय कर दिया जाए। उस समय लालकृष्ण आडवाणी जनसंघ के अध्यक्ष थे। किंतु वाजपेयी जी के प्रभाव से ही यह संभव हुआ कि जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया। जनता सरकार के दौरान विदेश मंत्री के रुप में चीन और पाकिस्तान से संबंध सुधारने की उनकी कोशिश पर लोगों को आश्चर्य हुआ, क्योंकि आम धारणा यही थी कि ये तो पाकिस्तान और चीन के घोर विरोधी हैं। एक पत्रकार, कवि और दूसरी पार्टियों के नेताओं के साथ संबंध और संवाद का ही प्रभाव था कि जब उनकी पार्टी के सामने 1998 में सरकार बनाने का अवसर आया तो उन्होंने एक साथ कई पार्टियों को साथ लेकर सरकार के लिए एजेंडा बनाकर अपने तीन प्रमुख मुद्दों को बाहर किया। यही वह काल था जब उन्हांेने सरकार बनने के ढाई महीने के अंदर ही पोकरण में 11 और 13 मई 1998 को दो नाभिकीय परीक्षण कराया। पूरी दुनिया इससे भौचक्क रह गई। जाहिर है, उसकी तैयारी में वाजपेयी, रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडिस तथा वैज्ञानिक सलाहकार डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने मिलकर इतनी गोपनीयता बरती कि यह मिशन सफल हो सका। वाजपेयी जी को मालूम था कि इसकी प्रतिक्रिया दुनिया भर में भारत के विरुद्ध होगी। अमेरिका से लेकर जापान, ऑस्ट्रेलिया सब ने भारत पर कठोर प्रतिबंध लगा दिया। वाजपेयी अपने कदम को पीछे हटाने को तैयार नहीं हुए और विदेश मंत्री जसवंत सिंह के माध्यम से इतना सघन कूटनीतिक अभियान चलाया कि धीरे-धीरे अमेरिका भारत से सहमत हुआ और अन्य देशों के रवैये में बदलाव आया। बाद में यूपीए सरकार के समय अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश एवं हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ जो नाभिकीय सहयोग समझौता हुआ उसकी नींव अटल जी ने ही रखी थी। वाजपेयी के काल का सबसे बड़ा प्रयास जम्मू कश्मीर को सामान्य स्थिति में लाना तथा पाकिस्तान से हर हाल में संबंध सुधारने की कोशिश के रुप में सामने आया। स्वयं बस लेकर लाहौर जाने का ऐतिहासिक कदम उठाया और मिनारे-ए-पाकिस्तान जाकर यह संदेश दिया कि देश के रुप में भारत पाकिस्तान को स्वीकार करता है। हालांकि वहां से वापसी के कुछ समय बाद ही करगिल युद्ध आरंभ हो गया। बिना सीमा पार किए पाकिस्तान को युद्ध में पूरी तरह परास्त करना तथा इस दौरान दुनिया भर का समर्थन जुटाने का कौशल हमारे सामने है। संसद पर हमले के बाद सीमा पर सेना को हमला करने की अवस्था में खड़ा कर पाकिस्तान को कुछ घोषणाएं करने को विवश किया। इसके बावजूद जनरल परवेज मुशर्रफ को पहले आगरा बुलाया और बैठक असफल होने के बावजूद प्रयास नहीं छोड़ा। अंततः जनवरी 2004 में वे दोबारा पाकिस्तान गए और मुशर्रफ ने समझौता में स्वीकार किया कि आतंकवाद के लिए अपनी भूमि का उपयोग नहीं करेंगे। आर्थिक नीतियों में उदारवाद के वे समर्थक थे। अपने पूरे कार्यकाल में उन्होंने विरोधी नेताओं के तीखे विरोध को झेलते हुए व्यवहार में कभी तीखापन नहीं लाया। आज अगर सभी दलों एवं विचारधारा के नेताओं, लोग अटल जी को लेकर द्रवित हैं तो इसमें उनके पूरे जीवन के आचरण का ही योगदान है। अटल जी जैसे राजनेता का व्यक्तित्व वास्तव में अतुलनीय है। इतनी बहुमुखी प्रतिभा और क्षमता तथा उन सबके होते हुए अहं से परे रहककर अपने कर्तव्यों के निर्वहन के प्रति इतना समर्पित रहना सामान्य बात नहीं है। ऐसे व्यक्ति को यह देश कभी भूल नहीं सकता। इतिहास में उनका नाम हमेशा सम्मान से लिया जाएगा। आज के नेताओं के लिए वे विचार और आचरण में प्रेरणा के स्रोत बने रहेंगे।

1947 से लेकर लंबे समय तक देश में जो घटनाएं घटीं, भारत के सामने जो संकट और चुनौतियां आईं, उनसे निपटने के लिए तब के हमारे नेतृत्व ने जो कुछ किया उन सबका गहरा असर अटल जी पर पड़ा। जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की जम्मू कश्मीर यात्रा के समय वो उनके साथ थे। वाजपेयी जी ने कई बार कहा कि मुखर्जी ने उनको कहा कि जाओ और देशवासियों को बताओ कि मैं बिना परमिट के कश्मीर में प्रवेश कर गया हूं। जैसा हम जानते हैं डॉ. मुखर्जी वहां से वापस नहीं लौटे।

नेहरु जी अटल जी को बहुत प्यार करते थे। बकौल अटल जी एक बार उन्होंने लोकसभा में कांग्रेस और नेहरु सरकार की नीतियों पर तीखा हमला किया। शाम को एक कार्यक्रम में नेहरु जी ने उनको देखा और कहा कि आज तो बहुत अच्छा भाषण मारे। यह जो उदार व्यवहार था नेहरु जी का उनका असर न हो ऐसा कैसे हो सकता है। 1971 में बंग्लादेश मुक्ति युद्ध के समय अटल जी पूरी तरह सरकार के साथ खड़े थे। यहां तक कि आपातकाल में उन्हें जेल जाना पड़ा।

उस दौरान भी उन्होंने जो कविताएं लिखीं उनमें शासन की आलोचना तो है पर इन्दिरा जी पर कोई सीधी निजी टिप्पणी नहीं। वाजपेयी जी के राजनीति काल में वह समय आया जब 1977 में उन्हें फैसला करना था कि जनसंघ अलग होकर चुनाव लड़ेगा, गठबंधन में या फिर पार्टी का विलय कर दिया जाए। उस समय लालकृष्ण आडवाणी जनसंघ के अध्यक्ष थे। किंतु वाजपेयी जी के प्रभाव से ही यह संभव हुआ कि जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया। जनता सरकार के दौरान विदेश मंत्री के रुप में चीन और पाकिस्तान से संबंध सुधारने की उनकी कोशिश पर लोगों को आश्चर्य हुआ, क्योंकि आम धारणा यही थी कि ये तो पाकिस्तान और चीन के घोर विरोधी हैं।

एक पत्रकार, कवि और दूसरी पार्टियों के नेताओं के साथ संबंध और संवाद का ही प्रभाव था कि जब उनकी पार्टी के सामने 1998 में सरकार बनाने का अवसर आया तो उन्होंने एक साथ कई पार्टियों को साथ लेकर सरकार के लिए एजेंडा बनाकर अपने तीन प्रमुख मुद्दों को बाहर किया। यही वह काल था जब उन्हांेने सरकार बनने के ढाई महीने के अंदर ही पोकरण में 11 और 13 मई 1998 को दो नाभिकीय परीक्षण कराया। पूरी दुनिया इससे भौचक्क रह गई। जाहिर है, उसकी तैयारी में वाजपेयी, रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडिस तथा वैज्ञानिक सलाहकार डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने मिलकर इतनी गोपनीयता बरती कि यह मिशन सफल हो सका।

वाजपेयी जी को मालूम था कि इसकी प्रतिक्रिया दुनिया भर में भारत के विरुद्ध होगी। अमेरिका से लेकर जापान, ऑस्ट्रेलिया सब ने भारत पर कठोर प्रतिबंध लगा दिया। वाजपेयी अपने कदम को पीछे हटाने को तैयार नहीं हुए और विदेश मंत्री जसवंत सिंह के माध्यम से इतना सघन कूटनीतिक अभियान चलाया कि धीरे-धीरे अमेरिका भारत से सहमत हुआ और अन्य देशों के रवैये में बदलाव आया। बाद में यूपीए सरकार के समय अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश एवं हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ जो नाभिकीय सहयोग समझौता हुआ उसकी नींव अटल जी ने ही रखी थी।

वाजपेयी के काल का सबसे बड़ा प्रयास जम्मू कश्मीर को सामान्य स्थिति में लाना तथा पाकिस्तान से हर हाल में संबंध सुधारने की कोशिश के रुप में सामने आया। स्वयं बस लेकर लाहौर जाने का ऐतिहासिक कदम उठाया और मिनारे-ए-पाकिस्तान जाकर यह संदेश दिया कि देश के रुप में भारत पाकिस्तान को स्वीकार करता है। हालांकि वहां से वापसी के कुछ समय बाद ही करगिल युद्ध आरंभ हो गया। बिना सीमा पार किए पाकिस्तान को युद्ध में पूरी तरह परास्त करना तथा इस दौरान दुनिया भर का समर्थन जुटाने का कौशल हमारे सामने है।

संसद पर हमले के बाद सीमा पर सेना को हमला करने की अवस्था में खड़ा कर पाकिस्तान को कुछ घोषणाएं करने को विवश किया। इसके बावजूद जनरल परवेज मुशर्रफ को पहले आगरा बुलाया और बैठक असफल होने के बावजूद प्रयास नहीं छोड़ा। अंततः जनवरी 2004 में वे दोबारा पाकिस्तान गए और मुशर्रफ ने समझौता में स्वीकार किया कि आतंकवाद के लिए अपनी भूमि का उपयोग नहीं करेंगे। आर्थिक नीतियों में उदारवाद के वे समर्थक थे। अपने पूरे कार्यकाल में उन्होंने विरोधी नेताओं के तीखे विरोध को झेलते हुए व्यवहार में कभी तीखापन नहीं लाया।

आज अगर सभी दलों एवं विचारधारा के नेताओं, लोग अटल जी को लेकर द्रवित हैं तो इसमें उनके पूरे जीवन के आचरण का ही योगदान है। अटल जी जैसे राजनेता का व्यक्तित्व वास्तव में अतुलनीय है। इतनी बहुमुखी प्रतिभा और क्षमता तथा उन सबके होते हुए अहं से परे रहककर अपने कर्तव्यों के निर्वहन के प्रति इतना समर्पित रहना सामान्य बात नहीं है। ऐसे व्यक्ति को यह देश कभी भूल नहीं सकता। इतिहास में उनका नाम हमेशा सम्मान से लिया जाएगा। आज के नेताओं के लिए वे विचार और आचरण में प्रेरणा के स्रोत बने रहेंगे।

इन घटनाओं के जिक्र करने का उद्देश्य यह बताना है कि अटल जी के राजनीतिक व्यक्तित्व निर्माण में सबकी सम्मिलित भूमिका थी। चाहे विपक्ष के नेता के रुप में हों, विदेश मंत्री के तौर पर या फिर प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी सम्पूर्ण भूमिका में आपको यह सब परिलक्षित होता है। 1957 में पहली बार लोकसभा पहुंचने के बाद उनके भाषणों को देख लीजिए, उसमें जनसंघ की विचारधारा के अनुसार घटनाओं पर टिप्पणियां हैं, किंतु कहीं भी प. जवाहरलाल नेहरु या उनके साथियों के प्रति एक शब्द भी ऐसा नहीं है जिसे आप सम्मान को कम करने वाला कह सकते हैं।

उस समय कश्मीर से लेकर पाकिस्तान, तिब्बत, केरल में राष्ट्रपति शासन आदि ऐसे अनेक मुद्दे थे जिन पर जनसंघ और कांग्रेस के बीच सहमति नहीं हो सकती। किंतु संसदीय लोकतांत्रिक राजनीति की मर्यादाओं का उन्होंने पूरा पालन किया। 1962 के युद्ध के समय जनसंघ के सारे प्रमुख नेताओं के साथ मिलकर वाजपेयी जी ने सरकार का साथ देने तथा कार्यकर्ताओं को देश भर में जितनी शक्ति हो उसके अनुसार सरकारी मशीनरी का सहयोग करने का निर्णय किया।

अटल की बहुमुखी प्रतिभा के धनि है, वे बहुत अच्छे कवी भी है, जो राजनीती पर भी अपनी कविता और व्यंग्य से सबको आश्चर्यचकित करते रहे है, उनकी बहुत ही रचनाएँ पब्लिश भी हुई है जिन्हें आज भी लोग पढ़ते है. अटल जी को अपनी मातृभाषा हिंदी से भी बेहद प्रेम है, अटल जी पहले राजनेता बने, जिन्होंने यू एन जनरल असेंबली में हिंदी में भाषण दिया था. अटल जी पहली बार सिर्फ 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने थे. इसके 1 साल के बाद वे फिर प्रधानमंत्री बने लेकिन इस बार भी उनका ये सफ़र एक साल का रहा. तीसरी बार अटल जी जब प्रधानमंत्री बने तब उनका कार्यकाल पूरा 5 साल का रहा और ये सबसे अधिक सफल माना गया Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 20:27, 26 अगस्त 2018 (UTC)[उत्तर दें]

बिहार में सरकारी स्कूलों और शिक्षा व्यवस्था की गिरती स्थिति[संपादित करें]

‪बिहार बीमारू पिछड़ा राज्य है ! बिहार में गरीबी है,बेरोजगारी है,बिहार में सरकारी विघालयों में शिक्षा व्यवस्था की हालत बहुत ख़राब है ! विघालय भवन के नाम पर कहीं-कहीं भवन नहीं है ! कहीं भवन है ,तो जर्जर हालत में है ! और कहीं भवन है भी तो समुचित पढ़ाई सुविघा व्यवस्था नहीं है योग्य शिक्षक नहीं है ! योग्य शिक्षकों की बहुत कमी है ! सरकार शिक्षकों से स्कूल पढाई के अलावा अन्य सारे कार्य भी करवाते है ! मतगणना से लेकर जनगणना तक ! सर्वे से लेकर नेताओं के स्वागत तक ! बाढ़ राहत वितरण से लेकर प्राकृतिक आपदा या सफाई संचालन व्यवस्था या मिड डे मिल का भोजन तक ! या फिर समय बचा तो गोस्ठी से लेकर प्रखण्ड की बैठक तक ! शिक्षकों का सारा समय इसी में ख़त्म होता है ! फिर कैसे उन शिक्षकों से अच्छी शिक्षा पढाई की उम्मीद करेंगे आप ! शिक्षामित्र पंचायत शिक्षक के भरोसे पर चल रहा या कहे भगवान भरोसे चल रहा है शिक्षा का संचालन ! क्योंकि ना तो विघायक जी के बच्चे ,या उच्च अधिकारी के बच्चे पढ़ते है इन विघालयों में! फिर कौन दर्द समझेगा ! जनाब,गरीब किसान मजदूरों के बच्चों को पढाई के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है ! यह सडयंत्र है सत्ता में बैठे हुए पावरफूल लोगों का ? जानबूझ कर यह किया जा रहा है ! ताकि गरीब किसान मज़दूरों के बच्चे अनपढ़ बने रहें ! सत्ता-शासन का खेल चलता रहे! जनाब ,सवाल उठाना लाजमी है आज़ादी के ७० साल बीतने के बाद भी आखिर क्यों नहीं हुआ है शिक्षा व्यवस्था का सुघार ? क्यों किसी का घ्यान नहीं है ? क्यों बेख़बर है सत्ता में बैठे लोग ?क्यों बेख़बर है सरकार ? ‬जिनके पास पैसा है वो निजी स्कूलों में बच्चों को पढ़ा रहे है ! जिनके पास पैसे नहीं है वो लाचार बेबस है ! पैसों पर शिक्षा बिक रही है ! विघायक ,सांसद ,मंत्री ,मुख्यमंत्री अधिकारी चुप है ! और गरीब किसान मज़दूरों के नाम पर सत्ता का आनंद ले रहे है ! Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 22:08, 29 अगस्त 2018 (UTC)[उत्तर दें]

बिहार में सरकारी अस्पतालों की दयनीय स्थिति[संपादित करें]

बिहार में सरकारी स्वास्थ्य चिकित्सा व्यवस्था व अस्पतालों की हालत बहुत ख़राब है ! समुचित ईलाज चिकित्सा सुविघा व्यवस्था नहीं है ! योग्य डॉक्टर नहीं है !योग्य विशेषज्ञ डॉक्टरों की बहुत कमी है !और जो डॉक्टर है भी वो अपना निजी क्लीनिक चला रहे है ! उनको निजी क्लीनिक चलाने से फ़ुर्सत नहीं है ! सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा सुविघा व्यवस्था आघुनिक जॉंच उपकरण का घोर अभाव है ! गरीब मज़दूर किसान महिला बुज़ुर्ग अपना ईलाज गॉंव-गली शहर के झोला छाप डॉक्टरों से कराने को मजबूर है ! मरीज़ों का हाल बहुत बुरा है ! बेहतर सफल ईलाज हेतु दिल्ली में 'एम्स' सफ़दरजंग ,राममनोहर लोहिया जैसे बड़े नामचीन अस्पतालों का चक्कर काटने को मजबूर है ! एेसा नहीं है कि बिहार में डॉक्टरों या निजी अस्पतालों की कमी है ! ब्लकि जो निजी अस्पताल या निजी डॉक्टर हैं वो चिकित्सा के नाम पर लूट कर रहें है ! और उनका सफल ईलाज भी नहीं करते है ! ब्लकि डॉक्टर ईलाज के नाम पर मरीज़ों पर ही प्रयोग पर प्रयोग करते रहते है !कई प्रकार का ईलाज कई प्रकार की दवा ! अंजाम मरीज़ों की हालत पहले से ज़्यादा ख़राब हो जाती है और फिर मरीज़ उनके परिजन दिल्ली एम्स की यात्रा करते है या स्वर्ग की यात्रा ! दिल्ली 'एम्स' के बाहर बेबस लाचार ईलाज में बर्बाद हो चुके मरीज़ों का मेला फिर भी जीने की एक चाह लिए दर दर भटक रहे है मरीज़ व उनके परिजन ! जिनके पास पैसा है वो निजी क्लीनिक में देश विदेश में अपना अपने परिवार का ईलाज करा रहे है ! जिनके पास पैसे नहीं है वो लाचार बेबस अपने क़िस्मत को लिए अस्पतालों में दर दर भटक रहे है ! Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 15:10, 31 अगस्त 2018 (UTC)[उत्तर दें]

लंबित मुक़दमों का निष्पादन होना चाहिए ![संपादित करें]

न्याय प्रकिया में देरी होना भी बहुत बड़ा अन्याय है ! देश की निचली अदालतों में करोंडों की संख्या में मुकदमा वर्षों से लंबित परे हुए है ! सुप्रीम कोर्ट में 4 मई 2018 तक लगभग 54.013 मुक़दमें लंबित है ! देश भर के सभी 24 उच्च न्यायालयों में 40.15 लाख मुक़दमें लंबित है ! देश भर के सभी ज़िला व अधीनस्थ अदालतों में 2.50 करोड़ से ज़्यादा मुक़दमों की सुनवाई नहीं हुई है ! 2.65.05.366 मुक़दमें लंबित है ! देश में जजों की संख्या बेहद कम है ! सर्वोच्च न्यायालय में स्वीकृत पदों में 6 जजों के पद ख़ाली है ! सभी हाईकोर्ट में 1048 पदों में 406 पद ख़ाली है ! और ज़िला व अघीन्स्थ न्यायालयों में 5746 जजों के पद ख़ाली परे है ! जनसंख्या के अनुपात हिसाब से अभी हर एक लाख लोगों पर एक जज कम है ! 1987 में क़ानून आयोग की रिपोर्ट की सिफ़ारिशों के मुताबिक़ हर एक लाख लोगो पर कम से कम 5 जज होने चाहिए ! जबकि 1987 से अब तक राष्ट्र की आबादी 25 करोड़ से ज़्यादा बढ़ चुकी है ! जजों की कम संख्या होने से न्याय प्रकिया को देर कर रही है ! लंबित मुक़दमों और न्याय प्रकिया में देरी के कारण न्याय की आस लिए आम लोग दम तोड़ देते है ! स्वर्ग पहुँचने पर भी न्याय नहीं मिल पाता है ! न्याय प्रकिया में विल्मब तारीख़ पर तारीख़ लेकर अदालतों का चक्कर दर दर न्याय की आश लिए भटक रहें है दम तोड़ने को मजबूर है ! जबकि पैसों वालों के लिए पावरफुल व्यक्तियों के लिए आधी रात को न्यायालय का दरवाज़ा खुल जाता है ! पूरी रात सुनवाई होती है ! क्या कभी गरीब असहाय लाचार को न्याय दिलवाने हेतु आघी रात को अदालतों के दरवाज़े खुले है जनाब ? क्योकि गरीब लाचार मघ्यमवर्गीय लोगों के पास पैसे पैरवी मंहगे वक़ील नहीं है ? पैसे नहीं है महँगे विकाऊ पैरवीकार वक़ील रखने के लिए ! पैसे पैरवी नहीं है जो सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटा सके जनाब ! माननीय प्रघानमंत्री जी से आम करोड़ों मघ्यमवर्गीय गरीब लोगों को बहुत आशा विश्वास और उम्मीदें है ! इसिलिए सभी निचली अदालतों से लेकर सभी उच्च व सर्वोच्च न्यायालय तक में लंबित परे सभी मुक़दमों का निष्पादन यथाशीघ्र किए जाने की आवश्यकता है! ताकि अदालतों को मंदिर व जजों को भगवान मानने वाले गरीब आम लोगों में न्यायिक प्रकिया पर भरोशा विश्वास यू ही अटल बना रहे ! Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 21:56, 2 सितंबर 2018 (UTC)[उत्तर दें]

समाज सेवा के मूलमंत्र[संपादित करें]

समाज सेवा के 6 मूल मंत्र:- 1. समाज के लिए लड़ाई लड़ो. 2. लड़ नही सकते तो लिखो. 3. लिख नही सकते तो बोलो. 4. बोल नहीं सकते तो साथ दो. 5. साथ भी नहीं दे सकते तो जो लिख और बोल रहे हैं, जो लड़ रहे हैं, उनका अधिक से अधिक सहयोग करें, संघर्ष के लिए ताकत दें. 6. ये भी न कर सकें तो कम से कम मनोबल न गिरायें, क्योकि कहीं न कहीं कोई आपके हिस्से की भी लड़ाई लड़ रहा है.।। Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 19:05, 18 सितंबर 2018 (UTC)[उत्तर दें]

पितृदोष क्या होता है[संपादित करें]

पितर या पितृ गण कौन हैं ?

पितृगण हमारे पूर्वज हैं जिनका ऋण हमारे ऊपर है ,क्योंकि उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन के लिए किया है | मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है,पितृलोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है| आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है ,वहाँ हमारे पूर्वज मिलते हैं |अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया |इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार पर सूर्य लोक की तरफ बढती है | वहाँ से आगे ,यदि और अधिक पुण्य हैं,तो आत्मा सूर्य लोक को बेध कर स्वर्ग लोक की तरफ चली जाती है,लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है ,जो परमात्मा में समाहित होती है | जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता |मनुष्य लोक एवं पितृ लोक में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं|

पितृ दोष क्या होता है?

हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं ,और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैंऔर न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और ना ही किसी भी अवसर पर ये हमकोयाद करते हैं,ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं,जिसे"पितृ-दोष"कहा जाता है | पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है.ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है |पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं,आपके आचरण से,किसी परिजन द्वारा की गयी गलती से ,श्राद्ध आदि कर्म ना करने से ,अंत्येष्टि कर्मआदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है | अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध ,चीनी ,सफ़ेद कपडा ,दक्षिणा आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए |

पितृ पक्ष में पीपल की परिक्रमा अवश्य करें |अगर १०८ परिक्रमा लगाई जाएँ ,तो पितृ दोष अवश्य दूर होगा |

विशिष्ट उपाय :

किसी मंदिर के परिसर में पीपल अथवा बड़ का वृक्ष लगाएं और रोज़ उसमें जल डालें उसकी देख -भाल करें ,जैसे-जैसे वृक्ष फलता - फूलता जाएगा,पितृ -दोष दूर होता जाएगा,क्योकि इन वृक्षों पर ही सारे देवी -देवता ,इतर -योनियाँ ,पितर आदि निवास करते हैं |

दहेज प्रथा अभिशाप है ![संपादित करें]

यहां नोटों पर होता मतदान है लोभ के कारण बिकता ईमान है दहेज के कारण बेटी जाती शमशान है तो क्या यही हमारे सपनों का हिंदुस्तान है

दहेज प्रथा के फलने फूलने के पीछे पुरुषों का अहंकार लोभ एवं लालच काम करता है आजकल विवाह संबंध जुड़ने की नींब ही दहेज की मांग के साथ होती है यदि किसी कारणवश वधू पक्ष वर पक्ष के आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतरता है तो वधू को उसका दंड आजीवन भुगतना पड़ता है

उच्च घरों के लोग भी इससे अछूते नहीं हैं मनचाहा दहेज ना मिलने पर वधू को प्रतारित किया जाता है ताकि वह पुनः वापस जाकर अपने माता पिता से मनचाहा दहेज लेकर आए और ऐसा नहीं करने पर उसे तरह तरह की यातनाएं दी जाती है स्त्री माता पिता के मान-सम्मान सामाजिक लोकलाज एवं पुरुषवादी मानसिकता के आगे नतमस्तक होकर समझौता करती हैं एवं परिवार के अनुचित फैसले को स्वीकार करते हुए खुद के जीवन स्वाभिमान की आहुति दे देती है

क्या इससे परिवर्तन होगा...? क्या इससे समाज बदलेगा...? क्या इससे दहेज से मुक्ति मिलेगी...? कौन नहीं जानता कि दहेज लेना देना प्रशासनिक व्यवहारिक सामाजिक रुप से बिल्कुल गलत है दहेज प्रथा से सबसे ज्यादा प्रभावित निर्धन लोग होते हैं जिन्हें विवाह में सेठ साहूकारों से धन उधार लेना पड़ता है सेठ साहूकार भी उनका आर्थिक शोषण करते हैं और वर पक्ष भी.... यह कैसी नैतिकता है और यह कैसा समाज है दहेज के कारण कई लोगों को अपनी पैतृक संपत्ति तक बेचनी पड़ती है यह सब देखकर बेटियां घर के अंदर अंधेरी कोठरी में सुबकती रहती है रोती रहती हैं बिलखती रहती हैं और अपने माता-पिता की दयनीय स्थिति देखते हुए खुद को कोसती रहती है किंतु उनके पीरा को कोई नहीं समझता उनके आंसू किसी को नहीं दिखते

हमेशा बेटियां ही क्यों जलाई जाती है कोख में बेटियों की ही क्यूं हत्या की जाती है माता पिता के ना चाहते हुए भी उनका जन्म दुर्भाग्यवश हो जाए तो ऐसा प्रतीत होता है कि जिंदा रहते ही उनका देहावसान हो गया है जन्म से लेकर मृत्यु तक बेटियों को सामाजिक दुराग्रह के आग में जलते रहना पड़ता है जन्म शिक्षा संस्कार और मृत्यु हर जगह बेटियों को पक्षपात का शिकार होना पड़ता है

माता पिता जिस प्रकार बेटे का लालन पालन करते हैं अगर समान दृष्टिकोण से बेटियों को भी संस्कार शिक्षा दे तो बेटियां बेटों से कम नहीं है यह उन्होंने प्रमाणित भी किया है

Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 07:53, 24 सितंबर 2018 (UTC)[उत्तर दें]

सेकलुरिज्म का पाखंण्ड[संपादित करें]

सेकुलरिज्म का पाखंड

राजनीति में जिस तरह से सेक्युलरिज्म की दुहाई दी जाती है वो हमेशा से ही झूठी और विकृत पंथनिरपेक्षता से ज़्यादा और कुछ नहीं होती l

आज बस ये नेताओं के द्वारा वोट मांगने का ज़रिया मात्र रह गई है l ध्यान देने पर ये किसीको भी दिख सकती है l सेक्युलरिज्म पर आए दिन विवादों का साया इसलिए भी रहता है क्योंकि हमारे देश में इसकी कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है l

फिर बात चाहे संविधान की हो या संसंद में कानून बनाने की बात हो या सुप्रीम कोर्ट के द्वारा अबतक किसी निर्णय की l सबसे दुखदायक बात तो ये है कि नेताओं, सुप्रीम कोर्ट और दुलारे बुद्धिजीवी वर्ग ने भी इस शब्द को अस्पष्ट रहने देने की सिफारिश की है. इसी के सहारे देश में एक विशेष प्रकार की राजनीति की जाती है जो हिंदू विरोधी है और इसी का लाभ लेकर देश-विदेश की भारत विरोधी शक्तियां भी अपना कारोबार करती रहतीं हैं l इस देश में बौद्धिक विचार-विमर्श में प्रायः हिंदू शब्द को केवल उपहास या गाली देने के रूप में प्रयोग किया जाता है l भारत में सेक्युलरिज्म आज हिंदू सभ्यता के विरुद्ध एक चुनौती बनकर उभरा है. अगर इतिहास की तरफ मुड़ा जाए तो ज्ञात होगा कि भारतीय सभ्यता जब अपने उत्कर्ष पर थी तो हिंदू सभ्यता के ही कारण, जिसने संपूर्ण विश्व को गणित, दर्शन, धर्म और साहित्य तक हर ओर बेशकीमती उपहार दिए किंतु आज यही बात कहना हिंदू सांप्रदायिकता कहलाने लगता है l

बड़े ही आश्चर्य की बात है कि दुनिया के इस सबसे बड़े हिंदू देश में हिंदू-विरोध ही सेक्युलरिज्म की और बौद्धिकता की कसौटी बन गया है l अपरिभाषित सेक्युलरिज्म के डंडे से ही हिंदू मंदिरों पर सरकारी कब्ज़ा कर लिया जाता है इतना ही नहीं कई मंदिरों की आमदनी से दूसरे समुदाय के धार्मिक कर्मकांडों को करोंड़ों का अनुदान दिया जाता है हद तो तब हो जाती है जब एक ही कार्य के लिए ईसाई कार्यकर्त्ता को पद्म विभूषण दिया जाता है वहीं हिंदू समाजसेवी को सांप्रदायिक कहकर उसका अपमान किया जाता है नितांत अप्रमाणित आरोप पर भी जहाँ हिंदू धर्माचार्य गिरफ्तार कर अपमानित करते हैं जबकि दूसरे धर्मों के धर्मगुरुओं को देशद्रोही बयान देने, संरक्षित पशुओं को अवैध रूप से अपने घर में लाकर बंद रखने पर भी उन्हें छुआ तक नहीं जाता l उल्टे उन्हें राजनीतिक निर्णयों में विश्वास में लेकर उनकी शक्ति बढ़ा दी जाती है l खुंकार आतंकवादियों को भी लादेन जी एवं अफज़ल साहब जैसा सम्मानित संबोधन किया जाता है l सेक्युलरिज्म अगर वैधानिक रूप से परिभाषित हो गया तो फिर कोई भी मनमानी नहीं की जा सकेगी l

इसकी अस्पष्टता के कारण ही आज शिक्षा से लेकर राजनीति तक हर ओर भारत में अन्य समुदायों को हिंदुओं से अधिक अधिकार मिले हुए हैं l

Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 18:31, 25 सितंबर 2018 (UTC)[उत्तर दें]

भारत के इतिहास को अंग्रेज़ी इतिहासकारों यूनानी इतिहासकारों ने दुनियाँ के सामने ग़लत तरीक़े से पेश किया[संपादित करें]

भारत का इतिहास अंग्रेजों और वामपंथियों ने लिखा है! जिसके चलते देश के हिन्दू और मुसलमानों में भ्रम और द्वेष की स्थिति फैल गई, जो आज तक फैली हुई है। इतिहास के इस भ्रम और झूठ को हटाकर अब लोगों को सत्य बताने का कोई मतलब नहीं है। लेकिन इतिहास के सच को उसी तरह लिखा जाना चाहिए, जैसा कि वह है। जस का तस। किसी भी प्रकार की सचाई को छिपाना इतिहास के साथ खिलवाड़ करना है। जिस देश के पास अपना खुद का कोई सच्चा इतिहास नहीं, उस देश के नागरिकों में राष्ट्रीयता और गौरवबोध की भावना का विकास होना भी मुश्किल होता है। इस गौरव और राष्ट्रीयता की भावना को मिटाने के लिए ही यहां के हिन्दू और मुसलमानों के इतिहास को अंग्रेजों और वामपंथियों ने भ्रमपूर्ण और तथ्यहीन बनाकर छोड़ दिया।उल्लेखनीय है कि संपूर्ण भारत पर कोई विदेशी पूर्णत: शासन नहीं कर पाया। हिन्दूकुश से लेकर अरुणाचल तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक युधिष्ठिर और उसके पूर्ववर्ती राजाओं के अलावा राजा विक्रमादित्य ,चंद्रगुप्त मौर्य और मिहिरकुल ने ही संपूर्ण भारत पर शासन किया था। इसके बाद अंग्रेज काल में अफगानिस्तान को भारत से मुगल काल में ही अलग कर दिया गया था। ऐसे में अंग्रेजों ने जिस भारत पर शासन किया, वह एक खंडित भारत था। सन् 187 ईपू में मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भारतीय इतिहास की राजनीतिक एकता बिखर गई। अब हिन्दूकुश से लेकर कर्नाटक एवं बंगाल तक एक ही राजवंश का आधिपत्य नहीं रहा और छोटे-छोटे जनपदों में देश बिखर गया। इस खंडित एकता के चलते देश के उत्तर-पश्चिमी मार्गों से कई विदेशी आक्रांताओं ने आकर अनेक भागों में अपने-अपने राज्य स्थापित कर लिए। इन विदेशियों के कारण ही भारत में एक ओर जहां वैचारिक ‍भिन्नता का जन्म हुआ, वहीं विदेशी धर्मों का भी विकास हुआ। विदेशी लोगों के आगमन से जो एक सामाजिक तनाव उत्पन्न हुआ, उसका असर आज तक हमारे देश भारत पर देखने को मिलता है। उनके कारण जहां अखंड भारत खंड-खंड होता गया, वहीं भारतीयों में ही अब धर्म, जाति आदि के नाम पर फूट हो गई। जातियों के प्रति गहरी आस्था का कारण आज भारत देश में जो भी जातियां, धर्म या समाज नजर आते हैं, उन सभी की शुरुआत ईसा की प्रारंभिक तीन-चार शताब्दियों में हुई थी।विदेशी आक्रांताओं ने भारत पर शासन करके भारतीय अस्मिता और गौरव को लगभग नष्ट करने का भरपूर प्रयास किया। हॉं उनमें से कुछ ऐसे भी शासक हुए थे जिन्होंने भारतीय धर्म और संस्कृति को संरक्षण प्रदान कर भारतीय जनता को जीने का अधिकार दिया। Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 18:21, 11 अक्टूबर 2018 (UTC)[उत्तर दें]

सिंकदर महान नहीं था ! ब्लकि राजा पोरस वीर निर्भीक महान योद्धा और भारत का बेहतर राजा शासक था[संपादित करें]

अजीब लगता है :-जब भारत में सिकंदर को महान कहा जाता है और उस पर गीत लिखे जाते हैं। उस पर तो फिल्में भी बनी हैं जिसमें उसे महान बताया गया और एक कहावत भी निर्मित हो गई है- 'जो जीता वही सिकंदर'। यदि सचमुच में हमारे इतिहासकारों ने अंग्रेज़ी इतिहासकार यूनानी इतिहासकार को नहीं ब्लकि भारतीय इतिहासकारों को पढ़ा होता सच का अध्ययन किया होता तो वे कहते... 'जो जीता वही पोरस'। लेकिन अंग्रेजों की चमचागीरी 200 वर्षों की गुलामी ने अंग्रेज भक्त ही बना दिया ! भारत का इतिहास दुनियां में सबसे पुराना व गौरवपूर्ण इतिहास रहने के बाद भी भारत के वीर महापुरूषों की सच की गाथा को दबा दिया गया ! Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 18:26, 11 अक्टूबर 2018 (UTC)[उत्तर दें]

घ्रुमपान गुटखा खैनी बीड़ी सिगरेट पर लगनी चाहिए प्रतिबंघ  ![संपादित करें]

देश में गुटखा बीड़ी सिगरेट खैनी खाने-चबाने से ओरल कैंसर जीभ-जबड़े का कैंसर गले अॉंत का कैंसर से लगातार लोगों की मृत्यु हो रही है ! और ईलाजोपरान्त शारीरिक समाजिक रूप से लोग अपंग विकलांग हो रहे है ! जबकि इन उत्पाद को उत्पादन कर मुनाफ़ा कमाने वाली कम्पनियॉं पैसा कमाने के लिए उत्पाद द्वारा मौत का ज़हर परोस रही है। उत्पाद करने वाली कम्पनियॉं अपने पेशे के चक्कर में पैसा कमाने के होड़ में इस तथ्य को नहीं पचा पाती है कि उनके उत्पाद द्वारा देश में कितने परिवार बर्बाद हो रहे है ! कितने परिवारों के लोगों का जीवन उजड़ रहा है ! कितने लोगों की मौतें हो रही है ! एक सर्वे के अनुसार देश में 42% कैंसर से पीड़ित पुरूष लोगों की मृत्यु और 18.5 % महिलाओं की मृत्यु ओरल कैंसर से मृत्यु का कारण बना है !जनाब तकलीफ़ तो तब होती है जब इनके उत्पाद को अपना चेहरा दिखाकर वस्तुओं को बेचने वालों में वॉलीबुड के नामचीन हस्ती अभिनेता अजय देवगन ,मलाइका अरोड़ा ,संजयदत्त ,जैसे कई स्टार पैसों के लिए विज्ञापन कर रहे है ! और सरकार एसे गम्भीर मसलों पर चुप है ! सरकार द्वारा केवल दिखावे के लिए सरकारी विज्ञापन सरकारी अस्पतालों में प्रचार-प्रसार पोस्टर पर दिखाकर सरकारी पैसे का बर्बाद हो रहा है ! तो नीति नीयत पर सवाल उठाना लाज़मी है ! काश सख़्ती से कठोर क़ानून बनाने का काम होता ? गुटखा पान पराग, शिखर, रजनीगंधा जैसे मसालों पर पूर्णतः रोक बहुत ज़रूरी है ! साथ ही मॉं बहनों बेटियों बच्चों से मेरी विनती है अपने अपने परिवारों की रक्षा हेतु अपने परिवारों की रक्षा के लिए शपथ लें तो मॉं पिता बेटों भाइयों को जिंदा ज़रूर रख सकते हैं। पिता भाईयों बेटों से भी विनती है मॉं बहनो बेटियों के लिए इससे बड़ा कोई सौगात कुछ नही होगा। सो प्लीज़ इस पर अमल ज़रूर करें। सरकार से आग्रह करता हूँ इसको राजस्व का नुकसान न देखे। आईए सब साथ मिलकर देश में सामाजिक क्रांति लाएँ !! विनय कुमार प्रदेशमंत्री भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा बिहार प्रदेश ! ब्रहमपुर कुशेश्वर स्थान दरभंगा बिहार Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 21:39, 12 नवम्बर 2018 (UTC)[उत्तर दें]

औरतों का सम्मान होना चाहिए[संपादित करें]

औरत खिलौना नही बल्कि ईश्वर/अल्लाह के बाद वो शख्स है जो मौत की गोद मे जाकर जिंदगी को जन्म देती है। तदुपरांत वहीं ज़िन्दगी जन्म देने वाली मॉं व औरत समाज को ही दुनियाँ के समाने नंगा करता है अश्लीलता परोसता है ! बेइज़्ज़त जुल्म, शोषण मर्दन मान-सम्मान उसके अस्तित्व को तार-तार करता है ! जबकि औरत सिर्फ बच्चे को जन्म देने वाली मॉं नहीं ब्लकि पूरी दुनियाँ की सृष्टिकर्ता है ! इसलिए औरतों का सम्मान करें ! बेइज़्ज़त मर्दन या अपमान तिरस्कार नहीं। Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 16:54, 30 नवम्बर 2018 (UTC)[उत्तर दें]

बिहार में शराबबंदी क़ानून या तमाशा[संपादित करें]

बिहार में पूर्ण शराब बंदी है तो फिर हर गॉंव शहर मोहल्ले में शराब की क्यों बरामदगी हो रही है! इसमें कोई शक है क्या सरकार प्रशासन पिछले दरवाज़े से शराब की तस्करी शराब बिक्री से निजी उगाही कर रही है ? केवल लोगों को बेवक़ूफ़ बनाने हेतु शराबबंदी हुई ! तो जब इसी तरह शराब बेचना था फिर बेवजह बिहार सरकार के राजस्व को नुक़सान क्यों पहुँचाया गया ! माननीय शुशासन बाबू जो शराब पहले 100 में मिलता था वही शराब की बोतल 500 में घरल्ले से गॉंव शहर मोहल्ला में मिल रहा है ! फिर शराबबंदी का क्या मतलब ? जनता को बेवक़ूफ़ बनाने का नया तरीक़ा ! Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 08:06, 5 जनवरी 2019 (UTC)[उत्तर दें]

देर से न्याय मिलना भी अन्याय है[संपादित करें]

देर से न्याय मिलना भी अन्याय है ! जहॉं तक भ्रष्टाचार की बात है तो न्यायपालिका भी भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है जनाब ! देश में निचली अदालतों से लेकर सर्वोच्च अदालत तक लाखों मुकदमें लंबित परे है ! न्याय की एक आस के इंतज़ार में कोर्ट के दरवाज़े पर दौड़ते दौड़ते दम तोड़ देती है ज़िन्दगी और बदले में मिलती है फिर एक तारीख ? तारीख पर तारीख ? माननीय मीलार्ड को कौन कहें और क्या कहे किसकी हिमाक़त है ?मीलार्ड तो भगवान है अपने मर्ज़ी से आते है मर्ज़ी से जाते है ! निचली अदालतों में मीलार्ड के आँखों के सामने नीचे कोर्ट पेशकार ,चपरासी मनचाहा तारीख देने का पैसे लेते है! तब मीलार्ड की आँखें सबूत गवाह नहीं देखती ! क्योंकि न्याय की देवी के आँखों पर पट्टी जो बंधी है ! Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 18:32, 27 जनवरी 2019 (UTC)[उत्तर दें]

नहीं रहे जार्ज साहब[संपादित करें]

जार्जसाहब हमारे बीच नहीं रहे हैं।लंबी बीमारी से जूझ रहे पूर्व रक्षामंत्री जार्ज फर्नान्डीस का निधन हो गया है! सर्वश्रेष्ठ, महान नेताओं में से एक,ट्रेड यूनियन लीडर से रेल मंत्री,उद्योगमंत्री और रक्षा मंत्री तक का सफर तय करने वाले,इमरजेंसी के दौर से आखिरी समय तक जननायक रहे परम आदरणीय श्री जार्ज फर्नांडिस साहब के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करता हूँ।

जॉर्ज साहब को जीते जी भूलने वाले आज आंसू बहा रहे हैं! माननीय नीतिश कुमार जी को सत्ता की चोटी पर पहुँचाने वाले जार्ज साहब ही थे! कोटि कोटि विनम्र श्रद्धांजलि💐जार्ज साहब Vinay Kumar kusheshwar asthan (वार्ता) 19:48, 29 जनवरी 2019 (UTC)[उत्तर दें]