सदस्य वार्ता:Swamiharshanand

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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 15:11, 24 अगस्त 2012 (UTC)[उत्तर दें]

योग दर्शन[संपादित करें]

(१)जल की एक एक बूंद मे औषधीय शक्तियों का खजाना छिपा है ।

(२)पेड़ो की एक एक पत्ती सूर्य का संपर्क पाकर आक्सीज़न फैक्ट्री के रूप मे कार्य करती है ।

(३)सूर्य सबसे पहले केसरिया बाना पहनकर सारे संसार को ऊर्जा से भर देता है ।

(४)शब्द ध्वनि के सेवक है ।

(५)शारीरिक, मानसिक एवं अध्यात्मिक शक्ति केंद्र अलग -अलग आहार ग्रहण करते है -- swamiharshanand

क्या आप जानते है ?[संपादित करें]

अपान वायु अगर अपना धर्म निभाना भूल जाये तो मल,मूत्र ,पसीना तथा माँ के गर्भ से बच्चे का बाहर आना ही रुक जाये

क्या आप जानते है ?

संसार का कोई भी व्यक्ति किसी भी ज्ञान के बल पर श्वास लेते समय एक शब्द तो क्या एक स्वर का उच्चारण भी नहीं कर सकता

संसार की समस्त उपासना विधिया मानव के दिमाग की उपज है, प्रकृति की प्राकट्य सता पञ्च तत्व जल ,पृथ्वी ,आकाश , वायु तथा अग्नि है जिसे प्राणं शक्ति अपने भीतर समाहित करके बहती रहती है

क्या है योग ?[संपादित करें]

पञ्च महाभूत -जल ,पृथ्वी ,आकाश, वायु तथा अग्नि के स्वरुप से परिचित होना, वायु कैसे अद्रश्य रहकर सारे तत्वों का नेतृत्व करती है अग्नि सदेव ऊपर की और ही क्यों जाती है ,जल नीचे की और ही क्यों बहता है ,श्वास लेते समय मानव की स्वर शक्ति बंद क्यों हो जाती है दुनिया का कोई ऋषि ,मुनि, पीर, फकीर ,औलिया या वैज्ञानिक ऐसा नहीं जो किसी भी ज्ञान के बल पर मानव शरीर के भीतर से कार्बन डोई आक्साइड की जगह आक्सीज़न का उत्सर्जन कर सके प्रकृति ने यह कार्य पेड़ो की पत्तियों को सोपा है , हमें सीखना तथा समझना चाहिए की हमारा जीवन ,जल और पेड़ पौधों से कैसे विकसित होता है, जिसे नष्ट कर हम प्रकृति के ताने बाने से खिलवाड़ कर रहे है ।

जरा सोचिये ?

हमें विरासत मै क्या मिला और हम अपनी विरासत को क्या देने जा रहे है दुनिया खारे पानी को पीने लायक बना रही है और हम विश्व का गुरु बनने का सपना लिए सारी पवित्र नदियों को गंदे नालो मै बदलते जा रहे है >>>>>>क्या यह उचित है ? -- swamiharshanand

'अपराध से अध्यात्म की और '[संपादित करें]

योग दर्शन परमार्थिक ट्रस्ट - अपराधो की सजा भुगत चुके व्यक्तियों को समाज की मुख्य धारा मे लाने के लिए एक सर्व सुविधा युक्त "क्राइम विलेज"" मुंबई मे स्थापित कर रहा है, जिसमे उन्हें अपनी नेसर्गिक क्षमता के अनुरूप कार्य करने का अवसर दिया जायेगा ,इस पवित्र कार्य के लिए बेशकीमती ४११ एकड़ भूमि श्री महंत काशीनाथ जी ने दान की है ,इस भूमि पर समाज के उस वर्ग से एक नया इतिहास रचाया जाना है, जिसे समाज ने हमेशा के लिए अपराधी मानकर अस्वीकार कर दिया ।

भारत का इतिहास गवाह है कई डाकू ,लुटेरे जिन्हें समाज हिकारत की नज़र से देखता था उन्होंने धर्म का पथ चुनकर अपनी सारी शक्ति व क्षमता को समाज के निर्माण मे लगा दिया तब वह समाज के हीरो बन गए ।

प्रसंगवश ट्रस्ट द्वारा देश की कई जेलों में" अपराध से अध्यात्म की और " शिविर लगाते हुए महसूस किया गया की भारत की जेलों मे अनगिनत लोग बेक़सूर होकर भी सजा भुगत रहे है, जिन्हें एक अवसर की तलाश है वह उच्च कोटि के मानव स्वरुप को समाज के समक्ष प्रदर्शित कर अपना बचा जीवन समाज को देना चाहते है -ऐसे अनगिनत धर्म योद्धाओ की आवाज बनकर ट्रस्ट इस देश ही नहीं बल्कि सारी दुनिया के सामने यह द्रश्य प्रस्तुत करना चाहता है की संसार मे पूरा बुरा व्यक्ति एक भी नहीं है , अगर हम लोग उन्हें सुधरने का अवसर दे, तब वह अपनी शक्ति ,क्षमता का बेहतर उपयोग कर सकते है ।

जरा सोचिये ? एक व्यक्ति जो किये अपराध की सज़ा भुगत चुका है उसे बार बार सज़ा देना क्या मानवता है फिर उसके मन मे जो विकार उठेगे उसकी परिणिति क्या होगी वह फिर से बगावत करेगा और अधिक ताकत से करेगा क्योकि अब उसके पास कोई विकल्प नहीं है, समाज उसे पहले ही नकार चुका है, ऐसी स्थिति मे उसे बड़ी सदभावना की जरुरत होती है ।

मानव एक सामाजिक प्राणी है ,जिसे कदम कदम पर समाज की जरुरत होती है, बिना समाज के वह देवता या दानव बन जाता है ।

लगातार दानवो की तादात बढती जा रही है ,कारण साफ है हम लोग अपनी नीति और नीयत मे खोट रख्खे है ,जिसे दूर कर हम एक अच्छे समाज का निर्माण कर सकते है| --

                      स्वामी हर्षानंद
                                          "योग दर्शन " -"रंगों की भाषा "

केसरिया सूर्य(अग्नि ) की पहली किरणों से ,सफ़ेद जल से ,नीला आकाश से तथा हरा -पृथ्वी (पीला ) और आकाश (नीला )के समन्वय से प्रकट होता है । swamiharshanand

                                                "योग दर्शन "

समय से बड़ा और मूल्यवान - "शिक्षक "संसार में कोई नहीं । " शिक्षा" का मतलब है -बीज में समाहित पेड़ को अपने पूर्ण स्वरुप में प्रकट कर देना । साधू समाज को जगाकर तथा शिक्षक पदाकर मानव को महामानव बनाकर प्रकृति कि बगिया को और अधिक संवार सकते है ।

                                                    "योग दर्शन "

मानव शरीर अकूत शक्तियों का भंडार है -इन शक्तियों को खोजने के लिए सिर्फ १५ मिनिट तक बिना हिले -डुले किसी भी मुद्रा में बैठने के अभ्यास की जरुरत है । उस समय - शरीर को ,प्राण को ,विचारो को साधना होता है तीनो जब एकता के सूत्र में बंध जाते है तब विज्ञानमय कोष खुलता है । यह कोष एक डॉट की भूल भी बर्दाश्त नहीं करता । आज के साधन- मोबाइल ,नेट ,ए.टी.एम के उपयोग कर्ता भलीभांति समझ सकते है कि छोटी सी भूल का क्या परिणाम सामने आता है । अगर विज्ञानमय कोष नियंत्रित हो जाता है तब आनंदमय कोष अपना रास्ता देता है । फिर आपके शरीर रूपी साधन में मौजूद रहस्यों से आपकी मुलाकात आपको भिखारी से राजा बना देती है ।

                                                               swamiharshanand
                                               "योग दर्शन "
                       शरीर से इन्द्रिया बहुत प्रबल है ,इन्द्रियों  से मन (विचार )
                            मन से बुद्धि ,बुद्धि  से चित्त ,चित्त से अहंकार ।
                            अहंकार के बिना मानव एक कदम भी आगे नहीं बड़ा सकता ।
              साधना के बल पर यह सब एक रूप हो जाये तो मानव अपने भीतर छिपी दिव्य शक्तियों से रूबरू हो सकता है ।