सदस्य वार्ता:Rao hema gahlot

पृष्ठ की सामग्री दूसरी भाषाओं में उपलब्ध नहीं है।
विषय जोड़ें
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
Latest comment: 1 माह पहले by 103.15.254.82 in topic राव हेमा गहलोत
स्वागत!  नमस्कार Rao hema gahlot जी! आपका हिन्दी विकिपीडिया में स्वागत है।

-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 17:47, 24 जनवरी 2022 (UTC)उत्तर दें

राव हेमा गहलोत[संपादित करें]

*वीर_शिरोमणी_राव_हेमा_गहलोत*

( गढ़ मंडोर - मारवाड़ के रक्षक और बालेसर इन्दा प्रतिहारो के प्रधानमंत्री )

*"हेमा घोड़ो जोत गुडबेल दान दीनो तुरकवी तोड़ हिन्दवाणी ने तिलक दी ने गढ़ पलट (फतह) किना गढ़ मण्डोर के खेड़े राव चूड़ा के वार"*

इतिहास बहुत सारी वीर-गाथाओं और उदाहरणों से भरा पड़ा है, जहाँ वीरों ने अपने पुरूषार्थ, निष्ठा, स्वतंत्रता, सच्चाई, वीरता, कर्तव्यपरायणता, गौरव और संकल्प को बरकरार रखते हुए पराक्रम दिखाया है। वीर राव हेमा गहलोत राजस्थान के इतिहास में इन प्रसिद्ध लोगों में से एक थे।

इतिहास पुरूष "वीर शिरोमणी राव हेमा गहलोत" का जन्म

#सैनिक_क्षत्रिय समाज में नागौर जिले के कुचेरा कस्बे में पिता राव पदम गहलोत व माता गंवरीदेवी (पुत्री प्रेमजी सोलंकी) के घर हुआ। राव हेमा गहलौत के कुछ परिवारजन बहुत पहले से ही जोधपुर के मण्डोर में बस चुके थे। बाद में राव हेमा के परिवार के लोग भी मण्डोर आकर बस गये। वीर हेमा गहलोत की शादी पार्वती देवड़ा (पुत्री रामजी देवड़ा) के साथ हुआ। राव हेमा के जन्म एवं मृत्यु की तिथि का उल्लेख न तो राव-भाटों की बही में मिलता है, और न ही कहीं ऐतिहासिक जानकारी। इतिहास में दर्ज जानकारी के अनुसार वीर शिरोमणि राव हेमा की मृत्यु मण्डोर के प्रथम शासक राव चूड़ा के समय हुई बताते है।

वीर शिरोमणि राव हेमा गहलोत बालेसर इंदा परिहार मण्डोर के प्रधान थे। इनके सहयोग से सन् 1395 ई. में तुर्कों पर विजय पायी थी। वीर हेमा के मण्डोर आगमन से पहले दिल्ली में सल्तनत कमजोर होने से गुजरात के सुबेदार जफर खां मण्डोर और नागौर का मुखिया बन बैठा और मण्डोर में अपने हाकिम के रूप में ऐबक खां को नियुक्त किया। ऐबक खां ने हाकिम बनने के साथ ही प्रजा को परेशान करना प्रारम्भ कर दिया। उसने किसानों को ज्यादा लगान देने के लिए मजबूर किया। जिससे किसान बर्बाद होने लगे। इधर ऐबक खां के हाकिम रहते गायों की चोरियां बढने से किसानों को चिंता सताने लगी। इंदा परिहारों व मण्डोर क्षेत्र के किसानों एवं जमींदारों में इतनी शक्ति नहीं थी कि वे ऐबक खां का मुकाबला कर सके। इसी दौरान ऐबक खां ने मण्डोर के किसानों, जमींदारों से साधारण लगान के अलावा अपने घोड़ों के लिए सौ बेलगाड़ियां घास की अनुचित मांग रख दी। इससे सारे किसान परेशान व हताश हो गये। ऐबक खां की बढती नाजायज मांग को देखते हुए वीर राव हेमा गहलोत के नेतृत्व में जमींदारों, किसानों ने एक योजना को रूप दिया।

जमींदारों, किसानों ने गुप्त रूप से तैयार योजना को अंजाम देने के लिए वीर शिरोमणि हेमा गहलोत के नेतृत्व में यह तय किया कि हमेशा-हमेशा की परेशानी से निजात पाने के लिए योजनाबद्ध ढंग से आक्रमण कर तुर्कों को यहां से भगाकर पुनः मण्डोर पर कब्जा कर लिया जाये। इस योजना के अन्तर्गत यह तय हुआ कि ऐबक खां के सौ बेलगाड़ी घास की मांग को योजना का रूप देते हुए प्रत्येक बैलगाड़ी में चार-चार हथियारों से युक्त जंगी जवानों को घास के बोरों में छुपा दिया, वहीं बैलगाड़ी हांकने वाले जवानों को भी घास- फूस से ढके हथियारों के जखीरे के साथ भेजा गया। कुल पांच सौ जवानों को इस योजना मे शामिल कर मण्डोर किले पर आक्रमण के लिये भेजा गया।

किले के दरवाजे पर पहुंचकर हाकिम ऐबक खां को घास की सौ गाड़िया पहुचनें की सूचना दी गई। ऐबक खां इस बात से बहुत खुश हुआ और उसने अपने भांजे को घास परखने के लिए भेजा। ऐबक खां के भांजे ने घास से भरी एक बैलगाडी में भाला मारा। वह भाला एक जवान की जांघ में लगा। जवान ने बड़ी चतुराई से दर्द को सहन करते हुए भाले को बाहर जाने दिया। भाले के कठिनाई से अन्दर जाने व बाहर निकलने पर ऐबक के भांजे ने घास से खूब भरी होना समझ कर गाड़ियों को किले के अन्दर जाने दिया। किले के आहते में पहुंचते ही एक साथ पांच सौ हथियारों से सुसज्जित जवानों ने 'आयो लड़णो फतेह कर दो' के जोशीले नारे के साथ ऐबक के सैनिकों पर हमला कर दिया। किले में घूम-घूम कर जवानों ने सैनिकों व ऐबक खां का कत्लेआम कर दिया। पूरे मण्डोर किले में खून ही खून दिखाई देने लगा। जवानों ने ऐबक खां को मारकर मण्डोर पर पुनः कब्जा कर लिया।

वीर शिरोमणि राव हेमा के साहस, शौर्य व पराक्रम से पुनः इंदा परिहारों का राज्य स्थापित हुआ। इंदा परिहारों ने मण्डोर की सत्ता तो पुनः हथिया ली, लेकिन नागौर में अभी भी शक्तिशाली तुर्कों की सत्ता स्थापित थी। वहीं उधर चितौड के राणा भी मण्डोर को हथियाने कि फिराक में थे, जो शक्तिशाली भी थे। कभी भी मण्डोर पर हमला कर सकते थे। इंदा परिहारों के सामने दोहरी चुनौती थी। वीर शिरोमणि राव हेमा ने बुद्धिमता, सूझबूझ व दूरदर्शिता का परिचय देते हुए शक्तिशाली हो रहे राठौडों के राव चूड़ाजी को मण्डोर की सत्ता दिलवाने में भूमिका निभायी। मण्डोर के नये शासक राव चूड़ा जी ने पौष सुदी 10 संवत 1449 में अपने इकरार के अनुसार राव हेमा को मण्डोर से सालोड़ी तक कृषि भूमि माफी दी थी। सैनिक क्षत्रिय कुल के इस वीर शिरोमणि राव हेमा ने अपनी वीरता, शौर्य, पराक्रम व रणकौशल का परिचय देते हुए मण्डोर को तुर्कों से आजाद करवाया।

वीर शिरोमणि राव हेमा की उदारता, त्याग, वीरता, निर्भीकता उच्चकोटि की थी, राव हेमा की वीरता व पुरूषार्थ के कारण मण्डोर को आजादी मिली और हिन्दू राज्य की स्थापना हुई। ऐसे वीर सूपत की वीरता के प्रतीक रूप में जोधपुर के मण्डोर में प्रतिवर्ष होली के दूसरे दिन वीर राव हेमा महोत्सव यानी " रावजी की गैर " का आयोजन किया जाता है।

राव गैर मण्डोर राव हेमा गहलोत ने अपने विजयी होने का कारण काल भैरव जो दुष्टों और शत्रुओं का नाश करने में सक्षम है, की आस्था के साथ शुरू हुआ था। मण्डोर विजय के बाद आम नागरिको में मण्डोर के भैंरूजी की मान्यता जोधपुर व जोधपुर के बाहर बसने वालां में उत्तरोत्तर बढ़ी। शादी के बाद अवश्य भैंरूजी की जात (पूजा) लगाने आते है, आज भी भैरू जी मंदिर के पुजारी इन्ही राव हेमा गहलोत के वशंज है। एक ऐसा युद्ध हुआ जो भैरव के आर्शीवाद से शत्रु का समूल नाश व एक ऐसी संस्कृति का मिलाप है, जिसमें आस्था के साथ-साथ विजयी होने का संकेत भी है। राव गैर महोत्सव प्रेरणा देता है कि संसार में उन्हीं महापुरुषों का जीवन सफल और अनुकरणीय माना जाता है जो देश के प्रति कर्तव्यभावना का पालन करते हैं।

राव हेमा गहलोत के वंशजों द्वारा सैंकड़ो वर्षों से निकाली जाने वाली राव राजा की गैर जो केवल मण्डोर क्षेत्र में ही निकाली जाती हैं। अन्यत्र नही, भले उनके वंशज अलग-अलग क्षेत्रों में निवास करते हो। राव की ऐतिहासिकता राव हेमा गहलोत से जुड़ी हुई है, जो इन्ही के वंशजों द्वारा सदियों से परम्परा को आज तक संजोये रखा है। यह मण्डोर पर से तुर्कों पर विजय कर हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने का विजय जुलूस है जो राव हेमा गहलोत के नेतृत्व में लड़ा गया था, और अपने ईष्ट काला गोरा भैंरू व कुलदेवी बाणमाता मे गहरी आस्था व आशीर्वाद से विजयी हुये थे। राव हेमा गहलोत द्वारा काला गोरा भैरव व बाणमाता की स्थापना के दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन विजयी दिवस मनाया जाता है जिसे रावजी की सवारी या राव महोत्सव कहा जाता है।

सैनिक क्षत्रिय वीर राव हेमा गहलोत के लिए इतिहास में विभिन्न ख्यात दर्ज हैं-

"हेम तुरकाणी तोड़ हिन्दवाणी करी राव चूड़ाजी ने तिलक दीन्हों हेमजी घोड़ा जोत गुडवेल दान दीना गढ मंडोवर के बेडे राव चूड़ाजी के वारे"

"हेम तुरकाण तौड़ हिन्दवाण कीया गढ पलट कीया राव चूड़ाजी ने तिलक दीयौ घोड़ा जोत गुडबैल दान दीन्हीं गढ मंडोवर के बेडे राव चूड़ा के वारे"

"हेम पदम के घोड़ा जोत ने घुडैहल दान दीन्हों तुरकाणी सु हिन्दवाणी कीन्ही गढ पलट राव चूडा ने तिलक दीन्हों बेडे, ऐसे पराक्रमी वीर योद्धा के विजय जुलूस के रूप में जोधपुर के मण्डोर में निकलने वाली राव गैर पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है। राव हेमा गहलोत की वीरता हमारे लिए आदर्श है।



103.15.254.82 (वार्ता) 18:28, 22 मार्च 2024 (UTC)उत्तर दें