सदस्य वार्ता:Mjatcjajra

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,,अंकित लाइन,,

।।,, तुम जीवन काल कि अमर उजाला से दीपक से दीपक जलाएं जाओ ,,।।

।।जीवन काल कि अमर उजाला से तुम, दीपक से जलाएं जाओ ,जब-जब सौ सो बाँह पसारे खड़ा हैं जीवन बीच राह में, तुम दीपक से दीपक जलाएं जाओ ।

।।उठती जीवन कि सांसों को आखिर मिट इक दिन जाना ही होगा । बड़े प्रलय तो, उसे सहम कर बखिर रुक जाना ही होगा | जीवन काल से दूर भले हो लेकिन उर में दृढ़ विश्वांस यही है । मरुभूमि के इस आँगन में सुख को फिर आना ही होगा ||पग-पग में तुम जीवन के डगर नापते,बंगारों पर चलते जाओ ||तुम दीपक से जलाएं जाओ !। ।। ज्योति तुम्हारी अब बिखरने लगीं है, जो भूतल से अम्बर तक छाया अंधेरा है। और सिसकती मानवता फिर विहँसे मंगल मोद मनाये ॥ पर यह भी सच है, इसमें तुमको तिल-तिल कर एक दिन जलना हीं होगा ।। अन्त समय हो सकता है, क्रूर काल तुमको ठोकर भी देता जाये ।पर तुम गिर गिर कर फिर फिर,उठ उठ कर पुनः सँभलते जाओ । तुम जीवन की अमर ज्वाला से दीपक से जलाएं जाओ !।

।।जग में जीते वही है जो परिस्थितियों से जो टकराया करते । चट्टानों को तोड़ लात से अपना मार्ग ख़ुद बनाया करते ॥ उन सुमनों का ही सौरभ अब तक छाया सारे कानन में । जो काँटों से बिघते, लेकिन म्लान न हो मुस्काया करते ॥सौरभ का अंगार ढूढ़ना जो चाहो, तो काँटों में भी पलते जाओ । तुम जीवन काल कि अमर उजाला से दीपक से जलाएं जाओ,।।

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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 09:59, 17 अप्रैल 2021 (UTC)[उत्तर दें]