सदस्य वार्ता:Kuldeeproy123

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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 08:10, 30 सितंबर 2018 (UTC)[उत्तर दें]

Raja Guru Balakdas Saheb Ji[संपादित करें]

🌹🌺🙏साहेब गुरु सतनाम🙏🌺🌹 महान प्रतापी सतनामी राजा गुरु बालक दास साहेब।

        परम् पूज्य बाबा गुरु घासीदास जी के द्वितीय पुत्र वीर बलिदानी राजा गुरू बालक दास जी का जन्म भादो बदी आठे दिन सोमवार आठ अगस्त सन् सत्तरा सौ त्रानबे को गिरौदपुरी गांव में माता सफुरा के ओद्र से दस अवतारी ब्रज देह सिंह रूप में अवतार लिये।
       गुरु घासीदास जी के गुरु गद्दी के उत्तराधिकारी गुरु बालक दास थे। उनके सिर पर टोपी हाथ में नग्गी तलवार लिए हाथी पर सवार आगे पीछे अंगरक्षक सरहा और जोधाई दोनों भाई हजारों सैनिकों को लेकर गांव गांव में संगठन समाज में स्थापित किया। सारे देश में अंग्रेजी हुकूमत रहे। अंग्रेज उनके कार्य को देखकर गुरु बालक दास साहेब जी को राजा की उपाधि दिये गये।
                        राजा गुरु की 33 वर्ष की अवस्था में सन् 1828-29 के लगभग गुरु जी को अंग्रेज के द्वारा लाई विलियन वैटिक गवर्नर बनाया गया।
                       गुरु बालक दास साहेब ने समाज रक्षक सतनाम संगठन, शक्ति और सत धर्म नियम को मजबूत बनाने का प्रयास किया। उन्होंने शक्ति के रूप में सतनाम सेना की स्थापना की। और प्रत्येक सतनाम सेना को अस्त्र-शस्त्र बरछी भाला तलवार रखने का अधिकार दिलाया।
                   सामाजिक व्यवस्था की संचालन के लिए प्रत्येक गांव में एक- एक भंडारी छड़ीदार अठगवां के अंतर्गत दौरा मंहत, तहसील मंहत, जिला मंहत, क्षेत्रीय मंहत, राज मंहत बनाया गया।
                            छत्तीसगढ़ के चारों दिशाओं में सतनाम के प्रचार और उपदेश दिये। जिसके कारण शोषक जाति के लोग उससे जल भुन गये और अंत में षडयंत्र करके गुरु बालक दास और उनके महाबली सरहा, जोधाई की 28 मार्च सन् 1860 को हत्या कर दी गयी। वह स्थल आज भी औंरा बांधा में प्रमाण चिन्ह है।
                   यह सतनामी समाज के लिए बहुत भारी अपूर्ण क्षति है जिसे कभी भी पूरा नहीं किया जा सकता है। Kuldeeproy123 (वार्ता) 08:35, 30 सितंबर 2018 (UTC)[उत्तर दें]

Aadhyatm Guru Param Tapasvi Guru Amaradas Saheb[संपादित करें]

गुरु अमरदास जी....

जीवन परिचय:-

संतशिरोमणी गुरू बाबा घासीदास जी व सफुरामाता की गोद में जेष्ठ पुत्र गुरू अमरदास जी का अवतरण जुलाई 1794 को गुरू पुर्णिमा के दिन पावन गांव गिरौदपुरी में हुआ। गुरू अमरदास जी निर्गुण लक्षण प्रभाव गुणो के धनी थे, वे अपने पिता के समान ही तन मन व वचन से परोपकारी सतधारी जीवन व कार्यो से समुचे संसार को सतनाम का बोध कराया। गुरू अमर दास जी अचेतन समाज में चेतना जगाकर मानवता को समानता का अधिकार व अहिंसा पूर्वक कर्तव्यो का पालन करना सिखलाया। गुरू अमर दास जी अपने ज्ञान उपदेशो में सतनाम धर्म में उच्च-नीच,छुत-अछुत अमीर-गरीब,काले-गोरे के भेदभाव से परे सभी मानव जीति को प्रत्यक्ष और प्रमाणित संदेश से मोहग्रस्त जीवों का अंधकार दुर किया करते थे। बाल्यकाल से ही वैराग्य के गुण - गुरू अमरदास जी के वैराग्य रूप के लक्षण बाल्यकाल में संत जनों को देखने मिल गया था, गुरू अमरदास जी सात वर्ष की अवस्था में सतपुरूष का ध्यान कर अनुभवी ज्ञान के उपदेश को देखकर उसके तपस्या प्रभाव,निर्भयता से संतजनों को ज्ञात हो गया था कि गुरू अमरदास जी अपने सिद्वांत,विचार एवं उद्वेश्य को लेकर अपने पिता के सत मार्ग को आगे की ओर ले जाने की संकल्प ले लिया है। वे मात्र सात साल के आयु में ही समझदार व आत्म निर्भर हो गया था। गुरू अमरदास जी का एकांत व अज्ञातवास - गुरू अमरदास जी सन् 1800 को सात वर्ष के आयु में ही अपने माता पिता से मानव कल्याण के लिए तपस्या व अघ्यात्मिक सतमार्ग को स्थापित करनें एकांत शांत स्थल पर अज्ञातवास रहने की अनुमति पाकर गिरौदपुरी के घने जंगल अमरगुफा बाघमाड़ा के अंदर में जहा सर्प बिच्छू विशैले जीव व घोर अंधकार बाहर जंगल के वन्य प्राणियो के बीच सतनाम सतपुरूष साहेब की असीम कृपा व पिता संतशिरोमणी गुरूबाबा घासीदास जी की आर्शिवाद से वह अमरगुफा बाघमाड़ा जहा लोभ,मोह,छल,कपट व ईष्र्या प्राणी नही जा सकते वहां सात वर्षीय बालक गुरू अमरदास जी अपनें तन मन को तपाने अनिश्चित काल तक अज्ञातवास में रह कर तपस्या में लीन रहे। सतपुरूष दर्शन व सतज्ञान/अमृत की प्राप्ति - बाल ब्रम्हचारी गुरू अमरदास जी द्वारा 12 वर्ष तक कठोर तपस्या किया,तब सतपुरूष साक्षात् दर्शन देकर अपने अंश अवतार को उनके मानव जीवन की उद्वेश्य से अवगत कराते हुए कहा कि आपका अवतरण जगत के संतों को जन्म, मरण, सुख,दुख,लाभ,हानि,संयोग,वियोग,शुभ,अशुभ,गुण,अवगुण,प्रकाश, अंधेरा के भ्रम जाल से मुक्त कराकर उन्हे सतनाम के शक्ति जो संसार के कण कण व सभी सजीव निर्जीव में समान रूप समाहित है,सत से कोई भिन्न नही हो सकता संसार के मूल कारण सतनाम है और सत से ही जगत का सृजन हुआ है,सतनाम ही जीवनचक्र के मुक्ति का मार्ग है। गुरू अमरदास आपके आत्मज्ञान, विश्वास और संयम ये तीनो अपार शक्ति है जो तीनो काल में सतनाम के प्रति समर्पण आपके भीतर उत्तम गुण है,उन्हे बाहर निकाल कर संतो को उपदेश देकर सतनाम को संसार में प्रकाशमान कर सत्य, अहिंसा,दया,प्रेम,करूणा,पवित्र,समानता,स्वतंत्रता व मानवता को स्थापित करना है। संसार के रंगमंच में हर व्यक्ति की अलग भूमिका है,जहा व्यकित प्रतिकुल परिस्थितियों को स्वानुकुल बनाकर संभावित चिंता व कष्ट से स्वंय को बचाता है,सृष्टि में मानव सर्वोत्कृष्ट रचना है,यदि जीवन के सत्य को जानना है तो स्वयं को जानना होगा,आज नैतिकता व मानवता का ह्नास हो रहा है। सामाजिक विसंगतियों, विकृतियों और स्वार्थो के चलते मानवीय संबंधो में कटुता बढ़ती जा रही है ऐसे में लोगो के विचारो में परिवर्तन कर नैतिकता,सिद्वांतों और आदर्शो की उपदेश से आपसी सौहार्द्र,भाईचारा और प्रेम व्यवहार जीवन को सहज बनाकर सतपुरूष की कृपा से सुख, शांति व समृद्वि मिलेगी। परिवर्तन ही प्रकृति का स्वभाव है व जीवन सतत गतिशील है अपनें विचारों व आचरण में सतनाम के नियमों का पालन कर जीवों के मन हृदय और आत्मा को सभी प्रकार के बंधनो से मुक्त कराने की अपेक्षा कर सतपुरुष गुरू अमरदास जी को जगतकल्याण हेतु अमृत कलश देकर कर उनका सद्उपयोग करने का आर्शिवचन प्रदान कर अर्तध्यान हो गया। गुरू अमरदास जी का एकांत,अज्ञातवास से लौटना - कठिन तप से सतपुरूष के दर्शन व सतज्ञान के प्राप्ति के बाद सतनाम के अलौकिक शक्ति से युक्त सन् 1811 को कुशलता पुर्वक त्यागमुर्ति बालब्रम्हचारी गुरू अमरदास जी माता पिता को दर्शन देने हेतु आया। 12 वर्षो के पश्चात सतधारी तपसीगुरू अपने माता पिता को सत्य प्रमाण सहित पुत्र होने का चरित्र गाथा सुनाया। पुत्र को परखने सफुरामाता द्वारा एक परीक्षा गोरसदान मुखपान (सफेद नये वस्त्र के लोच लगाकर परदा आड।। Kuldeeproy123 (वार्ता) 08:45, 30 सितंबर 2018 (UTC)[उत्तर दें]

Parampujya Guru Ghasidas Baba Ji[संपादित करें]

गुरू घासीदास (1756 – अंतर्ध्यान अज्ञात) ग्राम गिरौदपुरी तहसिल बलौदाबाजार जिला रायपुर में पिता महंगुदास जी एवं माता अमरौतिन के यहाँ अवतरित हुये थे गुरूजी सतनाम सतनाम धर्म जिसे आम बोल चाल में सतनामी धर्म के प्रवर्तक कहा जाता है, गुरूजी भंडारपुरी को अपना धार्मिक स्थल के रूप में संत समाज को प्रमाणित सत्य के शक्ति के साथ दिये वहाँ गुरूजी के पूर्वज आज भी निवासरत है। उन्होंने अपने समय की सामाजिक आर्थिक विषमता, शोषण तथा जातिभेद को समाप्त करके मानव-मानव एक समान का संदेश दिये।
परमपूज्य गुरू घासीदास बाबा जी का अमृतवाणी:::
जइसन खाहू अन्न, ओइसन होही मन्न ।
जइसन पीहू पानी, ओइसन बोलिहै बानी।

इस अमृत वचन में मानव द्वारा किये जाने वाले संपूर्ण कार्य को बड़ी ही सहजता से कह दिया गया है । यह सत प्रतिशत सत्य है कि हम जिस तरह के भोजन का सेवन करते हैं उसी के अनुरूप हमारा मन, मस्तिष्क ब्यवहार करता है । जितने भी महापुरूष व रिसी मुनि हुये हैं जिन्होने परमात्मा का आत्म ज्ञान से दर्शन किये है वह सभी शाकाहारी भोजन का ही सेवन किया करते थे । सादा भोजन करने से हमारे मन कि चंचलता कम हो जाती है जिससे हम अपने मन के उपर आसानी से काबू पा सकते है, जिन्होने अपने मन को नियंत्रित करना सीख गया समझ लो वह परमात्मा का दर्शन करने लायक अवश्य हो गया । मन को नियंत्रित किये बिना किसी भी किमत में हम आत्म ज्ञान को प्राप्त नही कर सकते, जिसके बिना हमारा मानव जनम लेना ब्यर्थ है । दुसरे पंक्ति में कह गया अमृत वचन "जइसन पीहू पानी, ओइसन बोलिहौ बानी" यहाँ पिने से तात्पर्य मदिरा से, गुस्सा से, अमृत वचन सुनने व ग्रहण करने से, सतसंग करने एवम भक्ति करने से है । अगर हम मदिरा पान करेगें तो अपने आपको काबू में नही रख सकते, जितने भी लोग मदिरा पान करते हैं उन्हे आपने देखा होगा वह बड़बड़ाते रहता है, उसे अपना होश हवाश नही रहता । इसलिए ऐसा किसी भी प्रकार का नशा सेवन मत करो जिससे तुम्हारा नुकशान हो और तुम्हे लोग नाम से नही बल्कि नशेड़ी के नाम से जानने लगे । पिना है तो गुस्सा को पियो, कहीं आपने गुस्सा को पिना सीख गये तो समझ लिजिये तुम्हारे सामने दुनियाँ कि सारी चिजें छोटी हो जाएगी । गुस्सा को वश में करने वाला ब्यक्ति कभी भी किसी का अहित नही चाहता दुसरे चाहे उसे लाख तकलीफ दे परन्तु उसके मन में दुसरे को सताने कि भावना जागृत नही होती । हमारा गलत रास्तो को अपनाने का भी मुख्य कारण गुस्सा ही है, जो छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाता है उसका परिवार तो उसका साथ नही देता बल्कि खुद का शरीर भी उसका साथ नही देता । गुस्सा और गम एक दुसरे के पुरक हैं, गुस्सा जिसको ज्यादा आता है उसके मन में गम भी ज्यादा रहता है क्योकि वह गुस्से के मारे अंदर ही अंदर जिस पर गुस्सा आया है उसे नुकशान पहुँचाने या बदला लेने का तरकीब सोंचते रहता है । सोंचने में वह इतना डूब जाता है कि नींद तो उनसे कोसो दुर हो जाती है जिस कारण मन में चिड़चिड़ा पन आ जाता है और वह अपने घर वालो के उपर भी गुस्सा होने लगता है । उसके शरीर के अंदर बदला लेने कि अग्नि रात िदन जलते रहता है आप स्वयं सोचिये जब अग्नि जलती है तो उसके आस-पास जो भी रहता है वह जल या मुरझा जाता है । वैसा ही बदले कि अग्नि जब हमारे शरीर के भीतर जलती है तो हमारे शरीर में समाहित अच्छी आदतें भी उस अग्नि के चपेट में आ जाती है जिस कारण हम किसी अच्छे कार्य के बारे में नही सोच सकते । इसलिये परमपूज्य बाबा गुरू घासीदास जी अपने संत जन को सावधान करते हुए कहते है कि, ऐसा किसी भी प्रकार के नशा सेवन व आचार-िवचार मत करो, जिससे तुम्हारा मानव जनम लेना ब्यर्थ चला जाय । "ऐसे अवतारी गुरू परम् पूज्य गुरू घासीदास बाबा जी को जिन्होने निर्मल ज्ञान का उपदेश दिये, हम उन्हे सत् सत नमन् करते हैं" आइये साथियो हम इस दिसम्बर माह जिसमे परम पूज्य बाबा गुरू घासीदास जी का इस धरती पर अवतार हुआ था, के पावन महिने में नशा सेवन और मांस भक्षण जैसे बुरे कार्य को त्याग कर एक सच्चे इंसान व गुरू के भक्त होकर उन्हे अपनी सच्ची श्रद्धा सुमन अर्पित करें और मानव होने का परिचय देवें । वैसे भी सतनामी के लिये नशा सेवन और मांस भक्षण सर्वदा वर्जित है।

               गुरु घासीदास भारत के छत्तीसगढ़ राज्य की संत परंपरा में सर्वोपरि हैं। बाल्याकाल से ही घासीदास के हृदय में वैराग्य का भाव प्रस्फुटित हो चुका था। समाज में व्याप्त पशुबलि तथा अन्य कुप्रथाओं का ये बचपन से ही विरोध करते रहे। समाज को नई दिशा प्रदान करने में इन्होंने अतुलनीय योगदान दिया था। सत्य से साक्षात्कार करना ही गुरु घासीदास के जीवन का परम लक्ष्य था। Kuldeeproy123 (वार्ता) 09:04, 30 सितंबर 2018 (UTC)[उत्तर दें]