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बुद्द मूर्ती

गौतम बुद्द और बुद्धत्व प्राप्त किए हुए सन्तों के मूर्तियों को बुद्दरूप कहा जाता है। सन्सक्रित और पाली मे बुद्दरूप का अर्थ है उस्का रूप जो बुद्ध के पार है। बुद्द भगवान का प्रदर्शन मूर्तियों, चित्रों और साहित्य में बोहुत होता है, लेकिन संगीत और नृत्य में नहीं होता।


इतिहास[संपादित करें]

बुद्ध की मूर्तियां पेहली शताब्दी मै उत्तर भारत मै गंधरा और मथुरा मै विकासित हुई थी गुप्त और कुशन राज्यों मे। कुशन साम्राजय के सम्राट, उन्मे सै सब्से प्रसिद्द सम्राट कनिष्क, बौद्ध धर्म के संरक्षक थे। इस सदि में बनाई गई बोद्द मूर्तियां ग्रीक संस्कृति के प्रभाव मे होने के कारन ग्रिको-बुद्दिस्ट शैली की है। कुशन साम्राजय से लेकर कई सदिओं के लिय भारत में बौद्ध कला का बहुत विकास हुआ। गुप्त साम्राजय में यह कला अपनी चरम सीमा में थी। इस सदी में, मथुरा में गुलाबी बलुआ पत्थर से उत्कृष्ट मूर्तियां बनाई गई थी। बोद्द धर्म की पूर्ण महिमा इसी सदी में, इसी जगह में प्रप्त हुई और बोद्द कला पूरे एशिया में फैल गई।


शैली[संपादित करें]

बुद्ध मूर्तियां ग्रीक संस्कृति के प्रभाव के कारन ग्रिको-बुद्दिस्ट शैली में बनाई गई थी। इस प्रतिष्ठित शैली की विशेषताएं है यथार्थवादी मुखाकृति, अनुपात, रूप, और गुण। इस सब के साथ उपस्थिति है एक सिद्दि, शांति और देवत्व। बुद्द् का इस तरह आदमी एवं भगवान के ढंग में प्रदर्शन किया जाता है। इस्के अलावा गुप्त साम्राज्य की अम्रावती शैली भी प्रसिद्द है। भारत से बुद्ध का चित्रण पूरे एशिया महाद्वीप में फेल गया। श्री लंका, सैलेन्द्र और कंबोडिया में बुद्द का रूप और शरीर कभी कभी क्षीण और दुर्बल दिखाया जाता है उन्की सालों भर की तपस्वी प्रथाओं के कारण। जापान में बोद्द मूर्तियां चौकोर और आवेगहीन तरीके से बनाई जाती है बल्की भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया में मूर्तियां में शरीर थोडा पतला बनाया जाता है। भारत में बुद्द की मूर्तीयां बिना गंजी दिखाई जाती है लेकिन चीन और जापान में उन्हें लम्बी आस्तीन वाला धाधरा पहने दिखाया जाता है।


समान विशेषताएं[संपादित करें]

क्षेत्रीय और सांस्कृतिक अंतरों के बावजूद बुद्द मूर्तियां में थोडी समानता है जैसे:

  • लम्बी उंगलियों (पेर और हाथ की)
  • लम्बा नाक
  • लम्बे कान (जब गौतम बुद्द राजकुमार थे तो बडें-बडें कुंडल पहनते - इस्के कारण)
  • चौड़े कंधे
  • माथे पर एक सूजन जिस्से उशनीशा कहा जाता है। उशनीशा गौतम बुद्द के प्रज्ञता एवं आध्यात्मिकता का प्रतीत है।
  • मुद्रा बनाए हुए या झुक्ते हुए बुद्द


लाफिंग बुद्दा[संपादित करें]

कई लोग "लाफिंग बुद्दा" को गौतम बुद्द का अव्तार समझ्ते है लेकिन यह गलत है। "लाफिंग बुद्दा" बुदाई नामक छिनी के बौद्द सतं है जिन्हे मूर्तियों में मोटा, खुश और हस्ता हुआ दिखया जाता है। वे मैत्रिय, यानी भविश्य के बुद्द, के नाम से जाने जाते है।


मथुरा राजकीय संग्रहालय[संपादित करें]

मथुरा राजकीय संग्रहालय वर्ष १८७४ में स्थापित किया गया था, मथुरा के कलेक्टर एफ.एस ग्रोउस के द्वरा। इस संग्रहालय मै मथुरा एवं ब्रज संस्कृतियों से पाए गय मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां, पेंटिंग, सिक्के, और अन्य पुरावशेषों है, लेकिन सब्से महत्वपूर्ण है गुप्त और कुशन साम्राज्यों से पाए गय बोद्द मूर्तियां। ३ शताब्दी बी.सी से लेकर १२ सदी ए.डी के दौरान मथुरा स्कूल ऑफ स्क्ल्पचर्स की यही सबसे महत्वपूर्ण मूर्तियां मथुरा राजकीय संग्रहालय में प्रदर्शित है। इस संग्रहालय मे मोजूद मूर्तियां भारतीय कला एवं आईकॉनोग्राफी के अध्ययन के लिये बहुत महत्वपूर्ण है।


संदर्भ[संपादित करें]

बुद्दरूप

मथुरा राजकीय संग्रहालय