सदस्य वार्ता:Brijbhushan Upadhyay

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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 08:09, 24 फ़रवरी 2018 (UTC)[उत्तर दें]

नाथशरण उपाध्याय ने ठुकरा दिया था देशभक्ति का मेहनताना[संपादित करें]

आरा। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर सिपाही पंडित श्री नाथशरण उपाध्याय ने भारत सरकार की तरफ से प्रस्तावित स्वतंत्रता सेनानी पेंशन को यह कहते हुए लेने से इंकार कर दिया था कि वे देशभक्ति के एवज में ‘मेहनताना’ नहीं लेंगे। तब उन्होने कहा कि देश को आजादी दिलाना उनका परम कर्तव्य था, भरण पोषण की आस में की गयी कोई मजदुरी नहीं। उन्होने आजीवन स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन नही ली। उनका जन्म 20 मार्च 1920 को भोजपुर जिले में गंगा किनारे स्थित बड़हरा प्रखंड के महुदही ग्राम में हुआ था। पिता ब्रम्हदेव उपाध्याय कुलिन ब्राम्हण थे। पंडित नाथशरण उपाध्याय ने गजीयापुर उच्च विद्यालय से मैट्रिक तथा डोरी गंज कॉलेज से इंटर किया था जबकि राजेन्द्र मेडिकल कॉलेज छपरा से ‘वैद्य’ की उपाधि ली। पढ़ाई के दौरान अंग्रेजो के अत्याचार को देख उनके मन में विरोध के बीज अंकुरित हो चुके थे। पढ़ाई पूरी होते होते वे जंगे-आजादी में सक्रिय हो चुके थे। यह सक्रियता उनके पिता ब्रम्हदेव उपाध्याय को पसंद नहीं थी, क्योकि पंडित नाथशरण उपाध्याय अपने पिता के इकलौते संतान थे। पंडित नाथशरण उपाध्याय को साथ मिला उस समय के अग्रिम पंक्ति के स्वतंत्रता सेनानियो का तब अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जिलो मे प्रतिरोध की मशाल जलाए रखने वालों में कवि कैलाश, रामानंद तिवारी, बाबू अंबिका शरण सिंह व गणपत चैधरी थे। इनके साथ मिल कर पंडित श्री नाथशरण उपाध्याय आजादी की लड़ाई में तन-मन से शरीक हुए। विरोध की लौ तेज होती गयी। कई बार जेल भी गए पर देशभक्ति का जज्बा बढ़ता ही गया। देश जब स्वतंत्र हुआ तब भी इन आजादी के दिवाने ने सकून की सांस नहीं ली। तब वे देश की समाजिक संरचना को मजबुत करने में जुट गये। पंडित नाथशरण उपाध्याय की देशभक्ति अनमोल थी। नाथशरण उपाध्याय को विवाह भोजपुर जिले के ही आरा सदर प्रखंड के बेला ग्राम के रहने वाले पंडित शिवचंद्र मिश्रा की पुत्री मनमुखा देवी के साथ हुआ था। जिसके बाद शिवचंद्र मिश्रा की एक भी पुत्र नहीं होने के कारण नाथशरण उपाध्या को अपने ससुराल बेला में आकर बस जाना पड़ा। इस महान स्वतंत्रता सेनानी की देहावसान उनकी ससुराल और कर्मस्थली बेला में 14 फरवरी 1994 को हो गया। पंडित श्री नाथशरण उपाध्याय को प्रेरणास्त्रोत मान कर उनकी ही सामाजिक राह पर चल पड़े है और उनकी सामाजिक विरासत को आगे बढ़ा रहे है उनके पौत्र भोजपुर जिला कांग्रेस के कला एवं सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष मुक्तेश्वर उपाध्याय एवं प्रपौत्र पत्रकार बन्टी भारद्वाज। श्री मुक्तेश्वर उपाध्याय एवं श्री भारद्वाज अपने दादा जी के स्मृति में 14 फरवरी केा हर साल एक भव्य समारोह का आयोजन करते है जिसमें जिले के कई दिग्गज राजनीतिज्ञ के साथ साथ पदाधिकारी भी शिरकत करते है।