सदस्य वार्ता:पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर'
प्रस्तावना
पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर' जी इस समय आप विकिमीडिया फाउण्डेशन की परियोजना हिन्दी विकिपीडिया पर हैं। हिन्दी विकिपीडिया एक मुक्त ज्ञानकोष है, जो ज्ञान को बाँटने एवं उसका प्रसार करने में विश्वास रखने वाले दुनिया भर के योगदानकर्ताओं द्वारा लिखा जाता है। इस समय इस परियोजना में 8,10,616 पंजीकृत सदस्य हैं। हमें खुशी है कि आप भी इनमें से एक हैं। विकिपीडिया से सम्बन्धित कई प्रश्नों के उत्तर आप को अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों में मिल जायेंगे। हमें आशा है आप इस परियोजना में नियमित रूप से शामिल होकर हिन्दी भाषा में ज्ञान को संरक्षित करने में सहायक होंगें। धन्यवाद।
विकिनीतियाँ, नियम एवं सावधानियाँ
विकिपीडिया के सारे नीति-नियमों का सार इसके पाँच स्तंभों में है। इसके अलावा कुछ मुख्य ध्यान रखने हेतु बिन्दु निम्नलिखित हैं:
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विकिपीडिया में कैसे योगदान करें?
विकिपीडिया में योगदान देने के कई तरीके हैं। आप किसी भी विषय पर लेख बनाना शुरू कर सकते हैं। यदि उस विषय पर पहले से लेख बना हुआ है, तो आप उस में कुछ और जानकारी जोड़ सकते हैं। आप पूर्व बने हुए लेखों की भाषा सुधार सकते हैं। आप उसके प्रस्तुतीकरण को अधिक स्पष्ट और ज्ञानकोश के अनुरूप बना सकते हैं। आप उसमें साँचे, संदर्भ, श्रेणियाँ, चित्र आदि जोड़ सकते हैं। योगदान से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण कड़ियाँ निम्नलिखित हैं:
अन्य रोचक कड़ियाँ
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(यदि आपको किसी भी तरह की सहायता चाहिए तो विकिपीडिया:चौपाल पर चर्चा करें। आशा है कि आपको विकिपीडिया पर आनंद आएगा और आप विकिपीडिया के सक्रिय सदस्य बने रहेंगे!) |
-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 04:43, 12 जुलाई 2018 (UTC)
‘प्रेम’ और उसका अनुभव[संपादित करें]
‘प्रेम’ और उसका अनुभव
कबीरा मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर
पीछे-पीछे हरि फ़िरे कहत कबीर कबीर||
यदि मनुष्य का मन निर्मल हो जता है तो उसमे पवित्र प्रेम उपजता है वो प्रेम जिसके वशीभूत होकर स्वयं ईश्वर भी अपने प्रेमी के पीछे दौड़ने के लिए विवश हो जाते है| ये गोपियों का निस्वार्थ, निर्मल प्रेम ही था जिनकी याद में बैठकर द्वारिकाधीश अपने मित्र उधौ के समक्ष अश्रु बहाते हुए कहते है -’उधौ मोहि बृज बिसरत नाही’ प्रेम क्या है? जीवन का इससे बड़ा गूढ़ सम्बन्ध क्यों है? किस शक्ति के अंतर्गत मनुष्य जाने अनजाने ही इसे तलाश करता है। वह सदा प्रेम की एक गुदगुदी की प्रतीक्षा करता है व मिल जाने पर कभी न बिछुड़ने की आशंका की व्याकुलता सी अनुभव आती है। प्रेम एक मीठा सा दर्द है जो जीवन का सुरीला तार है, दुखियों की आशा और वियोगियों का आकर्षण तथा थकावट की मदिरा, व्यथितों की दवा है जो हृदय में कोमलता भर कर आत्मा को आनंद की अनुभूति करा देता है। ऐसा आनंद जिसे शब्दों में बाँधा नहीं जा सकता | जीवन में सभी प्राणी किसी न किसी को प्रेम करते ही हैं और उस प्रेम को अपनी-अपनी कसौटी में कसते हैं। बगैर प्रेम के कोई जीवित नहीं रह सकता, किसी को भी प्यार करना ही पड़ेगा, नीरस जीवन नहीं काटा जा सकता है। यहाँ उस प्रेम का वर्णन है जिसे हमारे कवि प्रेम-दर्द कह कर अमर करते हुए हमारे हृदय पट खोल गये हैं। प्रेम तो सभी का जन्मसिद्ध अधिकार है| लेकिन प्रेम की विशेषता है की इसमें एक प्रकार का नशा, दर्द और जिद है इस दर्द से पीड़ित मीरा इसीलिए ही तो कहती थी ‘हेरी मे तो प्रेम दीवानी मेरो दर्द न जाने कोय|’ कितना ऊँचा प्रेम रहा होगा मीराबाई का जिन्होंने अपने प्रेमी (कृष्ण) को कभी देखा नहीं था केवल दूसरों से सुना था और ऐसे प्रेमी के प्रेम में वो डूबती चली गयी | इसी प्रकार ऊधो जब योग का संदेशा लेकर विरहणी गोपियों को समझाने जाते हैं तो गोपी कहती हैं- “श्याम तन श्याम मन, श्याम ही हमारो धन, आठों याम ऊधो हमें श्याम ही से काम है। श्याम हिये, श्याम जिये,श्याम बिन नाहीं तिये, अन्धे को सी लाकड़ी आधार श्याम नाम है॥ श्याम गति श्याम मति श्याम ही हैं प्राणपति, श्याम सुखदाई सो भलाई शोभा धाम है। ऊधो तुम भये बौरे पाती लेके आये दौरे, और योग कहाँ यहाँ रोम रोम श्याम है॥
यदि प्रेम के सच्चे अर्थों को जानने वाली प्रेम की इतनी दिव्य विभूतियाँ पैदा न हुई होतीं तो आज प्रेम की कीमत शायद कुछ भी न होती, जब हृदय प्रेम से विभोर हो उठता है तब उसे कुछ नहीं सूझता, तभी तो कहते हैं कि प्रेम अन्धा है। सच्चा और निर्विकारी प्रेम कुछ पाना नहीं चाहता बल्कि अपना सर्वस्व अपने प्रेमी को अर्पित कर देना चाहता है लेकिन लगातार बदलते परिवेश में प्रेम का अर्थ बहुत भटक गया है इसे अश्लीलता की चादर ओढ़ाकर केवल प्रदर्शन का माध्यम बना दिया गया है |