सदस्य वार्ता:डॉ. प्रभात ओझा

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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 19:35, 3 सितंबर 2018 (UTC)[उत्तर दें]

असहयोग आंदोलन के शहीद पत्रकार पंडित रामदहिन ओझा[संपादित करें]

पंडित रामदहिन ओझा आजादी की लड़ाई में असहयोग आंदोलन के दौरान पहले पत्रकार शहीद माने जाते हैं। मात्र 30 वर्ष की उम्र में उनका उत्तर प्रदेश के बलिया जेल में 18 फरवरी,1931 को निधन हो गया था। उनके साथी सेनानी कहते रहे कि पंडित रामदहिन ओझा के खाने में धीमा जहर दिया जाता रहा और इसी कारण उनकी मृत्यु हुई। बलिया को ही 1857 की प्रथम क्रांति में मंगल पाण्डेय के रूप में पहला विद्रोही देने और बहुत बाद में 1942 में अंग्रेजी शासन के विपरीत चित्तू पाण्डेय के नेतृत्व में पहला भारतीय कलेक्टर देने का गौरव हासिल है। पंडित रामदहिन ओझा ने बहुत कम उम्र में ही तब के कलकत्ता और बलिया के स्वाधीनता सेनानियों और पत्रकारों में अपनी विशिष्ट जगह बना ली थी। वे कलकत्ता से 1923-24 में प्रकाशित साप्ताहिक पत्र 'युगांतर'1 के सम्पादक थे। 'युगांतर' के प्रत्येक अंक पर आजादी का उद्घोष करतीं ये पंक्तिया लिखी रहती थीं-

दासता पास की लड़ी टूटे, मुक्त हों हाथ हथकड़ी टूटे।
राष्ट्र का सिंहनाद घर-घर हो, हे प्रभो देश में युगांतर हो।2

रामदहिन ओझा ने 'शेखावटी' और 'बलिया समाचार' का भी सम्पादन किया। 'सामान्य भाषा की आवश्यकता' शीर्षक से लिखा उनका लेख आज भी प्रासंगिक बना हुआ है। इस लेख में उन्होंने हिन्दी को पूरे देश के लिए सम्पर्क भाषा के रूप में निरूपित किया है। सही अर्थों में मात्र 30 वर्ष के सम्पूर्ण जीवन में रामदहिन ओझा के बहुआयामी पक्ष हैं। कवि, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी उनके यह सारे आयाम देश को समर्पित थे। बीस वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते देशभक्त लेखक पत्रकार रामदहिन ओझा की कलकत्ता और बलिया में स्वतंत्रता योद्धाओं और सुधी राष्ट्रसेवियों के बीच पहचान बन चुकी थी। कलकत्ता के 'विश्वमित्र', 'मारवाणी अग्रवाल' आदि पत्र-पत्रिकाओं में कुछ स्पष्ट नाम तो कुछ उपनाम से उनके लेख और कविताएं छपने लगी थीं। उन्होंने कलकत्ता, बलिया, और गाजीपुर की भूमि को सामान्य रूप से अपना कार्यक्षेत्र बनाया।3

आजादी के लिए अनुप्रेरक लेखनी और ओजस्वी भाषण ही था, जिसके चलते उन्हे बंगाल, बाद में बलिया और गाजीपुर से निष्कासन का आदेश थमा दिया गया। उनकी 'लालाजी की याद में' और 'फिरंगिया' जैसी कविताओं पर प्रतिबंध लगा। वर्ष 1921 में छह अन्य सेनानियों के साथ बलिया में पहली गिरफ्तारी में बांसडीह कस्बे के जिन सात सेनानियों को गिरफ्तार किया गया, पंडित रामदहिन ओझा उनमें सबसे कम उम्र के थे। गांधी जी ने इन सेनानियों को 'असहयोग आंदोलन का सप्तऋषि' कहा था।3 डॉ. प्रभात ओझा (वार्ता) 09:59, 4 सितंबर 2018 (UTC) डॉ प्रभात ओझा[उत्तर दें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

       1। 'युगांतर'की प्रतियां (माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपञ संग्रहालय एवं शोध संस्थान,भोपाल)
       2। भारतीय पत्रकारिता कोश (भाग-दो)- लेखक विजयदत्त श्रीधर 
       3। शहीद रामदहिन ओझा स्मारिका (सम्पादक- ईश्वरदत्त मिश्र)
       4। पत्रकार कृपाशंकर चौबे के लेख से