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माता सरस्वती देवी।

विजयादशमी।[संपादित करें]

परिचय।[संपादित करें]

विजयादशमी शक्ति - साधना का पर्व है। शारदीय नवरात्रों में शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा के नव स्वरूपों के पूजन के पश्चात आशविन शुक्ल दशमी को इसका समापन होता है। नव - रात्र पाप प्रक्षालन और आत्म - शक्ति संचय कर आत्म - विजय प्राप्त्यर्थ शक्ति - पूजन का पर्व है। दशमी, उस अनुष्ठान की सफलतापूर्वक समाप्ति की उपासना का प्रतीक है, आत्म - विजय का द्योतक है।

डॉ. सीताराम झा ' श्याम ' का मानना है, ' जैसे वैदिक अनुष्ठान में तीन (त्रिक) की प्रधानता है, वैसे ही आदि शक्ति की उपासना में दस संख्याओं का महत्व अधिक है। इसी से 'दशहरा' नाम से यह अनुष्ठान विख्यान है।

कृषि प्रधान भारत में खेत में नवधान्य प्राप्ति रूपी विजय के रूप में भी मनाया जाता है। कारण, क्वारी या आशविणी की फसल इन्हीं दिनों काटी जाती है।

धार्मिक इतिहास।[संपादित करें]

उत्तर भारत में विजयादशमी नौरते टांगने का पर्व भी है। बहनों भाइयों के टीका कर कानों में नौरते टांगती है। नौरते टांगने की प्रथा कब शुरू हुई, यह कहना मुश्किल है, परन्तु इसकी पृष्भूमि में नवरात्र पूजन की सफलता और कृषि की उपज की उपलक्ष्य में अपने भाइयों को बधाई रूप में नवरात्र में बोए जौ (अन्न) के अंकुरित रूप नवरात्रीयों को कानों में टांगती हैं। कुमकुम का तिलक करती हैं। दुर्गा पूजा की प्रसादी रूप में पीता हैं मुद्रा।

देवी महालक्ष्मी के लिए विजयादशमी का विशेष सजावट।

विजयादशमी के पावन दिन देवराज इन्द्र ने महादानव वृत्रासुर पर विजय प्राप्त की। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने राक्षस संस्कृति के प्रतीक लंका नरेश से युद्ध के लिए इसी दिन प्रस्थान किया था। श्री राम के समय से पूर्व ही विजयादशमी राजाओं द्वारा सीमोल्लांघन और शास्त्र पूजन के लिए शुभ माना जाता था। श्री राम ने इस दिन रावण पर विजय प प्राप्त की थी, यह धारणा अशुद्ध है, क्योंकि वाल्मीकि रामायण में इसका कहीं उल्लेख नहीं है। फिर वर्षा में श्री राम प्रवर्षण गिरि पर रहे थे। उसके तुरंत पश्चात् सुग्रीव से मैत्री, सीता अन्वेषण और रावण विजय संभव नहीं थे। इसी दिन पांडवो ने अपने प्रथम अज्ञातवास (एक चक्रा नगरी में ब्राह्मण वेश में रहने के उपरान्त) की अवधि समाप्त कर द्रौपदी का वरण किया था। महाभारत का युद्ध भी इसी दिन आरंभ हुआ था।

शक्ति के प्रतीक शस्त्रों का शास्त्रीय - विधि से पूजन विजयादशमी का अंग है। प्राचीन काल में वर्षा काल में युद्ध का निषेध था। अतः वर्षा के चातुर्मास में शस्त्र, शस्त्रागारों में सुरक्षित रख दिए जाते थे। विजयादशमी पर उन्हें शस्त्रागारों से निकालकर उनका पूजन होता है। शस्त्र पूजन के पश्चात शत्रु पर आक्रमण और युद्ध किया जाता है। इसी दिन क्षत्रिय राजा सीमोल्लांघन भी करते थे।

डॉ. राजबली पांडेय के अनुसार, " इस दिन राजा लोग अपराजिता देवी की पूजा कर पर - राज्य की सीमा लांघना आवश्यक मानते थे प्रतापशाली राजा दश दिशाओं को जीतने का अभियान करते थे।

आधुनिक विचार।[संपादित करें]

कालांतर में सीमोल्लांघन का रूप बदल गया। महाराष्ट्र में विजयदशमी सिलंगन अर्थात सीमोल्लांघन रूप में मनाई जाती है। सायंकाल गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में सोना लूटकर गाँव लौटते है और इस सुवर्ण का आदान प्रदान करते हैं।

बंगाल में विजयादशमी का रूप दुर्गा पूजा का है। वहां अनास्थवादी, नास्तिक तत्ता नक्सलवादी भी माथा दुर्गा की कृपा और आशीष चाहते हैं। बंगालियों की धारणा कि आसुरी शक्तियों का समहार कर दशमी का दिन मा दुर्गा कैलास पर्वत प्रस्थान करती है। अतः वे दशहरे के दिन दुर्गा की प्रतिमा की बड़ी धूमधाम से शोभायात्रा निकलते हुए पावित्र नदी या सरोवर अथवा किसी महानद में विसर्जित कर देते हैं।

उत्तर भारत में नवरात्रियों में रामलीला मंचन की प्रथा है। अश्विन शुक्ल प्रतिपदा से मंचन आरंभ कर दशमी के दिन रावण वध दर्शाकर विजयापर्व मनाया जाता है। भव्य शोभायात्रा एवं रामलीला मंचन का विशिष्ट आकर्षण होता है। आबाल वृद्ध लाखों लोग श्रद्धा एवं भक्ति भाव से रामलीला का आनंद लेते हैं।

राष्ट्रीय हितों।[संपादित करें]

विजयादशमी के दिन ही सन १९२५ में भारत राष्ट्र की हिन्दू राष्ट्रीय अस्मिता, उसके अस्तित्व, उसकी पहचान और उसके गौरवशाली अतीत से प्रेरित एक परम वैभवशाली राष्ट्र के पुनर्निर्माण हेतु परम पूज्य डॉ. केशव बलिराम हडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। प्रसिद्ध पत्रकार भानुप्रताप शुक्ल के शब्दों में, " तब से आज तक गांधी हत्या जैसे झूठे आरोपों से लेकर अप्ताकालीन दमन एवं श्री राम मंदिर मुक्ति यज्ञ के बाद के तीन तीन प्रतिबंधों, राजनीतिक प्रताड़नाओं, संचार एवं प्रसार माध्यमों गलाघोंटू दुष्प्रचार और निराधार आरोपों - प्रत्यारोपों तमाम हथकंडों, तमाम घात - प्रतिघातो को झेलते हुए संघ एक विशाल वट वृक्ष की भांति राष्ट्रीय जीवन के हर क्षेत्र में अपनी जड़ें फैलाता और सबको अपनी छाया में संभालता हुआ राष्ट्र की एकता, एकातमथा, सामाजिक समरसता, स्वाभिमान और समर्पण का संस्कार देकर देश की मूलस्त्ता के सजग प्रहरी उत्पन्न करके सबको आश्वस्त करने का भागीरथ प्रयास करता आ रहा है। "

अन्य विचारों।[संपादित करें]

विजयादशमी धार्मिक दृष्टि से आत्म - शुद्धि का पर्व है। पूजा, अर्चना, आराधना और तपोमय जीवन साधना उसका अंग हैं। राष्ट्रीय दृष्टि से सैन्य सक्ती संवर्धन का दिन है। शक्ति के उपकरण शस्त्रों की सुसज्जा, लेखा जोखा तत्ता परीक्षण का त्यौहार है। स्वयं को आराधना और तप से उन्नत करें, राष्ट्र को शस्त्र और सुदृढ करें, यही विजयादशमी का संदेशा है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

[1] [2] [3]

  1. पुस्तक: "आधुनिक हिन्दी निबन्धावली", प्रकाशक: दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, त्यागरायनगर:मद्रास-१७
  2. https://commons.wikimedia.org/w/index.php?search=vijayadashami&title=Special:Search&go=Go&searchToken=3b0t5txh51xiymxegywynmebl
  3. https://en.wikipedia.org/wiki/Vijayadashami