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बलि प्रथा:- एक अभिशाप[1]

देवी देवताओं के सार्वजनिक पूजास्थलों में निरीह जानवर को गाजे बाजे के साथ ले जाकर उसकी हत्या करके अपने आप को बहादुर, धर्मपरायण और पुण्य अर्जित करने वाला भक्त समझते हो? अपने को  घर परिवार और समाज का शुभचिंतक समझते हो? या फिर रूढ़ परंपरा को आगे बढ़ाने वाला अग्रदूत...

इनमें से तुम कुछ नहीं हो। बल्कि नास्तिक से भी गए गुजरे हो। सबसे डरे हुए और भयभीत लोग हो तुम।

और मैं देवता के उस "नर" पश्वा का भी घोर असम्मान करता हूँ, जो देवता बनकर कहता है मुझे बकरे या कोई अन्य पशु की बलि चाहिए। असल मे ये देवता नही बल्कि भूत होते है...ये क्यों नहीं कहता कि मुझे आदमी की या फिर शेर की बलि चाहिए। क्योंकि इनकी हत्या पर आजीवन कारावास या फिर फांसी हो सकती है। और फिर मैं उन जजों का भी घोर विरोधी हूँ जो बकरे में संकल्प देकर ये कह देते हैं कि लो हो गया अब इसने अपने बदन का पानी झाड़ दिया, और देवता ने तुम्हारी बलि स्वीकार कर ली है। अब इसकी हत्या कर दो। और बकरा मारते समय उन्हीं का ये नाटक करना कि मुझसे ये देखा नहीं जाता...मुँह फेर लेते हैं।😊

कितनी हंसी की बात है ये।

समझ नहीं आता कि दुनियां के तौर तरीके बदल गए। धर्म की परिभाषा बदल गई। पूजा पद्धतियां बदल गई । लेकिन कुछ अंधविश्वास के ठेकेदारों को अब भी बकरे के खून में ही रस आता है। पता है? आज तक कोई बलि अस्वीकार क्यों नहीं होती ? क्योंकि ये होने नहीं देते।

और फिर  अन्त में

ॐ जगदीश हरे..स्वामी जय जगदीश हरे

बकरा मार दिया है संकट दूर करो।

सार्वजनिक स्थानों पर ये हत्या का खेल बन्द करो। और इस भूल में भी मत रहो कि तुमने धर्म का कोई तीर मारा है। और सब मौन होकर देख रहे हैं।...बकरा/भेड़/मुर्गा भी परमात्मा की संतान है, तुम परमात्मा की एक सन्तान को मारकर खुद परमात्मा से कैसे सुख की आस करते हो..तुम घोर नरक में ठोके जाओगे.. यदि 40 आदमी एक बकरा खाते है तो तुम सभी अगले जन्म में बकरे बनोगे...तुम्हे बदला पूरा करना पड़ेगा...इसलिए परमात्मा से डरो...जीवों पर दया करो... उनको भी जीने का अधिकार है।

  1. बलि प्रथा, एक अभिशाप. "www.jaimaathawewali.com". गायब अथवा खाली |url= (मदद)