संस्कृत भारती

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अक्षरम, संस्कृत भारती, बंगलुरु

संस्कृत भारती एक सांस्कृतिक संस्था है जो संस्कृत को पुनः बोलचाल की भाषा बनाने में संलग्न है। चमु कृष्ण शास्त्री ने समस्त विश्व में संस्कृतभाषा को पुनर्जीवित करने के लिये इस संस्था स्थापना की।

परिचय[संपादित करें]

संस्कृत भारत की अति प्राचीन भाषा है किन्तु दुर्भाग्य से आधुनिक काल में इसकी उपेक्षा की जा रही है। स्व. बाबासाहब आप्टे संस्कृत के परम आग्रही थे और स्वयंसेवकों को संस्कृत सीखने तथा इसका प्रचार करने के लिए प्रेरित करते थे। इस कारण अनेक स्वयंसेवक इस दिशा में कार्यरत हुए और प्रान्तीय तथा स्थानीय स्तर पर भारत संस्कृत परिषद्, स्वाध्याय मंडलम्‌, विश्व संस्कृत प्रतिष्ठान इत्यादि अनेक कार्य प्रारम्भ किए गए। फरवरी, १९९६ में संस्कृत के क्षेत्र में कार्य करने वाले देश के सभी कार्यकर्ता दिल्ली में एकत्रित हुए जहां उपरोक्त संस्थाओं का विलय करके अखिल भारतीय स्तर पर "संस्कृत भारती' की स्थापना हुई।

संस्कृत भारती का मुख्य उद्देश्य है - संस्कृत का प्रचार-प्रसार करना और संस्कृत-संभाषण सिखाकर इसे फिर से व्यावहारिक भाषा बनाना। जब लोगों के मन में संस्कृत के प्रति प्रेम जागेगा तो संस्कृति के प्रति भी स्वाभाविक प्रेम उत्पन्न होगा।

संस्कृत भारती द्वारा "संस्कृत-संभाषण शिविर" आयोजित किये जाते हैं। इनमें दस दिन तक प्रतिदिन दो घंटे के प्रशिक्षण द्वारा बालक-बालिकाएं संस्कृत में संभाषण करने योग्य हो जाते हैं। संस्कृत संभाषण सिखाने के लिए संस्कृत के आचार्यों को प्रशिक्षण दिया जाता है। अब तक ऐसे हजारों आचार्यों द्वारा लाखों लोगों को संस्कृत-संभाषण सिखाया जा चुका है। पत्राचार द्वारा संस्कृत अध्ययन की योजना चार भाषाओं में प्रारम्भ हो चुकी है और हजारों लोग इसका लाभ ले चुके हैं। देश के सभी प्रान्तों में संस्कृत भारती का कार्य प्रारम्भ हो चुका है और लगभग ३०० पूर्णकालिक कार्यकर्ता इसमें कार्यरत हैं।

संस्कृत भारती द्वारा कुछ अन्य प्रयास भी किए जा रहे हैं जिनमें प्रमुख हैं- "संस्कृत परिवार योजना" और "संस्कृत ग्राम योजना'। "संस्कृत बालकेन्द्रम्"' योजना के द्वारा बच्चों को खेलों के माध्यम से संस्कृत व संस्कृति का ज्ञान दिया जाता है। संस्कृत भारती के प्रयासों से कर्नाटक के मत्तूर जिले के एक ग्राम में संस्कृत आम बोल-चाल की भाषा बन गई है।

कार्य के लक्ष्य[संपादित करें]

१) व्यावहारिक भाषा के रूप में संस्कृत की पुन्ः स्थापना

२) शैक्षिक परिवर्तन

३) स्वाध्ययन सामग्री का निर्माण

४) सान्ध्य शिक्षण केन्द्रों का संचालन

५) शास्त्र शिक्षण

६) नव साहित्य का निर्माण

७) दूरस्थ शिक्षण कार्यक्रम

कार्यक्रम[संपादित करें]

कार्यक्रमाः[संपादित करें]

लक्ष्यसाधने कार्यक्रमाः साधनभूताः भवन्ति । कार्यक्रमः एव उद्देशः न, उद्देशार्थं कार्यक्रमः भवति । विचारप्रचारः, भाषशिक्षणं, कार्यकर्तृनिर्माणं, धनसङ्ग्रहः, नूतनक्षेत्रप्रवेशः, उत्साहवर्धनं, सङ्घटनं, कार्यस्य दृढीकरणम् इत्यादीन् विविधान् उद्देशान् साधयितुं तदनुगुणं कार्यक्रमान् रूपयामः । स्थानीयस्तरे कर्तुं योग्याः कार्यक्रमाः, जिला-महानगर-विभाग-राज्यस्तरेषु कर्तुं योग्याः कार्यक्रमाः इति अत्र द्विधा दद्मः ।

स्थानीय स्तर पर[संपादित करें]

  • सम्भाषणशिबिरम्
  • साप्ताहिकमेलनम्
  • संस्कृतदिवसः संस्कृतसप्ताहश्च
  • प्रतियोगिताः (स्पर्धाः)
  • संस्कृतबालकेन्द्रम्
  • सान्ध्यशिक्षणकेन्द्राणि
  • विविधजयन्त्यः / सामाजिकसमरसतादिनम्
  • पत्रालयद्वारा संस्कृतशिक्षणम्
  • संस्कृतगृहम्
  • स्नेहमेलनम् / कौमुदीकार्यक्रमः
  • संस्कृतप्रवासः
  • संस्कृतसन्ध्या
  • प्रदर्शिनी
  • शोभायात्रा
  • वीथीनाटकम्
  • वीथीभाषणम्
  • सम्भाषणशिबिरप्रात्यक्षिकाणि
  • सन्देशाभियानम्
  • सम्पर्कसप्ताहः / सम्पर्कपक्षः
  • छात्रशिक्षणशिबिरम्
  • स्वाध्यायशिबिरम्
  • संस्कारशिबिरम् / ग्रीष्मशिबिरम्

मण्डल/महानगर/विभाग/राज्य स्तर पर[संपादित करें]

  • अभ्यासवर्गः
  • भाषाबोधनवर्गः
  • शिक्षकप्रशिक्षणशिबिरम्
  • व्याकरणशिबिरम् / सिद्धान्तकौमुदीशिबिरम्
  • संस्कृतगृहसम्मेलनम्
  • शिक्षकसम्मेलनम्
  • छात्रसम्मेलनम्
  • महिलासम्मेलनम्
  • शास्त्रगोष्ठी / शास्त्रशिबिरम्
  • संस्कृतविज्ञानकार्यक्रमाः
  • शैक्षिककार्यशाला
  • नाटकोत्सवः
  • सम्भाषणोत्सवः / शिबिराभियानम्
  • व्यक्तित्वविकासशिबिरम् (नेतृत्वप्रशिक्षणम्)

चित्रवीथिका[संपादित करें]

  • पदाधिकारी

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]