वृहत मीटरवेव रेडियो दूरबीन
वृहत मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप | |
चित्र:Giant Metrewave Radio Telescope, Pune, Maharashtra, भारत.jpg वृहत मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप | |
संगठन | राष्ट्रीय खगोल भौतिकी केन्द्र |
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स्थिति | नारायणगाँव से १० कि.मी. पूर्व, भारत |
तरंगदैर्घ्य | रेडियो ५० से १५०० मेगा-हर्ट्ज़ |
निर्माण | प्रथम दृष्टि - १९९५ |
दूरदर्शक श्रेणी | ३० अनुवृत्तिक प्रतिक्षेपकों की सारणी |
व्यास | ४५ मीटर |
संग्रहण क्षेत्रफल | ६०,७५०m२ |
स्थापना | ऑल्ट-ऍज़िमथ, पूर्णतया घुमावदार प्राथमिक (दर्पण) |
जालस्थल | http://www.gmrt.ncra.tifr.res.in |
वृहत मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप भारत के पुणे शहर से ८० किलोमीटर उत्तर में खोडद नामक स्थान पर स्थित रेडियो दूरबीनों की विश्व की सबसे विशाल सारणी है। [1],[2] इसकी स्थिति १९° ५'४७.४६" उत्तरी अक्षांश रेखा तथा ७४° २'५९.०७" पूर्वी देशान्तर रेखा पर है। यह टेलिस्कोप दुनिया की सबसे संवेदनशील दूरबीनों में से एक है। इसका संचालन पुणे विश्वविद्यालय परिसर में स्थित राष्ट्रीय खगोल भौतिकी केन्द्र (एनसीआरए) करता है जो टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (टी आइ एफ़ आर) का एक हिस्सा है। इस दूरबीन के केन्द्र में वर्ग रूप से १४ डिश हैं तथा तीन भुजाओं का निर्माण १६ डिश से हुआ है, जनमें से प्रत्येक का व्यास ४५ मीटर है। इस प्रकार २५ किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह जायंट मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप ३० दूरबीनों का समूह है। इसका कोई सलग पृष्ठभाग नहीं है क्योंकि यह दूरबीन पॅराबोलिक आकार में तारों का एक जाल है। पृष्ठभाग न रखकर इसका वजन कम किया गया है और कम पावर की मोटरों को लगाकर उनकी जगह बदलने की व्यवस्था भी की गई है। सभी डिशों को अत्यन्त सूक्ष्मता पूर्वक सभी दिशाओं में घुमाया जा सकता है। इस रचना का पेटंट है और खगोलशास्त्रज्ञ डॉ॰ गोविंद स्वरूप इसके जनक हैं। वृहत मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप की विशेष और स्वाभिमानवाली बात यह है कि इसका डिश एंटीना ही नहीं बल्कि संपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक्स भी भारत में भारतीय वैज्ञानिकों ने तैयार किया है।[3]
वृहत मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप मुख्यतः कम ऊर्जा वाली लहरों के लिए बनाया गया है। इसमें ५० मेगॅहर्टज़ से १४२० मेगॅहर्टज़ फ्रिक्वेंसी मापक है। इस स्पेक्ट्रम में जितनी लहरें हैं उनका अभ्यास हो सकता है। वृहत मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप से दुनिया का हाइड्रोजन देखा जा सकता है। बहुत करीब का यानि आकाशगंगा और बहुत दूर का मतलब अभी तक हम जितनी दूर का देख सकते हैं वहाँ का हाइड्रोजन देखने के लिए यह दूरबीन बहुत उपयुक्त साबित हुई है। इससे गुरु ग्रह के बारे में भी जाना जा सकता है क्योंकि गुरु में बहुत हाइड्रोजन भरा हुआ है और उसके तापमान को रेडिओ लहरी पर पढ़ा जा सकता है। जब तारे टूटने के बाद पल्सर की जानकारी भी वृहत मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप की सहायता से हो सकती है। एनसीआरए में छात्रों के लिए खगोल विज्ञान तथा खगोल भौतिकी में अनुसंधान की उन्नत केंद्रीयकृत सुविधाएं उपलब्ध हैं। इसमें संचालित की जाने वाली प्रमुख गतिविधियों में ब्रह्माण्डविज्ञान, संस्थापित एवं प्रमात्रा गुरुत्व, गुरुत्वाकर्षण तरंग खगोल विज्ञान तथा उच्च ऊर्जा भौतिक विज्ञान सम्मिलित है।[4]
इसका आकार अमेरिक के वीएलए दूरबीन की ही तरह Y आकार का है। ब्रहांड के विभिन्न जगहों (सितारों, निहारिकाओं, पल्सार आदि) को देखने के लिए पूरी दुनिया के खगोलविद् इस दूरबीन का नियमित उपयोग करते हैं। भारत के राष्ट्रीय विज्ञान दिवस को यह दूरबीन आमजनता के दर्शन के लिए खोल दी जाती हैं एवं इस दिन कोई भी इसके दर्शन कर सकता है। अन्य दिवसों में इस अंतर्राष्ट्रीय दूरबीन के प्रयोग के लिए लिखित अनुमति लेनी होती है। जिसे इसके प्रयोग की आवश्यकता होती है उसे एक पत्र लिखना होता है। उसमें दूरबीन से क्या देखना चाहते हैं, क्यों देखना चाहते हैं, क्या सीखना चाहते हैं, कितने समय के लिए चाहिए आदि बातों का उल्लेख करना आवश्यक होता है। एक समिति, जिसमें वृहत मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप और अन्य संस्थाओं के विशेषज्ञ हैं, इस विषय में निर्णय लेती है। यह पत्र दुनिया में कोई भी इंसान लिख सकता है, चाहे वह खगोलशास्त्र का पंडित हो चाहे न हो, उससे कुछ पूछा नहीं जाता। रेडिओ दूरबीन होने के कारण वहाँ मोबाईल सेवा सख्ती से बंद है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Ananthakrishnan, S. (१९९५). "जीएमआरटी". खगोल भौतिकी और खगोल विज्ञान जर्नल.
- ↑ Ishwara-Chandra, C H; Rao, A Pramesh (२००५). "कम तरंगदैर्य रेडियो अवलोकन जीएमआरटी". चीनी खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी जर्नल.
- ↑ "जायंट मीटरवेव्ह रेडीओ टेलिस्कोप" (मराठी में). मिसलपाव. मूल से 20 अगस्त 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २ जून २००९.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में रोज़गार के अवसर - डॉ॰ सीमिन रुबाब". रोजगार समाचार. मूल से 26 सितंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २ जून २००९.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)